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Incest कविता से काव्य बनने का सफर

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Masti_wala

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अपडेट 1

ये कहानी है एक श्रापित गांव कि जिसमें कोई भी पुरुष 25 वर्ष से ज्यादा जी नहीं पाता है तो उस गांव में सिर्फ महिलाएं बचती है ।
तो उस गांव में एक घर की कहानी से शुरू करते है अगर समय से अच्छा रिस्पॉन्स आया तो आगे बढ़ाएंगे

पात्र परिचय
शुभलक्ष्मी 64 वर्ष दादी घर की सबसे बड़ी और पूरे घर को चलाने वाली । इतनी उमर होने के बाद भी पूरे शरीर में जान है और बहुत गर्म भी है

सुनीता 50 वर्ष ताई जी दादी के बाद घर का सारा काम देखना । ये ज्यादातर पूजा पाठ ही करती है और बाहर कोई दिमाग नहीं लगाती साइज (38 - 28 - 38)

मीनाक्षी 48 वर्ष मेरी मां इनमें बात आग है लेकिन हमेशा गाजर मूली से काम चलाती रहती है और किसी से कुछ कह भी नहीं पाती और गांव में कोई ढंग का पुरूष बचा भी नहीं है (36-24-36)

राखी 43 वर्ष ये मेरी चाची है बहुत मजाकिया टाइप की है और हमेशा मेरा बहुत ध्यान रखती है

मुस्कान ये मेरी चाची की बेटी है इसका परिचय बाद में देंगे

कविता ये हु में मैने हमेशा अपने आप को कभी लड़की नहीं माना मै हमेशा से लड़का बन कर रहना चाहती थी मेरी वो ख़ाविश कैसे पूरी हुई आपको स्टोरी में पता चलेगा
 

Masti_wala

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कविता उठ जा मां कमरे के बाहर से आवाज लगाती है मां कमरे जैसे ही कमरे में घुसती है तो देखती है कविता अपने कमरे में बिना कपड़ों के नंगी सो रही है
आगे मीनाक्षी के शब्दों में
मां - हे भगवान इस लड़की को कौन समझाये ये आज 21 साल की हुई है पर अकल अभी भी नहीं आई है देखो कैसे नंगी सो रही है
कविता उठ ओ कविता उठ
.
.
कविता अपनी आंख मसलते हुए मा की ओर देखती है
और कहती है सोने दो ना
मां उसे कहती है उठा जा आज तेरा bday भी है तू आज 21 साल की हो गई है यहां गांव में लड़कियों की शादी 18 साल के कर दी जाती थी ताकि वो अपने पति के साथ समय बिता सके लेकिन सेक्स के लिए उन्हें 21 वर्ष तक इंतजार करना पड़ता था
कविता जल्दी से उठ कर मा को पकड़ लेती है और अपने साथ बिस्तर पर वापस गिरा लेती है मा उसे कहती है क्या कर रही हैं छोड़ मुझे

कविता - कविता अपनी मां को बाहों में भरकर जोरदार मुंह पर किस करती है उसकी मां का सारा कंट्रोल खत्म हो जाता है वो अपने आप को ढीला छोड़ देती है।
कविता मा को लगभग 15 मिनट तक किस करती है और उसके बूब्स को दबाने लगती है ऐसे बूब्स दबाने से वो बावली हो जाती है ऊपर ऊपर से उसे कहती है छोड़ मुझे छोड़ मुझे

पर कविता आज उसकी कुछ नहीं सुनती है और उसका ब्लाउज को खोल देती है और उसकी सादी उतार कर फेक देती है उसके बाद वह उसके गले पर सब जगह किस करने लगती है अब मां भी गर्म हो चुकी थी इसलिए वो भी उसका साथ देने लगती है वो अब गले को चूमते हुए उसकी ब्रा की स्ट्रिप पर पहुंच जाती है और उसे खोल देती है इसके बाद उसकी मां थोड़ा छुटने की कोशिश करती है पर कविता पूरी तरह से उसके ऊपर चढ़ी हुई थी इसलिए वो कुछ कर नहीं पाती

वो किस करते हुए उसकी नाभि पर पहुंचती है और उसकी नाभि में जीभ घुसा देती है उसकी मां अपना आपा खो बैठती है और उसकी चीख निकल जाती है वो अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी वो उसके माथे को पकड़ कर अपने पेट में दबा लेती है अब कविता उसकी सादी को हटा कर पेटीकोट के नाडे को पकड़ लेती है उसकी मां उसे इशारे से मना करती है पर कविता उसका नाडा खोल देती है
नाडा खुलते ही कविता पेटीकोट को खींच आकर बाहर निकाल देती है उसकी मां ने एक पुरानी पेंटी पहनी हुई थी जैसे कविता उसे निकालने लगती है मां अपने पैर चौड़े करके रोकने की कोशिश करती है पर कविता घुसे में आकर मां की पेंटी को पकड़ कर फाड़ देती है अब उसकी मां की झांटों भरी चूत आ जाती है कविता उसकी जांघों पर अपनी जीभ चलाने लगती है अब उसकी मां ने हार मान लेती है अब कविता अपनी मां की चूत में जीभ घुसा देती है और उसे अंदर घुसाने लगती है अब उसकी मां भी अपनी पूरी आवाजें निकालने लगती है कविता उसकी मां की छूट को चाटते हुए उसके बूब्स को दबाने लगती है अब
उसकी मां पागल हो जाती है और और झड़ जाती है झड़ने के बाद कविता उसकी मां को वही छोड़ कर बाथरूम में चली जाती है
ये सभी नजारा उसकी चाची ने बाहर से देखा क्योंकि जब उसकी मां जब नाभि में जीभ लगाती है तो आवाज करने से उसकी चाची देखने आती है कि दीदी क्यों चिल्लाई वो ये सब नजारा देख कर मुस्कुराते हुए रसोई में चली जाती है


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Masti_wala

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मीनाक्षी अपने सांसों को काबू में लाने लगती है और वहीं जो उसके साथ हुआ उसके बारे में सोचने लगती है कि मेरी बेटी मेरे साथ ये सब क्या कर रही थी इतना सोचते हुए वो अपनी आँखें बंद कर लेती है

वो अचानक से उसे अपने शरीर पर कुछ महसूस होता है वो देखने के लिए आंखे खोलती है तो देखती उसकी बेटी ने एक काला सा नकली लन्ड पहना हुआ है और वो उसके बूब्स को चाट रही है
मां - बेटी ये सब क्या कर रही है तू ये सब गलत है जो हुआ मैं उसके लिए तुझे कुछ नहीं कहूंगी तू मुझे जाने दे

कविता - मा आप बिना मतलब ही डर रही हो ऐसा कुछ भी नहीं होगा मेरा विश्वास रखो
लेकिन उसकी मां की आंखों डर साफ दिख रहा था और होता भी क्यों नहीं क्योंकि उसने पहली बार 12 इंच का लन्ड देखा था क्योंकि उसके पति का भी 4 इंच से बड़ा नहीं था

कविता अपनी मां के बूब्स को जोर जोर से दबाने लगती है अब उसकी मां को सच के डर लगने लगता है

कविता अपने मुंह से थूक निकल कर उस डिल्डो पर लगा देती है और उसकी मां के होंठो को चूमने लगती है और चूमते हुए अपने लन्ड को धीरे धीरे अंदर घुसाने लगती है धीरे घुसते उसकी मां की चीख निकल पड़ती है पर वो मुंह में ही दब कर रह जाती है
आह आह बेटी बस अब इस से ज्यादा नहीं ले पाऊंगी उसे दर्द होता है पर कविता आज कुछ सुनने के मुंड में नहीथी उसे तो बस आज उसकी मां की अच्छे से मारनी थी वो उसकी चूत का बाजा बजाने लगती है वो धीरे धीरे लन्ड को अंदर बाहर करने लगती है अब इतने उसकी मां फिर से झड़ जाती है और उसका पानी निकल जाता है। कविता अब लन्ड को जोर जोर से अंदर बाहर करने लगते है अब कवित आधे घंटे तक उसकी मां को ऊपर नीचे करके चोदती रहती है आधे घंटे में उसकी मां चार बार झड़ जाती है झड़ने के बाद कविता उसके ऊपर से हट जाती है और वह भी साइड में लेट जाती है

उसकी मां को कविता पर पहले बहुत घुसा आ रहा था पर ऐसा सुख उसे जीवन में कभी नहीं मिला था तो वह उसे कुछ नहीं कहती है और अपने कपड़े पहन कर बाहर चली जाती है

अब कहानी में थोड़ा ट्विस्ट रहने वाला है ये थोड़ा incest से रोमांस में जाने वाले है।
 

rajeev13

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कहानी काफी रोमांचक लग रही है मगर लेस्बियन थीम पर ज्यादातर लोग पढ़ना नहीं चाहेंगे!

मैंने इसे संशोधित किया है शायद आपको पसंद आए!

सदियों पहले एक रहस्यमय गांव पर एक तांत्रिक ने श्राप दिया था की जब तक इस गांव की एक मां अपने पुत्र से सच्चे प्रेम का बलिदान नहीं लेगी, तब तक गांव अंधकार में डूबा रहेगा।

मीनाक्षी, उस गांव की एकमात्र महिला थी जिसे श्राप का सही अर्थ ज्ञात था। अपने बेटे, आरव को बचाने और गांव को श्राप से एक दिन मुक्त कराने के लिए, उसने उसे शहर भेज दिया, यह कहकर कि गांव अब उसके लिए नहीं है।
पंद्रह वर्षों बाद, आरव गांव लौटता है, एक जवान, आत्मविश्वासी और रहस्य से अनजान युवक। लेकिन उसकी वापसी के साथ ही गांव में अजीब घटनाएं घटने लगती हैं, सूखे कुएं से पानी बहने लगता है, वर्षों से बंद मंदिर की घंटियाँ अपने आप बजने लगती हैं।

अब मीनाक्षी को आरव को उसका भाग्य बताना होगा कि गांव की मुक्ति उसके आत्मिक बलिदान पर निर्भर है।

लेकिन ये बलिदान कोई हिंसा या विकृति नहीं, बल्कि प्रेम, संभोग, त्याग और आत्मिक एकता का प्रतीक है।

क्या आरव इस पुकार को समझ पाएगा? क्या मां-पुत्र का यह पवित्र बंधन गांव को अंधकार से निकाल पाएगा? या दोनों काम के वशीभूत होकर और भी गहरे अंधकार में गुम जाएंगे?

ऐसा कुछ होगा तो लोग ज्यादा पढ़ेंगे!
 
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