आपने शुरुआत अपनी खुशियों से शुरू किया था, ये देखकर अच्छा लगा मुझे विश्वास है कि अंत भी खुशियों से हीं होगीभाग 1
मेरे पिताजी के छोटे से किसान थे......ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े से हमारा गुज़र बसर होता था| पिताजी को मैं 'बप्पा' कह कर बुलाती थी.........वो शुरू से ही बड़े सख्त स्वभाव के व्यक्ति थे| उन्हें अपने बच्चों से कोई मोह नहीं था.........क्योंकि मैंने बप्पा को कभी मुझे या मेरे भाई-बहन को गोदी ले कर खिलाते हुए नहीं देखा| हमें जब भी बप्पा से मोह चाहिए होता था तो हम खुद ही उनके पास चले जाते..............कभी उनकी थाली से थोड़ा खा लेते तो कभी उनकी काम में मदद कर उनके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान देख कर खुश हो लेते| हाँ बप्पा को अपने नाती नातिन से मोह जर्रूर था…………… सबसे ज्यादा आयुष ने अपने नाना जी का प्यार पाया| आयुष में अपने पापाजी..........यानी लेखक जी के सारे गुण थे| मनमोहनी सी सूरत............प्यार और अदब से बात करने का ढंग..................सबको 'जी' लगा कर बुलाना!!!! ये सब आदतें बप्पा को बहुत पसंद थी इसलिए वो आयुष को सर आँखों पर बिठा कर रखते थे| नेहा सबसे बड़ी थी लेकिन फिर भी उसे अपने नाना जी का थोड़ा बहुत प्यार मिला.................पर जब नेहा स्कूल में अव्वल आने लगी तो बप्पा पूरे गॉंव में नेहा की तारीफ करते नहीं थकते थे| हाँ वो ये तारीफ कभी नेहा के सामने नहीं करते थे.................नेहा को प्यार के रूप में कभी कभी बप्पा एक टॉफी देते थे और ये ही नेहा के लिए सब कुछ होता था| वो बड़े गर्व से मुझे ये टॉफी दिखाती और मैं हमेशा कहती की "बेटा तो बहुत खुसकिस्मत है जो तुझे टॉफी मिली!"
मेरे बड़े भैया जिन्हें मैं भाईसाहब कह कर बुलाती हूँ..........उनका नाम प्रताप मौर्या है| जैसा भाईसाहब का नाम था वैसे ही उनका गाँव में रुआब था| जैसे शहरों में कॉलेज में लीडर होते हैं....................जिसकी अलग ही धाक होती है................ वैसे ही मेरे भाईसाहब की गॉंव में अलग ही धाक थी| जब भी गॉंव में किसी को मदद की जर्रूरत पड़ती तो सबसे पहले मेरे भाईसाहब को बुलाया जाता और वो अपना दल बल ले कर मदद करने पहुँच जाते......................फिर चाहे छप्पर छाना हो................भागवत बैठानी हो.......................भोज करवाना हो......................या किसी दूसरे गॉंव से कोई जानबूझ कर जानवर हमारे खेतों में छोड़ने पर हुए नुक्सान की भरपाई करवानी हो...............मेरे भाईसाहब हमेशा आगे रहते|
भाईसाहब ने पहलवानी शुरू कर दी थी इसलिए उनकी कद काठी इतनी बड़ी थी की अच्छे खासे लोग उनसे घबराने लगते थे| बप्पा..........जिनसे हम सब डरते थे वो तक भाईसाहब के इस रुआब से डरते थे!!!! पिताजी चाहते थे की भाईसाहब एक साधरण किसान की तरह रहे जबकि मेरे भाईसाहब की सोच अलग थी..............उन्हें तो बड़ा बनना था..........ढेर सारे पैसे और शोहरत कमानी थी!!!! यही कारन है की दोनों बाप बेटे में नहीं बनती थी!!!!!!!!!!
जब गॉंव में चुनाव होते तब तो भाईसाहब की अलग ही चौड़ रहती थी...............हमारे गॉंव के मुखिया सारा समय भाईसाहब को अपने संग लिए फिरते| कई बार दूसरे गॉंव के मुखिया के हमारे गॉंव में आने पर दोनों दलों के बीच झड़प होती जिसमें मेरे भाईसाहब सब पर अकेले भारी पड़ते! बप्पा को इस मार पिटाई से नफरत थी इसलिए वो हमेशा भाईसाहब से खफा रहते|
सन १९८० के दिसंबर माह में मेरा जन्म हुआ तो मुझे माँ से ज्यादा मेरे भाईसाहब का लाड मिला| भाईसाहब मुझसे उम्र में ५ साल बड़े हैं इसलिए जब मैं पैदा हुई तो भाईसाहब ने मुझे खूब लाड-प्यार किया| मेरे जीवन के शुरआती दो साल मेरे भाईसाहब के कारण सबसे ज्यादा प्यारभरे साल थे| दिन के समय जब भाईसाहब स्कूल जाते तो मैं घर पर अकेली हो जाती..................लेकिन जैसे ही भाईसाहब घर लौटते वो अपना झोला फेंक मुझे गोदी में उठा लेते और मैं ख़ुशी से चहकने लगती| मेरे जन्मदिन वाले दिन भाईसाहब मुझे संतरे की गोली वाली टॉफी ला कर देते और...............कभी मुझे पीठ पर लादे.........कभी मुझे गोदी लिए हुए............तो कभी मेरा हाथ पकड़े गॉंव भर में टहला लाते| भाईसाहब की दी हुई वो एक टॉफी मेरे लिए क्या मोल रखती थी ये लिख पाना मुश्किल है...................हाँ इतना कह सकती हूँ की उस ख़ुशी के आगे आजकल के फैंसी केक फ़ैल हैं!!!!
जब मैं दो साल की हुई तो मेरी छोटी बहन जानकी पैदा हुई……….जानकी के पैदा होने पर भाईसाहब को इतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी मेरे पैदा होने पर हुई थी| जानकी और मेरी शुरू से नहीं बनती थी................जब भी मैं उसके पास खेलने के लिए जाती तो मुझे देखते ही वो रोने लगती| मैं उसे छू भर लूँ तो वो ऐसे रोती मानो मैंने उसे कांटें चुभो दिए हों!!!!! ऊपर से उसके रोने पर मुझे मेरी माँ जिन्हें मैं 'अम्मा' कह कर बुलाती हूँ..............वो डाँटने लगती!!! मुझे जानकी पर बहुत गुस्सा आता और मैं सीधा अपने भाईसाहब के पास शिकायत ले कर पहुँच जाती| “ई.....छिपकली का कहीं बहाये आओ!!!” मैं मुँह बिदका कर कहती और भाईसाहब अपना पेट पकड़ कर हंसने लगते!!!!!
जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो माँ ने जानकी को खिलाने की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी| मेरे साथ खेलना तो जानकी को पसंद था नहीं मगर फिर भी वो मेरे पीछे पीछे 'दुम' की तरह घूमती रहती थी| जब मैं उससे अपने साथ खेलने को कहती तो वो दूर जा कर मिटटी में खेलने लगती!!!! जब अम्मा जानकी को मिटटी में खेलते हुए देखती तो वो मुझे डाँटने लगतीं की मैंने क्यों नहीं उसे रोका! अब ये छिपकली की दुम मेरी बात माने तब न!!!!!!
जानकी और भाईसाहब की ज्यादा बनती नहीं थी.............कभी कभी तो बिना कोई नखरा किये भाईसाहब की गोदी में चली जाती..............तो कभी कभी ऐसे नखड़े करती मानो कोई महारानी हो!!!!!!!! भाईसाहब किसी बात का बुरा नहीं लगाते और जानकी को भी थोड़ा बहुत लाड प्यार करते...................मगर मेरे जितना लाड नहीं करते|
जब मैं तीन साल की हुई तो मेरी सबसे छोटी बहन सोनी पैदा हुई........... शुरू से ही सोनी के नयन नक्श तीखे थे.............वो इतनी सुन्दर थी की क्या कहूं............जहाँ जानकी हमेशा रोती रहती थी..............सोनी हमेशा मुस्कुराती रहती थी..............और किसी की भी गोद में जाने में कोई नखरा नहीं करती थी| जब मैंने सोनी को पहलीबार गोदी में लिया तो वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी..............उसी पल मुझे अपनी छोटी बहन से प्यार हो गया| मैं सारा समय उसके ऊपर किसी मक्खी की तरह भिनभिनाती रहती और उसे खिलाने की कोशिश करती रहती| जानकी को ये देख कर जलन होती इसलिए वो कभी कभी सोनी से लड़ना आ जाती और तब मैं बड़ी बहन होते हुए जानकी को पीछे से उठा कर दूर बिठा आती ताकि वो मेरी छोटी बहन को तंग न करे|
भाईसाहब को सोनी पसंद थी मगर मुझे भाईसाहब अपनी बड़ी बेटी मानते थे और सबसे ज्यादा मुझे ही लाड करते थे| कभी कभी वो हम तीनों बहनों के साथ बैठ कर खेलते थे और ये दृश्य इतना प्यारा होता था की अम्मा खाना बनाना छोड़ कर हमारे पास खेलने आ जातीं| अम्मा का भाईसाहब से लगाव बहुत था...........और ये बात हम तीनों बहनें जानती थीं| लेकिन जब माँ अपने चारों बच्चों के साथ खेलने आ जाती तो हम तीनो बहनें ख़ुशी से भर जातीं| उस पल लगता था मानो यही स्वर्ग है और इस ख़ुशी से ज्यादा कुछ चाहिए ही नहीं!!!

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