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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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arish8299

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।".. \n[/फॉण्ट][/साइज][/कलर]\n[/कोटे]\nअर्यमणि कोई प्लान कर रहा hai
 

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
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Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–47






आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।


उनमें ना केवल पलक थी बल्कि कुछ लोगों को छोड़कर सभी एक जैसे थे। आर्यमणि आश्चर्य से उन सभी के चेहरे देख रहा था तभी पीछे से पलक ने उसके कंधे पर हाथ रखी। काले और लाल धारियों वाली ड्रेस जो उसके बदन से बिल्कुल चिपकी हुई थी, ओपन शोल्डर और चेहरे का लगा मेकअप, आर्यमणि देखते ही अपना छाती पकड़ लिया… "क्या हुआ आर्य"..


आर्यमणि:- श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो रही है, यहां से चलो।


पलक, कंधे का सहारा देती, हड़बड़ी में उसके साथ निकली। दोनो चल रहे थे तभी आर्य को एक पैसेज दिखा और उसने पलक का हाथ खींचकर पैसेज की दीवार से चिपका दिया, और अपने होंठ आगे ही बढ़ाया ही था… "क्या कर रहे हो आर्य, यहां कोई आ जाएगा।"..


आर्यमणि उसके बदन की खुशबू लेते…. "आह्हहह ! तुम मुझे दीवाना बना रही हो पलक।"..


पलक:- हीहीहीहीही… कंट्रोल किंग, आप तो अपनी रानी को देखकर उतावले हो गये।


आर्यमणि आगे कोई बात ना करके अपने होंठ आगे बढ़ा दिया, पलक भी अपने बदन को ढीला छोड़ती, उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी। दोनो एक दूसरे के होंठ का स्पर्श पाकर एक अलग ही दुनिया में थे। तभी गले की खराश से दोनो का ध्यान टूटा…. "इतना प्रोग्रेस, लगता है तुम दोनो की एंगेजमेंट भी जल्द करवानी होगी।"..


आर्यमणि का ध्यान टूटा। दोनो ने जब सामने नम्रता को देखा तब झटके के साथ अलग हो गए। आर्यमणि, नम्रता के इमोशंस को साफ पढ़ सकता था, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वो गौर से उसे देखने लगा… नम्रता हंसती हुई उसके बाल बिखेरते…. "पलकी संभाल इसे, ये तो मुझे ही घूरने लगा।"


पलक:- दीदी आप लग ही इतनी खूबसूरत रही हो। किसी की नजर थम जाए।


नम्रता:- और तुम दोनो जो ये सब कर रहे थे हां.. ये सब क्या है?


पलक:- इंसानी इमोशन है दीदी अपने पार्टनर को देखकर नहीं निकलेगा तो किसे देखकर निकलेगा।


आर्यमणि:- हमे चलना चाहिए।


दोनो वहां से वापस हॉल में चले आये। पलक आर्यमणि के कंधे पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, चुपके से उसके गाल पर किस्स करती… "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया आर्य। लेकिन ऐसा लगता है जैसे मैंने तुम्हारी वाह-वाही अपने नाम करवा ली है।"


आर्यमणि:- तुम भी तो मै ही हूं ना। तुम खुश तो मै खुश।


पलक, आर्यमणि के गाल खींचती… "लेकिन तुम तो यहां खुश नजर नहीं आ रहे आर्य। बात क्या है, किसी ने कुछ कह दिया क्या?"


आर्यमणि, पलक के ओर देखकर मुस्कुराते हुए… "चलो बैठकर कुछ बातें करते है।"


पलक:- हां अब बताओ।


आर्यमणि:- तुम्हे नहीं लगता कि मेरे मौसा जी थोड़े अजीब है। और साथ ने तुम्हारे पापा भी.. सॉरी दिल पर मत लेना..


यह सुनते पलक के चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा… "आर्य, खुलकर कहो ना क्या कहना चाहते हो।"..


आर्यमणि:- मैंने भारतीय इतिहास की खाक छान मारी। आज से 400 वर्ष पूर्व युद्ध के लिये केवल 12 तरह के हथियार इस्तमाल होते थे। अनंत कीर्ति के पुस्तक को खोलने के लिए जो शर्तें बताई गई है वो एक भ्रम है। और मै जान गया हूं उसे कैसे खोलना है। या यूं समझो की मै वो पुस्तक सभी लोगो के लिये खोल सकता हूं।


पलक, उत्सुकता से… "कैसे?"


आर्यमणि:- तुम मांसहारी हो ना। ना तो तुम्हे विधि बताई जा सकती है ना अनुष्ठान का कोई काम करवाया जा सकता है। बस यूं समझ लो कि वो एक शुद्ध पुस्तक है, जिसे शुद्ध मंत्र के द्वारा बंद किया गया है। 7 से 11 दिन के बीच छोटे से अनुष्ठान से वो पुस्तक बड़े आराम से खुल जायेगी। पुस्तक पूर्णिमा की रात को ही खुलेगी और तब जाकर लोग उस कमरे में जाएंगे, पुस्तक को नमन करके अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगे।


पलक:- और यदि नहीं खुली तो..


आर्यमणि:- दुनिया ये सवाल करे तो समझ में आता है, तुम्हारा ऐसा सवाल करना दर्द दे जाता है। खैर, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं उस पुस्तक में। मै बस सही जरिया के बारे में जब सोचा और मौसा जी का चेहरा सामने आया तो हंसी आ गयि। हंसी आयि मुझे इस बात पर की जिस युग में युद्ध के बड़ी मुश्किल से 12 हथियार मिलते हो, वहां 25 अलग-अलग तरह के हथियार बंद लोग। फनी है ना।


पलक, आर्यमणि के गाल को चूमती…. "तुम तो यहां मेरे प्राउड हो। सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन जब हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे तब इन लोगो को एक बार और हम पर प्राउड फील होगा।"


आर्यमणि, हैरानी से उसका चेहरा देखते हुए… "पर ऐसा होगा ही क्यों? मौसा जी से कल मै इस विषय में बात करूंगा और किसी सुध् साकहारी के हाथो पूरे अनुष्ठान की विधि को बता दूंगा। वो जाने और उनका काम।"… कहते हुए आर्यमणि ने पलक को बाहों में भर लिया..


पलक अपनी केवाहनी आर्यमणि के पेट में मारती… "लोग है आर्य, क्या कर रहे हो।"


आर्यमणि:- अपनी रानी के साथ रोमांस कर रहा हूं।


पलक:- कुछ बातें 2 लोगों के बीच ही हो तो ही अच्छी लगती है। वैसे भी इस वक़्त तुम्हारी रानी को इंतजार है तुम्हारे एक नए कीर्तिमान की। यूं समझो मेरे जीवन की ख्वाहिश। बचपन से उस पुस्तक के बारे में सुनती आयी हूं, एक अरमान तो दिल में है ही वो पुस्तक मैं खोलूं, इसलिए तो 25 तरह के हथियारबंद लोगो से लड़ने की कोशिश करती हूं।


आर्यमणि:- ये शर्त पूरी करना आसान है। बुलेट प्रूफ जैकेट लो और उसके ऊपर स्टील मेश फेंसिंग करवाओ सर पर भी वैसा ही नाईट वाला हेलमेट डालो। बड़ी सी भाला लेकर जय प्रहरी बोलते हुए घुस जाओ…


पलक:- कुछ तुम्हारे ही दिमाग वाले थे, उन्होंने तो एक स्टेप आगे का सोच लिया था और रोबो सूट पहन कर आये थे। काका हंसते हुए उसे ले गये पुस्तक के पास और सब के सब नाकाम रहे। क्या चाहते हो, इतनी मेहनत के बाद मै भी नाकामयाब रहूं।


आर्यमणि:- विश्वास होना चाहिए, कामयाबी खुद व खुद मिलेगी।


पलक:- विश्वास तो है मेरे किंग। पर किंग अपनी क्वीन की नहीं सुन रहे।


आर्यमणि:- हम्मम ! एक राजा जब अपने रानी के विश्वास भरी फरियाद नहीं सुन सकता तो वो प्रजा की क्या सुनेगा.. बताओ।


पलक:- सब लोग यहां है, चलो उस पुस्तक को चुरा लेंगे, और फिर 7 दिन बाद सबको सरप्राइज देंगे।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मैं मांग ना लूं।


पलक:- काका नहीं देंगे।


आर्यमणि:- हां तो मैं नहीं लूंगा।


पलक:- तुम्हारी रानी नाराज हो जायेगी।


आर्यमणि:- रानी को अपने काबू में रखना और उसकी नजायज मांग पर उसे एक थप्पड़ लगाना एक बुद्धिमान राजा का काम होता है।


आर्यमणि अपनी बात कहते हुए धीमे से पलक को एक थप्पड़ मार दिया। कम तो आर्यमणि भी नहीं था। जब सुकेश भारद्वाज की नजर उनके ओर थी तभी वो थप्पड़ मारा। सुकेश भारद्वाज दोनो को काफी देर से देख भी रहा था, थप्पड़ परते ही वो आर्यमणि के पास पहुंचा…. "ये क्या है, तुम दोनो यहां बैठकर झगड़ा कर रहे।"..


पलक, अपने आंख से 2 बूंद आशु टपकाती…. "काका जिस काम से 10 लोगों का भला हो वो काम के लिए प्रेरित करना क्या नाजायज काम है।"..


सुकेश:- बिल्कुल नहीं, क्यों आर्य पलक के कौन से काम के लिए तुम ना कह रहे हो।


"मौसा वो"… तभी पलक उसके मुंह पर हाथ रखती… "काका इस से कहो कि मेरा काम कर दे। मेरी तो नहीं सुना, कहीं आपकी सुन ले।"..


सुकेश:- शायद मै अपनी एक ख्वाहिश के लिए आर्य से जिद नहीं कर सका, इसलिए तुम्हारे काम के लिए भी नहीं कह पाऊंगा। लेकिन, भूमि को तो यहां भेज ही सकता हूं।


आर्यमणि, अपने मुंह पर से पलक का हाथ हटाकर, अपने दोनो हाथ जोड़ते झुक गया… "किसी को भी मत बुलाओ मौसा जी, मै कर दूंगा चिंता ना करो। और हां आपने अपनी ख्वाहिश ना बता कर मुझे हर्ट किया है। मै कोई गैर नहीं था, आप मुझसे कह सकते थे, वो भी हक से और ऑर्डर देकर। चलो पलक"..


पलक के साथ वो बाहर आ गया। पलक उसके कंधे और हाथ रखती…. "इतना नहीं सोचते जिंदगी में थोड़ा स्पेस देना सीखो, ताकि लोगों को समझ सको। अभी तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, किताब के बारे में फिर कभी देखते है।"


आर्यमणि:- लोग अगर धैर्य के साथ काम लेते, तब वो पुस्तक कब का खुल चुकी होती। मेरी रानी, 7 दिन के अनुष्ठान के लिए तैयारी भी करनी होती है। 2 महीने बाद गुरु पूर्णिमा है। क्या समझी..


पलक:- लेकिन आर्य, उस दिन तो राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी है...


आर्यमणि:- हां लेकिन वह शुभ दिन है। पुस्तक खोलने के लिए देर रात का एक शानदार मुहरत मे पुस्तक खोलने की कोशिश करूंगा।


पलक:- 7 दिन बाद भी तो पूर्णिमा है..


आर्यमणि:- रानी को फिर भी 2 महीने इंतजार करना होगा। चलो अन्दर चलते है और हां एक बात और..


पलक:- क्या आर्य...


आर्यमणि:- लव यू माय क्वीन...


पलक:- लव यू टू माय किंग...


आर्यमणि, पलक के होंठ का एक छोटा सा स्पर्श लेते… "चलो चला जाए।


आर्यमणि रात के इस पार्टी के बाद सीधा ट्विंस के जंगल में पहुंचा, जहां चारों उनका इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि चारो को सब से खुशखबरी देते हुए बताया.… "2 महीने तक कोई प्रहरी उन्हे परेशान नहीं करने वाला। वो इस वक्त नहीं चाहेंगे कि आर्यमणि अपने पैक के सोक मे रहे, इसलिए यहां तुम सब प्रहरी से मेहफूज हो।"


फिर बात आगे बढ़ाते हुए आर्यमणि उन्हे चेतावनी देने लगा... "प्रहरी कुछ नहीं करेंगे इसका ये मतलब नहीं कि हम सुस्त पड़ जाएं। मानता हूं, तुम सब ने बहुत कुछ झेला है। लेकिन मेरे लिए बस 2 महीने और कष्ट कर लो। अगले 2 महीने तक शरीर को बीमार कर देने वाली ट्रेनिंग, खून जला देने वाली ट्रेनिंग। बिना रुके और बेहोशी में भी केवल ट्रेनिंग। एक बात और, एक शिकारी भी आयेगी तुम सब को प्रशिक्षित करने, कोई काट मत लेना उसे। रूही, मै रहूं की ना रहूं, तुम्हे सब पर नजर बनाए रखनी है"…


रूही:- बॉस 3 टीन वूल्फ की जिम्मेदारी.…. इतने हॉट फिगर वाली लड़की को इतने बड़े बच्चों की मां बना दिये।


आर्यमणि उसे घूरते हुए वहां से निकल गया। आर्यमणि ने अब तो जैसे यहां से दूर जाने की ठान ली हो। मुंबई प्रहरी समूह का नया चेहरा स्वामी भी गुप्त रूप से जांच करने नागपुर पहुंच चुका था। दरअसल वो यहां कुछ पता करने नहीं आया था, बल्कि अपने और भूमि के बीच के रिश्ते को नया रूप देने आया था, ताकि आगे की राह आसान हो जाए।


इसी संदर्व मे जब वो भूमि से मिला और आर्यमणि के महत्वकांछी प्रोजेक्ट, "आर्म्स डेवलपमेंट यूनिट" के बारे में सुना, उसने तुरंत प्रहरी की मीटिंग में उसे "प्रहरी समुदाय महत्वकांछी प्रोजेक्ट" का नाम दिया, जिसे एक गैर प्रहरी, आर्यमणि अपनी देख रेख मे चलाता और उसके साथ प्रहरी की उसमे भागीदारी रहती। पैसों कि तो इस समुदाय के पास कोई कमी थी नहीं। आर्यमणि ने जो छोटा प्रारूप के मॉडल को इन सबके सामने पेश किया। उस छोटे प्रारूप को कई गुना ज्यादा बढ़ाकर एक पूरे क्षमता वाले प्रोजेक्ट के रूप में गवर्नमेंट के पास एप्रोवल के लिए भेज दिया गया था।


शायद एप्रोवाल मे वक्त लगता, लेकिन गवर्नमेंट को सेक्योरिटीज अमाउंट दिखाने के लिए आर्यमणि के पास कई बिलियन व्हाइट मनी उसके कंपनी अकाउंट में जमा हो चुके थे। देवगिरी भाऊ अलग से अपनी कुल संपत्ति का 40% हिस्सा आर्यमणि को देने का एनाउंस कर चुके थे।


हालांकि इस घोसना के बाद मुंबई की लॉबी में एक बार और फुट पड़ने लगी थी। लेकिन अमृत पाठक सबको धैर्य बनाए रखने और धीरेन पर विश्वास करने की सलाह दिया। उसने सबको केवल इतना ही समझाते हुए अपना पक्ष रखा.… "स्वामी, प्रहरी के मुख्यालय, नागपुर में है। इतना घन कुछ भी नहीं यदि वो प्रहरी भारद्वाज को पूरे समुदाय से साफ कर दे। एक बार वो लोग चले गये फिर हम सोच भी नहीं सकते उस से कहीं ज्यादा पैसा हमारे पास होगा"…


मूर्ख लोग छोटी साजिशों से बस भूमि की मुश्किलें बढ़ाने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे। लेकिन इन सब को दरकिनार कर भूमि और आर्यमणि दोनो जितना वक्त मिलता उतने मे एक दूसरे के करीब रहते। आर्यमणि भूमि के पेट की चूमकर, मुस्कुराते हुए अक्सर कहता... "हीरो तेरे जन्म के वक्त मै नहीं रहूंगा लेकिन तू जब आये तो मेरी भूमि दीदी को फिर मेरी याद ना आये"…


भूमि लेटी हुई बस आर्यमणि की प्यारी बातों को सुन रही होती और उसके सर पर हाथ फेर रही होती। कई बार आर्यमणि कई तरह की कथाएं कहता, जिसे भूमि भी बड़े इत्मीनान से सुना करती थी। कब दोनो को सुकून भरी नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता था।


आर्यमणि कॉलेज जाना छोड़ चुका था और सुबह से लेकर कॉलेज के वक्त तक अपने पैक के साथ होता। उन्हे प्रशिक्षित करता। अलग ही लगाव था, जिसे आर्यमणि उनसे कभी जता तो नहीं पता लेकिन दिल जलता, जब उसे यह ख्याल आता की शिकारी कितनी बेरहमी से एक वूल्फ पैक को आधा खत्म करते और आधा को सरदार खान के किले में भटकने छोड़ देते।


उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।
Bahut sahi mast update tha nain11ster bhai. Abhi bahut se raj khulane baki hai aur mai to unka hi wait kr raha hu. Lakin kya such me Aary yaha se chala jayega mujhe to nahi lagta hai. Aur agar gaya to anant kirti book to le kr hi jayega confirm. Bhai lakin ye baat bhi bata do story ne is book ko last time kisne aur kitne year pahle open kiya tha.
Aur ye Palak ka mujhe smjh me nahi aa raha hai. Ye definately paak saaf to hogi nahi. Lakin ho skta hai bure kaam karneke piche bhi isko gumrah karna ya koi na koi wajah jarur hogi. Dekhte hai aagekya hota hai.
भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
Mujhe ye definitely lag raha hai ki Aary yaha palak ke paas bhi apne kisi na kisi planning ke karan hi aaya hai. Ab wo hai kya ye to aage hi pata chlega. Aur mera dil abhi bhi kahi na kahi kahta hai madhav bhi jo dikhta hai wo nahi hai. Ab kya hai ye to aage hi pata chlega. Baki bahut hi umda Update tha nain11ster bhai.
 

Death Kiñg

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पिछले दो अध्यायों को पढ़कर कुछ मुख्य बिंदु जो उभरे वो इस प्रकार हैं...

पलक... भूमि की बातों और सतपुरा के जंगल में हुई घटनाओं के पश्चात पलक का किरदार बहुत हद तक नकाब से बाहर आ गया था। वैसे तो मुझे शुरुआत से ही पलक का किरदार संदेहास्पद ही लगा था, मैंने एक समीक्षा में भी इसपर विस्तारपूर्वक अपना मत रखा ही था। पलक पर संदेह का कारण वो प्रक्रिया ही थी जिसके अंतर्गत उसके और आर्यमणि के मध्य इस प्रेम के रिश्ते ने जन्म लिया। आर्यमणि को पलक से लगाव हो गया है, ऐसा आपने पिछले अध्याय के अंत में लिख दिया था, परंतु मेरा सवाल ये है की क्या आर्यमणि पलक से प्रेम करता है? पलक तो नहीं करती, फिलहाल के लिए, ये बिलकुल निश्चित है, परंतु मेरे हिसाब से शायद अभी के लिए आर्यमणि के हृदय में पलक के लिए वैसा प्रेम नहीं, जैसा मैत्री के लिए था...

यहां दो संभावनाएं हो सकती हैं, पहली, आर्यमणि उसे पसंद करने लगा है, और इसीलिए उसकी हकीकत जानकर भी चुप है। दूसरा, जैसा उसने भूमि से कहा था, जब तक सामने वाले को पूरी ताकत और हकीकत ना पता चल जाए, खुद को आवरण में ढके रखो। शायद आर्यमणि, पलक के ज़रिए इस पूरे खेल को खोलकर रख देना चाहता है..? हालांकि, दोनों के मध्य हुए चुम्बन और प्रेम – प्रणय के दृश्य, ज़रूर संकेत करते हैं की दोनों के मध्य अपार प्रेम है, परंतु मैं यही कहूंगा की वो सब शायद छलावा – मात्र है... पलक को बचपन से आर्यमणि के लिए ही तैयार किए गया है और आर्यमणि, वो तो है ही एक महानुभाव, सब जानते हुए भी अंजान बनना उसकी आदत है!

पलक का अनंत कीर्ति पुस्तक को लेकर अधीर होना भी संदेहास्पद है। क्यों वो इतनी अधीर थी उस पुस्तक को खोलने के लिए? ये जिज्ञासा – मात्र भी हो सकती है, उस राज़ से रूबरू होने की जिसके बारे में वो बचपन से सुनती आ रही है परंतु इस कहानी के पात्र इतने भी सीधे नहीं! मेरे ख्याल से पलक उस अनंत कीर्ति पुस्तक को या तो स्वयं पाना चाहती है या फिर इस षड्यंत्र के सरगना – उज्ज्वल अथवा सुकेश को उस पुस्तक का लाभ दिलवाना चाहती है। इसमें से कुछ है या फिर कोई अलग ही कारण, ये तो अनंत कीर्ति पुस्तक खुलने के बाद ही मालूम होगा परंतु यहां भी, आर्यमणि पलक के मंसूबों के बारे में सब कुछ जानता है, इसको लेकर मैं पूर्णतः आश्वस्त हूं।

बहरहाल, आर्यमणि और पलक ने अनंत कीर्ति पुस्तक को हासिल कर लिया है और प्योर अल्फा महोदय ने उस किताब को अपने बस्ते में छिपा भी लिया है। अनुष्ठान को लेकर जो कुछ कहा आर्यमणि ने उसमें ग्रहों की स्थितियां नहीं बल्कि आर्यमणि की योजना महत्वपूर्ण है। मैं विश्वास से कह सकता हूं की वो जान – बूझ कर पलक को टाल रहा है, शायद वो किसी विशेष दिन उस पुस्तक का उद्घाटन करना चाहता है। जो भी ही, अभी के लिए अनंत कीर्ति पुस्तक मुख्य – धारा में आ गई है, परंतु अभी सबसे पहले देखना होगा की आर्यमणि भाईसाहब पलक के कमरे में किस मंतव्य की पूर्ति के लिए पहुंचे हैं।

इन दोनों भागों में जो सबसे हास्यास्पद था वो था चित्र का प्यारा माधव। माधव एक मेधावी छात्र है परंतु अपनी कमज़ोर डील – डोल और आर्थिक स्थिति के कारण, खुद को चित्र से कमतर भी समझता है। खासकर तब जब निशांत और आर्यमणि उसके और चित्रा के बारे में व्यंग्य करते हैं। भले ही माधव और चित्र तन से समान ना हों, धन से समान ना हों परंतु मन से बिलकुल समान हैं। चित्रा का मन जुड़ा है उससे और माधव की बातों और हरकतों से भी यही लगता है की वो चित्रा से बेहद प्रेम करता है। देखते हैं आगे चलकर इनकी प्रेम कहानी क्या मुकाम हासिल करती है। माधव के पिताश्री को कौन राज़ी करेगा इस बंधन के लिए,ये भी देखने लायक होगा, मेरे ख्याल से आर्यमणि ही करेगा ये शुभ काम!

इस बीच धीरेन स्वामी नामक केंकडा पहुंच चुका है प्रहरी समुदाय के मध्य में और सारी स्थिति को अपने मुताबिक चलाने की सोच रहा है। सर्वप्रथम उसका ये सोचना की वो भूमि से अपने पुराने रिश्ते को पुनर्जीवित कर लेगा, व्यर्थ की बात है। वैसे मुझे लगता है की हो सकता है उस गीदड़ को सबके सामने बेनकाब करने के लिए, भूमि उसके समक्ष ऐसा नाटक करे, की वो भी उस रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहती है। धीरेन का आर्यमणि के सुझाव को इतना बड़ा रूप देना भी शायद भूमि की नज़रों में उठने के लिए फेंका गया पासा है, जो विफल ही होना चाहिए। अमृत पाठक की दोबारा फजीहत हो जाए तो चार चांद लग जाएंगे कहानी में...

खैर, अब इन दोनों भागों का मुख्य लक्ष्य कहानी को मुख्य – धारा में बनाए रखना था, ऐसा मैं समझता हूं। पिछले भागों में आए दमदार और रोमांचक दृश्यों के बाद मुझे इसी प्रकार के भागों की उम्मीद थी। अब अनंत कीर्ति पुस्तक और आर्यमणि – पलक प्रेम पर्व साथ – साथ चलेंगे शायद। बहरहाल, आर्यमणि नागपुर से जाने वाला था ना, जया और भूमि के सुझाव पर, वो घड़ी कब की है..?

बहुत ही खूबसूरत भाग थे भाई दोनों ही। खासकर आर्यमणि और उसके दोस्तों के मध्य की नोक – झोंक हास्यास्पद और सुंदर थी। हां, पलक और आर्यमणि के प्रेम प्रणय के दृश्य भी लाजवाब थे, परंतु जब तक पलक के साथ संदेह चलेगा, इन दोनों के सुंदर दृश्य भी अपनी चमक खोते रहेंगे...

प्रतीक्षा अगले भाग की...
 
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पिछले दो अध्यायों को पढ़कर कुछ मुख्य बिंदु जो उभरे वो इस प्रकार हैं...

पलक... भूमि की बातों और सतपुरा के जंगल में हुई घटनाओं के पश्चात पलक का किरदार बहुत हद तक नकाब से बाहर आ गया था। वैसे तो मुझे शुरुआत से ही पलक का किरदार संदेहास्पद ही लगा था, मैंने एक समीक्षा में भी इसपर विस्तारपूर्वक अपना मत रखा ही था। पलक पर संदेह का कारण वो प्रक्रिया ही थी जिसके अंतर्गत उसके और आर्यमणि के मध्य इस प्रेम के रिश्ते ने जन्म लिया। आर्यमणि को पलक से लगाव हो गया है, ऐसा आपने पिछले अध्याय के अंत में लिख दिया था, परंतु मेरा सवाल ये है की क्या आर्यमणि पलक से प्रेम करता है? पलक तो नहीं करती, फिलहाल के लिए, ये बिलकुल निश्चित है, परंतु मेरे हिसाब से शायद अभी के लिए आर्यमणि के हृदय में पलक के लिए वैसा प्रेम नहीं, जैसा मैत्री के लिए था...

यहां दो संभावनाएं हो सकती हैं, पहली, आर्यमणि उसे पसंद करने लगा है, और इसीलिए उसकी हकीकत जानकर भी चुप है। दूसरा, जैसा उसने भूमि से कहा था, जब तक सामने वाले को पूरी ताकत और हकीकत ना पता चल जाए, खुद को आवरण में ढके रखो। शायद आर्यमणि, पलक के ज़रिए इस पूरे खेल को खोलकर रख देना चाहता है..? हालांकि, दोनों के मध्य हुए चुम्बन और प्रेम – प्रणय के दृश्य, ज़रूर संकेत करते हैं की दोनों के मध्य अपार प्रेम है, परंतु मैं यही कहूंगा की वो सब शायद छलावा – मात्र है... पलक को बचपन से आर्यमणि के लिए ही तैयार किए गया है और आर्यमणि, वो तो है ही एक महानुभाव, सब जानते हुए भी अंजान बनना उसकी आदत है!

पलक का अनंत कीर्ति पुस्तक को लेकर अधीर होना भी संदेहास्पद है। क्यों वो इतनी अधीर थी उस पुस्तक को खोलने के लिए? ये जिज्ञासा – मात्र भी हो सकती है, उस राज़ से रूबरू होने की जिसके बारे में वो बचपन से सुनती आ रही है परंतु इस कहानी के पात्र इतने भी सीधे नहीं! मेरे ख्याल से पलक उस अनंत कीर्ति पुस्तक को या तो स्वयं पाना चाहती है या फिर इस षड्यंत्र के सरगना – उज्ज्वल अथवा सुकेश को उस पुस्तक का लाभ दिलवाना चाहती है। इसमें से कुछ है या फिर कोई अलग ही कारण, ये तो अनंत कीर्ति पुस्तक खुलने के बाद ही मालूम होगा परंतु यहां भी, आर्यमणि पलक के मंसूबों के बारे में सब कुछ जानता है, इसको लेकर मैं पूर्णतः आश्वस्त हूं।

बहरहाल, आर्यमणि और पलक ने अनंत कीर्ति पुस्तक को हासिल कर लिया है और प्योर अल्फा महोदय ने उस किताब को अपने बस्ते में छिपा भी लिया है। अनुष्ठान को लेकर जो कुछ कहा आर्यमणि ने उसमें ग्रहों की स्थितियां नहीं बल्कि आर्यमणि की योजना महत्वपूर्ण है। मैं विश्वास से कह सकता हूं की वो जान – बूझ कर पलक को टाल रहा है, शायद वो किसी विशेष दिन उस पुस्तक का उद्घाटन करना चाहता है। जो भी ही, अभी के लिए अनंत कीर्ति पुस्तक मुख्य – धारा में आ गई है, परंतु अभी सबसे पहले देखना होगा की आर्यमणि भाईसाहब पलक के कमरे में किस मंतव्य की पूर्ति के लिए पहुंचे हैं।

इन दोनों भागों में जो सबसे हास्यास्पद था वो था चित्र का प्यारा माधव। माधव एक मेधावी छात्र है परंतु अपनी कमज़ोर डील – डोल और आर्थिक स्थिति के कारण, खुद को चित्र से कमतर भी समझता है। खासकर तब जब निशांत और आर्यमणि उसके और चित्रा के बारे में व्यंग्य करते हैं। भले ही माधव और चित्र तन से समान ना हों, धन से समान ना हों परंतु मन से बिलकुल समान हैं। चित्रा का मन जुड़ा है उससे और माधव की बातों और हरकतों से भी यही लगता है की वो चित्रा से बेहद प्रेम करता है। देखते हैं आगे चलकर इनकी प्रेम कहानी क्या मुकाम हासिल करती है। माधव के पिताश्री को कौन राज़ी करेगा इस बंधन के लिए,ये भी देखने लायक होगा, मेरे ख्याल से आर्यमणि ही करेगा ये शुभ काम!

इस बीच धीरेन स्वामी नामक केंकडा पहुंच चुका है प्रहरी समुदाय के मध्य में और सारी स्थिति को अपने मुताबिक चलाने की सोच रहा है। सर्वप्रथम उसका ये सोचना की वो भूमि से अपने पुराने रिश्ते को पुनर्जीवित कर लेगा, व्यर्थ की बात है। वैसे मुझे लगता है की हो सकता है उस गीदड़ को सबके सामने बेनकाब करने के लिए, भूमि उसके समक्ष ऐसा नाटक करे, की वो भी उस रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहती है। धीरेन का आर्यमणि के सुझाव को इतना बड़ा रूप देना भी शायद भूमि की नज़रों में उठने के लिए फेंका गया पासा है, जो विफल ही होना चाहिए। अमृत पाठक की दोबारा फजीहत हो जाए तो चार चांद लग जाएंगे कहानी में...

खैर, अब इन दोनों भागों का मुख्य लक्ष्य कहानी को मुख्य – धारा में बनाए रखना था, ऐसा मैं समझता हूं। पिछले भागों में आए दमदार और रोमांचक दृश्यों के बाद मुझे इसी प्रकार के भागों की उम्मीद थी। अब अनंत कीर्ति पुस्तक और आर्यमणि – पलक प्रेम पर्व साथ – साथ चलेंगे शायद। बहरहाल, आर्यमणि नागपुर से जाने वाला था ना, जया और भूमि के सुझाव पर, वो घड़ी कब की है..?

बहुत ही खूबसूरत भाग थे भाई दोनों ही। खासकर आर्यमणि और उसके दोस्तों के मध्य की नोक – झोंक हास्यास्पद और सुंदर थी। हां, पलक और आर्यमणि के प्रेम प्रणय के दृश्य भी लाजवाब थे, परंतु जब तक पलक के साथ संदेह चलेगा, इन दोनों के सुंदर दृश्य भी अपनी चमक खोते रहेंगे...

प्रतीक्षा अगले भाग की...
" पलक और आर्यमणि के प्रणय के दृश्य भी लाजबाव थे " ........ अभी भी ! :wth:
 
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Bhaiya ji Palak cute to hai, kuchh bhi kahiye.. :shy: I wish ki jo kuchh bhi wo kar rahi hai wo maatra ek chhalawa ho.. :blush1:
Waise to sabhi khubsurat ladkiya hi cute lagti hai... lekin actually hoti nahi hai. 10 me 9 dhokhebaaz hoti hai.
Lekin ham kare to kya kare ! Enki har bewafai bhi ek ada lagti hai. :headache2:
 

Sk.

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पिछले दो अध्यायों को पढ़कर कुछ मुख्य बिंदु जो उभरे वो इस प्रकार हैं...

पलक... भूमि की बातों और सतपुरा के जंगल में हुई घटनाओं के पश्चात पलक का किरदार बहुत हद तक नकाब से बाहर आ गया था। वैसे तो मुझे शुरुआत से ही पलक का किरदार संदेहास्पद ही लगा था, मैंने एक समीक्षा में भी इसपर विस्तारपूर्वक अपना मत रखा ही था। पलक पर संदेह का कारण वो प्रक्रिया ही थी जिसके अंतर्गत उसके और आर्यमणि के मध्य इस प्रेम के रिश्ते ने जन्म लिया। आर्यमणि को पलक से लगाव हो गया है, ऐसा आपने पिछले अध्याय के अंत में लिख दिया था, परंतु मेरा सवाल ये है की क्या आर्यमणि पलक से प्रेम करता है? पलक तो नहीं करती, फिलहाल के लिए, ये बिलकुल निश्चित है, परंतु मेरे हिसाब से शायद अभी के लिए आर्यमणि के हृदय में पलक के लिए वैसा प्रेम नहीं, जैसा मैत्री के लिए था...

यहां दो संभावनाएं हो सकती हैं, पहली, आर्यमणि उसे पसंद करने लगा है, और इसीलिए उसकी हकीकत जानकर भी चुप है। दूसरा, जैसा उसने भूमि से कहा था, जब तक सामने वाले को पूरी ताकत और हकीकत ना पता चल जाए, खुद को आवरण में ढके रखो। शायद आर्यमणि, पलक के ज़रिए इस पूरे खेल को खोलकर रख देना चाहता है..? हालांकि, दोनों के मध्य हुए चुम्बन और प्रेम – प्रणय के दृश्य, ज़रूर संकेत करते हैं की दोनों के मध्य अपार प्रेम है, परंतु मैं यही कहूंगा की वो सब शायद छलावा – मात्र है... पलक को बचपन से आर्यमणि के लिए ही तैयार किए गया है और आर्यमणि, वो तो है ही एक महानुभाव, सब जानते हुए भी अंजान बनना उसकी आदत है!

पलक का अनंत कीर्ति पुस्तक को लेकर अधीर होना भी संदेहास्पद है। क्यों वो इतनी अधीर थी उस पुस्तक को खोलने के लिए? ये जिज्ञासा – मात्र भी हो सकती है, उस राज़ से रूबरू होने की जिसके बारे में वो बचपन से सुनती आ रही है परंतु इस कहानी के पात्र इतने भी सीधे नहीं! मेरे ख्याल से पलक उस अनंत कीर्ति पुस्तक को या तो स्वयं पाना चाहती है या फिर इस षड्यंत्र के सरगना – उज्ज्वल अथवा सुकेश को उस पुस्तक का लाभ दिलवाना चाहती है। इसमें से कुछ है या फिर कोई अलग ही कारण, ये तो अनंत कीर्ति पुस्तक खुलने के बाद ही मालूम होगा परंतु यहां भी, आर्यमणि पलक के मंसूबों के बारे में सब कुछ जानता है, इसको लेकर मैं पूर्णतः आश्वस्त हूं।

बहरहाल, आर्यमणि और पलक ने अनंत कीर्ति पुस्तक को हासिल कर लिया है और प्योर अल्फा महोदय ने उस किताब को अपने बस्ते में छिपा भी लिया है। अनुष्ठान को लेकर जो कुछ कहा आर्यमणि ने उसमें ग्रहों की स्थितियां नहीं बल्कि आर्यमणि की योजना महत्वपूर्ण है। मैं विश्वास से कह सकता हूं की वो जान – बूझ कर पलक को टाल रहा है, शायद वो किसी विशेष दिन उस पुस्तक का उद्घाटन करना चाहता है। जो भी ही, अभी के लिए अनंत कीर्ति पुस्तक मुख्य – धारा में आ गई है, परंतु अभी सबसे पहले देखना होगा की आर्यमणि भाईसाहब पलक के कमरे में किस मंतव्य की पूर्ति के लिए पहुंचे हैं।

इन दोनों भागों में जो सबसे हास्यास्पद था वो था चित्र का प्यारा माधव। माधव एक मेधावी छात्र है परंतु अपनी कमज़ोर डील – डोल और आर्थिक स्थिति के कारण, खुद को चित्र से कमतर भी समझता है। खासकर तब जब निशांत और आर्यमणि उसके और चित्रा के बारे में व्यंग्य करते हैं। भले ही माधव और चित्र तन से समान ना हों, धन से समान ना हों परंतु मन से बिलकुल समान हैं। चित्रा का मन जुड़ा है उससे और माधव की बातों और हरकतों से भी यही लगता है की वो चित्रा से बेहद प्रेम करता है। देखते हैं आगे चलकर इनकी प्रेम कहानी क्या मुकाम हासिल करती है। माधव के पिताश्री को कौन राज़ी करेगा इस बंधन के लिए,ये भी देखने लायक होगा, मेरे ख्याल से आर्यमणि ही करेगा ये शुभ काम!

इस बीच धीरेन स्वामी नामक केंकडा पहुंच चुका है प्रहरी समुदाय के मध्य में और सारी स्थिति को अपने मुताबिक चलाने की सोच रहा है। सर्वप्रथम उसका ये सोचना की वो भूमि से अपने पुराने रिश्ते को पुनर्जीवित कर लेगा, व्यर्थ की बात है। वैसे मुझे लगता है की हो सकता है उस गीदड़ को सबके सामने बेनकाब करने के लिए, भूमि उसके समक्ष ऐसा नाटक करे, की वो भी उस रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहती है। धीरेन का आर्यमणि के सुझाव को इतना बड़ा रूप देना भी शायद भूमि की नज़रों में उठने के लिए फेंका गया पासा है, जो विफल ही होना चाहिए। अमृत पाठक की दोबारा फजीहत हो जाए तो चार चांद लग जाएंगे कहानी में...

खैर, अब इन दोनों भागों का मुख्य लक्ष्य कहानी को मुख्य – धारा में बनाए रखना था, ऐसा मैं समझता हूं। पिछले भागों में आए दमदार और रोमांचक दृश्यों के बाद मुझे इसी प्रकार के भागों की उम्मीद थी। अब अनंत कीर्ति पुस्तक और आर्यमणि – पलक प्रेम पर्व साथ – साथ चलेंगे शायद। बहरहाल, आर्यमणि नागपुर से जाने वाला था ना, जया और भूमि के सुझाव पर, वो घड़ी कब की है..?

बहुत ही खूबसूरत भाग थे भाई दोनों ही। खासकर आर्यमणि और उसके दोस्तों के मध्य की नोक – झोंक हास्यास्पद और सुंदर थी। हां, पलक और आर्यमणि के प्रेम प्रणय के दृश्य भी लाजवाब थे, परंतु जब तक पलक के साथ संदेह चलेगा, इन दोनों के सुंदर दृश्य भी अपनी चमक खोते रहेंगे...

प्रतीक्षा अगले भाग की...
मुझे तो अभी भी पलक और आर्यमणि के बीच जो भी घटित हुआ है वो सिर्फ ऐसा लगता है कि आर्यमणि को शिकार के लिए चारा चाहिये था और दूसरा लोगों को भ्रमित करना था,
और दोनों ही चीजों के लिए उसने पलक का उपयोग किया है भाई 🤔
 
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