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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

भाग १०२ - सुगना और उसके ससुर -सूरजबली सिंह पृष्ठ १०७३

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Last edited:

Sutradhar

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बुच्ची-..... फूफेरी बहन …सुमन
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और एक बार बियाह तय हो जाये तो घर का रंग बदल जाता है, महीने भर पहले से गेंहू, और अंजाज साफ़ करना, कूटना, पीसना और सब घर काम करने वालियों से भरा रहता था, कुछ मेहमान भी

और दर्जन भर काम करने वालियां, कहीं गेहूं सुखाया जा रहा है, पछोरा जा रहा है, पीसा जा रहा है, कहीं चक्की चल रही है, और साथ में जांते का गाना, बिना गाये काम सपड़ता नहीं और थोड़ी देर में गाना असली गारी में, जो सामने पड़ा, उसी पे

और सबसे ज्यादा दूल्हे की माँ, सूरजबली सिंह की महतारी, और वो खुद ही काम वालियों को उकसाती, कोई गाँव के रिश्ते से ननद लगती, कोई बहू, और उन्ही के साथ सूरजबली सिंह के एक रिश्ते की फूफेरी बहन, नाम तो सुमन था लेकिन सब लोग बुच्ची कहते थे। तो दूल्हे की बहन तो गरियाई ही जायेगी,

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बुच्ची के पीछे पड़ने का एक और कारण था, वो चिढ़ती बहुत थी। और अगर कोई ननद चिढ़े तो फिर तो भौजाइयां उसे, और गाँव का मजाक गाने तक नहीं रहता सीधे देह तक पहुँच जाता


और ऊपर से सूरजबली सिंह की माँ, और उन काम वालियों का साथ देतीं, बुच्ची को बचाने के बहाने,


' अरे बेचारी ये छिनार है तो इसका का दोष, एकर महतारी तो खानदानी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार, झांट आने के पहले गाँव भर के लौंडों का स्वाद चख ली थी, ( सूरज बली सिंह के फुफेरी बहन की महतारी, मतलब उनकी बूवा यानी उनकी माँ की ननद,... तो फिर तो गरियाने वाला रिश्ता हुआ ही )।
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और कोई नाउन कहारिन सूरजबली सिंह की महतारी क सह पाके और बोलती,

" हे बुच्ची, तोहार भैया लंगोट में बांध के रखे हैं, सबसे पहले तोहें खिलाएंगे, ....झांट वांट साफ़ कर के तैयार रहा "
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तो फिर सूरजबली सिंह की माई, मजा लेते बोलतीं,

" तो का हुआ, यह गाँव क तो रीत है, स्साली कुल लड़कियां भाई चोद हैं, सब अपने भाई को सीखा के पक्का कर देती हैं, बियाह के पहले तो इहो अपने भैया के साथे गुल्ली डंडा खेल लेगी, "

लेकिन मामला गाँव में एकतरफा नहीं रहता, जांता पीसती गाँव की कोई लड़की ( जो सूरज बली सिंह की माई की ननद लगती ) चटक के बोलती,

" अरे भौजी, ननद लोगन का बड़ाई करा, की भाई लोगन क सिखा पढ़ा के, अरे तभी तो कुल दूर दूर से हमार भौजाई लोग आती है , उनकी महतारी भेजती हैं गुल्ली डंडा खेलने के लिए। ....और लंगोट खोलवाने का काम काम तो देवर के भौजाई लोगन क भी है "
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और सूरजबली सिंह की माई पाला बदल के अपनी गाँव की बहुओं को ललकारतीं,


" हे देखा,.... इतनी भौजाई बैठी हैं, हमको तो कुछ नहीं है हम तो सास है। महीना भर बाद तोहार देवरानी उतरी तोहीं लोगन क कोसी,.... की ये जेठानी लोग कुछ गुन ढंग अपने देवर को नहीं सिखाई, इतने दिन में लगोट भी नहीं खोल पायीं अपने देवर का "

और बात सही भी थी, गाँव में कोई भी ऐसा लड़का नहीं था जो शादी के पहले कम से कम दस बारह, और दस बारह बार नहीं, दस बारह से,गन्ने के खेत में तो, कोई छोड़ता नहीं था, ... बस पेटीकोट उठा, पाजामा सरका और निहुरा के गपागप गपागप


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और उनमे भी ज्यादातर खूब खेली खायी काम करने वाली, तो कोई और शादी शुदा, लेकिन सूरजबली सिंह का लंगोट,....



मुझसे नहीं रहा गया और मैं अपनी सासों की गोल में पूछ बैठी, " तो सूरज बली सिंह का लंगोट खोला किसने"



अब तो वो हंसी का दौर पड़ा, बड़ी मुश्किल से सब लोग चुप हुए फिर ग्वालिन चाची ने बड़की नाउन ( गुलबिया की सास ) की ओर इशारा करके बोला

" इनकी देवरानी ने, .....इमरतिया। "
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वाह कोमल मैम


प्रकरण की शुरुआत तो शानदार है और लगता है कि इमारतिया का मामला कुछ - कुछ इसी कहानी के एक पहलवान देवर से होली खेलने जैसा होगा।

खैर जो भी हो, पाठकों के मन को आप से ज्यादा कौन जनता हैं इसलिए लगता है आगे कहानी बहुत रोमांचकारी होने जा रही है।


अपडेट के इंतजार में।


सादर
 
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