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Adultery जब तक है जान

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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#28

“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.

“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया

“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.

पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.

पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,

पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .

कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .

“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने

“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.

“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .

“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .

पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं

मैं- थोडा पानी पिला दे यार.

पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.

“आराम से , ” उसने कहा

मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.

पिस्ता- कमीना है तू पूरा

हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .

“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली

मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू

पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं

मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .

पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.

“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने

मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा

पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,

पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .

मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.


मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.

मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.

“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा

पिस्ता- नहीं

मैं- जा न

पिस्ता- माँ नाराज है

मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .

“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली

मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .

काकी- झूठ बोलते हो तुम

मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .

एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.


अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .

“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .

“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .

“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.

“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम

अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया

“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .

नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे

मैं- हाँ

नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का

मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .

“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................

Gazab ki update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Dev ne pista ke hisse kode khud kha liye.............lekin pehle kode ne hi use dharatal par la diya............

Pista aur dev ka pyar ab parvan chadega............lekin payr karne walo ka dushman jamana hota he.........

Naaz ho sakta ab dev ka kaumary bhang karde.......

Keep rocking Bhai
 

dhparikh

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#28

“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.

“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया

“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.

पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.

पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,

पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .

कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .

“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने

“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.

“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .

“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .

पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं

मैं- थोडा पानी पिला दे यार.

पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.

“आराम से , ” उसने कहा

मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.

पिस्ता- कमीना है तू पूरा

हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .

“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली

मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू

पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं

मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .

पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.

“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने

मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा

पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,

पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .

मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.


मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.

मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.

“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा

पिस्ता- नहीं

मैं- जा न

पिस्ता- माँ नाराज है

मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .

“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली

मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .

काकी- झूठ बोलते हो तुम

मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .

एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.


अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .

“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .

“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .

“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.

“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम

अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया

“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .

नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे

मैं- हाँ

नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का

मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .

“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................
Nice update....
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Awesome update
Dosti ki behtrin mishal di hai dev ne,
Pista ke liye apne bap ki narajgi aur saja dono bhugat li aur dosti ka farz nibhate huye pista se kuchh nhi puchha akhir wo gayi kaha thi,
Subah hote hi naj ke sath apne sambandh ki shuruwat kr di
Dosti hai to theek hai Ishq hua to mushkil hogi
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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तो वो औरत नाज ही निकली, देव ने भी आधी बोल कर मछली को जलती रेत पर छोड दिया 😊
दूसरी ओर देव के पिता की दुकान पर किसने हमला कर दिया?? ये भी देखने वाली बात होगी,
दूसरी तरफ देव की बुआ उसे पंचायत मे जाने से क्यो रोक रही थी ये सवाल अगले अपडेट तक परेशान करेगा, वैसे लगता है पिस्ता मिल गई, :laughing: , बोहोत ही बढिया अपडेट दिया है फौजी भैया, मजा आ गया
:claps::claps::claps:
कभी कभी tadpana जरूरी होता है सेक्स के खेल मे. इधर नाज़ भी शातिर औरत है ऐसे ही नहीं देगी
Bohot hi umda update foji bhai, shandaar lekhan :claps: :claps: Aakhir pista gai kaha thi?? Ye sawaal ab bhi khada hai👍, gaav ki panchayat kisi ladki ki kaha sunti hai waise?
पिस्ता कहाँ गई थी अगले भाग मे मालूम हो जाएगा
Ye dev bhi pakka rasiya nikla foji😊😊naaj kenaaj utha ke hi rahega, pista ko uske ghar pahucha diya gaya, uske hisse ke kode bhi kha liye dwv ne, lekin sawal ab bhi wahi hai ki wo kiske sath? Kyu??? Or kaha gai thi????
Awesome update again and heart touching writing ✍️ brother 💙
HalfbludPrince
अगले भाग का इंतजार करो भाई
 

S M H R

TERE DAR PE SANAM CHALE AYE HUM
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#26

भीगा मौसम, लहराते पेड़-पौधे और सामने चलती चुदाई , मेरा खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था तभी मेरी नजर उस
औरत के चेहरे पर पड़ी और मैं बुरी तरह से चौंक गया . मुझे उम्मीद नहीं थी . साली मुझे पाठ पढ़ा रही थी की ज्यादा आग लगी है तो कोई औरत ढूंढ लो और खुद खुले में चुद रही थी.जिस उत्साह से चुदाई चल रही थी लगने लगा था की अब मामला कुछ ही देर का है . पर तभी मेरे दिमाग में सवाल आया की ये आदमी कौन है क्योंकि उसने मुह पर कपडा बाँधा हुआ था .मन किया की दोनों को पकड लिया जाये रंगे हाथ पर तभी उस आदमी ने नाज को धक्का देकर खुद से परे कर दिया और तुंरत ही वहां से जाने लगा. काम होने के बाद उसने एक बार भी नाज को नहीं देखा और पल भर में ही गायब हो गया. ऐसी भी बहनचोद क्या जल्दी थी .खैर, नाज ने अपने कपड़ो को सही किया और चबूतरे से उतर कर रस्ते पर जाने को ही हुई थी की मैं दौड़ कर उसके सामने आ गया.

“देवा, देवा तुम यहाँ इस वक्त ” नाज ने थूक गटकते हुए कहा

मैं- मेरी छोड़ो तुम यहाँ क्या कर रही हो मासी

“खेतो पर गयी थी , बारिश का जोर हुआ तो रुक गयी थी इधर ” नाज ने साफ़ झूठ बोला.

“हसीन औरते झूठ बोलते समय और भी खूबसूरत लगती है ” मैंने बुदबुदाया

नाज- कुछ कहा तुमने

मैं-नहीं कुछ भी नहीं.

मैं नाज से कहना चाहता था की साली अभी कुछ देर पहले तो उचक उचक कर लंड ले रही थी और अभी देखो कितनी मासूम बन रही थी पर अगर औरत को जोर से पाया तो फिर क्या पाया. चाहता तो उसे चोद सकता था उसी समय पर उसमे मजा नहीं रहता. पर सोच जरुर लिया था की जल्दी ही नाज की चूत मारी जाएगी. बारिश में भीगते हुए हम लोग गाँव में पहुँच ही गए.

“आज तो देर बहुत हो गयी ” नाज ने अपने घर की तरफ मुड़ते हुए कहा
मैं रुक गया .

“क्या हुआ देव ”नाज बोली

“कबूतरी कच्छी जंचती है तुम पर ” मैंने नाज से कहा और उसके पैर जैसे धरती पर जम गए. मैं तुरंत अपने घर में घुस गया . घर गया तो पाया की माहोल में कुछ तल्खी सी थी माँ के चेहरे पर चिंता को पढ़ लिया मैंने

“ क्या हुआ माँ, परेशान सी लगती हो ” मैंने पुछा

माँ- किसी ने अपनी शराब फक्ट्री पर हमला किया , काफी नुक्सान हुआ है . तेरे पिताजी बाहर गए है उनको मालूम होगा तो कलेश बहुत बढ़ जायेगा देवा.वैसे ही आजकल क्रोध उनकी नाक पर रहता है मुझे बड़ी फ़िक्र हो रही है

मैं- माँ, सही हुआ है ये जिसने भी किया है . पिताजी के काले धंधे लोगो का भला नहीं करते. शराब से कितने घर बर्बाद होते है तो कभी ना कभी आंच हमारे घर तक भी आयेगी न. वैसे भी ये खून खराबा आये दिन का ही नाटक हुआ पड़ा है .

माँ- लिहाज करना भूल ही गए हो आजकल तुम

मैं- सच कहना कोई बदतमीजी भी तो नहीं ना माँ, तुमसे क्या ही छिपा है .झूठे रुतबे, झूठी शान के बोझ को कब तक धोना पड़ेगा हमें. पिताजी खुश होते है की वो बाहुबली है , इलाके में उनका सिक्का चलता है पर माँ पीठ पीछे वो ही लोग हमें गालिया बकते है . गाँव में कोई हमसे बात तक नहीं करना चाहता.

माँ- गाँव वालो के लिए इतना सब कुछ करने के बाद भी उनके मन में फरक है तो ये हमारी नहीं उनकी समस्या है

मैं- सही कहा माँ तुमने.
माँ- कायदे से तुझे चिंता होनी चाहिए थी की किसने हमारे काम पर हमला किया . हमारे लोगो को चोट आई है , अगर हमने कदम नहीं उठाया तो कल को फिर कोई ऐसी ही हिमाकत करेगा . कैसा बेटा है तू घर पर आंच आई है और तुझे परवाह ही नहीं .


“किसी की मजाल नहीं की मेरे घर की तरफ आँख उठा सके ” मैंने कहा ही था की तभी बाहर से मुनादी करने वाले की आवाज आने लगी .
“सुनो सुनो, सुनो आज रात करीब घंटे भर बाद सब लोग गाँव की चौपाल में इकठ्ठा हो जाए .पंचायत लगेगी ” मुनादी करने वाले की आवाज गली में गूंजने लगी .

मैं बाहर गया .

“पंचायत कैसे होगी, पिताजी तो गाँव में है ही नहीं. और ये पंचायत किस सिलसिले में हो रही है ” मैंने सवाल किया

“मुझे नहीं पता भाई जी, मुझे मुनीम जी ने आदेश दिया मुनादी का आप मुनीम जी से पता कर लो ” उसने कहा और आगे बढ़ गया.
आजकल गाँव में कुछ न कुछ नाटक होते ही रहते थे अब बारिश से भरे रात में पंचायत का आयोजन ऐसा क्या ही हो गया था . पर हमारी गांड के घोड़े भी चढ़ती जवानी की चाबुक से दौड़ रहे थे तो मैं मुनीम के घर पहुँच गया .


“मुनीम जी ” मैंने आवाज दी

“कौन है ” नाज ने बाहर आते हुए कहा .

“तुम इस वक्त यहाँ ”इतना ही बोल सकी क्योंकि जैसे ही हमारी नजरे मिली वो नजरे चुराने लगी. दिल तो मेरा भी धडक गया उसकी गदराई छातियो को देख कर पर फिलहाल मेरी प्रथमिकताये कुछ और थी .

“मुनीम जी कहा है मासी ” मैंने कहा

नाज- घर पर नहीं है आये नहीं अभी तक

मैं- पंचायत का आयोजन करने का आदेश दिया है उन्होंने

नाज- मुझे नहीं मालुम इस बारे में

मैं- हां, तुम्हारे तो अपने अलग ही काम है

नाज- देव मेरी बात सुनो

मैं- अभी नहीं मासी. मुझे जाना है पंचायत क्यों हो रही है मालूम करना है

नाज- मेरी बात सुनो देव.

पर नाज की बात अधूरी ही रह गयी क्योंकि तभी लगभग दौड़ते हुए बुआ वहां आ गयी और बोली- देव, तुम पंचायत में नहीं जाओगे.............

मैं- क्यों भला

बुआ- समझने की कोशिश करो देव


मैं- क्या कह रही हो बुआ, ऐसा क्या है जो मुझे नहीं जाना चाहिए वहां

बुआ- सवाल बहुत करते हो तुम , मैंने कह दिया न नहीं जाना तुम्हे तो नहीं जाना

मैं- मैं जाऊंगा जरुर जाऊंगा

बुआ- समझता क्यों नहीं तू

मैं- तो बता न

बुआ- क्योंकि................................

Nice update
 

S M H R

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#27

“क्योंकि ,पंचायत में जो होगा तू सह नहीं सकेगा” बुआ ने कहा

मैं- इस घर के लोगो को अजीब बिमारी है साफ़ साफ नहीं कहनी कोई भी बात मेरे पंचायत में ना जाने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा जो मुझे रोकती हो

बुआ- पिस्ता मिल गयी है, उसे पकड़ कर ला रहे है उसके नसीब का फैसला आज रात होगा.


“क्या पिस्ता मिल गयी “ कहते हुए मेरे चेहरे पर जो नूर था शुक्र ये की रात थी वर्ना कोई भी देख कर दीवाना कह देता . पर अगले ही पल उस नूर की जगह डर ने ले ली.

“पिस्ता, पिस्ता को लेकर पंचायत क्यों होगी ” धडकते दिल से मैंने सवाल किया.

बुआ- बहुत भोला है तू देवा, इस घर में रह कर भी तू नहीं समझा की औरत की कोई आजादी नहीं होती यहाँ. इस गाँव में औरत पांव की जुती तो हो सकती है पर उसके आँचल को लहराने की इजाजत नहीं है . मैंने चाहत देखी है तेरी आँखों में उस लड़की के लिए इसलिए तुझे रोक रही हु.


“चाहत देखी फिर भी रोकती है बुआ ” मैंने कहा

बुआ- हाँ, इसलिए रोकती हूँ क्योंकि जमाना आशिको का कभी साथी नहीं रहा चढ़ती जवानी की रवानी में कही तुमसे ऐसी कोई गलती न हो जिसका पछतावा उम्रभर रहे क्योंकि चाहत के रोग की कभी दवा नहीं होती .

इस से पहले की मैं बुआ को कोई भी जवाब देता हमारे आगे से तीन चार गाडिया निकली और मेरा दिल कांप गया किसी अनिष्ट की आशंका से मैं गाडियों के पीछे भागा और चौपाल पर पहुँच गया. मेरे देखते देखते पिताजी के एक आदमी ने पिस्ता को गाडी से निकाल पर नीम निचे चबूतरे पर पटक दिया. दर्द से कराही वो. मैंने देखा चोट लगी थी उसे, कुरता काँधे पर से फटा था .

“पिस्ता ” दौड़ कर मैं उसके पास गया और उसे अपने आगोश में भर लिया .

“देव ” उसने हौले से कहा और मेरी बाँहों में झूल गयी . सकून, करार जो भी था उस लम्हे में बहुत था. दुआ बस ये थी की, अगर कही खुदा था तो गुजारिश थी की उस लम्हे में इस कायनात को समेट ले. दीन दुनिया को भुलाकर मैं पिस्ता को आगोश में लिए खड़ा था .न कोई होश था ना कोई ख्याल था सिर्फ वो थी और मैं था. पर कब तक

“देवा, ये क्या कर रहा है तू ” पिताजी की सख्त आवाज ने मुझे धरातल पर लाकर इतनी जोर से पटका की सच्चाई ने मेरे घुटनों को टक्कर मारी.

“तेरी जुर्रत कैसे हुई नीच जात की लड़की को छूने की ” पिताजी ने मुझे लताड़ते हुए कहा .
मैं- जुर्रत तो आपके आदमियों की भी नहीं होनी चाहिए थी इसे हाथ लगाने की , जी तो करता है की आपके इन आदमियों के हाथो को अभी तोड़ दू.

“जुबान को लगाम दे देवा, ” पिताजी बोले.

मैं- चल पिस्ता घर चल

पिताजी- कहीं नहीं जाएगी ये, जब तक की ये पंचायत फैसला नहीं कर दे, सजा तो मिलेगी इसे

मैं- किस बात का सजा

पिताजी- गाँव से भाग कर गयी थी ये , बहन-बेटियों को लिहाज में रहना चाहिए . इसे सजा जरुर मिलेगी वर्ना देखा देखी और लडकिया भी ये कदम उठाएंगी

मैं- कैसा लिहाज पिताजी, और किस ज़माने में जी रहा है ये गाँव, गाँव की छोड़ो , आप किस ज़माने में जी रहे है , किस बात का समाज जहाँ आदमी को अपनी मर्जी से जीने की आजादी नहीं है, कैसा गुरुर , कैसी आन बाण शान जो आदमी को आदमी नहीं समझती . कहने को अपना गाँव है अपने लोग है, अपने लोग है तो फिर क्यों जात-पात में बांटे हुए है अपने ही लोग . ये नीच जात की है आप ऊँची जात के . इसकी माँ रोज हमारे घर आती है हमारा कचरा साफ करती है बर्तन मांजती है उन्ही बर्तनों में हम खाना खाते है . हमारे घर में बना खाना इनके घर जाता है , होली-दिवाली इनके घर ,हमारे घर से मिठाई जाती है . सुख दुःख में आप इनके साथ खड़े रहते है तो फिर ये निचे और हम ऊँचे कैसे हुए पिताजी .

“समाज के ताने ताने से छेड़खानी करने का किसी को कोई अधिकार नहीं वैसे भी ये पंचायत इस मुद्दे पर है की घर से भागने के लिए इस लड़की को क्या सजा दी जाये ” पिताजी ने लाठी को जमीन पर मारते हुए कहा .

मैं- कोई सजा नहीं मिलेगी पिस्ता को . नहीं मानेगी वो किसी भी पंचायत के उलजलूल फैसले को

पिताजी- तुम अपनी हद पार कर रहे हो लड़के .

मैं- मुखिया को अपनी हद याद दिला रहा हूँ मैं .

“गुस्ताख ” अगले ही पल पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा


“देव ” चीखी पिस्ता

“पंचायत की कार्यवाही शुरू की जाये ” पिताजी ने कहा

मैं- कोई पंचायत नहीं होगी , पिस्ता अपने घर जाएगी


“”देवा, बेटा घर चल “माँ भी पंचायत में आ पहुंची थी .

“जरुर माँ घर जरुर जायेगे पर पिस्ता को लेकर ” मैंने माँ से कहा

“देवा की माँ इस से पहले की हम भूल जाये ये ना लायक हमारी औलाद है इसे ले जाओ यहाँ से ” पिताजी का गुस्सा चरम पर बढ़ने लगा था .

“मैं सजा के लिए तैयार हु चौधरी साहब ” पिस्ता ने बाप-बेटे के बीच आते हुए कहा.

“सजा ही देनी है तो दीजिये ये तमाशा किसलिए , गलती हुई मुझसे तो सजा दीजिये ” पिस्ता ने कहा

पिताजी- शर्म बेच खाई है तुम जैसी लडकियों ने अपने सुख के लिए तुम्हे जरा भी परवाह नहीं रहती की जिस घर से तुम भाग रही हो तुम्हारे बिना क्या रह जायेगा उस घर में,देख जरा तेरी माँ की आँखों में झांककर. बीते दिनों में इसकी आँखों ने मुझसे सिर्फ एक सवाल किया की कब लौटेगी इसकी बेटी. जिन हाथो ने तुझे इतना बड़ा किया तुझे शर्म नहीं आई उन्हें रुसवा करते हुए.

पिस्ता- मैंने कोई गुनाह नहीं किया

पिताजी- माँ-बाप को समाज में नीचा दिखाने से भी बड़ा कोई गुनाह है क्या

“बच्ची है वो.माफ़ कर दीजिये ” माँ ने बीच-बचाव करते हुए कहा .

“चौधरीन ,हद पार कर रही हो तुम ” पिताजी बोले

“ये पंचायत पिस्ता को कोड़े मारने का सजा देती है जब तक की इसकी पीठ से मांस न उधड जाये अभी इसी वक्त ” पिताजी ने कहा
मैं- अगर किसी ने भी पिस्ता को हाथ भी लगाया तो वो हाथ , हाथ नहीं रहेगा.

“चौधरी साहब , बच्चे है अपने ही ” माँ ने हाथ जोड़ दिए. मेरी माँ पंचायत में हाथ जोड़ रही थी मेरे लिए इस से ज्यादा शर्मिंदगी क्या ही होती .

पिताजी- ठीक है जाने दूंगा पिस्ता को पर इसे बताना होगा किसके साथ गयी थी इसका आशिक कौन है . अभी के अभी जाने दूंगा इसे.
पिताजी ने धुर्त्पना दिखा दिया था . वैसे भी जाने कैसे देता वो जब बात मूंछो की हो .

“बता लड़की कौन है तेरा आशिक किसके साथ गयी थी तू ” पिताजी ने सवाल किया.


“मेरा कोई आशिक नहीं ” चीखी वो

“झूठ बोलती है हरामजादी अगर ये आशिक का नाम नहीं बताती तो कोड़े मारो इसे ” पिताजी ने थप्पड़ मारा पिस्ता को

“दुबारा हाथ मत लगाना इसे पिताजी ” गुर्राया मैं

“तो फिर तू ही पूछ ले इससे, जिसकी इतनी तरफदारी कर रहा है किसकी साथ मुह काला कर रही थी ये, किसने इसे सलाह दी थी भागने की ” बोले वो .

मैं- आप जानना चाहते है न की कौन है इसका आशिक , मैं बताता हु , पर पहले वादा कीजिये की कोई भी पिस्ता को हाथ नहीं लगाएगा

पिताजी- ठीक है वादा

“मैं हूँ इसका आशिक . मैंने ही इसे वहां जाने को कहा था जहाँ से आप इसे लाये है ” मैंने पिताजी के सामने सफ़ेद झूठ बोला

“कहदे की ये झूठ है देवा ” पिताजी ने अपनी लाठी उठा ली

मैं- सच को सुनने की क्षमता रखिये

अगले ही पल पिताजी की लाठी मेरे बदन पर आ पड़ी .
Wah re Ishq Tera kya kehna
 

S M H R

TERE DAR PE SANAM CHALE AYE HUM
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#28

“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.

“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया

“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.

पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.

पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,

पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .

कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .

“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने

“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.

“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .

“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .

पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं

मैं- थोडा पानी पिला दे यार.

पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.

“आराम से , ” उसने कहा

मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.

पिस्ता- कमीना है तू पूरा

हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .

“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली

मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू

पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं

मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .

पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.

“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने

मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा

पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,

पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .

मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.


मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.

मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.

“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा

पिस्ता- नहीं

मैं- जा न

पिस्ता- माँ नाराज है

मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .

“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली

मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .

काकी- झूठ बोलते हो तुम

मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .

एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.


अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .

“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .

“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .

“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.

“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम

अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया

“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .

नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे

मैं- हाँ

नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का

मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .

“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................
Pista kyu Kahan or kiske sath gayi thi pata nhi chala ab tak

Dev or Naaz ka milan hone wala hai lagta hai
 
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