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ThanksBahut hi behtareen update he TheBlackBlood Shubham Bhai,
Maja aa gaya padh kar.........
Keep posting Bhai
ThanksBahut hi behtareen update he TheBlackBlood Shubham Bhai,
Maja aa gaya padh kar.........
Keep posting Bhai
ThanksNice update bro aag laga di hai and congratulations for new story
ThanksBahut hi shaandar update diya hai TheBlackBlood bhai....
Nice and beautiful update....
Hakikat chahe kuch bhi ho lekin bade bade khwaab dekhna galat to nahiकमला के साथ मोहन प्यारे का मिलन शायद वैसा ही होने वाला है जैसे दारा सिंह का अपने विपक्षी पहलवानों के साथ हुआ करता था । अपने पांव को कैंची की तरह बनाकर विपक्षी पहलवान के गर्दन दबोच लिया करते थे वो और विपक्षी पहलवान अपनी जान बचाने के लिए उनसे मिन्नते करने लगते थे।
कमला जैसी हाहाकारी औरत से पार पाना मोहन के वश का नही , बल्कि तीनों एक साथ भी मिलकर जाएं तब भी उनके सामर्थ्य का नही।![]()
Sahi kaha samvaad hi hai jo thodi bahut kahani ko baandhe huye hain filhaal, baaki dekhte hain aage kya hota haiइस कहानी का सबसे मजबूत पक्ष है संवाद । तीन तिकड़ी वैसे तो शगुन नही माना जाता पर अपने इन्नोसेंट एवं मूर्खतापूर्ण विहेवियर से इस थ्योरी को गलत साबित कर दें तो हमे ताज्जुब नही होगा।
Thanksबहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई। आउटस्टैंडिंग अपडेट।
Nice update....Update - 04"हां तू तो जैसे ताजमहल बना रहा था लौड़े।" संपत धीमें से बड़बड़ाया और गोबर से भरी झाल ले कर उसे फेंकने बाहर निकल गया।
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तबेले के बाहर कुछ ही दूरी पर तीनों मुस्टंडे अपने अपने लट्ठ को साइड में रख कर बीड़ी फूंक रहे थे। संपत को झाल में गोबर ले जाते देख तीनों हंसने लगे जबकि संपत उनके यूं हंसने पर मन ही मन गालियां देते हुए बोला____'हंस लो लौड़ो। जल्दी ही ये गोबर उठाने का नंबर लगेगा तुम लोगों का भी।"
अब आगे....
"अरे! ये सब क्या है रे मंगू?" जोगिंदर जैसे ही तबेले के अंदर आया तो वहां का बदला हुआ हाल देख चौंकते हुए अपने एक मुलाजिम मंगू से पूछा____"आज यहां हर जगह इतना चकाचक कैसे दिख रहा है?"
"ये सब उन नमूनों की मेहरबानी है उस्ताद।" मंगू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा___"वो तीनों के तीनों दोपहर से ही यहां की हर चीज़ को चकाचक करने में लगे हुए थे। मुझे तो ऐसा लगता है उस्ताद जैसे सालों ने भांग का नशा कर रखा था।"
"भोसड़ी के ये क्या बक रहा है तू?" जोगिंदर ने बड़े आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ये सब उन तीनों ने किया है? अबे झूठ बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"नहीं उस्ताद।" मंगू पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला____"मैं एकदम सच कह रहा हूं। ये सब उन तीनों नमूनों ने ही किया है। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो बिरजू और बबलू से पूछ लो।"
मंगू की बात सुन कर जोगिंदर ने बिरजू और बबलू की तरफ देखा तो दोनों ने मंगू की बात का समर्थन करते हुए हां में सिर हिला दिया। जोगिंदर अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ से नज़र हटा कर तबेले में हर जगह निगाह दौड़ाने लगा। वो ये देख कर हैरान ही नहीं बल्कि चकित भी हो गया कि आज उसका तबेला सफाई के मामले में अलग ही नज़र आ रहा था। जहां भैंसें बंधी रहती हैं वहां भी एकदम साफ था जबकि आम तौर पर वहां पर आज से पहले इतनी ज़्यादा सफाई नहीं हुआ करती थी। बाकी जगहों की तो बात ही अलग थी। ना कहीं कूड़ा कचरा नज़र आ रहा था और ना ही गोबर के कोई निशान। जोगिंदर की घूमती निगाह अचानक ही एक जगह ठहर गई। दूध की बाल्टियां और दूध के बड़े बड़े कनस्तर बड़े अच्छे तरीके से साफ कर के एक जगह व्यवस्थित ढंग से रखे हुए थे। जोगिंदर जल्दी ही उन बर्तनों के पास पहुंचा। उसने ग़ौर से देखा बर्तन एकदम साफ और चकाचक थे।
"बेटोचोद ये सब क्या देख रहा हूं मैं?" जोगिंदर एकदम से पलट कर हैरानी भरे भाव से बोला____"क्या ये मेरा ही तबेला है या मैं दिन में ही सपना देख रहा हूं?"
अभी जोगिंदर ने ये बोला ही था कि तभी उसकी नज़र तबेले के दरवाज़े पर पड़ी। तीनों नमूने हाथ पैर धोने के बाद गमछे से अपने हाथों में लगा पानी पोंछते हुए इधर ही आ रहे थे। जोगिंदर पर जैसे ही तीनों की नज़र पड़ी तो तीनों ही अपनी जगह पर ठिठक गए।
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग को ऐसे क्यों घूर रेला है बे?" मोहन ने धीमी आवाज़ में संपत से कहा____"कहीं ये सांड अपन लोग की गांड़ मारने तो नहीं आएला है इधर?"
"अबे फट्टू ऐसा कुछ नहीं करेगा वो।" संपत ने धीरे से कहा____"तू टेंशन मत ले।"
"भोसड़ी के बोल तो ऐसे रहा है।" मोहन ने कहा___"जैसे उसने तुझे पहले ही ये बता दिया हो।"
"अबे उसके तीनों सांड भी उसके पास ही खड़ेले हैं बे।" जगन भी धीमें से बोल पड़ा____"कहीं उन तीनों ने अपन लोग की कोई शिकायत तो नहीं कर दी होगी?"
"अबे चूतिए वो लोग भला अपन लोग की क्या शिकायत करेंगे?" संपत ने कहा____"अपन लोग ने तो शिकायत करने वाला कोई काम ही नहीं किएला है।"
"ओए उधर क्या खुसुर खुसुर कर रहे हो तुम तीनों?" जोगिंदर ने ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए तीनों नमूनों से कहा____"इधर आओ ज़रा।"
जोगिंदर के इस तरह बुलाने पर तीनों की धड़कनें तेज़ हो गईं। एक अंजाने डर की वजह से तीनों के चेहरों पर पसीना उभर आया। अब क्योंकि जोगिंदर ने बुलाया था तो तीनों को उसके पास जाना ही था इस लिए मध्यम चाल से चलते हुए कुछ देर में उसके पास पहुंचे।
"ये बताओ कि आज तुम तीनों ने कौन सा नशा किया है?" जोगिंदर ने तीनों की तरफ देखते हुए थोड़ा सख़्त भाव से पूछा तो तीनों ही बुरी तरह उछल पड़े।
"न...न...नशा????" संपत हकलाते हुए बोला____"नहीं तो। अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है। अपन लोग के पास तो खाने के भी पैसे नहीं हैं। नशे के लिए कहां से आ जाएंगे?"
"कोई तो नशा ज़रूर किया है तुम तीनों लोगों ने।" जोगिंदर ने सिर हिलाते हुए कहा____"तभी तुम लोगों ने तबेले का इस तरह से कायाकल्प किया है।"
"अपन सच कहता है उस्ताद अपन ने कोई नशा नहीं कियेला है।" मोहन अंदर से डरा हुआ तो था किंतु आदत से मजबूर बोल ही पड़ा____"अपन अपने मरे हुए मां बापू की क़सम खा रेला है। सच्ची में अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है।"
"चल मान लिया।" जोगिंदर भी समझ रहा था कि ऐसे नमूनों के पास भला कोई नशीला पदार्थ कहां से आ जाएगा जबकि पिछले दो दिनों से वो उसके यहां ही एक तरह से क़ैदी बन के रह रहे हैं। इस लिए थोड़ा नरमी से बोला____"मान लिया मैंने कि तुम तीनों ने कोई नशा नहीं किया है मगर मैं ये भी नहीं हजम कर पा रहा हूं कि तुम तीनों ने इस तबेले की तस्वीर बदल दी है।"
"य..ये आप क्या कह रहे हैं उस्ताद?" संपत को जल्दी ही समझ आया कि जोगिंदर किस सिलसिले में बात कर रहा है। वो तीनों तो अभी तक यही समझ रहे थे कि उनसे कोई ग़लती हो गई है जिसके लिए उसके तीनों सांडों ने उससे उनकी शिकायत की है। अतः सम्हल कर संपत ही बोला____"तबेले की तस्वीर??? मैं कुछ समझा नहीं?"
"इन लोगों ने मुझे बताया कि तुम तीनों ने मिल कर इस तबेले का ऐसा कायाकल्प किया है।" जोगिंदर ने अपने मुलाजिमों की तरफ इशारा करते हुए कहा_____"क्या ये वाकई में सच है?"
जोगिंदर की बात संपत के अलावा मोहन और जगन को अब जा के समझ में आई। तीनों ने पहले तो हां में सिर हिलाया और फिर ख़ामोशी से अपना अपना सिर इस अंदाज़ में झुका लिया जैसे उनसे कोई अपराध हो गया हो।
"बड़ी हैरत की बात है।" जोगिंदर गहरी सांस लेते हुए बोला____"यकीन नहीं हो रहा मुझे कि तुम तीनों ने इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया है। इन लोगों ने बताया कि तुम तीनों दोपहर से यहां काम पर लगे हुए थे? कल तक तो तुम तीनों को काम करने के लिए भारी ज़ोर देना पड़ता था और आज किसी के बिना कहे ये सब कर डाला, क्यों? आख़िर क्या सोच कर ये सब किया तुम लोगों ने, हां?"
"व...वो बात ये है उस्ताद कि अपन लोग ने सोचा कि हर्ज़ाना तो अपन लोग को हर हाल में भरना ही पड़ेगा।" संपत ने जैसे कमान सम्हालते हुए कहा____"तो अगर काम नहीं करेंगे तो कैसे भला अपन लोग आपका हर्ज़ाना दे पाएंगे? अपन लोग ने सोचा जब काम करना ही है तो पूरी ईमानदारी से करें। तभी तो जल्द से जल्द हम हर्ज़ाना दे पाएंगे न? वैसे भी अपन लोग को इधर खाना पीना तो मिल ही रेला है। खाली पीली बैठने से क्या होगा? बस ये ही सोच के अपन लोग ने ये सब किया उस्ताद पर अगर तुमको अच्छा नहीं लगा तो माफ़ कर दो अपन लोग को।"
जोगिंदर, संपत की ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ बोल ना सका। असल में वो हैरान था ये सब देख कर और उसके मुख से ये सब जान कर। तीन दिन पहले जिस व्यक्ति ने उसे इन तीनों के बारे में बताया था उससे वो भी यही समझता था कि ये तीनों एक नंबर के कामचोर, निकम्मे और राहजनी करने वाले बदमाश हैं। किंतु इस वक्त वो ये सब देख सुन कर हैरान रह गया था।
"सच सच बताओ कि किस चक्कर में तुम तीनों?" फिर कुछ सोचते हुए जोगिंदर ने थोड़ा सख़्त भाव से तीनों की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर तुम लोगों ने ये सब किसी दूसरे से ही चक्कर में किया है तो समझ लो बहुत बड़ी ग़लती की है। सालो ऐसी गांड़ तोड़ाई करूंगा कि हगते नहीं बनेगा तुम तीनों से।"
"य...ये कैसी बात कर रेले हो उस्ताद?" संपत मन ही मन घबरा गया। किन्तु फिर जल्दी ही सम्भल कर बोला____"अपन लोग भला किस चक्कर में होंगे? अरे! सच तो ये है उस्ताद कि अपन लोग को अब ये बात अच्छे से समझ आ गई है कि अब तक अपन लोग की लाइफ झंड थी। साला पेट भरने के लिए अपन लोग चोरी चकारी करते थे और पब्लिक अपन लोग की पेलाई कर देती थी। बहुत झंड लाइफ थी अपन लोग की उस्ताद लेकिन यहां आ कर और काम कर के अपन लोग को समझ आ गएला है कि सच्ची लाइफ यहीच है। काम कर के इज्ज़त से खाओ, भले ही दो रोटी कम खाओ।"
जहां जोगिंदर संपत की बातें सुन कर आश्चर्य से उसे देखने लगा वहीं जगन और मोहन हैरानी के साथ अब अंदर ही अंदर ये सोच कर गुस्से में आ गए थे कि संपत ये क्या बकवास किए जा रहा था? दोनों को संपत पर भारी गुस्सा आ रहा था किंतु इस वक्त जोगिंदर के रहते वो कुछ कर नहीं सकते थे।
"तुम अपन लोग पर भरोसा करो या ना करो उस्ताद।" उधर संपत दीन हीन दशा वाली सूरत बना कर बोला____"पर अपन लोग की सच्चाई यही है अब। अपन लोग ने पूरा मन बना लिएला है कि हर दिन ऐसे ही काम करेंगे और यहां से कहीं नहीं जाएंगे। यहां रहने के लिए कम से कम अपन लोग के पास छत तो है वरना अपन लोग तो साला पता नहीं कैसी कैसी जगह पे रात बितायेले हैं। अच्छा हुआ कि अपन लोग ने उस दिन तुम्हारा दूध चुरा लिया वरना ऐसी लाइफ के तो सपने भी नहीं आते अपन लोग को कभी। अब से अपन लोग इधर ही रहेंगे उस्ताद। इधर मस्त काम करेंगे और खाते पीते इधर ही अपना बाकी का लाइफ़ गुज़ारेंगे। तुम अपन लोग को यहां हमेशा के लिए रखोगे न उस्ताद?"
संपत एकदम दीन हीन भाव से जब जोगिंदर से ये सब कहने के बाद चुप हुआ तो जोगिंदर जैसे अचानक ही किसी सपने से जागा। उसने चौंक कर तीनों को देखा।
"बेटीचोद, मैं तो तुम तीनों को हरामी और बदमाश समझता था लौड़ो।" जोगिंदर हल्के से मुस्कुराते हुए बोला____"मगर तुम तो सालो देव मानुष निकले।" कहने के साथ ही उसने अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ निगाह डाली और फिर हुकुम सा देते हुए बोला____"सुन लिया न तुम तीनों ने? अब से तीनों यहीं रहेंगे और अपने ही तबेले काम करेंगे और हां अब से ये लोग भी तुम लोग जैसे ही हैं।"
"ठ...ठीक है उस्ताद।" बबलू ने हैरान परेशान अंदाज़ में कहा____"लेकिन क्या इन तीनों पर इतना जल्दी भरोसा करना ठीक होगा?"
"भोसड़ी के अब क्या तू बताएगा मुझे कि मुझे कितना जल्दी भरोसा करना चाहिए?" जोगिंदर ने नागवारी भरे लहजे में उसे देखा____"अबे मैंने भी दुनिया देखी है इस लिए ज्ञान मत दे मुझे। अब एक बात कान खोल कर सुन लो तुम तीनों। मुझे अब से हर दिन अपने तबेले में ऐसी ही चकाचक सफाई चाहिए और इसके लिए तुम लोग भी इन तीनों की मदद करोगे। बात समझ में आ गई न?"
तीनों ने जल्दी से हां में सिर हिला दिया। तीनों के चेहरों पर चिंता और परेशानी के भाव अभी भी गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। पता नहीं क्या चल रहा था तीनों के ज़हन में।
"आज तो तुम तीनों बहुत ही ज़्यादा थक गए होगे न?" जोगिंदर तीनों नमूनों से मुखातिब हो कर बोला____"इस लिए अब जाओ और आराम करो। आज का बाकी का काम ये लोग कर लेंगे। कल से इन लोगों के साथ बराबर काम करना है तुम लोगों को, ठीक है ना?"
"ठीक है उस्ताद।" संपत जल्दी से बोला____"अपन लोग पूरी कोशिश करेंगे कि अब से हर रोज तुमको ऐसा ही चकाचक देखने को मिले।"
"बहुत बढ़िया।" जोगिंदर ने खुशी से कहा___"अब जाओ आराम करो। कल मैं तुम तीनों के लिए अलग जगह रहने की व्यवस्था कर दूंगा।"
जोगिंदर की बात सुन कर संपत ने सिर हिलाया और फिर जगन तथा मोहन को इशारे से चलने के लिए कहा तो वो दोनों बेमन से तबेले के बाहर की तरफ चल पड़े।
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"अबे गला छोड़ दे बे भोसड़ी के।" कमरे में पहुंचते ही जब जगन ने गुस्से से संपत की गर्दन दबोच ली तो संपत छटपटाते हुए चीखा____"मार डालेगा क्या बे अपन को?"
"हां तुझे जान से ही मार देगा अपन।" जगन ने संपत के गले में अपनी पकड़ को कसते हुए कहा____"साले अगर तुझे उस जोगिंदर की गुलामी ही करनी थी तो तू अकेला करता न। अपन दोनों लोग को क्यों फंसाया इसमें?"
"अबे अकल के दुश्मन अपन की बात तो सुन ले लौड़े।" संपत ने कहा____"साले तू जैसा समझ रहा है वैसा नहीं है।"
"इस गाँडू पर भरोसा मत करना जगन।" मोहन ने गुस्से में कहा____"इसने धोखा दे कर अपन लोग को जोगिंदर का गुलाम बना दिएला है। ये साला दोस्त नहीं दुश्मन है अपन लोग का।"
"अबे भोसड़ी के अपन तुम लोग का दुश्मन नहीं है लौड़ो।" संपत भी गुस्से से चीखा____"अपन दोस्त ही है बे। क्या इतना जल्दी अपन पर से भरोसा तोड़ लिया तुम लोग ने? क्या तुम लोग सोच सकते हो कि अपन ऐसा करेगा?"
संपत की बात सुन कर सहसा जगन की पकड़ ढीली पड़ने लगी। वो भले ही मंद बुद्धि था लेकिन ये बात उसे भी हजम नहीं हो रही थी कि संपत उन दोनों के साथ धोखा कर सकता है। ये एहसास होते ही जगन ने संपत को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही संपत अपना गला सहलाने लगा।
"अब बता भोसड़ी के ये क्या लफड़ा है।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तू उस मुछाड़िए से क्यों वो सब बकवास पेल रहा था?"
"अबे अपन की वो सारी बकवास अपन के पिलान का हिस्सा थी बे।" संपत ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"पर साले तुम जैसे कूढ़मगज लोग को क्या ही समझ आएगा।"
"बेटीचोद कूढ़मगज बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।" मोहन एकदम से चढ़ दौड़ा____"अपन लोग तेरे जैसे नहीं हैं साले जो डर के मारे जोगिंदर को अपनी गांड़ ही खोल के दे दें। साला बात करता है।"
"तू नौटंकी मत चोद।" जगन ने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और साफ साफ बता तेरी वो बकवास पिलान का हिस्सा कैसे हुई?"
"अब आया ना लाइन पर।" संपत ने मुस्कुराते हुए कहा____"अच्छा अब अपना भेजा खोल के सुन। जब अपन ने देखा कि अपन लोग का झक्कास काम देख कर उस मुछाड़िए की आंखें गांड़ की तरह फट गएली हैं तो अपन के मगज में एक मस्त पिलान आ गया।"
"अबे कैसा पिलान बे?" मोहन ये सोच कर खीझते हुए बोल पड़ा कि ऐसा कोई पिलान उसके भेजे में क्यों नहीं आया।
"अबे थोड़ा रुक जा न बे पांचवीं फेल।" संपत ने जैसे उसके जले पर नमक छिड़क दिया। ये सुन कर मोहन गुस्से से उस पर टूट ही पड़ने वाला था कि जगन ने उसे रोक लिया। इधर संपत बड़ी शान से मुस्कुराते हुए बोला____"हां तो अपन बोल रेला था कि अपन के भेजे में एक मस्त पिलान आ गएला था।"
"भोसड़ी के ज़्यादा भाव मत खा।" जगन को उसके बर्ताव पर एकदम से गुस्सा आ गया, बोला____"और जल्दी से पिलान बता वरना पटक के गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"अब तो घंटा कुछ नहीं बताएगा अपन।" संपत ने मानों रूठ गए अंदाज़ से कहा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"
संपत की इस बात पर जहां जगन दांत पीस कर रह गया वहीं मोहन एकदम से जंप लगा कर उसके ऊपर टूट ही पड़ा। संपत को उससे इतना जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी इस लिए वो सम्हल ना सका और कमरे के फर्श पर लुढ़कता चला गया। इधर मोहन उसके ऊपर सवार हो गया और अब वो उसका गला दबाने पर उतारू हो गया।
"भोसड़ी के।" मोहन गुस्से में बोला____"बहुत देर से देख रहा है अपन तेरा ये नाटक। अब तू अपना पिलान बता या चाहे अपनी गांड़ में डाल ले लौड़े मगर अब तो अपन तेरे को जान से ही मार देगा।"
"अबे जगन इस चिंदी चोर से बचा ले रे अपन को।" संपत छटपटाते हुए ज़ोर से चीखा____"ये भोसड़ी का अपन का गला दबा रेला है।"
"मर जा भोसड़ी के।" जगन अपनी जगह से हिला तक नहीं, गुस्से से बोला____"बहुत भाव खा रहा था न, अब मर बेटीचोद। अपन घंटा तेरे को बचाने नहीं आएगा।"
"माफ़ कर दे बे।" मोहन के द्वारा गला दबाए जाने से संपत की जहां आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी वहीं अब उसे सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी। बुरी तरह छटपटाते हुए बोला____"अब कोई नाटक नहीं करूंगा बे। इस मादरचोद को बोल कि अपन को छोड़ दे।"
"अपन तेरे को घंटा नहीं छोड़ेगा लौड़े।" मोहन और ज़ोर से उसका गला दबाते हुए गुर्राया____"अपन के पांचवीं फेल होने का बहुत मज़ाक उड़ाता है न तो अब मर बेटीचोद।"
"अबे लौड़े मर जाएगा अपन छोड़ दे बे।" संपत बुरी तरह उससे छूटने के लिए ज़ोर लगा रहा था मगर मोहन की पकड़ से छूट नहीं पा रहा था, बोला____"छोड़ दे मादरचोद, तेरे को तेरे मरे हुए अम्मा बापू की क़सम।"
"पिलान बताएगा ना?" मोहन ने जैसे उसे परखा____"कोई भाव तो नहीं खाएगा न?"
"नहीं खाएगा बे।" संपत मरता क्या न करता वाली हालत में था, इस लिए बोला____"और एक ही सांस में सारा पिलान भी बताएगा अपन। अब छोड़ दे ना बे बेटीचोद, सांस नहीं ले पा रहा अपन।"
"ना अभी एक और बात मानेगा तू।" मोहन ने कहा____"बता अपन के पांचवीं फेल होने का मज़ाक उड़ाएगा कभी?"
"अम्मा बापू की क़सम बे।" संपत जल्दी से बोला____"अपन अब से कभी तेरे पांचवीं फेल होने का मज़ाक नहीं उड़ाएगा।"
संपत की बात सुनते ही मोहन ने एक झटके में उसे छोड़ दिया और उसके ऊपर से उतर कर जगन के पास आ गया। उधर संपत छूटते ही गहरी गहरी सांसें लेने लगा और बीच बीच में खांसता भी जा रहा था।
"लौड़ा मार ही दिया था अपन को।" संपत जगन और मोहन की तरफ देखते हुए बोला____"साला अपन को लगा बस टिकट कट ही गया अपन का।"
उसकी बात सुन कर जगन और मोहन दोनों ही मुस्कुरा उठे, फिर जगन ने कहा____"अब जल्दी से बता लौड़े कि क्या पिलान था तेरा?"
"अबे ढंग से सांस तो ले लेने दे बे लौड़े।" संपत उन दोनों के क़रीब ही आ कर बैठते हुए बोला____"साला अभी भी अपन को ऐसा लग रेला है जैसे इस गाँडू के हाथ अपन के गले में ही फंसेले हैं।"
"और अगर जल्दी से तूने पिलान ना बताया।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तो इस बार अपन तेरी गांड़ में लौड़ा भी फंसा देंगा, समझा? चल अब जल्दी से पिलान बता अपन लोग को।"
"अपन लोग का झक्कास काम देख के।" सांसें दुरुस्त होने के बाद संपत ने कहा___"जोगिंदर की आंखें गांड़ की तरह फट गएली थी। ये तो तुम दोनों लोग ने भी देखा ही था। अपन ने सोचा इसे और भी ज़्यादा यकीन दिलाने के लिए अपन थोड़े बहुत सेंटी डायलॉग भी मार दे तो साला तीर एकदम निशाने पे ही लग जाएगा। इसी लिए अपन ने उससे ये बोला कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और इधर ही काम करेंगे। अब से अपन लोग का यही घर है। अपन की सेंटी बात सुन कर साला जोगिंदर को भी समझ आएगा कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और तबेले को अपना ही घर मान के यहां काम करेंगे।"
"वो सब तो ठीक है बे।" मोहन ने कहा____"पर लौड़ा इस सबसे होएगा क्या?"
"अपन को भी कुछ समझ नहीं आया।" जगन ने सिर खुजाते हुए कहा____"तेरे वो सब कहने से आख़िर अब होएगा क्या?"
"लंड होएगा भोसड़ी के।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"साला बैलबुद्धि।"
"मादरचोद खोपड़ी तोड़ दूंगा तेरी।" जगन ने गुस्से से देखते हुए कहा____"ढंग से बता कि आख़िर तेरे वो सब कहने से होएगा क्या?"
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग पर जल्दी ही भरोसा करने लगेगा।" संपत ने झल्लाते हुए समझाया____"और जब भरोसा कर लेगा तो वो अपन लोग पर ना तो नज़र रखवाएगा और ना ही अपन लोग पर कोई पाबंदी लगाएगा। सोच जब ऐसा होएगा तो क्या होगा?""
"क...क्या होगा?" जगन के मुख से जैसे खुद ही निकल गया, जबकि मोहन जल्दी से बोला____"अपन लोग इधर से कल्टी मार लेंगे यही कहना चाहता है न तू?"
"हां लौड़े।" संपत ने बुरा सा मुंह बनाया____"और हां, इस बार अपन इस शहर से ही निकल लेंगे।"
"ऐसा क्यों?" जगन के माथे पर शिकन उभर आई।
"अबे भोसड़ी के अगर अपन लोग इसी शहर में रहेंगे।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"तो वो मुछाड़िया अपन लोग को किसी दिन खोज लेगा और तब वो ही नहीं बल्कि उसके तीनों सांड भी अपन लोग की गांड़ मार लेंगे।"
"अपन घंटा किसी को अपनी गांड नहीं मारने देगा।" मोहन ने जैसे अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा____"तू सही कह रहा है। अपन लोग इधर से निकलते ही इस शहर से भी कल्टी मार लेंगे।"
"तो फिर आज रात ही अपन लोग निकल लेते हैं इधर से।" जगन ने कहा____"साला किसी को पता भी नहीं चलेगा।"
"अबे लौड़े ये इतना आसान नहीं है।" संपत ने कहा____"अभी अपन लोग को एक दो दिन यहां रुकना पड़ेगा और आज के जैसे ही गांड़ का ज़ोर लगा कर काम करना पड़ेगा। जोगिंदर को पूरी तरह जब अपन लोग पर भरोसा हो जाएगा तभी वो अपन लोग पर नज़र रखवाना बंद करेगा और पाबंदी रखना भी। जब ऐसा हो जाएगा तभी अपन लोग इधर से निकल सकेंगे।"
"मतलब अभी एक दो दिन और अपन लोग को इधर गांड़ घिसना पड़ेगा?" मोहन ने हताश भाव से कहा, फिर अचानक ही जैसे उसे कुछ याद आया तो मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला____"वैसे अगर अपन लोग इधर ही रहें तो कैसा रहेंगा?"
"क..क्या मतलब?" संपत चौंका____"अबे ये क्या बोल रहा है तू? भेजा गांड़ में ही घुसेड़ लिया है क्या तूने?"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है लौड़े।" मोहन सकपकाते हुए बोला____"अपन तो ऐसे ही बोल रहा था।"
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रात के क़रीब नौ बजे रवि परेशान हालत में कमला के घर पहुंचा। कमला जूठे बर्तन धो रही थी। उसका पति आज भी शराब पी कर आया था और कमरे में बेसुध सा सो गया था। दूसरे कमरे में उसकी बेटी शालू अपने छोटे भाई के साथ पड़ी हुई थी। जोगिंदर के दिए पैसे से कमला ने अपनी बेटी का एक अच्छे डॉक्टर से इलाज़ करवाया था और अब उसकी बेटी पहले से बेहतर थी। घर का दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं था इस लिए रवि अंदर ही आ गया था। उसे परेशान देख कमला हल्के से चौंकी।
"क्या हुआ तुझे?" रवि को परेशान देख कमला ने उससे पूंछा____"तू इतना परेशान क्यों है? घर में सब ठीक तो है न?"
"घर में सब ठीक है चाची।" रवि ने झिझकते हुए कहा तो कमला ने उसे ग़ौर से देखा और फिर पूछा____"तो फिर तू इतना परेशान क्यों दिख रहा है? आख़िर बात क्या है?"
"व...वो चाची बात ये है।" रवि झिझक तो रहा ही था साथ ही उसकी धड़कनें भी धाड़ धाड़ कर के धमकने लगीं थी, बोला____"आज एक बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है।"
"ग...गड़बड़???" कमला की अपनी धड़कनें एकाएक अंजानी आशंका के चलते तेज़ हो गईं, बोली____"क...कैसी गड़बड़? आख़िर हुआ क्या है रवि?"
रवि को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो कमला को किस तरह से अपनी और मोहन के बीच हुई बातों को बताए? मगर वो ये भी समझता था कि उसे ये सब कमला को बताना भी ज़रूरी था और कमला को उस काम के लिए मनाना भी।
आख़िर बहुत हिम्मत कर के रवि ने पहले अपने चाचा और शालू के कमरों की तरफ एक एक निगाह डाली फिर कमला के क़रीब आ कर उसे धीमें स्वर में सब कुछ बता दिया। सारी बातें सुन कर कमला के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। अपनी बदनामी का एहसास होते ही उसके समूचे जिस्म में ठंडी लहर दौड़ गई। इधर रवि ने उसे बताया कि अगर उसने मोहन की बात नहीं मानी तो वो सबको बता देगा।
कमला ने रवि को वापस घर जाने को कहा तो वो चला गया। उसके बाद कमला ने चिंतित और परेशान हो कर किसी तरह बर्तनों को धो कर उन्हें रसोई में रखा और फिर कमरे में शालू के पास बिस्तर पर आ कर लेट गई। शालू और उसका भाई गहरी नींद में सो चुके थे जबकि कमला ऊपर छत को घूरे जा रही थी। वो सोच में डूबी हुई थी कि अचानक से आ गई इस समस्या से वो कैसे सामना करे?
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Update - 04"हां तू तो जैसे ताजमहल बना रहा था लौड़े।" संपत धीमें से बड़बड़ाया और गोबर से भरी झाल ले कर उसे फेंकने बाहर निकल गया।
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तबेले के बाहर कुछ ही दूरी पर तीनों मुस्टंडे अपने अपने लट्ठ को साइड में रख कर बीड़ी फूंक रहे थे। संपत को झाल में गोबर ले जाते देख तीनों हंसने लगे जबकि संपत उनके यूं हंसने पर मन ही मन गालियां देते हुए बोला____'हंस लो लौड़ो। जल्दी ही ये गोबर उठाने का नंबर लगेगा तुम लोगों का भी।"
अब आगे....
"अरे! ये सब क्या है रे मंगू?" जोगिंदर जैसे ही तबेले के अंदर आया तो वहां का बदला हुआ हाल देख चौंकते हुए अपने एक मुलाजिम मंगू से पूछा____"आज यहां हर जगह इतना चकाचक कैसे दिख रहा है?"
"ये सब उन नमूनों की मेहरबानी है उस्ताद।" मंगू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा___"वो तीनों के तीनों दोपहर से ही यहां की हर चीज़ को चकाचक करने में लगे हुए थे। मुझे तो ऐसा लगता है उस्ताद जैसे सालों ने भांग का नशा कर रखा था।"
"भोसड़ी के ये क्या बक रहा है तू?" जोगिंदर ने बड़े आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ये सब उन तीनों ने किया है? अबे झूठ बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"नहीं उस्ताद।" मंगू पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला____"मैं एकदम सच कह रहा हूं। ये सब उन तीनों नमूनों ने ही किया है। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो बिरजू और बबलू से पूछ लो।"
मंगू की बात सुन कर जोगिंदर ने बिरजू और बबलू की तरफ देखा तो दोनों ने मंगू की बात का समर्थन करते हुए हां में सिर हिला दिया। जोगिंदर अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ से नज़र हटा कर तबेले में हर जगह निगाह दौड़ाने लगा। वो ये देख कर हैरान ही नहीं बल्कि चकित भी हो गया कि आज उसका तबेला सफाई के मामले में अलग ही नज़र आ रहा था। जहां भैंसें बंधी रहती हैं वहां भी एकदम साफ था जबकि आम तौर पर वहां पर आज से पहले इतनी ज़्यादा सफाई नहीं हुआ करती थी। बाकी जगहों की तो बात ही अलग थी। ना कहीं कूड़ा कचरा नज़र आ रहा था और ना ही गोबर के कोई निशान। जोगिंदर की घूमती निगाह अचानक ही एक जगह ठहर गई। दूध की बाल्टियां और दूध के बड़े बड़े कनस्तर बड़े अच्छे तरीके से साफ कर के एक जगह व्यवस्थित ढंग से रखे हुए थे। जोगिंदर जल्दी ही उन बर्तनों के पास पहुंचा। उसने ग़ौर से देखा बर्तन एकदम साफ और चकाचक थे।
"बेटोचोद ये सब क्या देख रहा हूं मैं?" जोगिंदर एकदम से पलट कर हैरानी भरे भाव से बोला____"क्या ये मेरा ही तबेला है या मैं दिन में ही सपना देख रहा हूं?"
अभी जोगिंदर ने ये बोला ही था कि तभी उसकी नज़र तबेले के दरवाज़े पर पड़ी। तीनों नमूने हाथ पैर धोने के बाद गमछे से अपने हाथों में लगा पानी पोंछते हुए इधर ही आ रहे थे। जोगिंदर पर जैसे ही तीनों की नज़र पड़ी तो तीनों ही अपनी जगह पर ठिठक गए।
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग को ऐसे क्यों घूर रेला है बे?" मोहन ने धीमी आवाज़ में संपत से कहा____"कहीं ये सांड अपन लोग की गांड़ मारने तो नहीं आएला है इधर?"
"अबे फट्टू ऐसा कुछ नहीं करेगा वो।" संपत ने धीरे से कहा____"तू टेंशन मत ले।"
"भोसड़ी के बोल तो ऐसे रहा है।" मोहन ने कहा___"जैसे उसने तुझे पहले ही ये बता दिया हो।"
"अबे उसके तीनों सांड भी उसके पास ही खड़ेले हैं बे।" जगन भी धीमें से बोल पड़ा____"कहीं उन तीनों ने अपन लोग की कोई शिकायत तो नहीं कर दी होगी?"
"अबे चूतिए वो लोग भला अपन लोग की क्या शिकायत करेंगे?" संपत ने कहा____"अपन लोग ने तो शिकायत करने वाला कोई काम ही नहीं किएला है।"
"ओए उधर क्या खुसुर खुसुर कर रहे हो तुम तीनों?" जोगिंदर ने ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए तीनों नमूनों से कहा____"इधर आओ ज़रा।"
जोगिंदर के इस तरह बुलाने पर तीनों की धड़कनें तेज़ हो गईं। एक अंजाने डर की वजह से तीनों के चेहरों पर पसीना उभर आया। अब क्योंकि जोगिंदर ने बुलाया था तो तीनों को उसके पास जाना ही था इस लिए मध्यम चाल से चलते हुए कुछ देर में उसके पास पहुंचे।
"ये बताओ कि आज तुम तीनों ने कौन सा नशा किया है?" जोगिंदर ने तीनों की तरफ देखते हुए थोड़ा सख़्त भाव से पूछा तो तीनों ही बुरी तरह उछल पड़े।
"न...न...नशा????" संपत हकलाते हुए बोला____"नहीं तो। अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है। अपन लोग के पास तो खाने के भी पैसे नहीं हैं। नशे के लिए कहां से आ जाएंगे?"
"कोई तो नशा ज़रूर किया है तुम तीनों लोगों ने।" जोगिंदर ने सिर हिलाते हुए कहा____"तभी तुम लोगों ने तबेले का इस तरह से कायाकल्प किया है।"
"अपन सच कहता है उस्ताद अपन ने कोई नशा नहीं कियेला है।" मोहन अंदर से डरा हुआ तो था किंतु आदत से मजबूर बोल ही पड़ा____"अपन अपने मरे हुए मां बापू की क़सम खा रेला है। सच्ची में अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है।"
"चल मान लिया।" जोगिंदर भी समझ रहा था कि ऐसे नमूनों के पास भला कोई नशीला पदार्थ कहां से आ जाएगा जबकि पिछले दो दिनों से वो उसके यहां ही एक तरह से क़ैदी बन के रह रहे हैं। इस लिए थोड़ा नरमी से बोला____"मान लिया मैंने कि तुम तीनों ने कोई नशा नहीं किया है मगर मैं ये भी नहीं हजम कर पा रहा हूं कि तुम तीनों ने इस तबेले की तस्वीर बदल दी है।"
"य..ये आप क्या कह रहे हैं उस्ताद?" संपत को जल्दी ही समझ आया कि जोगिंदर किस सिलसिले में बात कर रहा है। वो तीनों तो अभी तक यही समझ रहे थे कि उनसे कोई ग़लती हो गई है जिसके लिए उसके तीनों सांडों ने उससे उनकी शिकायत की है। अतः सम्हल कर संपत ही बोला____"तबेले की तस्वीर??? मैं कुछ समझा नहीं?"
"इन लोगों ने मुझे बताया कि तुम तीनों ने मिल कर इस तबेले का ऐसा कायाकल्प किया है।" जोगिंदर ने अपने मुलाजिमों की तरफ इशारा करते हुए कहा_____"क्या ये वाकई में सच है?"
जोगिंदर की बात संपत के अलावा मोहन और जगन को अब जा के समझ में आई। तीनों ने पहले तो हां में सिर हिलाया और फिर ख़ामोशी से अपना अपना सिर इस अंदाज़ में झुका लिया जैसे उनसे कोई अपराध हो गया हो।
"बड़ी हैरत की बात है।" जोगिंदर गहरी सांस लेते हुए बोला____"यकीन नहीं हो रहा मुझे कि तुम तीनों ने इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया है। इन लोगों ने बताया कि तुम तीनों दोपहर से यहां काम पर लगे हुए थे? कल तक तो तुम तीनों को काम करने के लिए भारी ज़ोर देना पड़ता था और आज किसी के बिना कहे ये सब कर डाला, क्यों? आख़िर क्या सोच कर ये सब किया तुम लोगों ने, हां?"
"व...वो बात ये है उस्ताद कि अपन लोग ने सोचा कि हर्ज़ाना तो अपन लोग को हर हाल में भरना ही पड़ेगा।" संपत ने जैसे कमान सम्हालते हुए कहा____"तो अगर काम नहीं करेंगे तो कैसे भला अपन लोग आपका हर्ज़ाना दे पाएंगे? अपन लोग ने सोचा जब काम करना ही है तो पूरी ईमानदारी से करें। तभी तो जल्द से जल्द हम हर्ज़ाना दे पाएंगे न? वैसे भी अपन लोग को इधर खाना पीना तो मिल ही रेला है। खाली पीली बैठने से क्या होगा? बस ये ही सोच के अपन लोग ने ये सब किया उस्ताद पर अगर तुमको अच्छा नहीं लगा तो माफ़ कर दो अपन लोग को।"
जोगिंदर, संपत की ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ बोल ना सका। असल में वो हैरान था ये सब देख कर और उसके मुख से ये सब जान कर। तीन दिन पहले जिस व्यक्ति ने उसे इन तीनों के बारे में बताया था उससे वो भी यही समझता था कि ये तीनों एक नंबर के कामचोर, निकम्मे और राहजनी करने वाले बदमाश हैं। किंतु इस वक्त वो ये सब देख सुन कर हैरान रह गया था।
"सच सच बताओ कि किस चक्कर में तुम तीनों?" फिर कुछ सोचते हुए जोगिंदर ने थोड़ा सख़्त भाव से तीनों की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर तुम लोगों ने ये सब किसी दूसरे से ही चक्कर में किया है तो समझ लो बहुत बड़ी ग़लती की है। सालो ऐसी गांड़ तोड़ाई करूंगा कि हगते नहीं बनेगा तुम तीनों से।"
"य...ये कैसी बात कर रेले हो उस्ताद?" संपत मन ही मन घबरा गया। किन्तु फिर जल्दी ही सम्भल कर बोला____"अपन लोग भला किस चक्कर में होंगे? अरे! सच तो ये है उस्ताद कि अपन लोग को अब ये बात अच्छे से समझ आ गई है कि अब तक अपन लोग की लाइफ झंड थी। साला पेट भरने के लिए अपन लोग चोरी चकारी करते थे और पब्लिक अपन लोग की पेलाई कर देती थी। बहुत झंड लाइफ थी अपन लोग की उस्ताद लेकिन यहां आ कर और काम कर के अपन लोग को समझ आ गएला है कि सच्ची लाइफ यहीच है। काम कर के इज्ज़त से खाओ, भले ही दो रोटी कम खाओ।"
जहां जोगिंदर संपत की बातें सुन कर आश्चर्य से उसे देखने लगा वहीं जगन और मोहन हैरानी के साथ अब अंदर ही अंदर ये सोच कर गुस्से में आ गए थे कि संपत ये क्या बकवास किए जा रहा था? दोनों को संपत पर भारी गुस्सा आ रहा था किंतु इस वक्त जोगिंदर के रहते वो कुछ कर नहीं सकते थे।
"तुम अपन लोग पर भरोसा करो या ना करो उस्ताद।" उधर संपत दीन हीन दशा वाली सूरत बना कर बोला____"पर अपन लोग की सच्चाई यही है अब। अपन लोग ने पूरा मन बना लिएला है कि हर दिन ऐसे ही काम करेंगे और यहां से कहीं नहीं जाएंगे। यहां रहने के लिए कम से कम अपन लोग के पास छत तो है वरना अपन लोग तो साला पता नहीं कैसी कैसी जगह पे रात बितायेले हैं। अच्छा हुआ कि अपन लोग ने उस दिन तुम्हारा दूध चुरा लिया वरना ऐसी लाइफ के तो सपने भी नहीं आते अपन लोग को कभी। अब से अपन लोग इधर ही रहेंगे उस्ताद। इधर मस्त काम करेंगे और खाते पीते इधर ही अपना बाकी का लाइफ़ गुज़ारेंगे। तुम अपन लोग को यहां हमेशा के लिए रखोगे न उस्ताद?"
संपत एकदम दीन हीन भाव से जब जोगिंदर से ये सब कहने के बाद चुप हुआ तो जोगिंदर जैसे अचानक ही किसी सपने से जागा। उसने चौंक कर तीनों को देखा।
"बेटीचोद, मैं तो तुम तीनों को हरामी और बदमाश समझता था लौड़ो।" जोगिंदर हल्के से मुस्कुराते हुए बोला____"मगर तुम तो सालो देव मानुष निकले।" कहने के साथ ही उसने अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ निगाह डाली और फिर हुकुम सा देते हुए बोला____"सुन लिया न तुम तीनों ने? अब से तीनों यहीं रहेंगे और अपने ही तबेले काम करेंगे और हां अब से ये लोग भी तुम लोग जैसे ही हैं।"
"ठ...ठीक है उस्ताद।" बबलू ने हैरान परेशान अंदाज़ में कहा____"लेकिन क्या इन तीनों पर इतना जल्दी भरोसा करना ठीक होगा?"
"भोसड़ी के अब क्या तू बताएगा मुझे कि मुझे कितना जल्दी भरोसा करना चाहिए?" जोगिंदर ने नागवारी भरे लहजे में उसे देखा____"अबे मैंने भी दुनिया देखी है इस लिए ज्ञान मत दे मुझे। अब एक बात कान खोल कर सुन लो तुम तीनों। मुझे अब से हर दिन अपने तबेले में ऐसी ही चकाचक सफाई चाहिए और इसके लिए तुम लोग भी इन तीनों की मदद करोगे। बात समझ में आ गई न?"
तीनों ने जल्दी से हां में सिर हिला दिया। तीनों के चेहरों पर चिंता और परेशानी के भाव अभी भी गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। पता नहीं क्या चल रहा था तीनों के ज़हन में।
"आज तो तुम तीनों बहुत ही ज़्यादा थक गए होगे न?" जोगिंदर तीनों नमूनों से मुखातिब हो कर बोला____"इस लिए अब जाओ और आराम करो। आज का बाकी का काम ये लोग कर लेंगे। कल से इन लोगों के साथ बराबर काम करना है तुम लोगों को, ठीक है ना?"
"ठीक है उस्ताद।" संपत जल्दी से बोला____"अपन लोग पूरी कोशिश करेंगे कि अब से हर रोज तुमको ऐसा ही चकाचक देखने को मिले।"
"बहुत बढ़िया।" जोगिंदर ने खुशी से कहा___"अब जाओ आराम करो। कल मैं तुम तीनों के लिए अलग जगह रहने की व्यवस्था कर दूंगा।"
जोगिंदर की बात सुन कर संपत ने सिर हिलाया और फिर जगन तथा मोहन को इशारे से चलने के लिए कहा तो वो दोनों बेमन से तबेले के बाहर की तरफ चल पड़े।
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"अबे गला छोड़ दे बे भोसड़ी के।" कमरे में पहुंचते ही जब जगन ने गुस्से से संपत की गर्दन दबोच ली तो संपत छटपटाते हुए चीखा____"मार डालेगा क्या बे अपन को?"
"हां तुझे जान से ही मार देगा अपन।" जगन ने संपत के गले में अपनी पकड़ को कसते हुए कहा____"साले अगर तुझे उस जोगिंदर की गुलामी ही करनी थी तो तू अकेला करता न। अपन दोनों लोग को क्यों फंसाया इसमें?"
"अबे अकल के दुश्मन अपन की बात तो सुन ले लौड़े।" संपत ने कहा____"साले तू जैसा समझ रहा है वैसा नहीं है।"
"इस गाँडू पर भरोसा मत करना जगन।" मोहन ने गुस्से में कहा____"इसने धोखा दे कर अपन लोग को जोगिंदर का गुलाम बना दिएला है। ये साला दोस्त नहीं दुश्मन है अपन लोग का।"
"अबे भोसड़ी के अपन तुम लोग का दुश्मन नहीं है लौड़ो।" संपत भी गुस्से से चीखा____"अपन दोस्त ही है बे। क्या इतना जल्दी अपन पर से भरोसा तोड़ लिया तुम लोग ने? क्या तुम लोग सोच सकते हो कि अपन ऐसा करेगा?"
संपत की बात सुन कर सहसा जगन की पकड़ ढीली पड़ने लगी। वो भले ही मंद बुद्धि था लेकिन ये बात उसे भी हजम नहीं हो रही थी कि संपत उन दोनों के साथ धोखा कर सकता है। ये एहसास होते ही जगन ने संपत को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही संपत अपना गला सहलाने लगा।
"अब बता भोसड़ी के ये क्या लफड़ा है।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तू उस मुछाड़िए से क्यों वो सब बकवास पेल रहा था?"
"अबे अपन की वो सारी बकवास अपन के पिलान का हिस्सा थी बे।" संपत ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"पर साले तुम जैसे कूढ़मगज लोग को क्या ही समझ आएगा।"
"बेटीचोद कूढ़मगज बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।" मोहन एकदम से चढ़ दौड़ा____"अपन लोग तेरे जैसे नहीं हैं साले जो डर के मारे जोगिंदर को अपनी गांड़ ही खोल के दे दें। साला बात करता है।"
"तू नौटंकी मत चोद।" जगन ने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और साफ साफ बता तेरी वो बकवास पिलान का हिस्सा कैसे हुई?"
"अब आया ना लाइन पर।" संपत ने मुस्कुराते हुए कहा____"अच्छा अब अपना भेजा खोल के सुन। जब अपन ने देखा कि अपन लोग का झक्कास काम देख कर उस मुछाड़िए की आंखें गांड़ की तरह फट गएली हैं तो अपन के मगज में एक मस्त पिलान आ गया।"
"अबे कैसा पिलान बे?" मोहन ये सोच कर खीझते हुए बोल पड़ा कि ऐसा कोई पिलान उसके भेजे में क्यों नहीं आया।
"अबे थोड़ा रुक जा न बे पांचवीं फेल।" संपत ने जैसे उसके जले पर नमक छिड़क दिया। ये सुन कर मोहन गुस्से से उस पर टूट ही पड़ने वाला था कि जगन ने उसे रोक लिया। इधर संपत बड़ी शान से मुस्कुराते हुए बोला____"हां तो अपन बोल रेला था कि अपन के भेजे में एक मस्त पिलान आ गएला था।"
"भोसड़ी के ज़्यादा भाव मत खा।" जगन को उसके बर्ताव पर एकदम से गुस्सा आ गया, बोला____"और जल्दी से पिलान बता वरना पटक के गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"अब तो घंटा कुछ नहीं बताएगा अपन।" संपत ने मानों रूठ गए अंदाज़ से कहा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"
संपत की इस बात पर जहां जगन दांत पीस कर रह गया वहीं मोहन एकदम से जंप लगा कर उसके ऊपर टूट ही पड़ा। संपत को उससे इतना जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी इस लिए वो सम्हल ना सका और कमरे के फर्श पर लुढ़कता चला गया। इधर मोहन उसके ऊपर सवार हो गया और अब वो उसका गला दबाने पर उतारू हो गया।
"भोसड़ी के।" मोहन गुस्से में बोला____"बहुत देर से देख रहा है अपन तेरा ये नाटक। अब तू अपना पिलान बता या चाहे अपनी गांड़ में डाल ले लौड़े मगर अब तो अपन तेरे को जान से ही मार देगा।"
"अबे जगन इस चिंदी चोर से बचा ले रे अपन को।" संपत छटपटाते हुए ज़ोर से चीखा____"ये भोसड़ी का अपन का गला दबा रेला है।"
"मर जा भोसड़ी के।" जगन अपनी जगह से हिला तक नहीं, गुस्से से बोला____"बहुत भाव खा रहा था न, अब मर बेटीचोद। अपन घंटा तेरे को बचाने नहीं आएगा।"
"माफ़ कर दे बे।" मोहन के द्वारा गला दबाए जाने से संपत की जहां आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी वहीं अब उसे सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी। बुरी तरह छटपटाते हुए बोला____"अब कोई नाटक नहीं करूंगा बे। इस मादरचोद को बोल कि अपन को छोड़ दे।"
"अपन तेरे को घंटा नहीं छोड़ेगा लौड़े।" मोहन और ज़ोर से उसका गला दबाते हुए गुर्राया____"अपन के पांचवीं फेल होने का बहुत मज़ाक उड़ाता है न तो अब मर बेटीचोद।"
"अबे लौड़े मर जाएगा अपन छोड़ दे बे।" संपत बुरी तरह उससे छूटने के लिए ज़ोर लगा रहा था मगर मोहन की पकड़ से छूट नहीं पा रहा था, बोला____"छोड़ दे मादरचोद, तेरे को तेरे मरे हुए अम्मा बापू की क़सम।"
"पिलान बताएगा ना?" मोहन ने जैसे उसे परखा____"कोई भाव तो नहीं खाएगा न?"
"नहीं खाएगा बे।" संपत मरता क्या न करता वाली हालत में था, इस लिए बोला____"और एक ही सांस में सारा पिलान भी बताएगा अपन। अब छोड़ दे ना बे बेटीचोद, सांस नहीं ले पा रहा अपन।"
"ना अभी एक और बात मानेगा तू।" मोहन ने कहा____"बता अपन के पांचवीं फेल होने का मज़ाक उड़ाएगा कभी?"
"अम्मा बापू की क़सम बे।" संपत जल्दी से बोला____"अपन अब से कभी तेरे पांचवीं फेल होने का मज़ाक नहीं उड़ाएगा।"
संपत की बात सुनते ही मोहन ने एक झटके में उसे छोड़ दिया और उसके ऊपर से उतर कर जगन के पास आ गया। उधर संपत छूटते ही गहरी गहरी सांसें लेने लगा और बीच बीच में खांसता भी जा रहा था।
"लौड़ा मार ही दिया था अपन को।" संपत जगन और मोहन की तरफ देखते हुए बोला____"साला अपन को लगा बस टिकट कट ही गया अपन का।"
उसकी बात सुन कर जगन और मोहन दोनों ही मुस्कुरा उठे, फिर जगन ने कहा____"अब जल्दी से बता लौड़े कि क्या पिलान था तेरा?"
"अबे ढंग से सांस तो ले लेने दे बे लौड़े।" संपत उन दोनों के क़रीब ही आ कर बैठते हुए बोला____"साला अभी भी अपन को ऐसा लग रेला है जैसे इस गाँडू के हाथ अपन के गले में ही फंसेले हैं।"
"और अगर जल्दी से तूने पिलान ना बताया।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तो इस बार अपन तेरी गांड़ में लौड़ा भी फंसा देंगा, समझा? चल अब जल्दी से पिलान बता अपन लोग को।"
"अपन लोग का झक्कास काम देख के।" सांसें दुरुस्त होने के बाद संपत ने कहा___"जोगिंदर की आंखें गांड़ की तरह फट गएली थी। ये तो तुम दोनों लोग ने भी देखा ही था। अपन ने सोचा इसे और भी ज़्यादा यकीन दिलाने के लिए अपन थोड़े बहुत सेंटी डायलॉग भी मार दे तो साला तीर एकदम निशाने पे ही लग जाएगा। इसी लिए अपन ने उससे ये बोला कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और इधर ही काम करेंगे। अब से अपन लोग का यही घर है। अपन की सेंटी बात सुन कर साला जोगिंदर को भी समझ आएगा कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और तबेले को अपना ही घर मान के यहां काम करेंगे।"
"वो सब तो ठीक है बे।" मोहन ने कहा____"पर लौड़ा इस सबसे होएगा क्या?"
"अपन को भी कुछ समझ नहीं आया।" जगन ने सिर खुजाते हुए कहा____"तेरे वो सब कहने से आख़िर अब होएगा क्या?"
"लंड होएगा भोसड़ी के।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"साला बैलबुद्धि।"
"मादरचोद खोपड़ी तोड़ दूंगा तेरी।" जगन ने गुस्से से देखते हुए कहा____"ढंग से बता कि आख़िर तेरे वो सब कहने से होएगा क्या?"
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग पर जल्दी ही भरोसा करने लगेगा।" संपत ने झल्लाते हुए समझाया____"और जब भरोसा कर लेगा तो वो अपन लोग पर ना तो नज़र रखवाएगा और ना ही अपन लोग पर कोई पाबंदी लगाएगा। सोच जब ऐसा होएगा तो क्या होगा?""
"क...क्या होगा?" जगन के मुख से जैसे खुद ही निकल गया, जबकि मोहन जल्दी से बोला____"अपन लोग इधर से कल्टी मार लेंगे यही कहना चाहता है न तू?"
"हां लौड़े।" संपत ने बुरा सा मुंह बनाया____"और हां, इस बार अपन इस शहर से ही निकल लेंगे।"
"ऐसा क्यों?" जगन के माथे पर शिकन उभर आई।
"अबे भोसड़ी के अगर अपन लोग इसी शहर में रहेंगे।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"तो वो मुछाड़िया अपन लोग को किसी दिन खोज लेगा और तब वो ही नहीं बल्कि उसके तीनों सांड भी अपन लोग की गांड़ मार लेंगे।"
"अपन घंटा किसी को अपनी गांड नहीं मारने देगा।" मोहन ने जैसे अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा____"तू सही कह रहा है। अपन लोग इधर से निकलते ही इस शहर से भी कल्टी मार लेंगे।"
"तो फिर आज रात ही अपन लोग निकल लेते हैं इधर से।" जगन ने कहा____"साला किसी को पता भी नहीं चलेगा।"
"अबे लौड़े ये इतना आसान नहीं है।" संपत ने कहा____"अभी अपन लोग को एक दो दिन यहां रुकना पड़ेगा और आज के जैसे ही गांड़ का ज़ोर लगा कर काम करना पड़ेगा। जोगिंदर को पूरी तरह जब अपन लोग पर भरोसा हो जाएगा तभी वो अपन लोग पर नज़र रखवाना बंद करेगा और पाबंदी रखना भी। जब ऐसा हो जाएगा तभी अपन लोग इधर से निकल सकेंगे।"
"मतलब अभी एक दो दिन और अपन लोग को इधर गांड़ घिसना पड़ेगा?" मोहन ने हताश भाव से कहा, फिर अचानक ही जैसे उसे कुछ याद आया तो मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला____"वैसे अगर अपन लोग इधर ही रहें तो कैसा रहेंगा?"
"क..क्या मतलब?" संपत चौंका____"अबे ये क्या बोल रहा है तू? भेजा गांड़ में ही घुसेड़ लिया है क्या तूने?"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है लौड़े।" मोहन सकपकाते हुए बोला____"अपन तो ऐसे ही बोल रहा था।"
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रात के क़रीब नौ बजे रवि परेशान हालत में कमला के घर पहुंचा। कमला जूठे बर्तन धो रही थी। उसका पति आज भी शराब पी कर आया था और कमरे में बेसुध सा सो गया था। दूसरे कमरे में उसकी बेटी शालू अपने छोटे भाई के साथ पड़ी हुई थी। जोगिंदर के दिए पैसे से कमला ने अपनी बेटी का एक अच्छे डॉक्टर से इलाज़ करवाया था और अब उसकी बेटी पहले से बेहतर थी। घर का दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं था इस लिए रवि अंदर ही आ गया था। उसे परेशान देख कमला हल्के से चौंकी।
"क्या हुआ तुझे?" रवि को परेशान देख कमला ने उससे पूंछा____"तू इतना परेशान क्यों है? घर में सब ठीक तो है न?"
"घर में सब ठीक है चाची।" रवि ने झिझकते हुए कहा तो कमला ने उसे ग़ौर से देखा और फिर पूछा____"तो फिर तू इतना परेशान क्यों दिख रहा है? आख़िर बात क्या है?"
"व...वो चाची बात ये है।" रवि झिझक तो रहा ही था साथ ही उसकी धड़कनें भी धाड़ धाड़ कर के धमकने लगीं थी, बोला____"आज एक बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है।"
"ग...गड़बड़???" कमला की अपनी धड़कनें एकाएक अंजानी आशंका के चलते तेज़ हो गईं, बोली____"क...कैसी गड़बड़? आख़िर हुआ क्या है रवि?"
रवि को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो कमला को किस तरह से अपनी और मोहन के बीच हुई बातों को बताए? मगर वो ये भी समझता था कि उसे ये सब कमला को बताना भी ज़रूरी था और कमला को उस काम के लिए मनाना भी।
आख़िर बहुत हिम्मत कर के रवि ने पहले अपने चाचा और शालू के कमरों की तरफ एक एक निगाह डाली फिर कमला के क़रीब आ कर उसे धीमें स्वर में सब कुछ बता दिया। सारी बातें सुन कर कमला के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। अपनी बदनामी का एहसास होते ही उसके समूचे जिस्म में ठंडी लहर दौड़ गई। इधर रवि ने उसे बताया कि अगर उसने मोहन की बात नहीं मानी तो वो सबको बता देगा।
कमला ने रवि को वापस घर जाने को कहा तो वो चला गया। उसके बाद कमला ने चिंतित और परेशान हो कर किसी तरह बर्तनों को धो कर उन्हें रसोई में रखा और फिर कमरे में शालू के पास बिस्तर पर आ कर लेट गई। शालू और उसका भाई गहरी नींद में सो चुके थे जबकि कमला ऊपर छत को घूरे जा रही थी। वो सोच में डूबी हुई थी कि अचानक से आ गई इस समस्या से वो कैसे सामना करे?
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Bahut hi badhiya update diya hai TheBlackBlood bhai...Update - 04"हां तू तो जैसे ताजमहल बना रहा था लौड़े।" संपत धीमें से बड़बड़ाया और गोबर से भरी झाल ले कर उसे फेंकने बाहर निकल गया।
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तबेले के बाहर कुछ ही दूरी पर तीनों मुस्टंडे अपने अपने लट्ठ को साइड में रख कर बीड़ी फूंक रहे थे। संपत को झाल में गोबर ले जाते देख तीनों हंसने लगे जबकि संपत उनके यूं हंसने पर मन ही मन गालियां देते हुए बोला____'हंस लो लौड़ो। जल्दी ही ये गोबर उठाने का नंबर लगेगा तुम लोगों का भी।"
अब आगे....
"अरे! ये सब क्या है रे मंगू?" जोगिंदर जैसे ही तबेले के अंदर आया तो वहां का बदला हुआ हाल देख चौंकते हुए अपने एक मुलाजिम मंगू से पूछा____"आज यहां हर जगह इतना चकाचक कैसे दिख रहा है?"
"ये सब उन नमूनों की मेहरबानी है उस्ताद।" मंगू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा___"वो तीनों के तीनों दोपहर से ही यहां की हर चीज़ को चकाचक करने में लगे हुए थे। मुझे तो ऐसा लगता है उस्ताद जैसे सालों ने भांग का नशा कर रखा था।"
"भोसड़ी के ये क्या बक रहा है तू?" जोगिंदर ने बड़े आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ये सब उन तीनों ने किया है? अबे झूठ बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"नहीं उस्ताद।" मंगू पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला____"मैं एकदम सच कह रहा हूं। ये सब उन तीनों नमूनों ने ही किया है। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो बिरजू और बबलू से पूछ लो।"
मंगू की बात सुन कर जोगिंदर ने बिरजू और बबलू की तरफ देखा तो दोनों ने मंगू की बात का समर्थन करते हुए हां में सिर हिला दिया। जोगिंदर अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ से नज़र हटा कर तबेले में हर जगह निगाह दौड़ाने लगा। वो ये देख कर हैरान ही नहीं बल्कि चकित भी हो गया कि आज उसका तबेला सफाई के मामले में अलग ही नज़र आ रहा था। जहां भैंसें बंधी रहती हैं वहां भी एकदम साफ था जबकि आम तौर पर वहां पर आज से पहले इतनी ज़्यादा सफाई नहीं हुआ करती थी। बाकी जगहों की तो बात ही अलग थी। ना कहीं कूड़ा कचरा नज़र आ रहा था और ना ही गोबर के कोई निशान। जोगिंदर की घूमती निगाह अचानक ही एक जगह ठहर गई। दूध की बाल्टियां और दूध के बड़े बड़े कनस्तर बड़े अच्छे तरीके से साफ कर के एक जगह व्यवस्थित ढंग से रखे हुए थे। जोगिंदर जल्दी ही उन बर्तनों के पास पहुंचा। उसने ग़ौर से देखा बर्तन एकदम साफ और चकाचक थे।
"बेटोचोद ये सब क्या देख रहा हूं मैं?" जोगिंदर एकदम से पलट कर हैरानी भरे भाव से बोला____"क्या ये मेरा ही तबेला है या मैं दिन में ही सपना देख रहा हूं?"
अभी जोगिंदर ने ये बोला ही था कि तभी उसकी नज़र तबेले के दरवाज़े पर पड़ी। तीनों नमूने हाथ पैर धोने के बाद गमछे से अपने हाथों में लगा पानी पोंछते हुए इधर ही आ रहे थे। जोगिंदर पर जैसे ही तीनों की नज़र पड़ी तो तीनों ही अपनी जगह पर ठिठक गए।
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग को ऐसे क्यों घूर रेला है बे?" मोहन ने धीमी आवाज़ में संपत से कहा____"कहीं ये सांड अपन लोग की गांड़ मारने तो नहीं आएला है इधर?"
"अबे फट्टू ऐसा कुछ नहीं करेगा वो।" संपत ने धीरे से कहा____"तू टेंशन मत ले।"
"भोसड़ी के बोल तो ऐसे रहा है।" मोहन ने कहा___"जैसे उसने तुझे पहले ही ये बता दिया हो।"
"अबे उसके तीनों सांड भी उसके पास ही खड़ेले हैं बे।" जगन भी धीमें से बोल पड़ा____"कहीं उन तीनों ने अपन लोग की कोई शिकायत तो नहीं कर दी होगी?"
"अबे चूतिए वो लोग भला अपन लोग की क्या शिकायत करेंगे?" संपत ने कहा____"अपन लोग ने तो शिकायत करने वाला कोई काम ही नहीं किएला है।"
"ओए उधर क्या खुसुर खुसुर कर रहे हो तुम तीनों?" जोगिंदर ने ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए तीनों नमूनों से कहा____"इधर आओ ज़रा।"
जोगिंदर के इस तरह बुलाने पर तीनों की धड़कनें तेज़ हो गईं। एक अंजाने डर की वजह से तीनों के चेहरों पर पसीना उभर आया। अब क्योंकि जोगिंदर ने बुलाया था तो तीनों को उसके पास जाना ही था इस लिए मध्यम चाल से चलते हुए कुछ देर में उसके पास पहुंचे।
"ये बताओ कि आज तुम तीनों ने कौन सा नशा किया है?" जोगिंदर ने तीनों की तरफ देखते हुए थोड़ा सख़्त भाव से पूछा तो तीनों ही बुरी तरह उछल पड़े।
"न...न...नशा????" संपत हकलाते हुए बोला____"नहीं तो। अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है। अपन लोग के पास तो खाने के भी पैसे नहीं हैं। नशे के लिए कहां से आ जाएंगे?"
"कोई तो नशा ज़रूर किया है तुम तीनों लोगों ने।" जोगिंदर ने सिर हिलाते हुए कहा____"तभी तुम लोगों ने तबेले का इस तरह से कायाकल्प किया है।"
"अपन सच कहता है उस्ताद अपन ने कोई नशा नहीं कियेला है।" मोहन अंदर से डरा हुआ तो था किंतु आदत से मजबूर बोल ही पड़ा____"अपन अपने मरे हुए मां बापू की क़सम खा रेला है। सच्ची में अपन लोग ने कोई नशा नहीं कियेला है।"
"चल मान लिया।" जोगिंदर भी समझ रहा था कि ऐसे नमूनों के पास भला कोई नशीला पदार्थ कहां से आ जाएगा जबकि पिछले दो दिनों से वो उसके यहां ही एक तरह से क़ैदी बन के रह रहे हैं। इस लिए थोड़ा नरमी से बोला____"मान लिया मैंने कि तुम तीनों ने कोई नशा नहीं किया है मगर मैं ये भी नहीं हजम कर पा रहा हूं कि तुम तीनों ने इस तबेले की तस्वीर बदल दी है।"
"य..ये आप क्या कह रहे हैं उस्ताद?" संपत को जल्दी ही समझ आया कि जोगिंदर किस सिलसिले में बात कर रहा है। वो तीनों तो अभी तक यही समझ रहे थे कि उनसे कोई ग़लती हो गई है जिसके लिए उसके तीनों सांडों ने उससे उनकी शिकायत की है। अतः सम्हल कर संपत ही बोला____"तबेले की तस्वीर??? मैं कुछ समझा नहीं?"
"इन लोगों ने मुझे बताया कि तुम तीनों ने मिल कर इस तबेले का ऐसा कायाकल्प किया है।" जोगिंदर ने अपने मुलाजिमों की तरफ इशारा करते हुए कहा_____"क्या ये वाकई में सच है?"
जोगिंदर की बात संपत के अलावा मोहन और जगन को अब जा के समझ में आई। तीनों ने पहले तो हां में सिर हिलाया और फिर ख़ामोशी से अपना अपना सिर इस अंदाज़ में झुका लिया जैसे उनसे कोई अपराध हो गया हो।
"बड़ी हैरत की बात है।" जोगिंदर गहरी सांस लेते हुए बोला____"यकीन नहीं हो रहा मुझे कि तुम तीनों ने इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया है। इन लोगों ने बताया कि तुम तीनों दोपहर से यहां काम पर लगे हुए थे? कल तक तो तुम तीनों को काम करने के लिए भारी ज़ोर देना पड़ता था और आज किसी के बिना कहे ये सब कर डाला, क्यों? आख़िर क्या सोच कर ये सब किया तुम लोगों ने, हां?"
"व...वो बात ये है उस्ताद कि अपन लोग ने सोचा कि हर्ज़ाना तो अपन लोग को हर हाल में भरना ही पड़ेगा।" संपत ने जैसे कमान सम्हालते हुए कहा____"तो अगर काम नहीं करेंगे तो कैसे भला अपन लोग आपका हर्ज़ाना दे पाएंगे? अपन लोग ने सोचा जब काम करना ही है तो पूरी ईमानदारी से करें। तभी तो जल्द से जल्द हम हर्ज़ाना दे पाएंगे न? वैसे भी अपन लोग को इधर खाना पीना तो मिल ही रेला है। खाली पीली बैठने से क्या होगा? बस ये ही सोच के अपन लोग ने ये सब किया उस्ताद पर अगर तुमको अच्छा नहीं लगा तो माफ़ कर दो अपन लोग को।"
जोगिंदर, संपत की ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ बोल ना सका। असल में वो हैरान था ये सब देख कर और उसके मुख से ये सब जान कर। तीन दिन पहले जिस व्यक्ति ने उसे इन तीनों के बारे में बताया था उससे वो भी यही समझता था कि ये तीनों एक नंबर के कामचोर, निकम्मे और राहजनी करने वाले बदमाश हैं। किंतु इस वक्त वो ये सब देख सुन कर हैरान रह गया था।
"सच सच बताओ कि किस चक्कर में तुम तीनों?" फिर कुछ सोचते हुए जोगिंदर ने थोड़ा सख़्त भाव से तीनों की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर तुम लोगों ने ये सब किसी दूसरे से ही चक्कर में किया है तो समझ लो बहुत बड़ी ग़लती की है। सालो ऐसी गांड़ तोड़ाई करूंगा कि हगते नहीं बनेगा तुम तीनों से।"
"य...ये कैसी बात कर रेले हो उस्ताद?" संपत मन ही मन घबरा गया। किन्तु फिर जल्दी ही सम्भल कर बोला____"अपन लोग भला किस चक्कर में होंगे? अरे! सच तो ये है उस्ताद कि अपन लोग को अब ये बात अच्छे से समझ आ गई है कि अब तक अपन लोग की लाइफ झंड थी। साला पेट भरने के लिए अपन लोग चोरी चकारी करते थे और पब्लिक अपन लोग की पेलाई कर देती थी। बहुत झंड लाइफ थी अपन लोग की उस्ताद लेकिन यहां आ कर और काम कर के अपन लोग को समझ आ गएला है कि सच्ची लाइफ यहीच है। काम कर के इज्ज़त से खाओ, भले ही दो रोटी कम खाओ।"
जहां जोगिंदर संपत की बातें सुन कर आश्चर्य से उसे देखने लगा वहीं जगन और मोहन हैरानी के साथ अब अंदर ही अंदर ये सोच कर गुस्से में आ गए थे कि संपत ये क्या बकवास किए जा रहा था? दोनों को संपत पर भारी गुस्सा आ रहा था किंतु इस वक्त जोगिंदर के रहते वो कुछ कर नहीं सकते थे।
"तुम अपन लोग पर भरोसा करो या ना करो उस्ताद।" उधर संपत दीन हीन दशा वाली सूरत बना कर बोला____"पर अपन लोग की सच्चाई यही है अब। अपन लोग ने पूरा मन बना लिएला है कि हर दिन ऐसे ही काम करेंगे और यहां से कहीं नहीं जाएंगे। यहां रहने के लिए कम से कम अपन लोग के पास छत तो है वरना अपन लोग तो साला पता नहीं कैसी कैसी जगह पे रात बितायेले हैं। अच्छा हुआ कि अपन लोग ने उस दिन तुम्हारा दूध चुरा लिया वरना ऐसी लाइफ के तो सपने भी नहीं आते अपन लोग को कभी। अब से अपन लोग इधर ही रहेंगे उस्ताद। इधर मस्त काम करेंगे और खाते पीते इधर ही अपना बाकी का लाइफ़ गुज़ारेंगे। तुम अपन लोग को यहां हमेशा के लिए रखोगे न उस्ताद?"
संपत एकदम दीन हीन भाव से जब जोगिंदर से ये सब कहने के बाद चुप हुआ तो जोगिंदर जैसे अचानक ही किसी सपने से जागा। उसने चौंक कर तीनों को देखा।
"बेटीचोद, मैं तो तुम तीनों को हरामी और बदमाश समझता था लौड़ो।" जोगिंदर हल्के से मुस्कुराते हुए बोला____"मगर तुम तो सालो देव मानुष निकले।" कहने के साथ ही उसने अपने तीनों मुलाजिमों की तरफ निगाह डाली और फिर हुकुम सा देते हुए बोला____"सुन लिया न तुम तीनों ने? अब से तीनों यहीं रहेंगे और अपने ही तबेले काम करेंगे और हां अब से ये लोग भी तुम लोग जैसे ही हैं।"
"ठ...ठीक है उस्ताद।" बबलू ने हैरान परेशान अंदाज़ में कहा____"लेकिन क्या इन तीनों पर इतना जल्दी भरोसा करना ठीक होगा?"
"भोसड़ी के अब क्या तू बताएगा मुझे कि मुझे कितना जल्दी भरोसा करना चाहिए?" जोगिंदर ने नागवारी भरे लहजे में उसे देखा____"अबे मैंने भी दुनिया देखी है इस लिए ज्ञान मत दे मुझे। अब एक बात कान खोल कर सुन लो तुम तीनों। मुझे अब से हर दिन अपने तबेले में ऐसी ही चकाचक सफाई चाहिए और इसके लिए तुम लोग भी इन तीनों की मदद करोगे। बात समझ में आ गई न?"
तीनों ने जल्दी से हां में सिर हिला दिया। तीनों के चेहरों पर चिंता और परेशानी के भाव अभी भी गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। पता नहीं क्या चल रहा था तीनों के ज़हन में।
"आज तो तुम तीनों बहुत ही ज़्यादा थक गए होगे न?" जोगिंदर तीनों नमूनों से मुखातिब हो कर बोला____"इस लिए अब जाओ और आराम करो। आज का बाकी का काम ये लोग कर लेंगे। कल से इन लोगों के साथ बराबर काम करना है तुम लोगों को, ठीक है ना?"
"ठीक है उस्ताद।" संपत जल्दी से बोला____"अपन लोग पूरी कोशिश करेंगे कि अब से हर रोज तुमको ऐसा ही चकाचक देखने को मिले।"
"बहुत बढ़िया।" जोगिंदर ने खुशी से कहा___"अब जाओ आराम करो। कल मैं तुम तीनों के लिए अलग जगह रहने की व्यवस्था कर दूंगा।"
जोगिंदर की बात सुन कर संपत ने सिर हिलाया और फिर जगन तथा मोहन को इशारे से चलने के लिए कहा तो वो दोनों बेमन से तबेले के बाहर की तरफ चल पड़े।
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"अबे गला छोड़ दे बे भोसड़ी के।" कमरे में पहुंचते ही जब जगन ने गुस्से से संपत की गर्दन दबोच ली तो संपत छटपटाते हुए चीखा____"मार डालेगा क्या बे अपन को?"
"हां तुझे जान से ही मार देगा अपन।" जगन ने संपत के गले में अपनी पकड़ को कसते हुए कहा____"साले अगर तुझे उस जोगिंदर की गुलामी ही करनी थी तो तू अकेला करता न। अपन दोनों लोग को क्यों फंसाया इसमें?"
"अबे अकल के दुश्मन अपन की बात तो सुन ले लौड़े।" संपत ने कहा____"साले तू जैसा समझ रहा है वैसा नहीं है।"
"इस गाँडू पर भरोसा मत करना जगन।" मोहन ने गुस्से में कहा____"इसने धोखा दे कर अपन लोग को जोगिंदर का गुलाम बना दिएला है। ये साला दोस्त नहीं दुश्मन है अपन लोग का।"
"अबे भोसड़ी के अपन तुम लोग का दुश्मन नहीं है लौड़ो।" संपत भी गुस्से से चीखा____"अपन दोस्त ही है बे। क्या इतना जल्दी अपन पर से भरोसा तोड़ लिया तुम लोग ने? क्या तुम लोग सोच सकते हो कि अपन ऐसा करेगा?"
संपत की बात सुन कर सहसा जगन की पकड़ ढीली पड़ने लगी। वो भले ही मंद बुद्धि था लेकिन ये बात उसे भी हजम नहीं हो रही थी कि संपत उन दोनों के साथ धोखा कर सकता है। ये एहसास होते ही जगन ने संपत को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही संपत अपना गला सहलाने लगा।
"अब बता भोसड़ी के ये क्या लफड़ा है।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तू उस मुछाड़िए से क्यों वो सब बकवास पेल रहा था?"
"अबे अपन की वो सारी बकवास अपन के पिलान का हिस्सा थी बे।" संपत ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"पर साले तुम जैसे कूढ़मगज लोग को क्या ही समझ आएगा।"
"बेटीचोद कूढ़मगज बोलेगा तो गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।" मोहन एकदम से चढ़ दौड़ा____"अपन लोग तेरे जैसे नहीं हैं साले जो डर के मारे जोगिंदर को अपनी गांड़ ही खोल के दे दें। साला बात करता है।"
"तू नौटंकी मत चोद।" जगन ने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और साफ साफ बता तेरी वो बकवास पिलान का हिस्सा कैसे हुई?"
"अब आया ना लाइन पर।" संपत ने मुस्कुराते हुए कहा____"अच्छा अब अपना भेजा खोल के सुन। जब अपन ने देखा कि अपन लोग का झक्कास काम देख कर उस मुछाड़िए की आंखें गांड़ की तरह फट गएली हैं तो अपन के मगज में एक मस्त पिलान आ गया।"
"अबे कैसा पिलान बे?" मोहन ये सोच कर खीझते हुए बोल पड़ा कि ऐसा कोई पिलान उसके भेजे में क्यों नहीं आया।
"अबे थोड़ा रुक जा न बे पांचवीं फेल।" संपत ने जैसे उसके जले पर नमक छिड़क दिया। ये सुन कर मोहन गुस्से से उस पर टूट ही पड़ने वाला था कि जगन ने उसे रोक लिया। इधर संपत बड़ी शान से मुस्कुराते हुए बोला____"हां तो अपन बोल रेला था कि अपन के भेजे में एक मस्त पिलान आ गएला था।"
"भोसड़ी के ज़्यादा भाव मत खा।" जगन को उसके बर्ताव पर एकदम से गुस्सा आ गया, बोला____"और जल्दी से पिलान बता वरना पटक के गांड़ तोड़ दूंगा तेरी।"
"अब तो घंटा कुछ नहीं बताएगा अपन।" संपत ने मानों रूठ गए अंदाज़ से कहा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"
संपत की इस बात पर जहां जगन दांत पीस कर रह गया वहीं मोहन एकदम से जंप लगा कर उसके ऊपर टूट ही पड़ा। संपत को उससे इतना जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी इस लिए वो सम्हल ना सका और कमरे के फर्श पर लुढ़कता चला गया। इधर मोहन उसके ऊपर सवार हो गया और अब वो उसका गला दबाने पर उतारू हो गया।
"भोसड़ी के।" मोहन गुस्से में बोला____"बहुत देर से देख रहा है अपन तेरा ये नाटक। अब तू अपना पिलान बता या चाहे अपनी गांड़ में डाल ले लौड़े मगर अब तो अपन तेरे को जान से ही मार देगा।"
"अबे जगन इस चिंदी चोर से बचा ले रे अपन को।" संपत छटपटाते हुए ज़ोर से चीखा____"ये भोसड़ी का अपन का गला दबा रेला है।"
"मर जा भोसड़ी के।" जगन अपनी जगह से हिला तक नहीं, गुस्से से बोला____"बहुत भाव खा रहा था न, अब मर बेटीचोद। अपन घंटा तेरे को बचाने नहीं आएगा।"
"माफ़ कर दे बे।" मोहन के द्वारा गला दबाए जाने से संपत की जहां आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी वहीं अब उसे सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी। बुरी तरह छटपटाते हुए बोला____"अब कोई नाटक नहीं करूंगा बे। इस मादरचोद को बोल कि अपन को छोड़ दे।"
"अपन तेरे को घंटा नहीं छोड़ेगा लौड़े।" मोहन और ज़ोर से उसका गला दबाते हुए गुर्राया____"अपन के पांचवीं फेल होने का बहुत मज़ाक उड़ाता है न तो अब मर बेटीचोद।"
"अबे लौड़े मर जाएगा अपन छोड़ दे बे।" संपत बुरी तरह उससे छूटने के लिए ज़ोर लगा रहा था मगर मोहन की पकड़ से छूट नहीं पा रहा था, बोला____"छोड़ दे मादरचोद, तेरे को तेरे मरे हुए अम्मा बापू की क़सम।"
"पिलान बताएगा ना?" मोहन ने जैसे उसे परखा____"कोई भाव तो नहीं खाएगा न?"
"नहीं खाएगा बे।" संपत मरता क्या न करता वाली हालत में था, इस लिए बोला____"और एक ही सांस में सारा पिलान भी बताएगा अपन। अब छोड़ दे ना बे बेटीचोद, सांस नहीं ले पा रहा अपन।"
"ना अभी एक और बात मानेगा तू।" मोहन ने कहा____"बता अपन के पांचवीं फेल होने का मज़ाक उड़ाएगा कभी?"
"अम्मा बापू की क़सम बे।" संपत जल्दी से बोला____"अपन अब से कभी तेरे पांचवीं फेल होने का मज़ाक नहीं उड़ाएगा।"
संपत की बात सुनते ही मोहन ने एक झटके में उसे छोड़ दिया और उसके ऊपर से उतर कर जगन के पास आ गया। उधर संपत छूटते ही गहरी गहरी सांसें लेने लगा और बीच बीच में खांसता भी जा रहा था।
"लौड़ा मार ही दिया था अपन को।" संपत जगन और मोहन की तरफ देखते हुए बोला____"साला अपन को लगा बस टिकट कट ही गया अपन का।"
उसकी बात सुन कर जगन और मोहन दोनों ही मुस्कुरा उठे, फिर जगन ने कहा____"अब जल्दी से बता लौड़े कि क्या पिलान था तेरा?"
"अबे ढंग से सांस तो ले लेने दे बे लौड़े।" संपत उन दोनों के क़रीब ही आ कर बैठते हुए बोला____"साला अभी भी अपन को ऐसा लग रेला है जैसे इस गाँडू के हाथ अपन के गले में ही फंसेले हैं।"
"और अगर जल्दी से तूने पिलान ना बताया।" जगन ने उसे घूरते हुए कहा____"तो इस बार अपन तेरी गांड़ में लौड़ा भी फंसा देंगा, समझा? चल अब जल्दी से पिलान बता अपन लोग को।"
"अपन लोग का झक्कास काम देख के।" सांसें दुरुस्त होने के बाद संपत ने कहा___"जोगिंदर की आंखें गांड़ की तरह फट गएली थी। ये तो तुम दोनों लोग ने भी देखा ही था। अपन ने सोचा इसे और भी ज़्यादा यकीन दिलाने के लिए अपन थोड़े बहुत सेंटी डायलॉग भी मार दे तो साला तीर एकदम निशाने पे ही लग जाएगा। इसी लिए अपन ने उससे ये बोला कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और इधर ही काम करेंगे। अब से अपन लोग का यही घर है। अपन की सेंटी बात सुन कर साला जोगिंदर को भी समझ आएगा कि अब से अपन लोग यहीं रहेंगे और तबेले को अपना ही घर मान के यहां काम करेंगे।"
"वो सब तो ठीक है बे।" मोहन ने कहा____"पर लौड़ा इस सबसे होएगा क्या?"
"अपन को भी कुछ समझ नहीं आया।" जगन ने सिर खुजाते हुए कहा____"तेरे वो सब कहने से आख़िर अब होएगा क्या?"
"लंड होएगा भोसड़ी के।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"साला बैलबुद्धि।"
"मादरचोद खोपड़ी तोड़ दूंगा तेरी।" जगन ने गुस्से से देखते हुए कहा____"ढंग से बता कि आख़िर तेरे वो सब कहने से होएगा क्या?"
"अबे वो मुछाड़िया अपन लोग पर जल्दी ही भरोसा करने लगेगा।" संपत ने झल्लाते हुए समझाया____"और जब भरोसा कर लेगा तो वो अपन लोग पर ना तो नज़र रखवाएगा और ना ही अपन लोग पर कोई पाबंदी लगाएगा। सोच जब ऐसा होएगा तो क्या होगा?""
"क...क्या होगा?" जगन के मुख से जैसे खुद ही निकल गया, जबकि मोहन जल्दी से बोला____"अपन लोग इधर से कल्टी मार लेंगे यही कहना चाहता है न तू?"
"हां लौड़े।" संपत ने बुरा सा मुंह बनाया____"और हां, इस बार अपन इस शहर से ही निकल लेंगे।"
"ऐसा क्यों?" जगन के माथे पर शिकन उभर आई।
"अबे भोसड़ी के अगर अपन लोग इसी शहर में रहेंगे।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"तो वो मुछाड़िया अपन लोग को किसी दिन खोज लेगा और तब वो ही नहीं बल्कि उसके तीनों सांड भी अपन लोग की गांड़ मार लेंगे।"
"अपन घंटा किसी को अपनी गांड नहीं मारने देगा।" मोहन ने जैसे अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा____"तू सही कह रहा है। अपन लोग इधर से निकलते ही इस शहर से भी कल्टी मार लेंगे।"
"तो फिर आज रात ही अपन लोग निकल लेते हैं इधर से।" जगन ने कहा____"साला किसी को पता भी नहीं चलेगा।"
"अबे लौड़े ये इतना आसान नहीं है।" संपत ने कहा____"अभी अपन लोग को एक दो दिन यहां रुकना पड़ेगा और आज के जैसे ही गांड़ का ज़ोर लगा कर काम करना पड़ेगा। जोगिंदर को पूरी तरह जब अपन लोग पर भरोसा हो जाएगा तभी वो अपन लोग पर नज़र रखवाना बंद करेगा और पाबंदी रखना भी। जब ऐसा हो जाएगा तभी अपन लोग इधर से निकल सकेंगे।"
"मतलब अभी एक दो दिन और अपन लोग को इधर गांड़ घिसना पड़ेगा?" मोहन ने हताश भाव से कहा, फिर अचानक ही जैसे उसे कुछ याद आया तो मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला____"वैसे अगर अपन लोग इधर ही रहें तो कैसा रहेंगा?"
"क..क्या मतलब?" संपत चौंका____"अबे ये क्या बोल रहा है तू? भेजा गांड़ में ही घुसेड़ लिया है क्या तूने?"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है लौड़े।" मोहन सकपकाते हुए बोला____"अपन तो ऐसे ही बोल रहा था।"
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रात के क़रीब नौ बजे रवि परेशान हालत में कमला के घर पहुंचा। कमला जूठे बर्तन धो रही थी। उसका पति आज भी शराब पी कर आया था और कमरे में बेसुध सा सो गया था। दूसरे कमरे में उसकी बेटी शालू अपने छोटे भाई के साथ पड़ी हुई थी। जोगिंदर के दिए पैसे से कमला ने अपनी बेटी का एक अच्छे डॉक्टर से इलाज़ करवाया था और अब उसकी बेटी पहले से बेहतर थी। घर का दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं था इस लिए रवि अंदर ही आ गया था। उसे परेशान देख कमला हल्के से चौंकी।
"क्या हुआ तुझे?" रवि को परेशान देख कमला ने उससे पूंछा____"तू इतना परेशान क्यों है? घर में सब ठीक तो है न?"
"घर में सब ठीक है चाची।" रवि ने झिझकते हुए कहा तो कमला ने उसे ग़ौर से देखा और फिर पूछा____"तो फिर तू इतना परेशान क्यों दिख रहा है? आख़िर बात क्या है?"
"व...वो चाची बात ये है।" रवि झिझक तो रहा ही था साथ ही उसकी धड़कनें भी धाड़ धाड़ कर के धमकने लगीं थी, बोला____"आज एक बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है।"
"ग...गड़बड़???" कमला की अपनी धड़कनें एकाएक अंजानी आशंका के चलते तेज़ हो गईं, बोली____"क...कैसी गड़बड़? आख़िर हुआ क्या है रवि?"
रवि को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो कमला को किस तरह से अपनी और मोहन के बीच हुई बातों को बताए? मगर वो ये भी समझता था कि उसे ये सब कमला को बताना भी ज़रूरी था और कमला को उस काम के लिए मनाना भी।
आख़िर बहुत हिम्मत कर के रवि ने पहले अपने चाचा और शालू के कमरों की तरफ एक एक निगाह डाली फिर कमला के क़रीब आ कर उसे धीमें स्वर में सब कुछ बता दिया। सारी बातें सुन कर कमला के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। अपनी बदनामी का एहसास होते ही उसके समूचे जिस्म में ठंडी लहर दौड़ गई। इधर रवि ने उसे बताया कि अगर उसने मोहन की बात नहीं मानी तो वो सबको बता देगा।
कमला ने रवि को वापस घर जाने को कहा तो वो चला गया। उसके बाद कमला ने चिंतित और परेशान हो कर किसी तरह बर्तनों को धो कर उन्हें रसोई में रखा और फिर कमरे में शालू के पास बिस्तर पर आ कर लेट गई। शालू और उसका भाई गहरी नींद में सो चुके थे जबकि कमला ऊपर छत को घूरे जा रही थी। वो सोच में डूबी हुई थी कि अचानक से आ गई इस समस्या से वो कैसे सामना करे?
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