• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
Last edited:

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
Ye aadmi mujhe kahin ka na chhodega... Shadi ki baat itni viral kar di hai ki ek bhi ladki reader na bachi mere thread par :(
:roflol::laugh::lol::lotpot::hehe::happy::notme: Bada anand aaya ye padh kr...

Ham soche jish kasti me ham savar hai Aapko bhi usme le chalte hai :D

Aap ek baar kah do ki Mai aisa na karu, tatkal prabhav me laya jayega... :hug:
 

Battu

Active Member
1,321
4,742
159
भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


PgsHulS.jpg

आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
वाह भाई क्या शानदार फाइट और धमाल अपडेट रहा मज़ा आ गया आज के इंतजार का फल बहुत रोमांचक और सुकून देने वाला रहा। इस अपडेट में भी 2 सस्पेन्स छोड़ दिये पहला जब बंधी बनाये प्रहरियों की यादों को आर्य मिटाता है तब 2 बंदों के दिमाग मे झाँक कर चोंक क्यो जाता है यह नही बताया। दूसरा सस्पेन्स थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी क्या बला है इनमें इतनी अतभूत ताकत कहा से आयी। यदि इस टाइप के शिकारी प्रहरी ग्रुप में है तो जया और भूमि का आगे क्या होगा। सीक्रेट बाड़ी ऐसे शिकारी बना सकती है तो वो कितनी पॉवरफुल होगी इससे तो सरदार खान की बात सही साबित होती है कि उन्हें सरदार को मारने के लिए किसी प्लानिंग की ज़रूरत नही वो लोग स्पेशल सुपर नेचुरल पावर रखते है वो सरदार को कभी भी मार सकते है। रही आज शो हुई आर्य की पावर । उसकी नेचर से हिल होने की पावर, नेचर से पावर लेना जिससे वो स्ट्रांग हो सके अपने सांसो से या अंदर से बाहर आती हवा से अटेक किये गए हथियार और हवा के बवंडर से बने हथियारों का रुख चेंज करना आई मीन दिशा बदल देना वाकई गजब का रहा। आर्य की स्पीड हवा से भी तेज़ रही पवार का तो कहना ही क्या वो खुद एक चलता फिरता पावर हाउस है। अति उत्तम प्रस्तुति। वैसे आपके पिछले कुछ कमेंट के रिप्लाय में 2 बाते मेने नोट करि। पहली की आप पलक और आर्य के रिलेशन में टिप्पणी नही कर रहे यानी 100% आप इनका भविष्य में सीन बनाने वाले हो वैसे हो सकता है कि में गलत हो जाऊं बट मुझे यही लगा। और दूसरी सबसे बड़ी बात की इस स्टोरी को आप कही न कही किसी सीन में निश्चल जीविशा एंड पार्टी से भी कनेक्ट करोगे यह बहुत खुशी देने वाली बात रहे। वैसे आज स्वामी और नित्या की कमी रही उन्हें कुछ सजा नही दे पाया आर्य। वैसे इस मस्त अपडेट के लिए बधाई एवं धन्यवाद।
 

Scorpionking

Active Member
991
3,434
123
भाग:–56






"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।


रूही… आंहा, कोई हरकत नहीं शिकारी जी। आप के पीछे आपके 9 लोग है। वो क्या है ना हम अपना बदला खुद ले लेंगे।


जबतक वो शिकारी बात कर रहा था। ओजल, इवान और अलबेली ने अपनी दबे पाऊं वाली शिकारी गति दिखाते, उसके 9 लोगो के हाथ पाऊं बांध चुके थे।


शिकारी:- तुम माउंटेन एश की सीमा नहीं पार कर पाओगी।


रूही:- पार करना भी नहीं है। जैसे-जैसे चंद्रमा अपने उफान पर होगा, माउंटेन एश के सीमा में बंधे बेबस वेयरवोल्फ पूर्ण उत्तेजित हो जायेंगे। और ये पूर्णिमा उन्हें इतना आक्रोशित कर देगा कि ये लोग एक दूसरे को ही फाड़ डालेंगे।


शिकारी:- इस लड़की (अलबेली) को उस लड़के (इवान) के साथ क्यों बांध रखी हो?


रूही:- लड़की नही अलबेली। पूर्णिमा की रात से निपटने के लिये उसके पास अभी पूरा कंट्रोल नही है। चिंता मत करो अलबेली को लेथारिया वुलपिना का डोज देंगे, जरा चंदा मामा को अपने पूर्ण सबाब पर तो आने दो।


शिकारी:- तुम लोग कमाल के हो। नेक्स्ट लेवल वेयरवुल्फ..


रूही:- शिकारी जी हम भी आपकी तरह इंसान ही है। बस आप लोग ने ही हमे हमेशा जानवर की तरह ट्रीट किया है। मेरे बॉस आर्यमणि ने हमे सिखाया है कि हम इंसान है, इसलिए क्ला और फेंग से लड़ाई में विश्वास नहीं रखते। बाकी यदि क्ला और फेंग है तो एक्स्ट्रा फीचर है। बुरे वक़्त में इस्तमाल करेंगे।


शिकारी:- मुझे भी पैक ही कर दो, हम ड्रोन कैमरा से तुम्हारा कारनामा देखेंगे।


रूही:- वो भी कर देंगे शिकारी जी। पहले हमारा पेमेंट तो हो जाने दो। तुम्हे खोलकर ही रखा है अपने पेमेंट के लिये।


शिकारी:- कैसा पेमेंट?


रूही:- ओय 12 लैपी, ये 1000 ड्रोन, ऊपर से माउंटेन एश कितना कीमती मिला है। फिर ये हथियार जो हमारे पास है, उसे हम एक बार ही इस्तमाल करेंगे, उसके बाद तो जायेगा तुम्हारे हेडक्वार्टर ही। वैसे भी जनता के दान में दिये पैसे से तुम्हारा प्रहरी समुदाय अरबपति हैं। तुम्हारा काम मै कर रही हूं सो हमारा मेहनताना और इनकी कीमत, नाजायज मांग तो नहीं है।


शिकारी:- मेरा नाम बद्री मुले है। तुमसे अच्छा लगा मिलकर। बिल दो और पैसे लो।


रूही:- और माउंटेन एश के पैसे।


बद्री:- कितना किलो मंगवाई थी।


रूही:- 2 क्विंटल।


बद्री:- हम्मम ठीक है। पर यहां तो नेटवर्क नहीं, होता तो अभी ट्रांसफर कर देता पैसे।


रूही:- यहां जैमर का रेंज नहीं है। ये देख लो बिल्स। और रीमबर्स कर दो सर जी।


बद्री अपना अकाउंट खोलकर… "अकाउंट नंबर और डिटेल डालो अपना।"..


रूही ने उसमे अपना अकाउंट नंबर और डिटेल डाल दिया।… "आधा घंटा लगेगा, बेनिफिशरी एड होने दो।"


रूही:- कोई नहीं हमारे पास पुरा वक़्त है। बॉस अभी तो निकले भी नहीं है। रात के 11-12 से पहले तो वैसे भी काम खत्म नहीं होना है।


तभी कुछ देर बाद सरदार के इलाके से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गये। यहां से अलबेली भी वुल्फ साउंड देती पागलों कि तरह करने लगी। वो अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी और चूंकि वो एक अल्फा थी, इसलिए धैर पटक, धोबी पछाड़ से भी ज्यादा खतरनाक अलबेली ने इवान को पटक दिया। दर्द से कर्रहाने की आवाज आने लगी। अलबेली अपने पंजे और दातों से इवान को फाड़ने के लिए आतुर थी। ओजल और इवान मिलकर किसी तरह उसे रोकने की कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन वो उन जैसे 10 पर अकेली भारी थी। रूही ने डोज काउंट किया और हवा के रफ्तार से गयि, अलबेली के गर्दन में लेथारिया वुलपिना के 20ml के 2 इंजेक्शन लगाकर वापस बद्री के पास पहुंच गयि।


अगले 2 मिनट में अलबेली पूरी तरह शांत थी। वो अपना शेप शिफ्ट करती… "अरे ये क्या हो गया। रूही, क्यों इन्हे रोकने कही।"..


रूही, बद्रिं के भी हाथ पाऊं बांधते…. "अरे यहां हमारे प्रहरी भईया खड़े थे ना, बहुत शातिर होते है। अब रोना बंद करो और उनके दर्द को ठीक करो।"..


अलबेली पहले ओजल के पास पहुंची। उसके सारे दर्द को खींचकर पुरा हील की और बाद में इवान को।…. "अलबेली, कंट्रोल सीख ना रे बाबा, अकेले में हमे तो तू नरक लोक पहुंचा देगी।"..


इसी बीच बद्री मुंह पर बांधी पट्टी से... "उम्म उम्म" करने लगा।… रूही अलबेली को देखती... "बद्री जी के पट्टी खोल अलबेली, जारा बोलने दे इन्हे भी"… अलबेली उसका पट्टी खोलती… "तुम इतनी छोटी उम्र में अल्फा कैसे हो गयि।"


अलबेली:- बॉस जरा शादी में बिज़ी थे वरना ये दोनो भी अल्फा होते घोंचू।… (अलबेली अपने कमर के ऊपर का कपड़ा हटाती)… ये देख टैटू.. द अल्फा पैक।


बद्री:- हम्मम ! लेकिन तुम लोग ज्यादा देर तक यहां रहे तो वहां सरदार खान के किले में पुलिस पहुंच जायेगी।


रूही.… "अभी जादू देख… 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1, 0"… और चारो ओर आवाज़ गूंजने लगी… "मोरया रे बप्पा मोरया रे"….. "विनायक आला रे बद्री। आता कोण आम्हाला रोखेल। (अब कौन रोकेगा हमे)


रात 9 जैसे ही बजे… "चलो तैयार हो जाओ, एक्शन टाइम आला रे।"


खटाक, फटाक, सटाक.. मात्र 2 मिनट में ही चारो अपने बदन पर जगह-जगह भारी हथियार खोस चुके थे। हर किसी के पीठ पर एक बैग टंगा हुआ था।… "क्या हुआ तुम्हारा बॉस आने वाला है क्या।?..


रूही:- ध्यान से सुनो ये आहट.. आने वाला नहीं बल्कि आ चुका है।


रूही की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि उससे पहले ही आर्यमणि पहुंच चुका था।… "ओह दोस्ती बढायि जा रही है?"..


रूही:- सूट उप हो जाओ बॉस। वैसे पलक की दी हुई सूट मे भी कमाल लग रहे हो। ऐसे जाओगे तो हॉलीवुड का एक्शन होगा...


अपने पैक के साथ आर्यमणि तैयार हो चुका था। काफी तेजी के साथ सभी किले ओर बढ़े। किले के मुख्य मार्ग पर बिखरे माउंटेन ऐश को आर्यमणि बीच से साफ करते हुये बढ़ रहा था और बाकी सभी कतार बनाकर उसके पीछे चल रहे थे। किले में पहुंचते ही आर्यमणि तेजी के साथ वहां के हर घर में घुसा। वहां बंद हर वेयरवुल्फ को देखा। पूर्णिमा की रात अक्सर यह होता है। कई वुल्फ अपनी अक्रमाता बर्दास्त नहीं कर पाते इसलिए इनकी और वुल्फ खुद की सुरक्षा के लिये, उनका मुंह बांधकर जंजीरों में जकड़ देते हैं।


उस बस्ती के घरों में 40 बंधे वुल्फ और उसके साथ उसकी मां या पैक से कोई दिख गया। आर्यमणि के ठीक पीछे लाइन बनाये उसकी पूरी टीम। अलबेली और रूही हर किसी के गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर उसकी यादे लेती और जो भटका हुए लगते उन्हें मौत का तोहफा देकर आगे बढ़ जाते। हालांकि घर में बंधे वुल्फ और उनके साथ वाले लगभग 15 क्लीन थे। बाकी सभी वुल्फ अत्यंत ही निर्दयि और विकृत मानसिकता के थे। बढ़ते हुये सभी चौपाल पर पहुंचे। चौपाल के अंदर पागल बनाने वाला खतरनाक आवाजें आ रही थी। बीस्ट वुल्फ की शांत करने की दहाड़ पर सभी वुल्फ सहम से जाते लेकिन अगले ही पल फिर से वो सब आक्रोशित हो उठते। बीस्ट वुल्फ पर लगातार हमले हो रहे थे। इकलौता वहीं था जो शेप शिफ्ट नहीं कर पाया था और सभी वुल्फ के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।


आर्यमणि, चौपाल का दरवाजा खोलते… "रूही चौपाल पर ये लोग झुंड बनाकर किसे नोच रहे। झुंड को हल्का करो और बीच से जगह बनाओ। जारा सरदार खान से एक मुलाकात कर लिया जाय। लगता है बहुत दर्द में है।"..


सरदार खान का बेटा फने खान, अपने पिता की ताकत पाने के इरादे से तय वक्त से पहले ही उसे मॉडिफाइड कैनीन डिस्टेंपर वायरस खिला चुका था। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसके नाक और मुंह से लगातार ब्लैक ब्लड बह रहा था और वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पा रहा था।


"एक्शन टाइम बच्चो।"… चारो एक लाइन से खड़े हो गये और वोल्फवेन बुलेट फायर करने लगे। देखते ही देखते बीच से लाशें गिरना शुरू हो चुकी थी। वुल्फ के बीच भगदड़ मच गया। इसी बीच आर्यमणि अपने हाथ में वो एक फिट की सई वैपन लिये बीच से चलते हुये आगे बढ़ रहा था। आर्यमणि के पीछे वो चारो नहीं जा सकते थे क्योंकि उसने चौपाल के दरवाजे पर बिखरा माउंटेन ऐश साफ नहीं किया था। देखते ही देखते वुल्फ की भीड़ के बीच आर्यमणि कहीं गायब सा हो गया। इधर ये चारो गोली चला-चला कर आर्यमणि के ऊपर भिड़ का बोझ और लादे जा रहे थे।


तभी जैसे वहां विस्फोट हुआ हो और सभी वुल्फ तीतर बितर हो गये।… रूही सिटी बजाती हुई… "बॉस छा गये। अब क्या यहां स्लो मोशन पिक्चर बनाओगे, काम खत्म करो यार जल्दी।"


आर्यमणि:- हां सही सुझाव है।


आर्यमणि ने अपना शेप शिफ्ट किया, और सरदार खान की आखें फटी की फटी रह गई। आर्यमणि ने अपनी तेज दहाड़ लगायि और वहां मौजूद सभी जंगली कुत्ते के साथ-साथ सभी वुल्फ बिल्कुल शांत अपनी जगह पर बैठ गये। आर्यमणि तेजी से सबके पास से गुजरते हुये सबकी यादों में झांकता, वहां मौजूद हर किसी की याद में किसी न किसी को नोचते हुये ही उसने पाया। हर दोषी का सर वो धर से नीचे उतरता चला गया। तभी आर्यमणि के हाथ एक दोषी अल्फा लगा। उसे बालों से खींचकर आर्यमणि चौपाल के दरवाजे तक लाया और उसके दोनो हाथ और दोनो पाऊं तोड़ कर बिठा दिया।


वहां मौजूद 5 अल्फा में से 2 अल्फा अच्छे थे। आर्यमणि उन्हें जगाते… "जल्दी से अपने पैक और इनोसेंट वुल्फ को अलग करो। इतने में आर्यमणि की दहाड़ से शांत वुल्फ एक बार फिर तब आक्रामक हो गये जब सरदार खान ने वापस हमला की दहाड़ लगा दी। इसके प्रतिउत्तर में आर्यमणि ने फिर एक बार दहाड़ा और आकर सरदार खान के मुंह को बंद कर दिया। उन दो अल्फा ने अपना पूरा पैक अलग कर लिया और साथ में उन लोगो को भी, जो केवल पैक के वजह से सरदार खान के साथ थे। लगभग 30 वुल्फ को उसने अलग कर लिया जिसमें से 3 मरने के कगार पर थे और 12 अगले 5 मिनट में मरने वाले थे। आर्यमणि अपने तेज हाथो से उन 3 के अंदर की वोल्फबेन बुलेट निकाला और उनके दर्द को अपने अंदर खींचकर हील करने लगा। आर्यमणि ने माउंटेन एश की दीवार हटायि। वो चारो भी अंदर घुसे फिर शुरू हुआ मौत का तांडव। पहले तो 3 अल्फा में से 2 अल्फा ट्विंस के लिये छोड़ा गया और बचे 1 अल्फा की शक्तियों बांट दिया गया चारो में। 30 बीटा वूल्फ 2 अल्फा के साथ चुपचाप जाकर किनारे खड़े हो गये, जहां जंगली कुत्ते एक ओर से बैठे हुये थे। बाकी के वुल्फ को विल्फबेन बुलेट लगती जा रही थी। आर्यमणि आराम से आकर सरदार खान के पास बैठ गया…. "हम्मम ! तुम्हे पहले पहचान जाता तो ये गलती ना होती।"..


आर्यमणि:- सरदार तुम भुल रहे हो जबतक मैं अपनी पहचान जाहिर ना करूं, किसी के दिमाग में ये ख्याल भी नहीं आ सकता।


सरदार:- तो शक्ति कि भूख तुम्हे भी यहां खींच लाई।


आर्यमणि, उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसके दर्द को थोड़ा खींचने लगा। सरदार को काफी राहत महसूस होने लगी। ऐसा सुकून जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जिस वायरस के दर्द का शिकार सरदार था, उस दर्द को आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। आर्यमणि ने सरदार का हाथ छोड़ दिया और सरदार दोबारा दर्द से कर्राह गया।


आर्यमणि:– तुम्हारा बेटा फने नही दिख रहा...


सरदार:– ओह तो उस चूतिये को तूने सह दिया था। क्या किया उसने मेरे साथ?


आर्यमणि:– तुझे कुत्तों के अंदर पाया जाने वाला एक खतरनाक वायरस खिला दिया। जिसका नतीजा सामने है। वैसे तुझे मारने का फरमान तेरे आकाओं ने उसे दिया था। भारद्वाज एंड कंपनी... जानता तो होगा ही।


सरदार:– तू कुछ भी कहे और मैं मान लूं। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है। समस्त प्राणियों में बिशेस और ताकतवर। उन्हे मुझे मारने के लिये इतने एक्सपेरिमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। हां, लेकिन तू नौसिखिए, फने को इतना नही बताया की मेरे किसी इंसानी चमड़ी को भी भेदा नही जा सकता। मुझे मारने आया था उल्टा उसे और उसके साथियों को ही मौत की नींद सुला दिया।


आर्यमणि:- तू भ्रम में ही मरेगा सरदार। वैसे जानकर हैरानी हुई की तेरा ये आगे से 5 फिट निकले तोंद वाले भद्दा इंसानी शरीर को भी नही भेदा जा सकता। तुम्हारी जिंदगी तो नासूर हो गयि सरदार। मैंने तुम्हे छोड़ भी दिया तो ना तो तुम ढंग से जी सकते हो, ना मर सकते हो।


सरदार:- तो रुके क्यों हो, दे दो मौत मुझे और ले लो मेरी शक्तियां।


आर्यमणि:- इसी ताकत ने तेरा क्या हाल किया है? मुझे ताकत में कोई इंट्रेस्ट नहीं। पूछता हूं अपने पैक से, उन्हें ताकत की जरूरत है क्या? अरे चारो कितने स्लो हो, गोली मारने में कोई इतना वक़्त लगता है क्या?


चारो ने लगभग एक ही बात कही…. "हो गया बॉस"


आर्यमणि:- हमारे पैक के ट्विंस, अल्फा बने की नहीं। क्यों ओजल और इवान..


ट्विंस साथ में:- हां बन गये है लेकिन वो भी आपकी इक्छा थी सिर्फ इसीलिए...


आर्यमणि:- अच्छा सुनो सरदार खान की शक्ति तुम में से किसे चाहिए?


रूही:- हम तो टूर पर जा रहे, उसके पास बहुत पैसे और गोल्ड होंगे, वो ले लो।


अलबेली:- इसकी शक्ति मैंने ले ली तो मै भी इसकी तरह घिनौनी दिखने लगुंगी। मुझे नहीं चाहिए।


ओजल:- यहां से निकले क्या? इस गंदे माहौल को ही फील करना अजीब लग रहा है। ऐसा लग रहा है काले साये ने इस जगह को सदियों से घेर रखा है। खुशी ने यहां अपना मुंह मोड़ लिया है।


इवान:- हां ओजल सही कह रही है।


आर्यमणि:- तेरी शक्तियों में किसी को इंट्रेस्ट नहीं। खैर मै जारा उन सब की याद मिटा दू, जिन्हे मार नही सकता और मुझे प्योर अल्फा के रूप में देख चुके। रूही तुम सरदार के घर जाकर वो क्या पैसे और गोल्ड की बात कर रही थी, उसे ले आओ।


आर्यमणि जबतक उन 2 अल्फा और उसके साथ 30 वुल्फ के पास पहुंचा।… "तुम सब को 1 घंटे के लिए बेहोश करूंगा, मै नहीं चाहता कि कोई प्योर अल्फा का जिक्र भी करे। आज से तुम सब अपने पैक के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हो।"


एक अल्फा नावेद…. "यहां रहे तो हमे भी सरदार की तरह बनने के लिए फोर्स किया जायेगा। कहीं भी अपने पैक के साथ रह लेंगे, लेकिन इस जगह पर नहीं।"


आर्यमणि:- तुम्हारी याद में तो ऐसी कोई जानकारी मुझे तब नहीं दिखी थी नावेद, कहना क्या चाहते हो?


नावेद:- एक वुल्फ के लिये उसका पैक ही उसका परिवार होता है। एक बीटा अपने अल्फा पर हमला तो कर सकता है, लेकिन एक अल्फा हमेशा अपने पैक के बीटा को संरक्षण देता है। यहां तो मैंने सरदार को अपने ही कोर पैक को खाते देखा है। ये बीस्ट अल्फा होने के साथ साथ बहुत ही घिनौना भी था। और शायद इसे ऐसा ही बनाया गया था। ऐसा मेरि समीक्षा कहती है।


दूसरा अल्फा असद… "नावेद ने सही कहा है। ये बात हम सबने मेहसूस की है। यहां लाकर हमारी आत्मा को तोड़ा जाता है। इंसानी रूप में रहते है लेकिन इंसानी पक्ष को मारने में कोई कसर नहीं छोड़ा इसने।"


आर्यमणि:- पहले एक छोटी सी बात बता दूं। आज के बाद नागपुर प्रहरी क्षेत्र में बहुत से बदलाव होगा। भूमि दीदी पूरी कमान अपने हाथ में लेने वाली है। यहां अब तुम दोनो ही हो। मै यह तो नहीं कहूंगा की तुम दोनो यहां बंध कर रहो, लेकिन तुम यहां नहीं होगे तो कोई ना कोई होगा। और वो जो कोई भी होगा उसे अब सरदार जैसा नहीं बनाया जायेगा। तुम अपने पैक के साथ यहां रहो। अगर हालात नहीं बदले तो यह जगह छोड़ देना। लेकिन मुझे नही लगता कि यहां से सरदार को गायब कर देने से सरदार को बनाने वाले लोग यहां फिर हिम्मत करेंगे सरदार जैसे किसी को वापस लाने की। और एक बात, तुम सब शापित नहीं हो, तुम्हारे रूप में ऊपरवाले ने कुछ अच्छा डाला है। खुद को जानवर प्रोजेक्ट करने से अच्छा है, खुद में विशेष होने जैसा मेहसूस करो।


"कुबेर का खजाना हाथ लग गया यहां तो बहुत सारे पैसे और प्रॉपर्टी के पेपर है। गोल्ड नहीं मिला लेकिन।".. रूही तीनों के साथ आते ही कहने लगी।


आर्यमणि ने पहले अपना काम खत्म किया। वहां सबको बेहोश करके, उसके गर्दन के पीछे अपना क्ला डालकर उनकी याद से केवल प्योर अल्फा, और ट्विन की याद मिटाने के बाद, आर्यमणि एक छोटा सा नोट छोड़ दिया….


"ये जगह और यहां के सारे लोग अब तुम दोनो के है। तुम दोनो अल्फा होने का फर्ज निभाओ। इन सब को कैसे अच्छी जिंदगी दे सकते हो उसके बारे में सोचना। तुम सब की हर समस्या भूमि दीदी और मेरी मां जया कुलकर्णी सुनेगी और हर संभव मदद करेगी। अब चलता हुं। ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे। अलविदा नावेद, अलविदा असद। और हां, रात के 2 बजे तक बहुत से मेहमान पहुंच जाएंगे, ये जगह साफ कर देना और उनसे बताना, हम यहां कैसे लड़े और सरदार खान को लेकर गये।"

भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


PgsHulS.jpg

आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Outstanding mind-blowing update bhai maza aa gaya to 8 sikariyo ka kam tamam ho gaya ek baar ko to aryabhi phasta hua laga per sukar hai Nishant or sanyasi samay se aa gaye . Ab dekhna hai age kya hota hai.
 
Last edited:

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


PgsHulS.jpg

आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Koi kuchh bhi kah lo yaar Mai to nachunga... :vhappy1::party1::love3::dance2::bounce::claps::doodh::dancing2::ecs::dost::giveme::hug::five::party2::party::happyjump::woohoo::vhappy::yay:

Kya karte ho nain bhai, bagal vali aunty gate khatkhtane lagi thi ki kya ho ho gya to itna sitiya bja rha raat me, vo to Aapki bhabhi ne andar hi na aane diya unhe, boli subah baat karna...

Aise update 10 bje ke Pahle diya kro na bhau, khul kr haste bhi na banta...

Ye 8 sikariyo ne Nishant or uske guru bhrata ko futball bna kr khela pr usme bhi Nishant ne apne samvado se hame interten kiya Vahi hame arya ke 2 or nye shakti pradarsan dekhne mile, ek to vo Jisme Usne apni avaj ki powerful energy ko convert karke bavandaro se bcha vahi dusra vah Jiska gyan ruhi ki MA ko hua tha, jado ke resho ki madad se arya ne na sirf khud ko bchaya Balki apne pack ki bhi Raksha ki...

Mind blowing jabarjast superb amazing update bhai marvelous bhai
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,679
174
भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


PgsHulS.jpg

आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Nishant lekr aaya arya ke liye anant Kirti pustak, Vaise in 3rd line vale in sikari prahariyo ka raaj Nishant ke guru ji khol hi denge ki vo aise kyo hai or kya hai...

Nitya sayad swami ke liye kaam karti ho ya kah sakte hai bhumi logo ke liye chhod di hai use sath me ye swami to ghat lgaye hi baitha rah gya, na arya mila na anant Kirti book. Arya ko un 2 prahariyo ke dimag me aisa kya mila ki vo unhe ghurne lga tha, kahi use or kya sajish Chal rhi hai yah to pta nhi chal gya...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing mind blowing bhai with awesome writing skills
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
247
900
108
I don't think so....

Anubhav kewal ek story ke ek section ke ek part ki main baat nahi kar raha. Kya wakai aisa hota to mujhe nahi lagta ki mujhe likhne ki bhi jaroorat thi...

Santulan sabse jyada jaroori hai.... How could a writer creat an situation... Jab reader kisi story ke tough situation ko padhta hai... Ho sakta hai kidar jise aap padhte aa rahe, pasand karte aa rahe uske sath kuch bura hota hai ya fir usi ko bura dikha dete hai... Kisi ko bhi apne Priya kirdar se pyar hoga aur uske mann me sawal ke sath sath ye bhi ander se khyal aayega ki yaar mere iss kirdar ko chhod do please.... Lekin aisa hota nahi...

So readers retaliate karte hain... Accepted.. ek part tak retaliate karna jayaj hai... Ya fir poori kahani me jo ghatna update 30 me ghati uske liye continue aap kahani finish hone tak bilkul sabhi kirdaron ko gali de rahe... Apshabd kah rahe... Infect kuch terms ke liye jahan zero tolerance tha... Aap uss guru aur aashram tak ko gali de rahe... Tab ye kaisa tease karna ho gaya.... This is wrong... Aur koi aapka kitna priya kyon na ho... Jahan wo galat hai wo galat hai....

Fir aap uss reader ke mentality ko samajhne ke liye dusre story par kiye gaye comment ko bhi dekhte hain ye samjhne ke liye ki kya wakai ye reader kisi kirdar ke prati itna emotions rakhte hai... Aap jab isse track karte hain tab pata chalta hai ki no.... Aisa nahi tha ki ye reader kewal ek charecter ko pakad kar poori kahani padhti hai... Balki poori kahani ke har charecters ko enjoy karti hai... Fir ek story ke sath aisa bhed bhav kyon... "Bhanvar" was my first story aur Naina ne Sachi ko lekar jo poori story par kiya wah galat tha.... Wo story ke ek section tak karti to chalta... Ye kya poori story ke sabhi charecters ko aap abhadr kahte hi rah gaye.... Fir ruke hi nahi... Ye galat tha...

The same happen with "ishq risk" reload... Kahani ke ek hisse ko lekar aap writer ko kahani hi nahi likhne de rahe the.... Sirf ek kirdar ko center me lakar... Ye galat tha... Aur jo galat hai wo galat hai...

Ek aham baat jo sabse jyada jaroori hai samjhna... Main Naina ya fir 11 ster fan ko kabhi galat nahi kah raha... Na hi as a reader wo galat hain... Bus mera galat kahna uss ek chij ko hai jo wo ek kirdar ko center me rakh kar poore kirdaron ko galat kah dena ... Poori story ka focus bus ek point ko center kar dena.. ye galat hai.... Somehow I miss Naina ji... Kyonki mujhe unse iss baat ka jawab bhi lena tha why... But unfortunately she got banned and not returned with other I'd ... Nahi to ye kahani shuru karne se pahle issi thread par ek lamba sawal jawab chalta... Aur main jawab talab karta...
Aap manoge nhi lekin me jab bhavnr padh raha tha tab aur fir jab reload padh raha tha us time ye jo ek hi character ko lekr bolna to me yahi soch raha tha ki nainu bhaiya kitna calm hai kitna patience hai kitna ache se reply de dete hai fir comment kesa bhi ho koi react nhi kar rahe aur abhi bhi jab fan bhai ke comment dekhe tab bhi dimaag me yahi aya but is baar mene socha tha ki mauka milega to bolunga jarur kyu ki unnessesary me kisi se nhi bolta aur mene us time isiliye nhi bola tha ki meko laga naina ji sayad majak kar rahi ho aur fan bhai saath de rahe hai kyu ki naina ji ki adat thi unko jo character pasand aa jaye fir dekho aur jo character nhi bhaya bus fir .........lekin fir jyada hone laga tha....aur mene akhiri akhiri me wo story padhna chodh di thi to me bol bhi nhi paya ......mere CAT ke exam ke karan aur abhi jab yaha padhna start kara aur fir wohi comment dekhe to fir fan bhai se baat karna ka mauka mila to mene bhi ek koshish jo ki aapne bhi padha hoga mene bhi unhe yahi kaha tha ki aap ek hi ciz ko man me rakh kr aur fir har story ko padhna wohi ciz dimaag me rakh kr acha nhi hai ......

Wese finally kum se kum aap is topic par bole to .... ab sort out ho jayega ..... hope so
 
Last edited:

andyking302

Well-Known Member
6,282
14,583
189
भाग:–56






"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।


रूही… आंहा, कोई हरकत नहीं शिकारी जी। आप के पीछे आपके 9 लोग है। वो क्या है ना हम अपना बदला खुद ले लेंगे।


जबतक वो शिकारी बात कर रहा था। ओजल, इवान और अलबेली ने अपनी दबे पाऊं वाली शिकारी गति दिखाते, उसके 9 लोगो के हाथ पाऊं बांध चुके थे।


शिकारी:- तुम माउंटेन एश की सीमा नहीं पार कर पाओगी।


रूही:- पार करना भी नहीं है। जैसे-जैसे चंद्रमा अपने उफान पर होगा, माउंटेन एश के सीमा में बंधे बेबस वेयरवोल्फ पूर्ण उत्तेजित हो जायेंगे। और ये पूर्णिमा उन्हें इतना आक्रोशित कर देगा कि ये लोग एक दूसरे को ही फाड़ डालेंगे।


शिकारी:- इस लड़की (अलबेली) को उस लड़के (इवान) के साथ क्यों बांध रखी हो?


रूही:- लड़की नही अलबेली। पूर्णिमा की रात से निपटने के लिये उसके पास अभी पूरा कंट्रोल नही है। चिंता मत करो अलबेली को लेथारिया वुलपिना का डोज देंगे, जरा चंदा मामा को अपने पूर्ण सबाब पर तो आने दो।


शिकारी:- तुम लोग कमाल के हो। नेक्स्ट लेवल वेयरवुल्फ..


रूही:- शिकारी जी हम भी आपकी तरह इंसान ही है। बस आप लोग ने ही हमे हमेशा जानवर की तरह ट्रीट किया है। मेरे बॉस आर्यमणि ने हमे सिखाया है कि हम इंसान है, इसलिए क्ला और फेंग से लड़ाई में विश्वास नहीं रखते। बाकी यदि क्ला और फेंग है तो एक्स्ट्रा फीचर है। बुरे वक़्त में इस्तमाल करेंगे।


शिकारी:- मुझे भी पैक ही कर दो, हम ड्रोन कैमरा से तुम्हारा कारनामा देखेंगे।


रूही:- वो भी कर देंगे शिकारी जी। पहले हमारा पेमेंट तो हो जाने दो। तुम्हे खोलकर ही रखा है अपने पेमेंट के लिये।


शिकारी:- कैसा पेमेंट?


रूही:- ओय 12 लैपी, ये 1000 ड्रोन, ऊपर से माउंटेन एश कितना कीमती मिला है। फिर ये हथियार जो हमारे पास है, उसे हम एक बार ही इस्तमाल करेंगे, उसके बाद तो जायेगा तुम्हारे हेडक्वार्टर ही। वैसे भी जनता के दान में दिये पैसे से तुम्हारा प्रहरी समुदाय अरबपति हैं। तुम्हारा काम मै कर रही हूं सो हमारा मेहनताना और इनकी कीमत, नाजायज मांग तो नहीं है।


शिकारी:- मेरा नाम बद्री मुले है। तुमसे अच्छा लगा मिलकर। बिल दो और पैसे लो।


रूही:- और माउंटेन एश के पैसे।


बद्री:- कितना किलो मंगवाई थी।


रूही:- 2 क्विंटल।


बद्री:- हम्मम ठीक है। पर यहां तो नेटवर्क नहीं, होता तो अभी ट्रांसफर कर देता पैसे।


रूही:- यहां जैमर का रेंज नहीं है। ये देख लो बिल्स। और रीमबर्स कर दो सर जी।


बद्री अपना अकाउंट खोलकर… "अकाउंट नंबर और डिटेल डालो अपना।"..


रूही ने उसमे अपना अकाउंट नंबर और डिटेल डाल दिया।… "आधा घंटा लगेगा, बेनिफिशरी एड होने दो।"


रूही:- कोई नहीं हमारे पास पुरा वक़्त है। बॉस अभी तो निकले भी नहीं है। रात के 11-12 से पहले तो वैसे भी काम खत्म नहीं होना है।


तभी कुछ देर बाद सरदार के इलाके से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गये। यहां से अलबेली भी वुल्फ साउंड देती पागलों कि तरह करने लगी। वो अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी और चूंकि वो एक अल्फा थी, इसलिए धैर पटक, धोबी पछाड़ से भी ज्यादा खतरनाक अलबेली ने इवान को पटक दिया। दर्द से कर्रहाने की आवाज आने लगी। अलबेली अपने पंजे और दातों से इवान को फाड़ने के लिए आतुर थी। ओजल और इवान मिलकर किसी तरह उसे रोकने की कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन वो उन जैसे 10 पर अकेली भारी थी। रूही ने डोज काउंट किया और हवा के रफ्तार से गयि, अलबेली के गर्दन में लेथारिया वुलपिना के 20ml के 2 इंजेक्शन लगाकर वापस बद्री के पास पहुंच गयि।


अगले 2 मिनट में अलबेली पूरी तरह शांत थी। वो अपना शेप शिफ्ट करती… "अरे ये क्या हो गया। रूही, क्यों इन्हे रोकने कही।"..


रूही, बद्रिं के भी हाथ पाऊं बांधते…. "अरे यहां हमारे प्रहरी भईया खड़े थे ना, बहुत शातिर होते है। अब रोना बंद करो और उनके दर्द को ठीक करो।"..


अलबेली पहले ओजल के पास पहुंची। उसके सारे दर्द को खींचकर पुरा हील की और बाद में इवान को।…. "अलबेली, कंट्रोल सीख ना रे बाबा, अकेले में हमे तो तू नरक लोक पहुंचा देगी।"..


इसी बीच बद्री मुंह पर बांधी पट्टी से... "उम्म उम्म" करने लगा।… रूही अलबेली को देखती... "बद्री जी के पट्टी खोल अलबेली, जारा बोलने दे इन्हे भी"… अलबेली उसका पट्टी खोलती… "तुम इतनी छोटी उम्र में अल्फा कैसे हो गयि।"


अलबेली:- बॉस जरा शादी में बिज़ी थे वरना ये दोनो भी अल्फा होते घोंचू।… (अलबेली अपने कमर के ऊपर का कपड़ा हटाती)… ये देख टैटू.. द अल्फा पैक।


बद्री:- हम्मम ! लेकिन तुम लोग ज्यादा देर तक यहां रहे तो वहां सरदार खान के किले में पुलिस पहुंच जायेगी।


रूही.… "अभी जादू देख… 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1, 0"… और चारो ओर आवाज़ गूंजने लगी… "मोरया रे बप्पा मोरया रे"….. "विनायक आला रे बद्री। आता कोण आम्हाला रोखेल। (अब कौन रोकेगा हमे)


रात 9 जैसे ही बजे… "चलो तैयार हो जाओ, एक्शन टाइम आला रे।"


खटाक, फटाक, सटाक.. मात्र 2 मिनट में ही चारो अपने बदन पर जगह-जगह भारी हथियार खोस चुके थे। हर किसी के पीठ पर एक बैग टंगा हुआ था।… "क्या हुआ तुम्हारा बॉस आने वाला है क्या।?..


रूही:- ध्यान से सुनो ये आहट.. आने वाला नहीं बल्कि आ चुका है।


रूही की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि उससे पहले ही आर्यमणि पहुंच चुका था।… "ओह दोस्ती बढायि जा रही है?"..


रूही:- सूट उप हो जाओ बॉस। वैसे पलक की दी हुई सूट मे भी कमाल लग रहे हो। ऐसे जाओगे तो हॉलीवुड का एक्शन होगा...


अपने पैक के साथ आर्यमणि तैयार हो चुका था। काफी तेजी के साथ सभी किले ओर बढ़े। किले के मुख्य मार्ग पर बिखरे माउंटेन ऐश को आर्यमणि बीच से साफ करते हुये बढ़ रहा था और बाकी सभी कतार बनाकर उसके पीछे चल रहे थे। किले में पहुंचते ही आर्यमणि तेजी के साथ वहां के हर घर में घुसा। वहां बंद हर वेयरवुल्फ को देखा। पूर्णिमा की रात अक्सर यह होता है। कई वुल्फ अपनी अक्रमाता बर्दास्त नहीं कर पाते इसलिए इनकी और वुल्फ खुद की सुरक्षा के लिये, उनका मुंह बांधकर जंजीरों में जकड़ देते हैं।


उस बस्ती के घरों में 40 बंधे वुल्फ और उसके साथ उसकी मां या पैक से कोई दिख गया। आर्यमणि के ठीक पीछे लाइन बनाये उसकी पूरी टीम। अलबेली और रूही हर किसी के गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर उसकी यादे लेती और जो भटका हुए लगते उन्हें मौत का तोहफा देकर आगे बढ़ जाते। हालांकि घर में बंधे वुल्फ और उनके साथ वाले लगभग 15 क्लीन थे। बाकी सभी वुल्फ अत्यंत ही निर्दयि और विकृत मानसिकता के थे। बढ़ते हुये सभी चौपाल पर पहुंचे। चौपाल के अंदर पागल बनाने वाला खतरनाक आवाजें आ रही थी। बीस्ट वुल्फ की शांत करने की दहाड़ पर सभी वुल्फ सहम से जाते लेकिन अगले ही पल फिर से वो सब आक्रोशित हो उठते। बीस्ट वुल्फ पर लगातार हमले हो रहे थे। इकलौता वहीं था जो शेप शिफ्ट नहीं कर पाया था और सभी वुल्फ के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।


आर्यमणि, चौपाल का दरवाजा खोलते… "रूही चौपाल पर ये लोग झुंड बनाकर किसे नोच रहे। झुंड को हल्का करो और बीच से जगह बनाओ। जारा सरदार खान से एक मुलाकात कर लिया जाय। लगता है बहुत दर्द में है।"..


सरदार खान का बेटा फने खान, अपने पिता की ताकत पाने के इरादे से तय वक्त से पहले ही उसे मॉडिफाइड कैनीन डिस्टेंपर वायरस खिला चुका था। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसके नाक और मुंह से लगातार ब्लैक ब्लड बह रहा था और वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पा रहा था।


"एक्शन टाइम बच्चो।"… चारो एक लाइन से खड़े हो गये और वोल्फवेन बुलेट फायर करने लगे। देखते ही देखते बीच से लाशें गिरना शुरू हो चुकी थी। वुल्फ के बीच भगदड़ मच गया। इसी बीच आर्यमणि अपने हाथ में वो एक फिट की सई वैपन लिये बीच से चलते हुये आगे बढ़ रहा था। आर्यमणि के पीछे वो चारो नहीं जा सकते थे क्योंकि उसने चौपाल के दरवाजे पर बिखरा माउंटेन ऐश साफ नहीं किया था। देखते ही देखते वुल्फ की भीड़ के बीच आर्यमणि कहीं गायब सा हो गया। इधर ये चारो गोली चला-चला कर आर्यमणि के ऊपर भिड़ का बोझ और लादे जा रहे थे।


तभी जैसे वहां विस्फोट हुआ हो और सभी वुल्फ तीतर बितर हो गये।… रूही सिटी बजाती हुई… "बॉस छा गये। अब क्या यहां स्लो मोशन पिक्चर बनाओगे, काम खत्म करो यार जल्दी।"


आर्यमणि:- हां सही सुझाव है।


आर्यमणि ने अपना शेप शिफ्ट किया, और सरदार खान की आखें फटी की फटी रह गई। आर्यमणि ने अपनी तेज दहाड़ लगायि और वहां मौजूद सभी जंगली कुत्ते के साथ-साथ सभी वुल्फ बिल्कुल शांत अपनी जगह पर बैठ गये। आर्यमणि तेजी से सबके पास से गुजरते हुये सबकी यादों में झांकता, वहां मौजूद हर किसी की याद में किसी न किसी को नोचते हुये ही उसने पाया। हर दोषी का सर वो धर से नीचे उतरता चला गया। तभी आर्यमणि के हाथ एक दोषी अल्फा लगा। उसे बालों से खींचकर आर्यमणि चौपाल के दरवाजे तक लाया और उसके दोनो हाथ और दोनो पाऊं तोड़ कर बिठा दिया।


वहां मौजूद 5 अल्फा में से 2 अल्फा अच्छे थे। आर्यमणि उन्हें जगाते… "जल्दी से अपने पैक और इनोसेंट वुल्फ को अलग करो। इतने में आर्यमणि की दहाड़ से शांत वुल्फ एक बार फिर तब आक्रामक हो गये जब सरदार खान ने वापस हमला की दहाड़ लगा दी। इसके प्रतिउत्तर में आर्यमणि ने फिर एक बार दहाड़ा और आकर सरदार खान के मुंह को बंद कर दिया। उन दो अल्फा ने अपना पूरा पैक अलग कर लिया और साथ में उन लोगो को भी, जो केवल पैक के वजह से सरदार खान के साथ थे। लगभग 30 वुल्फ को उसने अलग कर लिया जिसमें से 3 मरने के कगार पर थे और 12 अगले 5 मिनट में मरने वाले थे। आर्यमणि अपने तेज हाथो से उन 3 के अंदर की वोल्फबेन बुलेट निकाला और उनके दर्द को अपने अंदर खींचकर हील करने लगा। आर्यमणि ने माउंटेन एश की दीवार हटायि। वो चारो भी अंदर घुसे फिर शुरू हुआ मौत का तांडव। पहले तो 3 अल्फा में से 2 अल्फा ट्विंस के लिये छोड़ा गया और बचे 1 अल्फा की शक्तियों बांट दिया गया चारो में। 30 बीटा वूल्फ 2 अल्फा के साथ चुपचाप जाकर किनारे खड़े हो गये, जहां जंगली कुत्ते एक ओर से बैठे हुये थे। बाकी के वुल्फ को विल्फबेन बुलेट लगती जा रही थी। आर्यमणि आराम से आकर सरदार खान के पास बैठ गया…. "हम्मम ! तुम्हे पहले पहचान जाता तो ये गलती ना होती।"..


आर्यमणि:- सरदार तुम भुल रहे हो जबतक मैं अपनी पहचान जाहिर ना करूं, किसी के दिमाग में ये ख्याल भी नहीं आ सकता।


सरदार:- तो शक्ति कि भूख तुम्हे भी यहां खींच लाई।


आर्यमणि, उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसके दर्द को थोड़ा खींचने लगा। सरदार को काफी राहत महसूस होने लगी। ऐसा सुकून जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जिस वायरस के दर्द का शिकार सरदार था, उस दर्द को आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। आर्यमणि ने सरदार का हाथ छोड़ दिया और सरदार दोबारा दर्द से कर्राह गया।


आर्यमणि:– तुम्हारा बेटा फने नही दिख रहा...


सरदार:– ओह तो उस चूतिये को तूने सह दिया था। क्या किया उसने मेरे साथ?


आर्यमणि:– तुझे कुत्तों के अंदर पाया जाने वाला एक खतरनाक वायरस खिला दिया। जिसका नतीजा सामने है। वैसे तुझे मारने का फरमान तेरे आकाओं ने उसे दिया था। भारद्वाज एंड कंपनी... जानता तो होगा ही।


सरदार:– तू कुछ भी कहे और मैं मान लूं। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है। समस्त प्राणियों में बिशेस और ताकतवर। उन्हे मुझे मारने के लिये इतने एक्सपेरिमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। हां, लेकिन तू नौसिखिए, फने को इतना नही बताया की मेरे किसी इंसानी चमड़ी को भी भेदा नही जा सकता। मुझे मारने आया था उल्टा उसे और उसके साथियों को ही मौत की नींद सुला दिया।


आर्यमणि:- तू भ्रम में ही मरेगा सरदार। वैसे जानकर हैरानी हुई की तेरा ये आगे से 5 फिट निकले तोंद वाले भद्दा इंसानी शरीर को भी नही भेदा जा सकता। तुम्हारी जिंदगी तो नासूर हो गयि सरदार। मैंने तुम्हे छोड़ भी दिया तो ना तो तुम ढंग से जी सकते हो, ना मर सकते हो।


सरदार:- तो रुके क्यों हो, दे दो मौत मुझे और ले लो मेरी शक्तियां।


आर्यमणि:- इसी ताकत ने तेरा क्या हाल किया है? मुझे ताकत में कोई इंट्रेस्ट नहीं। पूछता हूं अपने पैक से, उन्हें ताकत की जरूरत है क्या? अरे चारो कितने स्लो हो, गोली मारने में कोई इतना वक़्त लगता है क्या?


चारो ने लगभग एक ही बात कही…. "हो गया बॉस"


आर्यमणि:- हमारे पैक के ट्विंस, अल्फा बने की नहीं। क्यों ओजल और इवान..


ट्विंस साथ में:- हां बन गये है लेकिन वो भी आपकी इक्छा थी सिर्फ इसीलिए...


आर्यमणि:- अच्छा सुनो सरदार खान की शक्ति तुम में से किसे चाहिए?


रूही:- हम तो टूर पर जा रहे, उसके पास बहुत पैसे और गोल्ड होंगे, वो ले लो।


अलबेली:- इसकी शक्ति मैंने ले ली तो मै भी इसकी तरह घिनौनी दिखने लगुंगी। मुझे नहीं चाहिए।


ओजल:- यहां से निकले क्या? इस गंदे माहौल को ही फील करना अजीब लग रहा है। ऐसा लग रहा है काले साये ने इस जगह को सदियों से घेर रखा है। खुशी ने यहां अपना मुंह मोड़ लिया है।


इवान:- हां ओजल सही कह रही है।


आर्यमणि:- तेरी शक्तियों में किसी को इंट्रेस्ट नहीं। खैर मै जारा उन सब की याद मिटा दू, जिन्हे मार नही सकता और मुझे प्योर अल्फा के रूप में देख चुके। रूही तुम सरदार के घर जाकर वो क्या पैसे और गोल्ड की बात कर रही थी, उसे ले आओ।


आर्यमणि जबतक उन 2 अल्फा और उसके साथ 30 वुल्फ के पास पहुंचा।… "तुम सब को 1 घंटे के लिए बेहोश करूंगा, मै नहीं चाहता कि कोई प्योर अल्फा का जिक्र भी करे। आज से तुम सब अपने पैक के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हो।"


एक अल्फा नावेद…. "यहां रहे तो हमे भी सरदार की तरह बनने के लिए फोर्स किया जायेगा। कहीं भी अपने पैक के साथ रह लेंगे, लेकिन इस जगह पर नहीं।"


आर्यमणि:- तुम्हारी याद में तो ऐसी कोई जानकारी मुझे तब नहीं दिखी थी नावेद, कहना क्या चाहते हो?


नावेद:- एक वुल्फ के लिये उसका पैक ही उसका परिवार होता है। एक बीटा अपने अल्फा पर हमला तो कर सकता है, लेकिन एक अल्फा हमेशा अपने पैक के बीटा को संरक्षण देता है। यहां तो मैंने सरदार को अपने ही कोर पैक को खाते देखा है। ये बीस्ट अल्फा होने के साथ साथ बहुत ही घिनौना भी था। और शायद इसे ऐसा ही बनाया गया था। ऐसा मेरि समीक्षा कहती है।


दूसरा अल्फा असद… "नावेद ने सही कहा है। ये बात हम सबने मेहसूस की है। यहां लाकर हमारी आत्मा को तोड़ा जाता है। इंसानी रूप में रहते है लेकिन इंसानी पक्ष को मारने में कोई कसर नहीं छोड़ा इसने।"


आर्यमणि:- पहले एक छोटी सी बात बता दूं। आज के बाद नागपुर प्रहरी क्षेत्र में बहुत से बदलाव होगा। भूमि दीदी पूरी कमान अपने हाथ में लेने वाली है। यहां अब तुम दोनो ही हो। मै यह तो नहीं कहूंगा की तुम दोनो यहां बंध कर रहो, लेकिन तुम यहां नहीं होगे तो कोई ना कोई होगा। और वो जो कोई भी होगा उसे अब सरदार जैसा नहीं बनाया जायेगा। तुम अपने पैक के साथ यहां रहो। अगर हालात नहीं बदले तो यह जगह छोड़ देना। लेकिन मुझे नही लगता कि यहां से सरदार को गायब कर देने से सरदार को बनाने वाले लोग यहां फिर हिम्मत करेंगे सरदार जैसे किसी को वापस लाने की। और एक बात, तुम सब शापित नहीं हो, तुम्हारे रूप में ऊपरवाले ने कुछ अच्छा डाला है। खुद को जानवर प्रोजेक्ट करने से अच्छा है, खुद में विशेष होने जैसा मेहसूस करो।


"कुबेर का खजाना हाथ लग गया यहां तो बहुत सारे पैसे और प्रॉपर्टी के पेपर है। गोल्ड नहीं मिला लेकिन।".. रूही तीनों के साथ आते ही कहने लगी।


आर्यमणि ने पहले अपना काम खत्म किया। वहां सबको बेहोश करके, उसके गर्दन के पीछे अपना क्ला डालकर उनकी याद से केवल प्योर अल्फा, और ट्विन की याद मिटाने के बाद, आर्यमणि एक छोटा सा नोट छोड़ दिया….


"ये जगह और यहां के सारे लोग अब तुम दोनो के है। तुम दोनो अल्फा होने का फर्ज निभाओ। इन सब को कैसे अच्छी जिंदगी दे सकते हो उसके बारे में सोचना। तुम सब की हर समस्या भूमि दीदी और मेरी मां जया कुलकर्णी सुनेगी और हर संभव मदद करेगी। अब चलता हुं। ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे। अलविदा नावेद, अलविदा असद। और हां, रात के 2 बजे तक बहुत से मेहमान पहुंच जाएंगे, ये जगह साफ कर देना और उनसे बताना, हम यहां कैसे लड़े और सरदार खान को लेकर गये।"
Kya rapchik update diyela hey bhidu maja aagyela hey bole to ekdam zakkas fight kri hey re tere ye chote pack valo ne
Ekdam जबरदस्त
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
247
900
108
भाग:–54





दोपहर के 3 बजते-बजते सभी थक गये थे। शादी की रस्में भी 5 बजे से शुरू होती इसलिए ये तीनों भी सभा भंग करके निकल गये। तीनों सवा 5 बजे तक तैयार होकर आये। चित्रा और आर्यमणि लगभग एक ही वक़्त पर कमरे से निकले। चित्रा, आर्यमणि को देखकर पूछने लगी, "कैसी लग रही हूं".. आर्यमणि अपनी बाहें फैला कर उसे गले से लगाते, "सेक्सी लग रही है। लगता है पहली बार तुझे देखकर नीयत फिसल जायेगी।"


चित्रा उसके सर पर एक हाथ मारती, हंसती हुई कहने लगी… "पागल कहीं का। ये निशांत कहां रह गया।"..


इतने में निशांत भी बाहर आ गया.. चित्रा और आर्यमणि दोनो ने अपनी बाहें खोल ली, निशांत बीच में घुसकर दोनो के गले लगते… "साला शादी आज किसी की भी हो, ये पुरा फंक्शन तो हम तीनो के ही नाम होगा।"..


"तुम दोस्तो के बीच में हमे भी जगह मिलेगी क्या"… भूमि और जया साथ आती, भूमि ने पूछ लिया। चित्रा और निशांत ने आर्यमणि को छोड़ा। भूमि, आर्यमणि को गौर से देखने लगी। उसकि आंख डबडबा गयी। वो आर्यमणि को कसकर अपने गले लगाती, उसके गर्दन और चेहरे को चूमती हुई अलग हुयि।


जया जब अपने बच्चे के गले लगी, तब आर्यमणि को उससे अलग होने का दिल ही नहीं किया। कुछ देर तक गले लगे रहे फिर अलग होते.… "मै और मेरी बेटी अपने हिसाब से एन्जॉय कर लेंगे, ये वक़्त तुम तीनो का है। कोई कमी ना रहे।"..


तीनों हॉल में जाने से पहले फिर से 2 बियर चढ़ाए और इस बार कॉकटेल का मज़ा लेते, 1 पेग स्कॉच का भी लगा लिया। तीनों हल्का-हल्का झूम रहे थे। जैसे ही हॉल में पहुंचे स्टेज पर माला पहने कपल पुतले की तरह बैठे हुये थे। लोग आ रहे थे हाथ मिलाकर बधाई दे रहे थे। फोटो खींचाते और चले जाते।


जैसे ही तीनों अंदर आये... "लगता है ये सेल्फी आज कल लोग प्रूफ के लिये लेते है। हां भाई मै भी शादी में पहुंचा था। तुम भी मेरे घर के कार्यक्रम में आ जाना।".. आर्यमणि ने कहा..


चित्रा:- हां वही तो…. अरे दूल्हा-दुल्हन के दोस्त हो। थोड़े 2-4 पोल खोल दो, तो हमे भी पता चले कितनी मेहनत से दोनो घोड़ी चढ़े है।


निशांत:- या इन सब की ऐसी जवानी रही है, जिस जवानी में कोई कहानी ना है।


आर्यमणि:- अपने बच्चो को केवल क्या अपने शादी की वीडियो दिखाएंगे.. देख बेटा एक इकलौता कारनामे जो हमने तुम्हरे बगैर किया था।


चुपचाप गुमसुम से लोग जैसे हसने लगे हो। तभी स्टेज से पलक की आवाज आयी… "दूसरो के साथ तो बहुत नाचे। दूसरो की खूब तारीफ भी किये.. जारा एक नजर देख भी लेते मुझे, और यहां अपनी कोई कहानी बाना लेते, तो समझती। वरना हमारा भविष्य भी लगभग इनके जैसा ही समझो।"..


स्टेज पर माईक पहुंच चुका था। नये होने वाले जमाई, माणिक बोलने लगा… "आर्य, हम दोनों ही जमाई है। दोस्त ये तो इज्जत पर बात बन आयी।"..


चित्रा:- ऐसी बात है क्या.. कोई नहीं आज तो यहां फिर कहानी बनकर ही जायेगी, जो पलक और आर्य अपने बच्चो को नहीं सुनायेंगे। बल्कि यहां मौजूद हर कोई उनके बच्चे से कहेगा, फलाने की शादी में तुम्हारे मम्मी-पापा ने ऐसा हंगामा किया। पलक जी नीचे तो उतर आओ स्टेज से।


पलक जैसे ही नीचे उतरी निशांत ने सालसा बजवा दिया। इधर आर्यमणि सजावट के फूल से गुलाब को तोड़कर अपने दांत में फसाया और घुटने पर 20 फिट फिसलते हुए उसके पास पहुंचा। पलक के हाथो को थामकर वो खड़ा हुआ और उसकी आखों में देखकर इतना ही कहा…


"आज तो मार ही डालोगी।".. पलक हसी, आर्यमणि कमर पर बांधे लंहगे के ऊपर हाथ रखकर उसके कमर को जकड़ लिया और सालसा के इतने तेज मूव्स को करवाता गया कि पलक को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो ऐसे भी डांस कर सकती है।


वो केवल अपने बदन को पूरा ढीला छोड़ चुकी थी। जैसे-जैसे आर्यमणि नचा रहा था, पलक ठीक वैसे-वैसे करती जा रही थी। लोग दोनो को देखकर अपने अंदर रोमांस फील कर रहे थे। तभी नाचते हुए आर्यमणि ने पलक को गोल घूमाकर अपने बाहों में लिया और अपने होंठ से गुलाब निकालकर उसके होंठ को छूते हुए खड़ा कर दिया। आर्यमणि अपने घुटने पर बैठकर, गुलाब बढ़ाते हुए.... "आई लव यू"..


इतनी भारी भीर के बीच पलक के होंठ जब आर्यमणि ने छुये, वो तो बुत्त बन गयि। उसकी नजरें चारो ओर घूम रही थी, और सभी लोग दोनो को देखकर मुस्कुरा रहे थे। पलक हिम्मत करती गुलाब आर्यमणि के हाथ से ली और "लव यू टू" कहकर वहां से भागी।


इसी बीच जया पहुंच गयि, आर्यमणि का कान पकड़कर… "इतनी बेशर्मी, ये अमेरिका नहीं इंडिया है।"..


भूमि:- मासी इंडिया के किसी कोन में इतना प्यार से प्यार का इजहार करने वाला मिलेगा क्या? मानती हूं भावनाओ में खो गया, लेकिन बेशर्म नहीं है।


लोग खड़े हो गये और तालियां बजाने लगे। तालियां बजाते हुए "वंस मोर, वोंस मोर" चिल्लाने लगे। तभी आर्यमणि अपनी मां के गले लगकर रोते हुए .. "सॉरी मां" कहा और माईक को निकालकर फेंक दिया।


जया अपने बच्चे के गाल को चूमती, धीमे से उसे अपना ख्याल रखने के लिए कहने लगी। पीछे से भूमि भी वहां पहुंची और आखें दिखाती… "ऐसे लिखेगा कहानी"… वो भूमि के भी गले लग गया। भूमि भी उसे कान में धीमे से ख्याल रखने का बोलकर उसके चहेरे को थाम ली और मुसकुराते हुए उसके माथे को चूम ली।


पीछे से चित्रा और निशांत भी पहुंच गए। दोनो भाई बहन ने अपने एक-एक बांह खोलकर… "आ जा तुम हमारे गले लग। सबको कोई बुराई नहीं भी दिख रही होगी तो भी तुझे रुला दिया।"..


आर्यमणि अपने नजरे चुराए दोनो के गले लग गया। दोनो उसे कुछ देर तक भींचे रहे फिर उसे छोड़ दिया। इतने में ही वो फॉर्मेलिटी के लिये अपनी मासी के पास पहुंचा और उसके गोद में अपना सर रखकर.. "सॉरी मासी" कहने लगा। मीनाक्षी उसके गाल पर धीमे से मारती… "ऐसे सबके सामने कोई करता है क्या?"..


आर्यमणि:- मै तो अकेले में भी नहीं करता लेकिन पता नहीं क्यों वो गलती से हो गया।


उसे सुनकर वहां बैठी सारी औरतें हसने लगी। सभी बस एक ही बात कहने लगी… "जारा भी छल नहीं है इसमें तो।"..


शाम के 6 बज चुके थे लड़के को लड़के के कमरे में और लड़की को लड़की के कमरे में भेज दिया गया था। आगे की विधि के लिए मंडप सज रहा था। लोग कुछ जा रहे थे, कुछ आ रहे थे। आर्यमणि भी नागपुर निकलने के लिए तैयार था। तभी जब वो दरवाजे पर अकेला हुआ, पलक उसका हाथ खींचकर अंधेरे में ले गयि और उसके होंठ को चूमती… "मुझे ना आज कुछ-कुछ हो रहा है और तुम भी हाथ नहीं लग रहे, सोच रही हूं, श्रवण को मौका दे दूं।"..


आर्यमणि:- ना ना.. ये गलत है। पहले मुझसे कह दो मेरे मुंह पर… तुमसे ऊब गई हूं, ब्रेकअप। फिर जिसके पास कहोगी मै खुद लेकर चला जाऊंगा।


पलक उसके सीने पर हाथ चलाती…. "बहुत गंदी बात थी ये।"


आर्यमणि:- मै जा रहा हूं तुम्हारे ड्रीम को पूरा करने, यहां सबको संभाल लेना। पहुंचकर कॉल करूंगा।


पलक, फिर से होंठ चूमती… "प्लीज़ अभी मत जाओ।"..


आर्यमणि:- मेरे साथ आओ..


पलक:- पागल हो क्या, मै शादी छोड़कर नागपुर नहीं जा सकती।


आर्यमणि:- भरोसा रखो.. और चलो।


पलक भी कार में बैठ गई और दोनो रिजॉर्ट के बाहर थे। आर्यमणि ने कार को घूमकर रिजॉर्ट के पीछे के ओर लिया और जंगल के हिस्से से कूदकर रिजॉर्ट में दाखिल हो गया। पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी वो पीछे-पीछे चली जा रही थी। दोनो एक डिलक्स स्वीट के पीछे खड़े थे। आर्यमणि पीछे का दरवाजा खोलकर पलक को अंदर आने कहा, और जैसे ही उस कमरे की बत्ती जली.. पलक अपने मुंह पर हाथ रखती… "आर्य ये क्या है।"..


आर्यमणि, आंख मारते… "2 लोगो के सुहागरात के लिये सेज सज रही थी, मैंने हमारे लिए भी सजवा लिया"


सुनते ही पलक अपनी एरिया ऊंची करती आर्य के होंठ को चूमने लगी। आर्य उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया। ये फूलों की महल और मखमली बिस्तर। आर्य अपने हाथ से पलक के चुन्नी को उसके सीने से हटाकर उसके पेट पर होंठ लगाकर चूमने लगा।


सजी हुई सेज और फूलों कि खुशबू दोनो में गुदगुदा कसिस पैदा कर रही थी। पलक का मदमस्त बदन और लहंगा चुन्नी में पूरी तरह सजी हुई पलक कमाल की अप्सरा लग रही थी। धीमे से डोर को खिंचते हुये आर्यमणि ने लहंगे को खोल दिया। फिर पतली कमर से धीरे-धीरे सरकते हुए लहंगे को पैंटी समेत खींचकर निकाला और आराम से टांग कर रख दिया।


इधर पलक उठकर बैठ चुकी थी और आर्य अपने होंठ से उसके चोली के एक एक धागे के को खोलते उसके पीठ को चूमते नीचे के धागों को खोलने लगा। .. चारो ओर का ये माहौल उनके मिलन में चार चांद लगा रहे थे। अंदर बहुत धीमा सा नशा चढ़ रहा था जो बदन के अंदर मीठा–मीठा एहसास पैदा कर रहा था।


चोली के बदन से अलग होते ही पलक पूरी नंगी हो चुकी थी। उसका पूरा बदन चमक रहा था। छरहरे बदन पर उसके मस्त सुडोल स्तन अलग की आग लगा रहे थे। ऊपर से बदन को आज ऐसे चिकना करवाकर आयी थी कि हाथ फिसल रहे थे। आर्यमणि उसके पूरे बदन पर हाथ फेरते स्तन को अपने हाथों के गिरफ्त में लिया और उसके होंठ चूमने लगे। पलक झपट कर उसे बिस्तर पर उल्टा लिटाकर उसके ऊपर आ गई। अपनी होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगी। दोनो इस कदर एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे कि पूरे होंठ से लेकर थुद्दी तक गीला हो चुका था। पलक थोड़ी ऊपर होकर अपने स्तन उसके मुंह के पास रख दी और बिस्तर का किनारा पकड़ कर मदहोशी में खोने को बेकरार होने लगी।


आर्य भी बिना देर किए उसके स्तन पर बारी-बारी से जीभ फिराते, उसके निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा। स्तन को अपने दांतों तले दबाकर हल्का-हल्का काट रहा था। पलक के बदन में बिजली जैसी करंट दौड़ रही हो जैसे। वो अपने इस रोमांच को और आगे बढाते हुये, अपने पाऊं उसके चेहरे के दोनो ओर करती, अपनी योनि को उसके मुंह के ऊपर ले गयि। पीछे से उसका पतला शरीर और नीचे की मदमस्त कमर। योनि पर आर्य के होंठ लगते ही पूरा बदन ऐसे फाड़फड़या जैसे वो तड़प रही हो।


आर्य भी मस्ती में चूर अपने दोनो पंजे से उसके नितम्ब को इतनी मजबूती से पकड़े था, पंजों के लाल निशान पड़ गये थे। आर्यमणि अपने पुरा मुंह खोलकर योनि को मुंह में कैद कर लिया। कभी जीभ को अंदर घुसाकर तेजी में ऊपर नीचे कर रहा था। तो कभी पलक की जान निकालते क्लिट को दांतों तले दबाकर हल्का काटते हुये, चूसकर ऊपर खींच रहा था। पलक बिल्कुल पागल होकर उसके ऊपर से हटी। उसका पूरा बदन अकड़ गया और बिस्तर को ऐसे अपने मुट्ठी में भींचकर अकड़ी की हाथ में आए फूल मसल कर रह गये और बिस्तर पर सिलवटें पड़ गयि।


पलक की उत्तेजना जैसे ही कम हुई वो आर्यमणि के पैंट को खोलकर नीचे जाने दी। उसके लिंग को बाहर निकालकर मुठीयाने लगी। लिंग छूने में इतना गुदगुदा और मजेदार लग रहा था कि आज उसने भी पहली बार ओरल ट्राई कर लिया। जैसे ही उसने अपने जीभ से लिंग को ऊपर से लेकर नीचे तक चाटी, आर्यमणि ऐसा मचला, ऐसा तड़पा की उसकी तड़प देखकर पलक हसने लगी।


इधर पलक ने उसका लिंग चाटते हुए जैसे ही अपने मुंह में लिंग को ली। आर्य ने उसके बाल को मुट्ठी में भींचकर, सर पर दवाब डालकर मुंह को लिंग के जड़ तक जाने दिया। पलक का श्वांस लेना भी दूभर हो गया और वो छटपटाकर अपना सिर ऊपर ली। उसकी पूरी छाती अपनी ही थूक से गीली हो चुकी थी। एक बार फिर वो उसके ऊपर आकर आर्य के होंठ को चूमती अपने होंठ और जीभ फिरते नीचे आयी। उसके सीने पर अपनी जीभ चलती उसके निप्पल में दांत गड़ाकर चूसती हुई नीचे लिंग को मुठियाने लगी।


आर्य तेज-तेज श्वांस लेता इस अद्भुत क्षण का मज़ा ले रहा था। पलक फिर से उसके कमर तक आती उसके लिंग को दोबारा चूसने लगी और आर्य अपने हाथ उसके दरारों में घुसकर गुदा मार्ग के चारो ओर उंगली फिराने लगा। हाथ नीचे ले जाकर योनि को रगड़ने लगा। पलक पागल हो उठी। लिंग से अपना सर हटाकर अपने पाऊं आर्य के कमर के दोनों ओर करके, लिंग को अपने योनि से टीकई और पुरा लिंग एक बार में योनि के अंदर लेती, गप से बैठ गयि।


सजी हुई सेज। बिल्कुल नरम गद्दे और फूलों की आती भिनी-भीनी खुशबू, आज आग को और भी ज्यादा भड़का रही थी। ऊपर से पलक का चमकता बदन। पलक अपना सर झटकती, आर्यमणि के सीने पर अपने दोनो हाथ टिकाकर उछल रही थी। हर धक्के के साथ गद्दा 6 इंच तक नीचे घुस जाता। दोनो मस्ती की पूरी सिसकारी लेते, लिंग और योनि के अप्रतिम खेल को पूरे मस्ती और जोश के साथ खेल रहे थे। आर्यमणि नीचे से अपने कमर झटक रहा था और पलक ऊपर बैठकर अपनी कमर हिलाकर पूरे लिंग को जर तक ठोकर मरवा रही थी।


झटके मारते हुए आर्यमणि उठकर बैठ गया। पलक के स्तन आर्य के सीने में समा चुके थे और वो बिस्तर पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, ऊपर कमर का ऐसा जोरदार झटके मार रहा था कि पलक का बदन 2 फिट तक हवा में उछलता। उसके स्तन आर्यमणि के सीने से चिपककर, घिसते हुये ऊपर–नीचे हो रहे थे। बाल बिखर कर पूरा फैले चुका था। और हर धक्के के साथ एक ऊंची लंबी "आह्हहहहहहहहह" की सिसकारी निकलती.. कामुकता पूरे माहौल में बिखर रही थी।


दोनो पूर्ण नंगे होकर पूरे बिस्तर पर ऐसे काम लीला में मस्त थे जिसकी गवाही बिस्तर के मसले हुए फूल दे रहे थे। योनि के अंदर, पर रहे हर धक्के पर दोनो का बदन थिरक रहा था। और फिर अंत में पलक का बदन पहले अकड़ गया और वो निढल पर गयि। आर्यमणि का लिंग जैसे ही योनि के बाहर निकला पलक उसे हाथ में लेकर तेजी से आगे पीछे करने लगी और कुछ देर बाद आर्य अपना पूरा वीर्य विस्तार पर गिराकर वहीं निढल सो गया।



पलक खुद उठी और आर्यमणि को भी उठाई। पलक अपना पूरा हुलिया बिल्कुल पहले जैसा की, और फटाफट कपड़े पहन कर तैयार भी हो चुकी थी। आर्यमणि भी मुंह पर पानी मारकर फ्रेश हुआ और खुद को ठीक करके दोनो जैसे आये थे वैसे ही बाहर निकल गये। रात के 8 बजे के करीब आर्यमणि को एयरपोर्ट पर ड्रॉप करके सवा 8 (8.15pm) बजे तक पलक वापस शादी में पहुंच चुकी थी। पलक आते ही सबसे पहले नहाने चली गई और उसके बाद वापस ब्यूटीशियन के पास आकर हल्का मेकअप करवाई।


पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..
भाग:–55





पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..


नम्रता:- कल से बहुत कुछ बदल जायेगा। मेरी पहचान और मेरा काम बदल जायेगा।


पलक:- भावना तो नहीं बदलेगी ना। मेरे लिए वहीं काफी है।


नम्रता:- 5 साल पहले जो 2 बहन थी पलक और नम्रता वो शायद आज ना हो। और शायद जो रिश्ता आज है वो 5 साल बाद ना होगा। परिवर्तन ही नियम है।


पलक:- हम्मम ! किसी से प्यार करती थी क्या?


नम्रता:- नहीं ऐसा कोई नहीं था, और जो था वो प्यार के काबिल नहीं था। मै तो आइने में बस अपने जीवन दर्शन को देख रही थी और सोच रही थी क्या इस जन्म में कुछ हासिल भी कर पाऊंगी।


"पागल, शादी के दिन ऐसा नहीं सोचते है। कुछ हासिल करने के लिए बस कर्म किए जाओ, माहौल बनता जायेगा, और तब तुम उस पल को भी मेहसूस करोगी जब तुम कहोगी की हां मैंने कर्म पथ पर चलकर ये मुकाम हासिल किया। जैसे कि आज।"…. भूमि अपनी उपस्थिति जाहिर करती हुई कहने लगी...


पलक, हसरत भरी नजरो से भूमि को देखती… "जैसे कि आज क्या दीदी।"..


भूमि:- जैसे कि हमे कोपचे वाले पथ पर चलकर होने वाले का चुम्मा मिला करता था। पलक ने मेहनत कि, कर्म किया और सबके बीच होंठ पर चुम्मी पायि।



नम्रता:- हीहीहीहीही… बेचारा आर्यमणि, लगता है शर्माकर भाग गया ।


पलक:- शर्माकर नहीं भगा है, एडवांस बता देती हूं, तैयार हो जाओ "फील द प्राउड मोमेंट" के लिए।


नम्रता और भूमि दोनो उत्सुकता से…. "ऐसा क्या करने वाला है। कहीं कोई बेवकूफी या उस से भी बढ़कर कोई पागलपन।"..


पलक:- नहीं दीदी वो कोई बेवकूफी नहीं करने गया है, बल्कि ऐसा काम करने गया है जिसे जानकर आप कहेंगी… "ये तो कमाल कर दिया आर्य।"..


नम्रता:- क्या बैंक में डाका डालकर सारा माल हमारे पास लायेगा।


पलक नहीं उससे भी बढ़कर… "वो अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलने गया है।"..


नम्रता और भूमि दोनो साथ में चौंकते हुये…. "ये कैसे होगा। बाबा के गैर मौजूदगी में बुक तक कोई पहुंच नहीं सकता। उसे खोलना तो दूर कि बात है। एक मिनट तुमने कहा कि वो खोलने गया है। इस वक़्त आर्य कहां है?


पलक:- नागपुर के लिए उड़ चुका है।


भूमि:- दोघेही वेडे आहेत (दोनो पागल है)


नम्रता:- पलक इतना बड़ा फैसला तुम दोनों अकेले कैसे ले सकते हो।


पलक:- जब काम अच्छे भावना से कि जाती है तो उसमें रिस्क भी लेना पड़े तो कोई गम नहीं। हमे आज रात तक का वक़्त दो, कल सुबह तुम सब का होगा।


भूमि:- ना मै इसमें हूं और ना ही मुझे कुछ पता है। कल सुबह तक मै रुक जाती हूं, फिर तुम सुकेश और उज्जवल भारद्वाज को जवाब देती रहना।


नम्रता:- मेरी प्रार्थना है, तुम दोनो कामयाब हो। जब तुमने इतना बड़ा रिस्क ले ही लिया है तो हौसले से आगे बढ़ो। भूमि देसाई, ऐसे मुंह नहीं मोड़ सकती।


भूमि:- ठीक है बाबा समझ गई। भावना अच्छी है और हमे सामने से बता रही हो इसलिए अगर वो फेल भी होता है तो मै मैनेज कर लूंगी।


पलक दोनो के गले लगती… "आप दोनो बेस्ट है।"..


भूमि:- बेस्ट रात तो नम्रता की होने वाली है, इसे बेस्ट ऑफ लक तो बोल दो। पूरे मज़े करना और कोई जल्दबाजी नहीं।


पलक:- बेस्ट ऑफ लक दीदी अपना अनुभव साझा करना, मुझे भी कुछ सीखने मिलेगा।


भूमि:- क्यों तेरे पास मोबाइल नहीं है क्या?"..


भूमि की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगी। कुछ देर बाद वही पुराना फिल्मी डायलॉग सुनने को मिला… "दुल्हन को ले आइये, मुहरत का समय बिता जा रहा है।"


विधिवत दोनो शादी रात 10.30 तक संपन्न हो गयि। गेस्ट के साथ बातचीत और खाते पीते हुये रात के 12 बज गये थे। दोनो ही नव दंपत्ति के मन में लड्डू फुट रहे थे। अलग-अलग जगहों के 2 लग्जरियस स्वीट इनके सुहागरात के लिए अलग से सजाकर रखी गयि थी। जिसके सुहाग की सेज उनके आने का इंतजार कर रही थी।


पलक और भूमि, नम्रता को छोड़ने उसके स्वीट तक गये। नम्रता को वहां बिस्तर पर आराम से बिठाकर कुछ देर की बातें हुई। फिर सभी सखी सहेलियां और बहनों ने धक्का देकर माणिक को अंदर भेज दिया। माणिक जब अंदर जा रहा था तब पीछे से भूमि कहने लगी… "माणिक शिकायत नहीं आनी चाहिए मेरी उत्तराधिकारी की।"


दोनो बेचारे शर्मा गये और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया। भूमि और पलक के साथ कयि लड़कियां वहां से निकलकर आ रही थी। किनारे से एक जगह पर रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी। भूमि और पलक भी उस ओर भिड़ को देखकर चल दी। जैसे ही पलक ने सामने का नजारा देखा उसका दिमाग चक्कर खा गया।


2 कदम पीछे हटकर उसने स्वीटी के ऊपर का बोर्ड देखा… "हैप्पी वेडिंग नाईट.. राजदीप एंड मुक्ता" और अंदर के सेज पर तो कोई और ही खेल खेलकर चला गया था। बिखरे बिस्तर, बिस्तर पर मसले फुल, चादर में पड़ी सिलवटें। कोनो पर सजे फूल की टूटी लड़ी, और बिस्तर पर ताजा वीर्य के धब्बे। जो मज़ा सुहाग की सेज पर भईया और भाभी को लेना था, वहां छोटी बहन और उसका ब्वॉयफ्रैंड मज़ा लूटकर बिखरे सेज को भईया और भाभी के लिए गिफ्ट कर दिया। पलक का दिमाग शॉक्ड। वो दबे पाऊं पीछे आयी और आकर आर्यमणि को कॉल लगाने लगी। 10 मिनट तक ट्राय करती रही लेकिन कोई नेटवर्क ही नहीं मिल रहा था।


पलक:- भूमि दीदी आर्यमणि को कॉल लगाओ, वो पहुंचा की नहीं।


भूमि:- कल तो इन नेटवर्क कंपनी वालो को डंडा कर दूंगी। अभी यहां के मैनेजर को कॉल लगा रही हूं, नेटवर्क ही नहीं मिल रहा। बेचारे दोनो (राजदीप और मुक्ता), जिसने भी ये किया है, अच्छा नहीं किया। खैर दूसरे स्वीट का इंतजाम कर दिया है।


तभी वहां एक छोटी उम्र का प्रहरी पहुंचा और चिढ़कर भूमि से कहने लगा… "दीदी किसने ये रिजॉर्ट बुक किया है। इन रिजॉर्ट वालो ने यहां सिग्नल जैमर लगा रखा था। मै 2 घंटे से परेशान हूं।"


भूमि:- क्या हुआ महा, सब ठीक तो है ना।


माही:- दीदी आज 8 से 10 के बीच बाबा का हर्निया ऑपरेशन था। आई से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ये साले सिग्नल जैमर लगाये बैठे है।


ये सुनकर तो पलक का दिमाग पूरी तरह से घूम गया। अपने बाबा को वो अकेले में ले जाकर पूरी बात बताने लगी। उज्जवल भारद्वाज ने सुकेश भारद्वाज से कुछ बात की। उसने तुरंत अपना नेटवर्क चेक किया। ये लोग रिजॉर्ट के रिसेप्शन पर जा ही रहे थे कि सभी का नेटवर्क आ गया। सुकेश अपने कदम रोककर सरदार खान को कॉल लगाने लगा, लेकिन वहां का भी कॉल नहीं लगा।


भूमि को बुलाकर नागपुर में रुके प्रहरी से कॉन्टैक्ट करने कहा गया, लेकिन एक भी प्रहरी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उज्जवल और सुकेश ने अपने-अपने कॉन्टैक्ट के जरिये शहर के विभिन्न इलाकों की जानकारी ली। जब पूरी जानकारी आ गयि तब उन लोगो ने 4-5 लोगो को सरदार खान के इलाके में भेजा... उधर से जो जवाब मिला, उसे सुनकर पहले सुकेश झटके खाकर गिर गया, और जब उज्जवल ने सुना तो उसे भी सदमा सा लगा।


केशव, जया और भूमि तीनों दूर से बैठकर सबके चेहरे देख रहे थे।… इसी बीच पलक को बीच में बुलाया गया, उसे एक जोरदार थप्पड़ भी पड़ी… "आव बेचारी, इसका तो गाल लाल हो गया। चलो पैकिंग करने.. लगता है अभी ही सब नागपुर लौटेंगे।"


नाशिक एयरपोर्ट वक़्त लगभग 8 बजने वाले थे। आर्यमणि कार से उतरकर पलक के होटों को चूमा… "हे स्वीटहर्ट, लगता है तूफान आने वाला है, हम दोनों इस तूफान का मज़ा लेंगे। मेरा वादा है, आज की रात तुम्हारे जीवन की सबसे यादगार रात होगी।"…


पलक को हाथ हिलाकर अलविदा कहते आर्यमणि बढ़ चला। आखों में चस्मा लगाये विश्वास के साथ चलने लगा। चौड़ी छाती, चेहरे पर विजय की कुटिल मुस्कान और चलने में वो अंदाज की लोग पीछे मुड़कर देखने पर विवश हो जाए।


जैसे ही थोड़ी दूर वो आगे बढ़ा, 2 लोग उसे रिसीव करके छोटे रनवे के ओर ले गए, जहां एक छोटा प्राइवेट जेट पहले से उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। इसके पूर्व ही ढलते सांझ के साथ रूही अपनी टीम के साथ काम शुरू कर चुकी थी।


किले के अंदर जश्न जैसा माहौल। बस्ती का लगभग 500 मीटर का दायरा। चारो ओर से घिरी हुई बस्ती, बस्ती के बिचो-बीच लंबा चौड़ा एक चौपाल। कितने वेयरवुल्फ थे उस 500 मीटर के किले में थे वो तो किसी को पता नहीं। लेकिन किले के बिचबिच बने चौपाल में थे 200 आदमखोर जंगली कुत्ते, 180 कुरुर वेयरवुल्फ, 5 अल्फा और उन सबका बाप था एक बीस्ट वुल्फ।


पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के लिये वरदान। आम दिनो से 10 गुना ज्यादा आक्रमकता। आम दिनों के मुकाबले 50 गुना ज्यादा ताकत मेहसूस करना। और आम दिनों की अपेक्षा जीत को निश्चित सुनिश्चित करना। ये थी पूर्णिमा कि रात एक वेयरवुल्फ का परिचय। फिर तो जितने वेयरवुल्फ साथ होंगे उनकी ताकत भी उसी मल्टीपल में बढ़ती है। किले के चौपाल से 6.30 बजे शाम की पहली वुल्फ साउंड। बहुत ही खतरनाक और दिल दहला देने वाला था वो। सभी प्रहरी एक साथ इतनी वुल्फ साउंड कभी नहीं सुने थे। उन्हें लग चुका था कि वो इनका मुकाबला नहीं कर सकते।


इधर रूही.... बॉयज एंड गर्ल्स हैव ए फन। और इवान तुम जारा अलबेली को बीच–बीच में शांत करवाते रहना। पूर्णिमा है और ये खुले में, कहीं भाग ना जाय..


इवान:- ये तो हथकड़ी में है मेरे साथ, चिंता नक्को रे।


रूही:- बेटा ओजल अपने 10 शिकारी मेहमान को जरा यहां तक ले आओ। कहना शहर खतरे में है और उनके बीच केवल हम ही उनकी उम्मीद है। इसलिए एक दूसरे पर भरोसा करने का वक़्त आ गया है। वरना पूर्णिमा है और 185 वेयरवुल्फ के साथ एक बीस्ट अल्फा शहर को बर्बाद कर देगा।


ओजल निकल गयी शिकारियों के पास, जो इतने सारे वुल्फ साउंड सुनकर घबराए थे और मदद के लिए कॉल तो लगा रहे थे लेकिन किसी की भी लाइन कनेक्ट नहीं हो रही थी। नाशिक का सिग्नल जैमर, जिसे आर्यमणि ने बरी ही सफाई से चारो ओर फिट करवाया था। लगभग 8 किलोमीटर के रेंज वाले 3 सिग्नल जैमर लगे थे। सभी जैमर को ओपन करने का वक़्त था रात के 12 बजकर 15 मिनट के बाद कभी भी।


ठीक वैसा ही सिग्नल जैमर सरदार खान के इलाके में भी लगा था। कुछ सरकारी कर्मचारियों की मदद से 8 किलोमीटर के क्षेत्र में जैमर को लगा दिया गया था। सिग्नल सरदार खान के किले का भी जाम हो चुका था जिसे खोलने का समय अगले आदेश तक। बेचारे शिकारी मदद के लिए फोन मिलाते रहे, लेकिन फोन मिला नहीं।


शिकारियों के पास तुरंत ही संदेश लेकर ओजल पहुंची। घबराए तो थे, ही इसलिए अब अपनी गाड़ी पर सवार होकर तुरंत उसके पीछे चल दिये। इधर चढ़ते चांद को देखकर रूही का दिल डोलने लगा। 12 लैपटॉप पहले से ऑन थे। कई सारे उड़न तस्तरी अर्थात ड्रोन तैयार थे जिनकी मदद गुलाल बरसाना था.. माउंटेन एश का गुलाल लिये सभी ड्रोन तैयार थे।


ये माउंटेन एश एक तरह का लक्ष्मण रेखा होता है जिसे कोई वेयरवुल्फ पार नहीं कर सकता। शिकारियों का झुंड वहां पहुंच चुका था। आर्यमणि के पैक को देखकर सुनिश्चित करने लगे… "तुमलोग आर्यमणि के पैक हो क्या?"..


रूही:- बातों का वक़्त नहीं है अभी शिकारी जी। कंप्यूटर कमांड दीजिए और ये ड्रोन पूरे इलाके में माउंटेन एश बरसा देगा। फिर आगे क्या करना है वो तो आप समझ ही गये होंगे।


शिकारी:- पहली बार एक वेयरवुल्फ को माउटेन एश का प्रयोग करते देख रहा हूं।


सभी शिकारी के साथ-साथ ओजल और रूही भी लग गई कंप्यूटर पर। तेजी के साथ ड्रोन 600 मीटर का दायरा कवर किया। बाजार के ओर से माउंटेन एश को उड़ेलते हुए सभी ड्रोन आगे बढ़ रहे थे। लगभग 15 मिनट में ही माउंटेन एश की गुलाल चारो ओर बिखरी पड़ी थी। एक शिकारी आगे बढकर रूही से कहने लगा… "तुम्हारा काम खत्म हो गया है। अब तुम लोग यहां से जा सकते हो।"..


"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।
Litreally:bow::bow::bow: :applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause:jitni taali bajayi jaaye utni kum hai ........ wo kuch aashiq hote hai jo kehte hai meri wali alag hai meri alag hai ....aur unki wali alag hi level ka kaat ti hai ......bus lagta hai wohi hua hai ........ bus fark sirf itna hai ki is baar dono side gender change hai :lol::lotpot: aur aap ka U Will Love it jab samjh aaya tab to aur bhi hasi aayi
Khair abhi ke liye itna hi ki jaldi se update 54-55 ko padhiye... U will love it :D
ye jo aap idhr daant dikha diye the thoda bhot to andaja lag gaya tha ye wohi hasi hai jo kaand karne ke bad ki hoti hai aur to aur umeed bhi thi lekin ye jis level se kare ho alag hi level ka maja aya aur hasi bhi khoob aayi sabse jayda us part pr jahan wo aarya palak ke saath intimate hota aur bad me jab pata chalta hai aur fir palak ka reaction :lotpot:
gajab nainu bhaiya
wese update ki starting bhot achi lagi ye kuch moments aap ese daal dete ho ki agar kisi ka pura din bekar ho aur wo ese moments padh le story me to uska mood bhi acha ho jaye
aur fir uske bad me palak ke saath dance pehle palak ke naam ata tha to question mark ghumta tha ab aayega to hasi aayegi jo uske saath hua.....aur jis tarha se aapne pehle unka intercourse dikhaya jisme palak to khush ho ke full wildly aarya ke saath intimate huyi aur uske bad :lol1:

पलक का बदन 2 फिट तक हवा में उछलता।
bhaiya manta hoon aap bhi excited ho gaye hoge likhte likhte lekin ese thodi na kuch bhi likh do
bhaiya 2 ft :huh: arey 1ft= 12inch=approx 30.50 cm aur 2ft to aap calculate kar hi lo baaki isse aage ab me kya bolu :innocent:

wese mujhe mahaa bhoomi didi ka saathi lag raha hai aur wo apna role play karne aya tha lekin ek baat smjh nhi aayi bhoomi didi ko batane ka kya mtlb tha ..... ya to me kuch miss kr ke jod nhi paa raha hu ab nainu bhaiya bataenge

केशव, जया और भूमि तीनों दूर से बैठकर सबके चेहरे देख रहे थे।… इसी बीच पलक को बीच में बुलाया गया, उसे एक जोरदार थप्पड़ भी पड़ी… "आव बेचारी, इसका तो गाल लाल हो गया। चलो पैकिंग करने.. लगता है अभी ही सब नागपुर लौटेंगे।"


नाशिक एयरपोर्ट वक़्त लगभग 8 बजने वाले थे। आर्यमणि कार से उतरकर पलक के होटों को चूमा… "हे स्वीटहर्ट, लगता है तूफान आने वाला है, हम दोनों इस तूफान का मज़ा लेंगे। मेरा वादा है, आज की रात तुम्हारे जीवन की सबसे यादगार रात होगी।"…


पलक को हाथ हिलाकर अलविदा कहते आर्यमणि बढ़ चला। आखों में चस्मा लगाये विश्वास के साथ चलने लगा। चौड़ी छाती, चेहरे पर विजय की कुटिल मुस्कान और चलने में वो अंदाज की लोग पीछे मुड़कर देखने पर विवश हो जाए।
Yaha sahi me alag hi feel aya ki aarya ne kaam bada gajab kiya ek dum proud wala aur fir last bar milte time ache se hi badla leke gaya ..... aur wo upr commentry palak ke thappad khane ki.....
Ye mountain ash to sahi me dimaag se nikal gayi thi acha use kiya iska alpha pack ne aur drone ke saath hint to aap de diye the bus jiske dimaag me rehti pakad leta ....
ab to aarya ke action pr secret body aur palak ke reaction dekhne hai
update bhot majedar the aur dono acha hua saath diye the adhure lagte nhi to aur fir wo maja nhi aa pata jo aaya.....
 
Last edited:
Top