Ajju Landwalia
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#28
“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.
“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया
“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.
पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.
पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,
पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .
कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .
“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने
“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.
“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.
“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .
“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .
पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं
मैं- थोडा पानी पिला दे यार.
पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.
“आराम से , ” उसने कहा
मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.
पिस्ता- कमीना है तू पूरा
हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .
“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली
मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू
पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं
मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .
पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.
“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने
मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा
पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,
पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .
मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.
मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.
मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.
“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा
पिस्ता- नहीं
मैं- जा न
पिस्ता- माँ नाराज है
मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .
“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली
मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .
काकी- झूठ बोलते हो तुम
मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .
एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.
अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .
“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .
“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .
“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.
“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम
अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया
“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .
नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे
मैं- हाँ
नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का
मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .
“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................
Gazab ki update he HalfbludPrince Fauji Bhai,
Dev ne pista ke hisse kode khud kha liye.............lekin pehle kode ne hi use dharatal par la diya............
Pista aur dev ka pyar ab parvan chadega............lekin payr karne walo ka dushman jamana hota he.........
Naaz ho sakta ab dev ka kaumary bhang karde.......
Keep rocking Bhai
, बोहोत ही बढिया अपडेट दिया है फौजी भैया, मजा आ गया