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Adultery अद्भुत जाल ....

Bhaiya Ji

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अद्भुत जाल ....

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प्रिय मित्रों, साथियों एवं पाठकों...
ये एक कल्पना आधारित कहानी है जिसका की, (आई रिपीट !) ... जिसका की ... किसी भी वास्तविक घटना या पात्र से कोई एवं किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है ….
इफ़ बाई एनी चांस अगर सम्बन्ध पाया जाता है तो वह मात्र एक संयोग होगा..

इस कहानी में एडल्ट्री के साथ सस्पेंस एवं थ्रिलर का संगम देखने को मिलेगा ...

(इस कहानी में आने वाले दिनों में अनेक घटनाक्रम होंगे, कुछ शायद आप लोगों को अच्छा नहीं भी लगे.. ऐसी स्थिति में आपसे करबद्ध निवेदन है कि ऐसी चीज़ों को इग्नोर कर दें... वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.. और... इस कहानी में छोटे बड़े हर तरह के अपडेट मिलेंगे.. नौकरी एवं दैनिक जीवन में व्यस्तता के कारण दो तीन दिन के अन्तराल में अपडेट दे सकूँगा... कृपया अपना प्यार और साथ बनाए रखें... धन्यवाद..)
 

Bhaiya Ji

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भाग १)


ट्रिन ट्रिन ... ट्रिन ट्रिन.... ट्रिन.. ट्रिन... | लैंडलाइन फोन की घंटी बज रही थी | मैं ऊपर अपने कमरे में सो रहा था | फोन था तो नीचे पर सुबह के टाइम इसकी आवाज़ कुछ ज़्यादा ही ज़ोरों से आ रही थी | मैंने अपने ऊपर अपना दूसरा तकिया बिल्कुल अपने कान के ऊपर रख लिया | आवाज़ फिर भी आ रही थी पर इस बार थोड़ी कम थी | कुछ सेकंड्स में ही फोन की आवाज़ आनी बंद हो गयी | मैं अपने धुन में सोया रहा | कितना समय बीता पता नहीं, दरवाज़े पर दस्तक हो रही थी – ‘ठक ठक ठक ठक’ | मैंने अनसुना सा किया पर दस्तक थमने का नाम ही नहीं ले रही थी | झुँझला कर मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला |

सामने चाची खड़ी थी | मुस्कुराती हुई | थोड़ा मज़ाकिया गुस्सा दिखाते हुए अपने दोनों हाथ अपने कमर के दोनों तरफ़ रख कर थोड़ी तीखी अंदाज़ में बोली,

“अभयsss….! ये क्या है? सुबह के सवा आठ बज रहे हैं | अभी तक सो रहे हो ?”

मेरी आँखों में अभी भी नींद तैर रही थी, थोड़ा अनसुना सा करते हुए नखरे दिखाते हुए कहा, “ओफ्फ्फ़हो चाची... प्लीज़ .. सोने दो ना | अभी उठने का मन नहीं है और वैसे भी आज सन्डे है | कौन भला सन्डे को जल्दी उठता है ? और अगर उठता भी है तो मैं क्यूँ उठूँ ? क्या करूँगा इतनी जल्दी उठ कर?”

मैंने एक सांस में ही कह दिया | चाची आश्चर्य से आँखें गोल बड़ी बड़ी करती हुई अपने होंठों पर हाथ रखते हुए बोली, “हाय राम..! देखो तो, लड़का कैसे बहस कर रहा है ? अरे पगले, कोई नहीं उठेगा तो इसका मतलब की तू भी नहीं उठेगा? चल जल्दी नीचे चल... नाश्ता तैयार है .. गर्म है.. जल्दी चल के खा ले... मुझे और भी बहुत काम है |”


इतना कह कर चाची मुझे साइड कर मेरे बिस्तर के पास चली गयी और मेरे बिस्तर को ठीक करने लगी | तकिया ठीक की, ओढने वाले चादर को समेट कर रखी और फिर बिस्तर पर बिछे चादर को हाथों से झटके दे कर उसे भी ठीक करने लगी | बिस्तर पर बीछे चादर को ठीक करते समय उनको थोड़ा आगे की ओर झुकना पड़ा और इससे उनके गोल सुडोल नितम्ब पीछे यानि के मेरी तरफ ऊपर हो के निकल आये | मैं तो चाची को देखे ही जा रहा था और अब तो नितम्बों के इस तरह से निकल आने से मैं इस सुन्दर दृश्य को देखकर मोहित हो उठा था |

चाची हमेशा से ही मुझे बड़ी प्यारी लगती थी | हिरण के छोटे बच्चे के तरह उनके काली, बड़ी और चमकीली आँखें, मोतियों जैसे सजीले दांत, सुरीली मनमोहक गले की आवाज़.. आँखों के ऊपर धनुषाकार काली आई ब्रो तो अपनी अलग ही अंदाज़ दर्शाती थी.. और ये सब अपनी तरफ़ सबको बरबस ही खींच लेती थी | लाली मिश्रित उनके गाल, जब वो हँसती या मुस्कुराती तो गालों के उपरी हिस्से और ऊपर की तरफ़ होते हुए उनके गालों के साइड एक हल्का सा डिंपल बना देता था |


रंग की बात करूँ तो चाची सांवली तो नहीं थी पर बहुत गोरी भी नहीं थी, मीडियम रंग था | साफ़ रंग | देहयष्टि अर्थार्त फिगर की बात करूँ तो उनकी फिगर थी प्रायः 36dd-32-36 | उनके वक्षों को लेकर मैं गलत भी हो सकता हूँ .. हो सकता है वो 36dd ना हो कर 38 हो | खैर, जो भी हो.. थे तो काफ़ी बड़े बड़े.. | किसी भी पुरुष का सिर घूमा दे | यहाँ तक की मैंने तो आस पड़ोस की कई औरतों को भी चाची की फिगर को ले कर इर्ष्या करते देखा है |




चाची मुझे बहुत प्यार करती थी | बहुत ख्याल रखती थी | हम दोनों आपस में कभी कभी ऐसे बात करते थे जैसे मानो हम चाची भतीजा ना हो कर देवर भाभी हो या दो दोस्त ... (या दो प्रेमी) | मम्मी पापा को दूसरे शहर में छोड़ चाचा चाची के साथ रहते हुए मुझे यही कोई दो बरस हो गए थे | और इतने ही वर्षों में मैं और चाची आपस में बहुत घनिष्ट हो गए थे | मैं चौबीस का और चाची शायद सैंतीस या अड़तीस की | कम आयु में ही विवाह हो गया था चाची का | दो बच्चे हैं | उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए चाचा चाची ने दिल पर पत्थर रखते हुए बच्चों को बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था | समय समय पर मिलने जाते थे | कभी कभी छुट्टियों में उन्हें अपने यहाँ ले कर भी आते थे |



“कुछ देर पहले तुम्हारी मम्मी का फोन आया था.. मैंने कह दिया की ऊपर अपने कमरे में पढ़ाई कर रहा है... डिस्टर्ब करने से मना किया है... | बाद में बात करेगा..| आज बचा लिए तुझे.. नहीं तो अच्छी खासी डांट पड़ती तुझे |”



“ओह्ह.. थैंक यू चाची...|” कहते हुए मैं ख़ुशी से झूमते हुए चाची को पीछे से गले लगाया.. पकड़ते ही मेरा थोड़ा खड़ा हुआ लंड चाची की गदराई गांड से टकरा गई | चाची को भी ज़रूर अपने पिछवाड़े में कुछ चुभता हुआ सा लगा होगा तभी तो उन्होंने झटके से खुद को आज़ाद करते हुए शरमाते हुए कहा, “अच्छा अच्छा ठीक है... चलो जाओ अब... जल्दी से ब्रश कर लो |”


क्रमशः


**************
 

Bhaiya Ji

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भाग २)


“और कुछ लोगे, अभय?” चाची ने पूछा |


विचारों के भंवर से बाहर निकला मैं | ब्रश करके नाश्ते में बैठ गया था | चाची भी मेरे साथ ही बैठ गयी थी नाश्ता करने |


“नहीं चाची.. अब और नहीं |” पेट पर हाथ रखते हुए मैंने कहा | चाची मुस्कुरा दी | पर न जाने क्यूँ उनकी यह मुस्कराहट कुछ फीकी सी लगी | ऐसा लगा की चाची बात तो ठीक ही कर रही है, हाव भाव भी ठीक है पर शायद दिमागी रूप से वो कहीं और ही भटकी हुई हैं | उनका खाने को लेकर खेलना, थोड़ा थोड़ा मुँह में लेना इत्यादि सब जैसे बड़ा अजीब सा लग रहा था | अपने ख्यालों में इतनी खोयी हुई थी की उनको इस बात का पता तक नहीं चला की उनका आँचल उनके सीने पर से हट चूका है और परिणामस्वरुप करीब 5 इंच का लम्बा सा उनका क्लीवेज मेरे सामने दृश्यमान हो रहा था और साथ ही उनके बड़े गोल सूडोल दाएँ चूची का उपरी हिस्सा काफ़ी हद तक दिख रहा था |


“क्या बात है चाची, कोई परेशानी है?” मैंने पूछा |


“अंह ... ओह्ह ... न..नहीं अभय... कुछ नहीं... बस थोड़ी थकी हुई हूँ ..|” चाची ने अनमना सा जवाब दिया | जवाब सुन कर ही लगा जैसे कुछ तो बात है जो वो मुझसे शेयर नहीं करना चाहती | मैंने भी बात को आगे नहीं बढ़ाने का सोचा और चाची के दाएँ हाथ पर अपना बाँया हाथ रखते हुए बड़े प्यार से धीमी आवाज़ में कहा, “ओके चाची... पर चाची... कभी भी कोई भी प्रॉब्लम हो तो मुझे ज़रूर याद करना, ठीक है ?”

मेरी आवाज़ में मिठास थी | चाची मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखी पर उस वक़्त में मेरी नज़र कहीं और थी | मेरी नज़रों को फॉलो करते हुए चाची ने अपनी तरफ़ देखा और अपने सीने पर से पल्लू को हटा हुआ देख कर चौंक उठी,

“हाय राम ,.. छी: ...|”

कहते हुए झट से अपने सीने को ढक लिया और हँसते हुए झूठे गुस्से से मेरे हाथ पर हल्का सा चपत लगाते हुए बोली, “बड़ा बदमाश होने लगा है तू आज कल |”

चोरी पकड़े जाने से मैं झेंप गया और जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म करने लगा | तभी टेलीफोन की घंटी फिर बजी, चाची उठ कर गयी और रिसीव किया, “हेलो...”


“जी.. बोल रही हूँ...|”


“हाँ जी.. हाँ जी...|”


“क्या...पर...परर....|”


“हम्म.. हम्म....|”


इसी तरह ‘हम्म हम्म’ कर के चाची दूसरी तरफ से आने वाली आवाज़ का जवाब देती रही | मैं खाने में मग्न था, सिर्फ एक बार चाची की तरफ नज़र गई.. देखा की उनके चेहरे की हवाईयाँ उड़ी हुई है | मैं कुछ समझा नहीं | मुझे अपनी ओर देखते हुए चाची सामने की ओर मुड़ गई | थोड़ी देर बाद फ़ोन क्रेडल पर रख कर मेरे पास आ कर बैठ गई | मैंने गौर से देखा उन्हें.. बहुत चिंतित दिख रही थी | नज़रें झुकी हुई थी | मुझसे रहा नहीं गया | पूछा, “क्या हुआ चाची... किसका फोन था?”



“कुछ खास नहीं... मेरे एक अपने का तबियत बहुत ख़राब है, इसलिए मन थोड़ा घबरा रहा है |” काँपते आवाज़ में बोलीं ... बोलते हुए मेरी तरफ एक सेकंड के लिए देखा था उन्होंने | उनकी आँखें किनारों से हलकी भीगी हुई थी | मेरा मन बहुत किया की आगे कुछ पूछूँ पर ना जाने क्यूँ मैं चुप रहा |


पर आदत से मजबूर मैं ...


रह रह कर नज़र चाची के सीने की तरफ़ चली जाती ....


अभी भी वही हाल था ...


मतलब,


दायीं ओर से पल्लू हट गया था ...


पुष्टकर, गदराई, ब्लाउज कप में भरी ... कसी हुई , ऊपर की ओर दो चौथाई उठी हुई चूची बरबस ही मुझे अपनी ओर खींचे जा रही है ...


जितना देखता ... उतना ही पौरुष उफ़ान मारता ...


दो जांघों के बीच का मुलायम अंग अब मुलायम न रहा ... सख्त हो कर पैंट के भीतर ही फुंफकार मारने लगा ...


साँस भारी होने लगी मेरी ... आँखों में गुलाबी डोरियाँ बनने लगीं...


और,


जैसा की अंदेशा था... इस बार भी मेरी चोरी छिपी न रही ...


चाची ने देख लिया..!!


पर, आश्चर्य!


कुछ कहा नहीं ..


मुझे अपने वक्ष की ओर देखते हुए साफ़ साफ़ देखा ...


पर निर्विकार भाव से प्लेट पर से खाना उठा कर अपने मुँह के हवाले करती गयी..


जैसा की किसी भी तरह के चोर के साथ होता है ... वैसा मेरे साथ भी हुआ..


डर गया !


अब भैया, चोरी पकड़े जाने पर कौन नहीं डरता है..?!


पर,


चाची की ओर से किसी भी प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया न पा कर बहुत हैरान हुआ मैं...


बल्कि सच पूछो तो हैरानी तो और भी बढ़ गयी जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जैसे पल्लू दाएँ वक्ष:स्थल पर से और भी अधिक हट गया हो!


अब ये चमत्कार हुआ कैसे --- ये तो पता नहीं --- पर अब मज़ा बहुत आया --- जी भर कर नज़ारा लिया ---


पर थोड़ी देर बाद ख़ुद में बहुत गिल्टी फीलिंग होने लगी ---


इसलिए खाने को ख़त्म करने पर ही ध्यान दिया ---


चाची भी यही कर रही थी ---


दोनों अपने प्लेट्स की तरफ़ देख रहे थे; और निवालों को मुँह के हवाले किए जा रहे थे... |



क्रमशः


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Bhaiya Ji

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भाग ३)


दो-तीन दिन बीत होंगे | एक रात को सब खा पी कर सोये थे | अचानक से मेरी नींद खुली | “खट्ट” की आवाज़ के साथ टेबल लैंप ऑन किया मैंने | मुझे देर रात लाइट बल्ब जलाना अच्छा नहीं लगता था | इसलिए अपने लिए एक टेबल लैंप रखा था | नींद क्यूँ टूटी, पता नहीं पर नींद टूटने के साथ ही मुझे ज़ोरों से एक सिगरेट सुलगाने की तलब होने लगी | पर साथ ही प्यास भी लगा था और संयोग देखिये, आज मैंने अपना पानी का जग भी नहीं भरा था | सो पानी लेने के लिए मुझे नीचे किचेन में जाने के लिए अपने कमरे से खाली जग लिए निकलना पड़ा | सुस्त मन से मैं सीढ़ियों से नीचे उतर ही रहा था की मुझे जैसे किसी के कुछ कहने/ बोलने की आवाजें सुनाई दी | मैं चौकन्ना हो गया | आश्चर्य तो हो ही रहा था की इतनी रात गए भला कौन हो सकता है? मैं धीमे और सधे क़दमों से नीचे उतरने लगा | कुछ नीचे उतरने पर सीढ़ियों पर ही एक जगह मैं रुक गया |


आवाज़ अब थोड़ा स्पष्ट सुनाई दे रही थी | थोड़ा और ध्यान लगा कर सुनने की कोशिश की मैंने | दुबारा चौंका.. क्यूंकि जो आवाजें आ रही थीं वो किसी महिला की थी और शत प्रतिशत मेरी चाची की आवाज़ थी | मैं जल्दी पर पूरी सावधानी से तीन चार सीढ़ियाँ और उतरा | अब आवाज़ काफ़ी सही आ रही थी | सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे की किसी से बहुत विनती, मिन्नतें कर रही है चाची पर दूसरे किसी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी और ज़रा और गौर करने पर पाया की नीचे जहाँ से आवाजें आ रही थी, वहीँ आस पास ही कहीं पर टेलीफोन रखा होता है | इसका सीधा मतलब ये है की ज़रूर चाची किसी से फ़ोन पर बात कर रही है ......



“नहीं.. प्लीज़.... ऐसे क्यूँ कह रहे हैं आप ? मैं सच कह रही हूँ.. मैंने किसी को कुछ नहीं बताया है... प्लीज़ यकीं कीजिये आप मेरा...| प्लीज़ एक अबला नारी पर तरस खाइए.. मैं शादी शुदा हूँ .. मेरा एक परिवार भी है | मैंने तो कुछ सुना ही नहीं था जो मैं किसी को बताउंगी ... प्लीज़.. प्लीज़... प्लीज़... विश्वास कीजिये.. प्लीज़ ऐसा मत कहिये.. कुछ मत कीजिए .. आपको आपके भगवान की कसम....|”



चाची का इतना कहना था की शायद दूसरी तरफ़ से कोई गुस्से से बहुत जोर से चीखा था, रात के सन्नाटे में फ़ोन के दूसरी तरफ़ की आवाज़ भी कुछ कुछ सुनाई दे रही थी | कुछ समझ में तो नहीं आ रहा था पर इतना तय था की कोई बहुत गालियों के साथ चाची को डांट रहा था और उनपर चीख भी रहा था | मैंने ऊपर से झांक कर देखने की कोशिश की |


देखा चाची सहमी हुई सी कानों से फ़ोन को लगाए चुप चाप खड़ी थी | चाची को सहमे हुए से देखने से कहीं ज़्यादा जिस बात ने मुझे हैरत में डाला वो यह था की चाची सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी ! साड़ी नहीं थी उनपर ! आश्चर्य से उन्हें देखने लगा पर कुछ ही सेकंड्स में मेरे आश्चर्य का स्थान दिलचस्पी और ‘लस्ट’ ने ले लिया क्योंकि बिना साड़ी के चाची को ऊपर से देखने पर उनके सुडोल एवं उन्नत चूचियों के ऊपरी हिस्से और उनके बीच की गहरी घाटी एक अत्यंत ही लावण्यमय दृश्य का निर्माण कर रहे थे |


सहमी हुई चाची के हरेक गहरे और लम्बे साँस के साथ उनके वक्षों का एक रिदम में ऊपर नीचे होना पूरे दृश्य में चार चाँद लगा रहे थे | चूचियां भी ऐसे जो नीचे पेट पर नज़र को जाने ही नहीं दे रहे थे | चूचियों के कारण पेट दिख ही नहीं रहा था चाची का | मैंने पीछे नज़र डाला ... उनके गदराये सुडोल उठे हुए गांड पेटीकोट में बड़े प्यारे और मादक से लग रहे थे |


जी तो कर रहा था की अभी जा कर जोर से एक चांटा मारूं उनके गांड पर | पर खुद को नियंत्रित किया मैंने |



मन ही मन सोचा, “ज़रूर चाचा चाची में पति पत्नी वाला खेल चल रहा था और बीच में ये फ़ोन आ गया या फिर खेल खत्म कर के रेस्ट ले रहे थे.. तभी फ़ोन आया |” मुझे दूसरा वाला ऑप्शन ज़्यादा सही लगा | बच्चे बाहर हैं इसलिए पूरे रूम में मस्ती करते हैं ... अगर मैं भी नहीं होता तब शायद पूरे घर में मस्ती करते घूमते.. शायद नंगे..!



“अच्छा.. ठीक है ... माफ़ कीजिये.. गलती हो गई .. अब नहीं बोलूँगी ... पर प्लीज़ मेरे परिवार को कुछ मत कीजिए .... मैं हाथ जोड़ती हूँ | आपको आपके ऊपरवाले का वास्ता..|”

चाची गिड़गिड़ायी...



दूसरी तरफ़ से फिर कोई आवाज़ आई... जैसे की कोई कुछ निर्देश दे रहा हो या कुछ पूछ रहा हो....



“आपको आपके अल्लाह का वास्ता..|”

चाची बहुत ही सहमी और धीमे आवाज़ में बोली |


मैं चौंका ....!!


अरे!! ये क्या बोल रही है चाची??!!.... किससे बात कर रही है और ऐसा क्यूँ बोल रही है?



“हाँ.. हम्म .. पर... पर... प्लीज़... नहीं.... ..... ...... ओके... ठीक... ठीक है... नौ बजे जाते हैं वो.. साढ़े नौ...??... पर क्यूँ... पर... ओके ... ठीक है... |” इसी तरह कुछ देर तक बात कर चाची ने फ़ोन वापस क्रेडल पर रख दिया और एक तरफ़ चली गयी..| मैं हतप्रभ सा पूरी बात समझने का पूरा प्रयास करने लगा | चाची किससे इतनी विनती कर रही थी? कौन था दूसरी तरफ़ ..? और नौ बजे और साढ़े नौ बजे का क्या चक्कर है?


थोड़ा दिमाग दौड़ाने पर याद आया की रोज़ सुबह नौ बजे तो चाचा ऑफिस के लिए निकलते हैं पर ये साढ़े नौ बजे का क्या मामला है ?




क्रमशः

********************

 

firefox420

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yeahhhhhhh!! maza aa jayega ... bahut dino se iss story ke intezaar mein tha dedh saal ho gaya .. ye pending padi thi ...

aapka swagat hai lekhak mohoday ji .. iss story ko puneh shuru karne ke liye .. :congrats:
 

Bhaiya Ji

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yeahhhhhhh!! maza aa jayega ... bahut dino se iss story ke intezaar mein tha dedh saal ho gaya .. ye pending padi thi ...

aapka swagat hai lekhak mohoday ji .. iss story ko puneh shuru karne ke liye .. :congrats:
:thanks: :thanks: :thanks:
 

Sharad97

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shandar update
bhai aapki ye story pehle padh chuka hu bohot hi hot hai bass meri ek request hai Chachi ko aur sexy darshaye aur wo apni marzi se karne lage ....jaise abhi mazburi mein kaam kar rahi hai...aur apne hero par usse shak na ki usse pata hai..
AAGE AAP BEHATAR LIKHTE HI HAI..
WAITING.......
 
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