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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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Well-Known Member
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भाग 133


सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।


अब आगे…


नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।


सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा


“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”


“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..


सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…


सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..


“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”


सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।


सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…


सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…


सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।


सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।


सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।


सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।


सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।


सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।


परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…


सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।


सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..


सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।


सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।


एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”


सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला


“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”


सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..


“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”


सोनी ने एक टीचर की भांति कहा


“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”


लाली ने तपाक से बोला..


“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”


लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।


ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।


सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…


“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “


काहे? लाली ने प्रश्न किया..


सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..


“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “


लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..


“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”


सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका


“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”


“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…


सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।


पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?


रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।


दिन बीत रहे थे


सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।


यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।


इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।


कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।


लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।


लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।


परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।


सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।


“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”


सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..


नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।


सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।


जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।


अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।


सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।


परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।


कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।


शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।


आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।


सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..


“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”


सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।


आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।


उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।


और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।


(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)


उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।


कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।


मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।


सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।


उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।


नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।


इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।


माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।


मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।


नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।


मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।


कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।


और एक दिन..


विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।


सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..


विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..


देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।


जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं


आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।


इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।


मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।


मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।


मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।


उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..


दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…


रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..


मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..


शेष अगले भाग में...


आपके कमेंट के इंतजार में


बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सोनू और सुगना ने अपनी सुझबुझ से अपने अंतरंग रिस्तें को आगे बढाया पर दुनिया की नजर में वो भाई बहन ही रहें
सोनी ने भी शहरी पहनावा अपना लिया और लाली और सुगना को भी धीरे धीरे बदल करने के लिये नये जमाने के कपडे ले कर दिये
अंततः सोनी और विकास की शादी सरयु सिंह के देखरेख में बडी धुमधाम से संपन्न हो गई और वो दोनों अमेरिका के लिये निकल गये सरयु सिंह और सोनी की कुछ अपेक्षायें रह गयी पर जाते समय सोनी ने लाली को भाभी करके स्विकार कर ही लिया
इधर विद्यानंद के आश्रम में मोनी और अन्य लडकियों के साथ क्या होने वाला हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..
बहुत ही सुंदर लाजवाब अद्भुत मनमोहक और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
वाह क्या गजब का तरीका निकाला पुरुषों को स्त्री के शरीर की बनावट समझने के लिये विद्यानंद ने
अप्सरा के समान लावण्यवती मोनी को भोगने के लिये रतन मरा जा रहा था और अपने कामजाल में कुछ हद तक सफल भी हो गया लेकीन नियती को ये मंजूर नहीं था और मोनी रजस्वला होने के कारण उस कुपें में नहीं थी
वही रतन मोनी को भोगने ख्वाब में झुम रहा था
तो क्या उसके उस दुस्साहस पर किसी की नजर रही तो क्या उसे उसका दंड मिलेगा
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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भाग 135
बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था

अब आगे…

सभी लड़कियां कूपे में हुए घटनाक्रम का अनुभव साझा कर रही थीं। मोनी सब की बातें सुन रही थी उसे इस बात का अफसोस भी था कि उसे माधवी ने एन वक्त पर कूपे में जाने से रोक दिया था और यह निर्देश दिया था कि यदि उससे कोई कारण पूछे तो वह अपने रजस्वला होने की बात बता सकती है।

माधवी ने रतन के मातहतों से रतन की प्लानिंग को समझ लिया था और वह मोनी को रतन से मिलने से रोकना चाहती थी। उसे पता था रतन एक नितांत कामुक व्यक्ति था और वह किसी हाल में मोनी को उससे दूर रखना चाहती थी पर माधवी स्वयं वासना की गिरफ्त में आ चुकी थी। और मोनी की जगह स्वयं कूपे में चली गई थी। आश्रम में संभोग वर्जित तो नहीं था परंतु उसके मौके कम ही होते थे अक्सर लोग समूह में ही रहते थे।

कूपे में उसने रतन के साथ जो आनंद उठाया था वह रतन की दीवानी हो गई थी।

10 मिनट के साथ में ही रतन ने उसे न सिर्फ उत्तेजित किया था अपितु उसे चरम सुख भी प्रदान किया था।

माधवी जिस रुतबे और पद पर थी उसे रतन के साथ इस तरह के संबंध रखने में निश्चित ही मुश्किल होती पर वासना की आग अब माधवी के प्यासे बदन में सुलगने लगी थी।

आश्रम का कूपा एकमात्र ऐसी जगह थी जहां माधवी अपनी प्यास बुझा सकते थी…

विद्यानंद का यह आश्रम धीरे-धीरे प्रसिद्धि प्राप्त करने लगा। माधवी द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियां उस कूपे में आती और विद्यानंद के अनुयायियों के पुत्र और रिश्तेदार नारी शरीर को समझने के लिए उन कूपों में नग्न लड़कियों के साथ कुछ वक्त बिताते..लड़कियां उनके अलग अलग स्पर्श का अनुभव करतीं कभी उत्तेजित होतीं कभी कभी स्खलित भी हों जाती। लड़कों को सभी कामुक कार्यकलापों की खुली छूट थी यहां तक कि संभोग की भी परंतु यह लड़कियों के हांथ में था आखिरकार बटन उनके पास ही था। यही शायद उन लड़कियों की परीक्षा भी थी। स्पर्श सुख से उत्तेजित होना संभोग सुख से आनंद लेना और चरम सुख प्राप्त करना यह लड़कियों की इच्छा पर था। वह जब चाहे यह खेल बंद कर सकती थी।

यदि उन्हें लड़कों की हरकते नागवार गुजरती तो वो बटन दबा कर अपनी असहमति व्यक्त करती और जबरजस्ती करने पर वो लड़के दंडित किए जाते।

समय के साथ माधवी की कई लड़कियों ने अपना कौमार्य खोया और उन्हें इस सेवा से हटा दिया जाता और उनकी जगह नई लड़कियां ले लेतीं।

महीने में एक बार लड़कियों को ट्रेनिंग दी जाती और रतन के लड़कों को इसका अवसर दिया जाता।

माधवी भी इस दिन का इंतजार करती और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में जाकर चुद जाती।

रतन इस बात से आश्चर्यचकित था कि माधवी मोनी को संभोग सुख लेने के बावजूद मौका क्यों दे रही थी। रतन की मोटी बुद्धि चूत में अटक गई थी। उसे आम खाने से मतलब था उसने गुठली गिनना छोड़ दिया ।

इन कूपो में एक विशेष दिन रतन के लड़कों को भी खड़ा किया जाता। विद्यानंद के अनुवाइयो की लड़कियां भी लड़कों के शरीर को समझने के लिए आतीं नियम समान थे पर यह प्रयोग लगभग असफल ही था। पर चालू था।

लड़कों की ट्रेनिंग के लिए माधवी की लड़कियों को लाया जाता पर मोनी को अब तक पुरुषों में कोई रुचि नहीं थी। कभी कभी माधवी इस अवसर का लाभ उठा कर अपनी और रतन की काम पिपासा मिटा लेती।

रतन और माधवी की दोस्ती धीरे धारे बढ़ रही थी। रतन अंजान था और माधवी के इशारे और इच्छानुसार कामसुख भोग रहा था…

मोनी का कौमार्य अब भी सुरक्षित था..और उसका हरण करने वाला न जाने कहां था..नियति ने भविष्य में झांकने की पर वहां भी अभी अंधेरा ही था।

आइए आपको बनारस लिए चलते हैं जहां सुगना का परिवार अपनी लाडली सोनी को याद कर रहा था जो इस समय अमेरिका में विकास के साथ अपना हनीमून बना रही थी।

तभी अचानक फोन की घंटी बजी यह टेलीफोन सोनू ने कुछ ही दिनों पहले सुगना के घर में लगवाया था। कारण स्पष्ट था। जब-जब सोनू जौनपुर में रहता उसे सुगना से बात करने का बेहद मन करता था…आखिरकार अपने पद और पैसे के बल पर उसने अपनी बहन सुगना को यह सुविधा प्रदान कर दी थी, यद्यपि उसने लाली को भी यही बात बोलकर खुश कर दिया था.

सरयू सिंह उस समय हाल में ही उपलब्ध थे उन्होंने झटपट टेलीफोन उठा लिया और अपनी रौबदार आवाज में बोला “कौन बोल रहा है? ”

सामने से कोई उत्तर न आया… सरयू सिंह ने फोन के रिसीवर को ठोका और दोबारा कहा

“ अरे बताइए ना कौन बोल रहा है ?”

तभी सामने से आवाज आई “चाचा जी प्रणाम”

सरयू सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा।

आवाज जानी पहचानी थी उन्होंने प्रश्न क्या

“के बोल रहा है? सरयू सिंह ने दोबारा पूछा।

“चाचा मैं सोनी “

सरयू सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा अचानक ही उनकी अप्सरा और उसके मादक कूल्हे उनकी आंखों के सामने घूमने लगे दिल उछलने लगा परंतु हलक से आवाज निकालना जैसे बंद हो गया था। फिर भी उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में करते हुए कहा.

“सोनी कैसी हो कैसा लग रहा है अमेरिका में?

“ हम लोग ठीक हैं.आप कैसे हैं? सुगना दीदी कहां है?

सोनी ने बिना उनका उत्तर सुने ही अगला प्रश्न पूछ दिया…

सोनी उनसे बात करने से कतरा रही थी उसे सरयू सिंह से बात करने में झिझक महसूस होती थी।

सरयू सिंह ने आवाज लगाई

“ए सुगना, हेने आवा सोनी के फोन आइल बा बात कर ले “

सुगना भागते हुए फोन के पास आई उसके हाथ आटे से सने हुए थे शायद वह रसोई में आटा गूथ रही थी।

सरयू सिंह ने स्वयं रिसीवर सुगना के कानो पर लगा दिया और उसी अवस्था में खड़े रहे…

“अरे सोनी कैसन बाड़े” सुगना का उत्साह देखने लायक था।

“दीदी फिर भोजपुरी”

“अच्छा मेरी सोनी कैसी है” सुगना मुस्कुराते हुए बोली वो सरयू सिंह की तरफ देखते हुए उसे अपने बाबू जी के सामने हिंदी बोलने में थोड़ी हिचक थी जिसे उसने अपनी मुस्कुराहट से छुपा लिया।

सरयू सिंह के पास ही खड़े थे उन्हें सोनी की आवाज हल्की-हल्की सुनाई पड़ रही थी उन्होंने रिसीवर छोड़ना उचित न समझा और अपनी काल्पनिक माशूका की मीठी आवाज सुनते रहे।

“ठीक हूं दीदी… यहां अमेरिका की दुनिया ही अलग है”

“तुम्हें अच्छा लग रहा है ना ?”

“दीदी बहुत सुंदर जगह है, मैं आप लोगों को जरूर एक बार यहां लाऊंगी”

“चल चल ठीक है जब होगा तब देखा जाएगा विकास जी कैसे हैं ?“

“वो भी ठीक हैं दीदी पास ही खड़े हैं बात करेंगी”

“ हां हां लावो दे दो”

विकास सुगना से बात करने में सकुचा रहा था परंतु फिर भी सोनी के कहने पर वह फोन पर आ गया

“ हां दीदी प्रणाम..”

“ अरे मैं आपकी दीदी थोड़ी हूं” सुगना ने उसे छेड़ते हुए कहा। सुगना बातों में मशगूल थी उसे याद भी नहीं रहा कि सरयू सिंह पास खड़े हैं और रिसीवर उन्होंने ही पकड़ा हुआ है।

सुगना के प्रश्न पर विकास ने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा

“ठीक है …आप मेरी साली है पर उससे पहले आप मेरे दोस्त सोनू की बड़ी दीदी है इसलिए मैं आपको शुरू से दीदी कहता आया हूं यदि आपको बुरा लगता है तो कहीये छोड़ दूं…” बिकास की आवाज फोन के रिसीवर से बाहर भी सुनाई पड़ रही थी।

सुगना मुस्कुराने लगी और कहा..

“ आप जैसा रिश्ता रखना चाहेंगे मुझे मंजूर है… सोनी का ख्याल रखिएगा”

“ ठीक है दीदी ….माफ कीजिएगा साली साहिबा” सुगना की हंसी फूट पड़ी।

सरजू सिंह को अब रिसीवर पकड़ना भारी हो रहा था। सुगना से विकास की यह छेड़छाड़ उन्हें रास नहीं आ रही थी

एक बार सोनी ने फिर फोन विकास के हाथों से ले लिया था और वह सुगना से बोली

“लाली दीदी कहां है? उनसे भी बात करा दो”

लाली भी अब तक पास आ चुकी थी.. सरयू सिंह ने फोन का रिसीवर लाली को दे दिया और अपने दिमाग में आधुनिक सोनी की तस्वीर बनाने लगे। फिल्मों में जिस तरह अंग्रेज हीरोइन चलती है सोनी में उसे जैसी ही प्रतीत हो रही थी बस एक ही अंतर था वह था सोनी के भारी नितंब जो शरीर सिंह का मन मोह चुके थे।

अपना नाम सुनते ही लाली ने फोन सुगना के कान से हटाकर अपने कानों पर लगा लिया और बेहद खुशी से उससे बात करने लगी।

“भाभी कैसी हैं?”

“ठीक बानी..तुम कैसी हो” लाली कंफ्यूज थी कि वह हिंदी में बात करें या भोजपुरी में।

“ठीक हूं दीदी..”

“ ठीक कैसे हो सकती हो तुम्हारी मुनिया की पूजाई ठीक से नहीं हुई लगता है..”

लाली ने यह देख लिया था कि सरयू सिंह वहां से हट चुके हैं। उसने सोनी को छेड़ा वैसे भी अब वह सोनी की भाभी बनने वाली थी। ननद और भाभी में छेड़छाड़ कुछ देर जारी रही। लाली चली थी सोनी को छेड़ने पर शायद वह भूल गई थी की सोनी अब आधुनिक और हाजिर जवाब हो चुकी थी…सोनी लाली को छोड़ने वाली न थी। नंद भाभी में बातचीत और नोकझोंक चालू थी। सरयू सिंह को सिर्फ लाली की हंसी सुनाई पड़ रही थी और वह यह अनुमान लगा पा रहे थे कि उनकी माशूका भी उधर ऐसे ही खिलखिला कर हंस रही होगी।

आईएसडी कॉल्स इतने सस्ते न थे। सोनी ने न चाहते हुए भी फोन वापस रख दिया पर पूरे परिवार को तरोताजा कर दिया। सुगना और लाली बेहद प्रसन्न थे और सरयूसिंह भी उतने ही खुश थे।

इसी बीच सोनू भी आ गया और सब सोफे पर बैठकर विकास और सोनी की शादी के आयोजनों और अपने-अपने अनुभवों को साझा करने लगे। सोनू ने सरयू सिंह से उस प्रभावशाली आदमी के बारे में जानना है चाहा जो विकास की शादी में आया हुआ था और उसके साथ कई बॉडीगार्ड घूम रहे थे पर उस व्यक्ति के चेहरे पर ढेर सारे दाग थे…

सरयू सिंह हिंदी पूरे आत्मविश्वास से सोनू को बताया

“अरे वो गाजीपुर के विधायक हैं. इजराइल खान.”

दाग का नाम सुनते ही लाली सचेत हो गई और उसके मन में उत्सुकता जाग उठी जिस पर वह काबू न रख पाई और अचानक सरयू सिंह से पूछ बैठी..

“ए चाचा दो-तीन साल पहले तहरा माथा पर जवन दाग होत रहे ओकर जैसन दाग कभी-कभी सोनू के गर्दन पर हो जाला तोहर दाग कैसे ठीक भई रहे?”

सभी के चेहरे फक पड़ गए। …सबको खुश रखने वाली सुगना को आज दाग लगने वाली सुगना कहा जाय वह कतई नहीं चाहती थी।

लाली ने जो प्रश्न किया था उसके बारे में कोई भी बात करना नहीं चाहता था परंतु अब जब प्रश्न आ ही गया था तो सरयू सिंह ने सोनू की तरफ देखते हुए पूछा

“अरे कइसन दाग दिखाओ तो”

यद्यपि सोनु को सुगना से संसर्ग किए कुछ दिन बीत गए थे परंतु वह इस दाग को सरयू सिंह को कतई नहीं दिखाना चाहता था। परंतु यह अवश्य जानना चाहता था की सरयू सिंह के माथे का दाग का भी कोई रहस्य था क्या?

सोनू ने अपनी गर्दन सरयू सिंह की तरफ घुमाई.. दाग लगभग गायब था.. सोनू और सुगना का मिलन वैसे भी कई दिनों से नहीं हो पाया था शादी की तैयारी में दोनों पूरी तरह व्यस्त थे कुछ छोटे-मोटे कामुक प्रकरणों के अलावा उन दोनों को अभी मिलन के लिए इंतजार ही करना था.

सरयू सिंह ने लाली को समझाते हुए कहा

“अरे कभी-कभी कीड़ा काट देला तब भी दाग हो जाला और बीच-बीच में कभी-कभी वह दाग बार-बार दिखाई देला कभी कम कभी ज्यादा । कुछ दिन बाद अपने आप पूरा ठीक भी हो जाला”

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सरयू सिंह ने दाग का जो कारण बताया था वह लगभग समान था। दोनों ने कामुकता की पढ़ाई शायद एक ही स्कूल में की थी।

यह एक संयोग ही था कि जो सरयू सिंह ने बताया था वह सोनू पर हूबहू लागू हो रहा था।

सोनू और सुगना सुकून की सांस ले रहे थे सोनू के मन में उठा प्रश्न भी अब अपना उत्तर प्राप्त कर चुका था। कुछ देर पूरा परिवार विभिन्न मुद्दों पर और बात करता रहा। सुगना सरयू सिंह की तरफ आदर भाव से देखती अब उसके मन में उनके प्रति आदर और सम्मान जाग उठा था और अब सुगना के कामुक मन पर इस समय सोनू राज कर रहा था।

सरयू सिंह ने सुगना से कहा मुझे स्नान करने जाना है। सुगना ने सारी तैयारी कर दी उनका लंगोट उनकी तौलिया और अन्य वस्त्र यथावत रख दिया।

सोनी ने सरयू सिंह की तड़प बढ़ा दी थी। स्त्रियों के आवाज का मीठा पान भी उनकी कामुकता में चार चांद लगाता है सोनी धीरे-धीरे सरयू सिंह की आत्मा में वैसे की रच बस रही थी जैसे शुरुआती दिनों में सुगना।

परंतु एक ही अंतर था सरयू सिंह को सुगना से प्यार हो गया था और यहां सिर्फ और सिर्फ वासना और कामुकता थी वो भी सोनी के गदराए नितंबों को लेकर।

सरयू सिंह ने स्नान करते समय फिर सोनी को याद किया और एक बार फिर पूरी कामयाबी से अपने लंड का मानमर्दन कर उसे झुकाने और स्खलित करने में कामयाब रहे।

उधर अमेरिका में सोनी और विकास के दिन बेहद आनंद से बीतने लगे.. विकास और सोनी अमेरिका के खूबसूरत शहरों में विभिन्न स्थानों पर घूमते और शाम को एक दूसरे को बाहों में लिए संभोग सुख का आनंद लेते। सोनी भी पूरी तरह तृप्त हो रही थी वह भी बेचारी पिछले कई महीनो से प्यासी थी।

परंतु जब चाह मर्सिडीज़ की हो वह मारुति से कहां मिटने वाली थी। सोनी कार का आनंद ले तो रही थी पर मर्सिडीज़ अब भी उसके दिलों दिमाग पर छाई हुई थी। सरयू सिंह का वह लंड उसकी मर्सडीज थी जिसने उसे पिछले कई महीनो से बेचैन किया हुआ था। वह इस मर्सिडीज़ पर बैठ तो नहीं पाई थी पर उसने उसकी खूबसूरती बखूबी देखी थी और अपनी कल्पना में उसे महसूस भी किया था।

धीरे-धीरे विकास और सोनी दांपत्य जीवन का सुख लेने लगे उन्होंने अपनी गृहस्थी अमेरिका में पूरी तरह सेट कर ली।

समय बीतता गया। अमेरिका की आबो हवा ने सोनी को और भी ज्यादा आधुनिक बना दिया। सोनी में आ रहा बदलाव उसके व्यक्तित्व में आमूल चूल परिवर्तन कर रहा था वैसे भी सोनी बदलाव को बड़ी तेजी से आत्मसात करती थी।

बनारस आने से पहले सोनी अपने गांव सीतापुर में खेती किसानी के काम में अपनी मां पदमा की मदद करती गोबर पाथती, उकड़ू बैठकर सब्जियां काटती खेतों में काम करती। उसे देखकर यह कहना लगभग असंभव था कि आज वह जींस और टॉप पहनकर अपने गदराए हुए चूतड़ों को हिलाते हुए अमेरिका की सड़कों पर तेजी से चल रही थी। उसके बॉब कट बाल उसकी चाल से ताल से ताल मिलाते हुए हिल रहे थे और उसके पीछे चल रहे लोग उसके नितंबों पर लगातार आंख गड़ाए हुए उसकी थिरकन देख रहे थे।

जब वह बनारस में विकास के संपर्क में आई थी तब भी उस पर आधुनिकता ने बेहद तेजी से उसका हाव भाव बदला था। खड़ी हिंदी में घर के बुजुर्गों से भी बिना किसी झिझक के पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बात करना , पारंपरिक साड़ी को छोड़ वह आधुनिक वस्त्रों को अपनाना, दोस्तों और सहेलियों के साथ शाम तक बाहर रहना यह साबित कर रहा था की सोनी आधुनिक युग की लड़की है और सुगना से निश्चित ही अलग है।

सोनी यही नहीं रुकी अमेरिका पहुंचने के बाद उसने लॉन्ग फ्रॉक और न जाने कौन-कौन से आधुनिक कपड़े पहनना शुरू किया जो विकास को तो बेहद पसंद था पर शायद उसे बनारस में पहनना मुश्किल था।

ऐसा नहीं था कि बदलाव सिर्फ सोनी के पहनावे में आया था उसका व्यक्तित्व भी तेजी से बदल रहा था वह एक आत्मविश्वास से भरी लड़की पहले भी थी और अब अमेरिका में विकास के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए उसका आत्मविश्वास और भी बढ़ गया था वह बेझिझक होकर अंग्रेज लोगों से बात करती उनसे रास्ता पूछतीऔर विभिन्न जानकारियां इकट्ठी करती। विकास सोनी को इसका आनंद लेते हुए देखता और ऐसी आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की को अपनी पत्नी रूप में पाने के लिए विधाता को धन्यवाद करता।

विकास और सोनी की सेक्स लाइफ में कुछ ही दिनों में बदलाव आने लगा। आत्मविश्वास से भरी सोनी की कामुकता का रंग भी बदल रहा था। एक तरफ सुगना का अपने प्रेमी में उत्तेजना जागृत करने का तरीका अनूठा था वहीं दूसरी तरफ सोनी में शायद यह अलग ढंग से हावी थी। उसे सेक्स में एक्सपेरिमेंट करना पसंद था। वह वासना और कामुकता से इतर सेक्स पर फोकस करती। बिस्तर पर तो विकास का भरपूर साथ देती पर अपनी कल्पनाओं में खोई रहती। विकास स्वयं अति कामुक व्यक्ति था उसे भी सोनी को भोगने में ज्यादा मजा आता था । वह बाहरी दुनिया से ज्यादा रूबरू था और उसे सेक्स की कई विधाएं मालूम थी यद्यपि वह अपने लिंग से उतना मजबूत न था पर कामपिपासा में कोई कमी न थी।

सोने की कामुकता को नया रंग देने में कुछ ना कुछ विकास का भी योगदान था। सोनी पूरे दिन भर अपनी दुनिया में खोई रहती कभी शॉपिंग करना कभी क्लब और न जाने क्या-क्या वह अमेरिका की हाई-फाई लाइफ जी लेना चाहती थी। शाम को विकास के आने के बाद दोनों बाहर डिनर का आनंद उठाते और रात में बिस्तर पर एक दूसरे से अपनी काम पिपासा शांत करते।

जब तक सेक्स में तड़का ना हो उसमें धीरे-धीरे बोरियत होने लगती है विकास और सोनी ने भी यह महसूस किया और आखिरकार विकास ने सोनी एक पायदान और ऊपर चढ़ा दिया। विकास आज एक अनोखा पैकेट लेकर घर आया था।

विकास जब भी घर आता था वह सोनी के लिए कुछ ना कुछ अवश्य लेकर आता था कभी कपड़े कभी खाने पीने का सामान कभी फूल, चॉकलेट और न जाने क्या-क्या वह हर तरीके से सोने को खुश रखना चाहता था। सोनी भी उसका इंतजार करती पर आज उसे खाली हाथ एक लिफाफा पड़े देखकर उसने विकास से कहा..

कहां देर हो गई? मैं कब से आपका इंतजार कर रही थी

“जानू इसे ढूंढते ढूंढते बहुत टाइम लग गया” विकास ने अपने हाथ में पड़ा हुआ पैकेट हवा में लहराते हुए सोनी से कहा।

“क्या है इसमें” सोनी ने कौतूहल वश पूछा और उसके हाथों से वह पैकेट छीनने का प्रयास करने लगी

“तुम्हारी खुशियों का पिटारा” विकास अब भी उसे वह पैकेट नहीं दे रहा था। सोनी अपने हाथ बढ़ाकर उसे पैकेट को पकड़ने का प्रयास करती और विकास उसकी अधीरता को और बढ़ा जाता। बीच-बीच में वह उसे चूमने की कोशिश करता पर सोनी का सारा ध्यान उसे पैकेट पर अटका था।

आखीरकार सोनी ने वह पैकेट विकास के हाथों से छीन लिया…

सोनी के गुस्से से विकास की तरफ देखा…

ये क्या है?

शेष अगले भाग में…




एक बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया ये आश्रम में मोनी के नाम पर माधवी ही रतन से अपनी कामपिसासा शांत करने लगी अभी तक मोनी कौमार्य सही सलामत ही हैं और ये बात रतन को मालुम ही नहीं
सुगना लाली और सरयु सिंह की दिनचर्या अपने निश्चित तौर पर चल ही रहीं हैं कुछ हॅंसी ठिठोली छोडकर सरयु सिंह के मन में सोनी के लिये वासना बढती ही जा रही हैं वही सोनी और विकास की जीवनी अमेरिका में शानो शौकत और भोग विलास में मस्त चल रहीं हैं
ये विकास के व्दारा लाये लिफाफें में क्या है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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मानसी
प्रिया पाठको
जब तक अगला अपडेट आता है तब तक एक कहानी पोस्ट कर रहा हूं जो एक लघु कहानी है।
आप में से कई लोगों ने यह कहानी नहीं पढ़ी होगी यह मेरी लिखी हुई कहानी है समय निकालकर पढ़िएगा और अपने विचार रखिएगा


संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

"मैं मानसी"

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.

मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था. राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती. राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी .

मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?"

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुसी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…

मैंने कहा…

"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.

राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा...

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.

तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

समाप्त
बहुत ही शानदार लाजवाब और मदमस्त कहानी है भाई मजा आ गया
 
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Ranjit0675

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Shayad aapne meri baaton Ko anyatha le Liya, mere kahne ka tatparya ye tha ki itni lambi kahani is platform pr ikattha laana sahyad sambhav nahi aur series type kahani ka ek alag hi Maja hai, Jahan tk "gaddhe" Shabd ka tatparya hai, ki kripya kar ke "madhyantar" tak ke saare missing episodes bhejbde taaki main ek saath Anand le saku dhanyvad
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