पिछले दो अध्यायों को पढ़कर कुछ मुख्य बिंदु जो उभरे वो इस प्रकार हैं...
पलक... भूमि की बातों और सतपुरा के जंगल में हुई घटनाओं के पश्चात पलक का किरदार बहुत हद तक नकाब से बाहर आ गया था। वैसे तो मुझे शुरुआत से ही पलक का किरदार संदेहास्पद ही लगा था, मैंने एक समीक्षा में भी इसपर विस्तारपूर्वक अपना मत रखा ही था। पलक पर संदेह का कारण वो प्रक्रिया ही थी जिसके अंतर्गत उसके और आर्यमणि के मध्य इस प्रेम के रिश्ते ने जन्म लिया। आर्यमणि को पलक से लगाव हो गया है, ऐसा आपने पिछले अध्याय के अंत में लिख दिया था, परंतु मेरा सवाल ये है की क्या आर्यमणि पलक से प्रेम करता है? पलक तो नहीं करती, फिलहाल के लिए, ये बिलकुल निश्चित है, परंतु मेरे हिसाब से शायद अभी के लिए आर्यमणि के हृदय में पलक के लिए वैसा प्रेम नहीं, जैसा मैत्री के लिए था...
यहां दो संभावनाएं हो सकती हैं, पहली, आर्यमणि उसे पसंद करने लगा है, और इसीलिए उसकी हकीकत जानकर भी चुप है। दूसरा, जैसा उसने भूमि से कहा था, जब तक सामने वाले को पूरी ताकत और हकीकत ना पता चल जाए, खुद को आवरण में ढके रखो। शायद आर्यमणि, पलक के ज़रिए इस पूरे खेल को खोलकर रख देना चाहता है..? हालांकि, दोनों के मध्य हुए चुम्बन और प्रेम – प्रणय के दृश्य, ज़रूर संकेत करते हैं की दोनों के मध्य अपार प्रेम है, परंतु मैं यही कहूंगा की वो सब शायद छलावा – मात्र है... पलक को बचपन से आर्यमणि के लिए ही तैयार किए गया है और आर्यमणि, वो तो है ही एक महानुभाव, सब जानते हुए भी अंजान बनना उसकी आदत है!
पलक का अनंत कीर्ति पुस्तक को लेकर अधीर होना भी संदेहास्पद है। क्यों वो इतनी अधीर थी उस पुस्तक को खोलने के लिए? ये जिज्ञासा – मात्र भी हो सकती है, उस राज़ से रूबरू होने की जिसके बारे में वो बचपन से सुनती आ रही है परंतु इस कहानी के पात्र इतने भी सीधे नहीं! मेरे ख्याल से पलक उस अनंत कीर्ति पुस्तक को या तो स्वयं पाना चाहती है या फिर इस षड्यंत्र के सरगना – उज्ज्वल अथवा सुकेश को उस पुस्तक का लाभ दिलवाना चाहती है। इसमें से कुछ है या फिर कोई अलग ही कारण, ये तो अनंत कीर्ति पुस्तक खुलने के बाद ही मालूम होगा परंतु यहां भी, आर्यमणि पलक के मंसूबों के बारे में सब कुछ जानता है, इसको लेकर मैं पूर्णतः आश्वस्त हूं।
बहरहाल, आर्यमणि और पलक ने अनंत कीर्ति पुस्तक को हासिल कर लिया है और प्योर अल्फा महोदय ने उस किताब को अपने बस्ते में छिपा भी लिया है। अनुष्ठान को लेकर जो कुछ कहा आर्यमणि ने उसमें ग्रहों की स्थितियां नहीं बल्कि आर्यमणि की योजना महत्वपूर्ण है। मैं विश्वास से कह सकता हूं की वो जान – बूझ कर पलक को टाल रहा है, शायद वो किसी विशेष दिन उस पुस्तक का उद्घाटन करना चाहता है। जो भी ही, अभी के लिए अनंत कीर्ति पुस्तक मुख्य – धारा में आ गई है, परंतु अभी सबसे पहले देखना होगा की आर्यमणि भाईसाहब पलक के कमरे में किस मंतव्य की पूर्ति के लिए पहुंचे हैं।
इन दोनों भागों में जो सबसे हास्यास्पद था वो था चित्र का प्यारा माधव। माधव एक मेधावी छात्र है परंतु अपनी कमज़ोर डील – डोल और आर्थिक स्थिति के कारण, खुद को चित्र से कमतर भी समझता है। खासकर तब जब निशांत और आर्यमणि उसके और चित्रा के बारे में व्यंग्य करते हैं। भले ही माधव और चित्र तन से समान ना हों, धन से समान ना हों परंतु मन से बिलकुल समान हैं। चित्रा का मन जुड़ा है उससे और माधव की बातों और हरकतों से भी यही लगता है की वो चित्रा से बेहद प्रेम करता है। देखते हैं आगे चलकर इनकी प्रेम कहानी क्या मुकाम हासिल करती है। माधव के पिताश्री को कौन राज़ी करेगा इस बंधन के लिए,ये भी देखने लायक होगा, मेरे ख्याल से आर्यमणि ही करेगा ये शुभ काम!
इस बीच धीरेन स्वामी नामक केंकडा पहुंच चुका है प्रहरी समुदाय के मध्य में और सारी स्थिति को अपने मुताबिक चलाने की सोच रहा है। सर्वप्रथम उसका ये सोचना की वो भूमि से अपने पुराने रिश्ते को पुनर्जीवित कर लेगा, व्यर्थ की बात है। वैसे मुझे लगता है की हो सकता है उस गीदड़ को सबके सामने बेनकाब करने के लिए, भूमि उसके समक्ष ऐसा नाटक करे, की वो भी उस रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहती है। धीरेन का आर्यमणि के सुझाव को इतना बड़ा रूप देना भी शायद भूमि की नज़रों में उठने के लिए फेंका गया पासा है, जो विफल ही होना चाहिए। अमृत पाठक की दोबारा फजीहत हो जाए तो चार चांद लग जाएंगे कहानी में...
खैर, अब इन दोनों भागों का मुख्य लक्ष्य कहानी को मुख्य – धारा में बनाए रखना था, ऐसा मैं समझता हूं। पिछले भागों में आए दमदार और रोमांचक दृश्यों के बाद मुझे इसी प्रकार के भागों की उम्मीद थी। अब अनंत कीर्ति पुस्तक और आर्यमणि – पलक प्रेम पर्व साथ – साथ चलेंगे शायद। बहरहाल, आर्यमणि नागपुर से जाने वाला था ना, जया और भूमि के सुझाव पर, वो घड़ी कब की है..?
बहुत ही खूबसूरत भाग थे भाई दोनों ही। खासकर आर्यमणि और उसके दोस्तों के मध्य की नोक – झोंक हास्यास्पद और सुंदर थी। हां, पलक और आर्यमणि के प्रेम प्रणय के दृश्य भी लाजवाब थे, परंतु जब तक पलक के साथ संदेह चलेगा, इन दोनों के सुंदर दृश्य भी अपनी चमक खोते रहेंगे...
प्रतीक्षा अगले भाग की...