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Fantasy काल्पनिक इच्छाओं का फरमान

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Writos

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यह कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है. इसका किसी भी धर्म, वर्ग, कास्ट, जात, स्थान एव व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध और लेना देना नहीं है. अगर ऐसा पाया जाता है तो ये मात्र एक संजोक होगा. काल्पनिक इच्छाओं का फरमान यह कहानी WRITOS के द्वारा मात्र स्टोरी रीडर्स के मनोरंजन के लिए हिन्दी मे लिखी गई है. फिर भी किसी व्यक्ति या समुह को स्टोरी और उसके अपडेट से समस्या हो तो वह प्राइवेट मैसेज करके स्टोरी के उस पार्ट या पूरी स्टोरी को हटवा सकता है. हटवाने का कारण सही होगा तो 24 घंटे मे वह पार्ट या पुरी स्टोरी हटा दी जाएगी.
 
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Writos

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पार्ट 1

सूरज क्षितिज के नीचे डूब गया, और चहल-पहल भरे कॉलेज परिसर में लंबी, सुनहरी परछाइयाँ छा गईं। छात्र व्याख्यान कक्षों और कक्षाओं से बाहर निकल आए, उनकी हँसी और बकबक हवा में युवा जोश की एक सिम्फनी की तरह गूंज रही थी। उनमें से एक अर्जुन सिंह भी था। अर्जुन सिंह एक 23 साल का एक लंबा, मसल युक्त युवक, शांत और गंभीर स्वभाव का। अपनी किताबों को एक हाथ में कसकर पकड़े, वह भीड़ के बीच टहल रहा था, उसका मन अभी भी दिन के व्याख्यानों में उलझा हुआ था।


जैसे ही वह कैंपस के गेट से बाहर निकला, पास के पेड़ से आती चमेली की जानी-पहचानी खुशबू ने उसे घेर लिया। यह एक सुकून देने वाली खुशबू थी, जिसने उसे घर की याद दिला दी या कह सकते है कि उसकी इच्छाओं को जागृत कर दिया


उसके पिता, विजय सिंह ने बरसों पहले यही पेड़ लगाया था, यह दावा करते हुए कि यह उनके परिवार के लिए सौभाग्य लाएगा। अर्जुन अक्सर सोचता था कि क्या यह पेड़ था या ज्योतिषी, जो उनके भाग्य का असली स्रोत था—या शायद दुर्भाग्य का। वह अपना सिर हिलाता था, और इस विचार को ऐसे दूर भगाता था जैसे दूर से आने वाली अगरबत्तियों का धुआँ अक्सर उनके मोहल्ले में फैल जाता था।


उसके आगे, एक चिकनी, काली कार फुटपाथ पर आकर रुकी। ड्राइवर की तरफ का दरवाज़ा खुला और उसके घर के पास की पड़ोसी नेहा गुप्ता बाहर निकलीं।


नेहा गुप्ता एक 32 साल की शादी शुदा पढ़ी लिखी मॉडर्न विचारों वाली खूबसूरत महिला। जिसके बदन का रंग गोरा मानो कोई अप्सरा आई हो स्वर्ग से। शारीरिक रूप से एक दम सही।


अर्जुन यह देखे बिना नहीं रह सका कि उसकी साड़ी—नारंगी और सुनहरे रंगों की एक चटकीली छटा—गोधूलि के आसमान के गहरे रंगों से कितनी एक जैसी लग रही थी। वह आत्मविश्वास और शालीनता की प्रतिमूर्ति थी, मोबाईल से बात करते हुए उसकी हँसी गूँज रही थी।


उसने अर्जुन को देखा और हाथ हिलाया, "अर्जुन! बिल्कुल वही आदमी जिसे मैं देखने की उम्मीद कर रही थी।"

अर्जुन ने अपनी गति तेज कर दी, उसके मुँह के कोनों पर एक मुस्कान तैर गई। "नेहा आंटी, आपको देखकर अच्छा लगा।" उसने उसका बढ़ा हुआ हाथ पकड़ लिया, उसकी पकड़ की गर्माहट महसूस की।

"कैसे हो? और अंकल हर्षित कैसे हैं?"

नेहा ने एक चमकदार मुस्कान बिखेरी और अपने बालों की एक लट कान के पीछे कर ली। "वह ठीक है, अर्जुन। हमेशा की तरह काम के सिलसिले में शहर से बाहर है।" अर्जुन ने पूछा कि, आंटी आज आना कैसे हुआ मेरे कॉलेज में।

नेहा ने हस्ते हुए कहा, दरसल कुछ खास नहीं मेरे ससुर इस कॉलेज के ट्रस्टी है तो कुछ डॉक्यूमेंट चेक करने आई थी।फिर कुछ देर तक इधर उधर की बाते हुई।


किसी बात पर अर्जुन ने हंसते हुए कहा। मुझको लगा कि आप हमारी नई प्रॉफेसर बन करी आई हो। फिर कुछ अन्य बाते हुई और बातों बातों में उसे हर्षित की लगातार व्यापारिक यात्राओं के कारण अक्सर होने वाले नेहा के अकेलेपन का संकेत समझ आ गया।


उसने कंधे उचका दिए, उसकी आँखें अप्रत्याशित शरारत से चमक उठीं।


अर्जुन, मेरे पास तुम्हारे लिए एक छोटा सा सरप्राइज़ है," नेहा ने खुशी से आँखें चमकाते हुए कहा। "आज रात मेरे साथ डिनर पर आना पसंद करोगे? बस यूँ ही, कुछ ख़ास नहीं।"


अर्जुन झिझका, निमंत्रण सुनकर चौंक गया। उसके और नेहा के बीच हमेशा से ही एक गर्मजोशी भरा, पड़ोसी जैसा रिश्ता रहा था, लेकिन डिनर का निमंत्रण उसे अलग, ज़्यादा आत्मीय लगा। फिर भी, उसकी आज़ाद ख्याली और आधुनिक विचारों में कुछ ऐसा था जो उसे वाकई आकर्षित कर रहा था।
"उफ़, मुझे नहीं पता, नेहा आंटी। मैंने पापा से नहीं पूछा कि


क्या सब ठीक रहेगा?"


नेहा ने हाथ हिलाकर मना किया।


"अरे, इसकी चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पापा को फ़ोन करके बता दूँगी कि तुम आ रहे हो। और हाँ," उसने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "अब तुम बड़े नहीं हो? तुम अपने फ़ैसले ख़ुद ले सकते हो।"


अर्जुन के गालों पर हल्की सी गर्मी महसूस हुई। उसने कोई वाजिब बहाना ढूँढ़ते हुए अपने बालों में हाथ फेरा। "लेकिन मेरी पढ़ाई का क्या होगा? मुझे कुछ पढ़ना है।"


"अर्जुन, अभी तो बस खाना है। मैं वादा करती हूँ कि हम तुम्हें देर तक नहीं रोकेंगे। और कौन जाने?" नेहा की आँखों में चुनौती की एक झलक दिखाई दी।


"इसके अलावा, हर कॉलेज छात्र को कभी-कभार किताबों से ब्रेक की ज़रूरत होती है। और इस ब्रेक को किसी मिलनसार पड़ोसी से बेहतर और कौन साझा कर सकता है?"


अर्जुन अपने कर्तव्यबोध और नेहा के स्नेहपूर्ण आमंत्रण के आकर्षण के बीच फँसा हुआ था। उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली और उसे एहसास हुआ कि उसके पिता को उसके जाने का पता चलने में अभी कुछ घंटे बाकी हैं। उसने गहरी साँस ली, उसके मन में निर्णय पहले ही हो चुका था।
 

Writos

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पार्ट 2


"ठीक है, नेहा आंटी। डिनर अच्छा लग रहा है। मैं अभी कपड़े बदलने के लिए अपने घर आता हूँ और फिर आ जाऊँगा।"
नेहा ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा, उसकी मुस्कान चमक रही थी।


"वाह! फिर थोड़ी देर में मिलते हैं।" वह मुड़ी और अपनी कार में वापस बैठ गई, अर्जुन फुटपाथ पर खड़ा रह गया, उसका दिल उत्सुकता और बेचैनी के मिश्रण से ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
अर्जुन जल्दी से घर पहुँचा, उसके मन में कई सवाल घूम रहे थे। नेहा क्या कर रही थी? अचानक निमंत्रण क्यों? उसने परेशान करने वाले विचारों को एक तरफ़ धकेल दिया और खुद को याद दिलाया कि नेहा तो बस एक पड़ोसी और परिवार की दोस्त है। एक साधारण से डिनर के निमंत्रण में कुछ भी संदिग्ध नहीं था।
जैसे ही वह अपने घर में दाखिल हुआ, ताज़ा पके हुए भोजन की खुशबू ने उसका स्वागत किया।


उसके पिता विजय सिंह लिविंग रूम के सोफ़े पर बैठे अख़बार पढ़ने में मग्न थे। जैसे ही अर्जुन अंदर आया, उन्होंने ऊपर देखा, उनकी आँखों में खिड़की से आती दोपहर की रोशनी पड़ रही थी।


“अर्जुन, तुम वापस आ गए।” विजय सिंह ने अखबार मोड़कर साइड टेबल पर रख दिया। “तुम्हारा दिन कैसा रहा?”
"अच्छा हुआ, पापा," अर्जुन ने थोड़ी सी तनी हुई आवाज़ में जवाब दिया। उसे पता था कि उसे नेहा के निमंत्रण के बारे में अपने पापा को बताना ही होगा, लेकिन ये शब्द उसकी ज़ुबान पर भारी लग रहे थे।


विजय सिंह ने अपने बेटे की आवाज़ में झिझक देखी।
वह आगे झुका, उसकी निगाहें तेज़ थीं, "सब ठीक तो है अर्जुन? तुम परेशान लग रहे हो।"


अर्जुन ने गहरी साँस ली, यह जानते हुए कि वह सच नहीं छिपा सकता। "नेहा गुप्ता ने मुझे डिनर पर बुलाया था। उसने कहा कि यह बस यूँ ही बात है, लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता था।"
विजय सिंह के चेहरे पर तटस्थ भाव था, लेकिन अर्जुन अपने पिता के मन में चल रहे विचारों को भाँप सकता था। "नेहा ने तुम्हें खाने पर बुलाया है?" विजय सिंह ने अपनी आवाज़ में पूछा। "उसने कितनी सोच-समझकर बात कही है।"


अर्जुन ने अपने पिता को ध्यान से देखा और उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, "आपको कोई आपत्ति तो नहीं है?"
मेरा मतलब है, यह सिर्फ एक दोस्ताना डिनर है," अर्जुन ने किसी भी संभावित तनाव को कम करने की उम्मीद करते हुए जल्दी से कहा।


विजय सिंह ने हाथ हिलाकर चिंता को टाल दिया। "नहीं, नहीं, मुझे कोई आपत्ति नहीं। नेहा एक समझदार लड़की है, और ऐसे पड़ोसी होना अच्छा है। बस समय पर घर आ जाना, ठीक है?"
अर्जुन ने राहत भरी आवाज़ में सिर हिलाया, "जी पापा। मैं वादा करता हूँ।"


वह जल्दी से अपने कमरे में गया, कॉलेज के कपड़े उतारकर कुछ साधारण कपड़े पहन लिए। जैसे ही उसने अपनी कमीज़ के बटन लगाए, उसने आईने में अपनी एक झलक देखी।
उसका अक्स उसे घूर रहा था, उसकी आँखों में चिंता उसकी आंतरिक उथल-पुथल को दर्शा रही थी। उसने अपने बालों में हाथ फेरा, पेट में जमी बेचैनी को दूर भगाने की कोशिश कर रहा था।


उसने अपना फ़ोन और बटुआ उठाया, फिर बाहर निकल गया, अपने कमरे के दरवाज़े पर कुछ देर रुका। उसकी नज़र ड्रेसिंग टेबल पर रखी अपनी माँ की एक छोटी, फ़्रेम लगी तस्वीर पर पड़ी। यह तस्वीर बरसों पहले ली गई थी, ज्योतिषी की भविष्यवाणी ने उनकी ज़िंदगी उलट-पुलट कर दी थी। उसकी माँ खिलखिलाकर मुस्कुराईं, और उन्होंने अपने से काफ़ी छोटे अर्जुन को अपनी बाहों में भर लिया।


यह छवि उसे भाग्य और परिवार के उस जटिल जाल की याद दिलाती थी जिसमें वह अब उलझ चुका था। उसने एक क्षण के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं, स्वयं को संभाला और फिर मुड़कर दरवाजे से बाहर चला गया।


जैसे ही अर्जुन नेहा के घर के पास पहुँचा, वह दोनों घरों के बीच के अंतर को देखे बिना नहीं रह सका। जहाँ उसके घर में बरसों पुरानी यादों और हँसी-मज़ाक की गर्मजोशी थी, वहीं नेहा का घर ज़्यादा आधुनिक और आकर्षक था। बत्तियाँ पहले से ही जल रही थीं, जो ऊँची खिड़कियों से एक स्वागत योग्य चमक बिखेर रही थीं।


नेहा ने दरवाजा के पास की डोरबेल बजने से दरवाजा खोल दिया, उसकी मुस्कान घंटों पहले डूबे सूरज की तरह चमक रही थी।

नेहा को देख कर तो अर्जुन जैसे किन्ही खयालों में खो सा गया। नेहा स्लीवलेस और बैकलेस ब्लाउज और नीली साड़ी में किसी अप्सरा की तरह दिख रही थी।

कुछ ऐसे...

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"ठीक समय पर, अर्जुन," उसने कहा और उसे अंदर आने देने के लिए पीछे हट गई। "मैं बस रात के खाने की तैयारी कर रही थी।"


अर्जुन ने फ़ोयर में कदम रखा और वहाँ की खूबसूरत सजावट को निहारा। ताज़े फूलों और किसी स्वादिष्ट व्यंजन की खुशबू हवा में फैल रही थी। "मुझे बुलाने के लिए शुक्रिया, नेहा आंटी," उसने मुस्कुराते हुए कहा।


नेहा ने औपचारिकता से इनकार कर दिया। "प्लीज़, मुझे नेहा ही कहो। और आज रात हम बस पड़ोसी ही रहेंगे, ठीक है?"
अर्जुन ने सिर हिलाया और उसके पीछे रसोईघर में चला गया।
रसोई आधुनिक डिज़ाइन का एक अध्ययन कक्ष थी, जिसमें स्टेनलेस स्टील के उपकरण और एक बड़ा आइलैंड काउंटर था जो कमरे के बीचों-बीच रखा था। नेहा उस जगह पर शान से घूम रही थी, चूल्हे पर बर्तन चला रही थी और ओवन का तापमान समायोजित कर रही थी।


"तो, आज रात के मेनू में क्या है?" अर्जुन ने सहज दिखने की कोशिश करते हुए द्वीप के किनारे लगे स्टूलों में से एक पर बैठते हुए पूछा।


नेहा ने अपने कंधे के ऊपर से उसे मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने सोचा था कि हम पनीर टिक्का से शुरुआत करेंगे, फिर नान के साथ बटर मसाला पनीर पर आएँगे।"

और हाँ, बासमती चावल। कुछ ज़्यादा ख़ास नहीं, बस घर का बना आरामदायक खाना," नेहा ने उत्साह से चमकती आँखों से जवाब दिया।


जवाब में अर्जुन के पेट में गड़गड़ाहट हुई, जिससे उसे याद आया कि उसने दोपहर का खाना छोड़कर जल्दी में चाय पी ली थी। "यह तो कमाल का लग रहा है, नेहा। मुझे यकीन है कि यह बहुत स्वादिष्ट होगा।"


नेहा चूल्हे की ओर मुड़ी और पनीर को बेकिंग शीट पर सावधानी से सजाते हुए बोली, "मुझे खुशी है कि तुम ऐसा सोचती हो। मुझे हर्षित के अलावा किसी और के लिए खाना बनाने का मौका कम ही मिलता है।" वह रुकी, उसके चेहरे पर नरमी आ गई।


"जानते हो अर्जुन, मैं हमेशा से तुम्हारी और तुम्हारे पापा की क़रीबी की तारीफ़ करती रही हूँ। बहुत समय हो गया है जब मैंने ऐसा रिश्ता देखा था। यह मुझे पुराने दिनों की याद दिलाता है, जब हर्षित और मैंने शुरुआत की थी।" उसकी आवाज़ में एक उदासी सी थी, लेकिन उसने जल्दी से उसे झटक दिया और खाना बनाने में लग गई।


अर्जुन को सहानुभूति का एहसास हुआ। वह जानता था कि हर्षित के बार-बार बिज़नेस ट्रिप्स नेहा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, भले ही वह स्वतंत्र स्वभाव की हो। "तुम और अंकल हर्षित एक-दूसरे के लिए भाग्यशाली हो," उसने ईमानदारी से कहा।


"कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि काश माँ अभी भी यहाँ होतीं। उनका मार्गदर्शन पाकर अच्छा लगता।"


नेहा उसकी ओर मुड़ी, उसकी आँखों में गहरी समझ झलक रही थी। "जब हम किसी अपने को खो देते हैं, तो बहुत बुरा लगता है," उसने धीरे से कहा। "लेकिन याद रखना, अर्जुन, ज़िंदगी चलती रहती है, और हम नई यादें बनाते हैं। कभी-कभी, हमें रास्ते में अप्रत्याशित खुशियाँ और रिश्ते मिलते हैं।"


वह मुस्कुराई, और अर्जुन को एक गर्माहट सी महसूस हुई। यह एक सुकून देने वाला विचार था, जिसे उसे थामे रखना था। नेहा वापस चूल्हे की ओर मुड़ी और पनीर टिक्का को ओवन से बाहर निकाला।


"लो, ये तैयार हो गया होगा। मैं इसे प्लेट में लगाती हूँ, तुम मेज़ लगा दोगे?"


अर्जुन ने सिर हिलाया और उठकर अलमारियों से कुछ प्लेटें और बर्तन उठाए। वह रसोई में इधर-उधर घूमता रहा, उसे काम की सहजता ने जकड़ लिया था। डाइनिंग रूम में मेज़ लगाते हुए, उसकी नज़र दीवारों पर लगी तस्वीरों पर पड़ी—नेहा और हर्षित की शादी के दिन, छुट्टियों में और कई सामाजिक कार्यक्रमों की तस्वीरें। हर तस्वीर एक खुशहाल ज़िंदगी की कहानी बयां कर रही थी, और अर्जुन खुद को उनकी दुनिया में खोया हुआ पाया।


वह एक बेहद दिलचस्प तस्वीर के सामने रुका: नेहा और हर्षित अपनी शादी के दिन, उनके चेहरे प्यार और हँसी से दमक रहे थे। यह उस गमगीन माहौल से बिल्कुल अलग था जो अक्सर उसके अपने घर में छा जाता था, जो उस ज्योतिषी की भविष्यवाणी का नतीजा था जिसने उनके जीवन पर लंबे समय तक छाया रखी थी।


नेहा दो प्लेट गरमागरम पनीर टिक्का लेकर डाइनिंग रूम में दाखिल हुई। उसने उन्हें मेज़ पर रखा और फिर एक गर्मजोशी भरी मुस्कान के साथ अर्जुन की ओर मुड़ी।
"मुझे आशा है कि आपको भूख लगी होगी," उसने प्लेटों की ओर इशारा करते हुए कहा।


"हमारे पास बहुत सारा खाना है।"


जवाब में अर्जुन का पेट गुर्राया और वह अपनी जगह पर बैठते हुए हँसा, "मुझे लगता है कि मैं इसे संभाल सकता हूँ।"
नेहा भी मेज पर उनके साथ बैठ गई और उन्होंने अपनी-अपनी प्लेट परोसी, उनके कांटों की प्लेटों से टकराने की आवाज से वातावरण गूंज उठा।
"

तो अर्जुन, बताओ अपने दिन के बारे में," नेहा ने पनीर टिक्का का एक निवाला लेते हुए पूछा। "कोई दिलचस्प लेक्चर?"
अर्जुन ने खाना निगला और मुस्कुराया। "देखिए, आज मेरी समाजशास्त्र की कक्षा में एक अतिथि व्याख्याता आए थे। वे आधुनिक भारत में पारिवारिक ढाँचे की बदलती गतिशीलता के बारे में बात कर रहे थे।"

यह वास्तव में काफी दिलचस्प था।"

नेहा अपनी कुर्सी पर पीछे झुक गई, उसकी आँखें जिज्ञासा से चमक रही थीं। "समाजशास्त्र, है ना? यह तो दिलचस्प लग रहा है। मुझे हमेशा से लोगों को, उनकी प्रेरणाओं को, उनके


व्यवहारों को समझने में दिलचस्पी रही है। क्या आपको यह जानकर हैरानी नहीं होती कि हर व्यक्ति कितना अलग है, फिर भी हम सब में कितनी समानताएँ हैं?"

अर्जुन ने उसकी अंतर्दृष्टि की सराहना करते हुए सिर हिलाया। "बिल्कुल। यही वह चीज़ है जो समाजशास्त्र के अध्ययन को इतना आकर्षक बनाती है।"
 

Raj_sharma

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