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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
Awesome updates🎉👍
 

andyking302

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भाग:–39






50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।


लगभग ६ महीने से ऊपर हो गए थे, एक दिन जांच के दौरान आर्यमणि को सुराग भी मिल गया। घाटी के ठीक नीचे जो इलाका पहाड़ के ओर से लगता था, वहां का भू–भाग दोनो ही सूरत में एक जैसा था। आर्यमणि ने पहले तो सुनिश्चित किया और एक बार जब सुनिश्चित हो गया फिर वह निशांत के साथ उस जगह तक पहुंचा। दोनो दोस्त थोड़े उत्सुक दिख रहे थे। वहां पहुंच कर कुछ देर छानबीन करने के बाद निशांत... "यहां बस एक ही चीज अलग है। यहां की घास थोड़ी बड़ी है। इस से ज्यादा कुछ नहीं।"... निशांत चिढ़ते हुए बोला..


आर्यमणि उसके गुस्से को समझ रहा था, फिर भी निशांत को शांत रहकर सुराग ढूंढने के लिए कहने लगा। बस १० कदम का तो वह इलाका था और १०० बार जांच कर चुके थे। निशांत से नही रहा गया और अंत में वह घास ही उखाड़ने लगा। आर्यमणि उसकी चिढ़ देखकर हंस भी रहा था और सुराग क्या हो सकता था, उसपर विचार भी कर रहा था। आधी जमीन की घास उखड़ चुकी थी। निशांत, आर्यमणि पर भड़कते हुए, इस तिलस्म का खोज को बंद करने के लिए लगातार कह रहा था।


निशांत के मुट्ठी में घास, चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ते हुए वह जैसे ही दोनो हाथ से घास खींचा, भूमि ही पूरी हिलने लगी। जैसे ही भूमि डगमगाया, निशांत भूकंप–भूकंप चिल्लाते हुए आर्यमणि के पास पहुंच गया। जमीन की कंपन बस छणिक देर की थी। फिर तो उसके बाद जमीन फट गई और दोनो नीचे घुस गए... निशांत लगातार चिल्लाए जा रहा था, वहीं आर्यमणि खामोशी से सब देख रहा था। दोनो को ऐसा लगा जैसे किसी रेत पर गिरे हो। गिरते ही पूरी रेत शरीर में घुस गया।


अंदर पूरा अंधेरा था, रौशनी का नमो निशान तक नही... "आर्य हम कहां आ गए"..


आर्यमणि:– डरना बंद कर और प्रकाश कैसे आयेगा वह सोच...


निशांत:– अबे इतना अंधेरा है कि डर तो अपने आप ही लग जाता है... मेरे पास कुछ जलाने के लिए होता तो क्या अब तक जलाता नही। स्टन रॉड भी पास में नही।


आर्यमणि:– अब से एक लाइटर हमेशा रखेंगे..


निशांत:– वो तो जरूरी वस्तु की सूची में अब पहले स्थान पर होगा। आर्य कुछ कर.. ये अंधेरा मेरे दिल में घुसते जा रहा है। ज्यादा देर ऐसे रहा फिर मैं काला दिल वाला बन जाऊंगा।..


आर्यमणि:– बकवास छोड़ और २ पत्थर ढूंढ...


अब पत्थर भला कैसे मिले। पाऊं के नीचे तो रेत ही रेत थी। न जाने कितनी देर भटके हो। भटकते–भटकते उस जगह की किसी दीवार से टकराए हो। पत्थर की दीवार थी, और काफी कोशिश के बाद 2 छोटे–छोटे पत्थर हाथ लग गए। पत्थर से पत्थर टकराया। हल्की सी चिंगारी उठी। लेकिन उस हल्की चिंगारी में कुछ भी देख पाना मुश्किल था। फिर से पत्थर टकराए, और इस बार आर्यमणि बड़े ध्यान से चारो ओर देख रहा था। उस चिंगारी में आधा फिट भी नही देखा जा सकता था, लेकिन जितना दिखा उसमे पूरा उम्मीद दिख गया।


दीवार पर हाथ टटोलने से कुछ सूखे पौधे हाथ में आ गए। पत्थर घिसकर आग जलाई गई। आग की जब रौशनी हुई, तब पता चला कि दोनो एक खोह में है। नीचे रेत और चारो ओर पत्थर की दीवार। पत्थर की दीवार पर सूखे पौधे लटक रहे थे। आर्यमणि और निशांत उन पौधों को जलाते हुए आगे बढ़ने लगे। तकरीबन २०० मीटर आगे आए होंगे, फिर उस खोह में हल्की प्रकाश भी आने लगी। अंधेरा छंट चुका था और दोनो आगे बढ़ रहे थे। दोनो चलते–चलते एक जगह पर पहुंच गए जहां ऐसा लगा की वर्षों पहले यहां कोई रहता था।


सालों से पड़ी एक बिस्तर थी। बिस्तर के पास ही पत्थर को बिछाकर हल्का फ्लोर बनाया गया था, जिसपर बहुत सारे पांडुलिपि बिखरे हुए थे। वहीं एक किनारे पर एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। दोनो दोस्त चारो ओर का मुआयना करने के बाद, निशांत संदूक के ओर बढ़ा और आर्यमणि नीचे बिखरे पांडुलिपि पर से धूल झाड़कर उन्हें समेटने लगा।


इधर निशांत ने भी संदूक के ऊपर से धूल हटाई। संदूक की लकड़ी पर संस्कृत में कुछ गुदा हुआ था। बड़े ध्यान से देखने पर वहां एक संदेश लिख था... "एक भटके मुसाफिर को दूसरे भटके मुसाफिर का सुस्वागतम। तुम्हारी अच्छाई या बुराई तुम्हे यहां तक नही लेकर आयि। बस तुम्हारा और मेरा जज्बा एक है, इसलिए तुम यहां हो। तुम्हारे आगे के सफर के लिए मेरी ढेर सारी सुभकाननाएं"


निशांत बड़े ध्यान से संदेश पढ़ रहा था। साथ में आर्यमणि भी खड़ा हो गया। दोनो ने एक साथ संदूक को खोला, और अंदर की हालत देखकर झटके में संदूक के दरवाजे को छोड़ दिया... "किसका कंकाल है ये".. निशांत ने पूछा...


"लोपचे का भटकता मुसाफिर पारीयान लोपचे का..." आर्यमणि निशांत को कुछ दस्तावेज दिखाते हुए बोला।


दोनो वहीं बैठकर पारीयान की लिखी पांडुलिपि पढ़ने लगे। उस दौड़ में, सतपुरा के जंगलों में हुई लड़ाई से पारीयान इकलौता जिंदा तो लौटा, लेकिन शापित होकर। महाकाश्वर अपनी अंतिम श्वास गिन रहा था। पारीयान मकबरे को खोल चुका था। इस एक वक्त में २ भारी भूल हो गई। पहली पारीयान बिना परिणाम जाने ऐडियाना को उसकी इच्छा से दूर कर रहा था। और दूसरा योगियों ने महाकाश्वर को पूरा नही मारा, बस मरता छोड़ दिया। महाकाश्वर जनता था ऐडियाना की इच्छा को उसके मकबरे से अलग किया गया तो क्या होगा, बस केवल पारीयान लोपचे को कुछ नही होगा।


महाकाश्वर आखरी वक्त में भी सही समय के इंतजार में था। जैसे ही पुर्नस्थापित पत्थर को पारीयान ने अपने हाथों में लिया, ठीक उसी वक्त महाकाश्वर बहरूपिया चोगा पहना और पारीयान का भेष लेकर खुद पर ही रुधिर–कण श्राप और मोक्ष–विछोभ श्राप का मंत्र पढ़ लिया। रुधिर–कण श्राप से खून की कोशिकाएं टूट कर बाहर आने लगती थी। वहीं मोक्ष–विछोभ श्राप शरीर के अंदरूनी अंग को तोड़कर अंतिम मोक्ष देता था।


जैसे शरीर से पसीना निकलता है ठीक वैसे ही महाकाश्वर के शरीर से खून बहने लगा। शरीर के हर अंग अंदर से सिकुरने लगे थे और महाकाश्वर प्राण त्यागने से पहले दर्द का खौफनाक मंजर को महसूस करते हुए मर गया। जो दर्द महाकाश्वर ने सहे वही दर्द पारीयान को भी हो रहा था। पारीयान के शरीर से भी खून पसीना के भांति निकल रहा था और अंदर के अंग सिकुड़ता हुआ महसूस होने लगा।


पारीयान असहनीय पीड़ा से बिलबिला गया। किंतु वह एक अल्फा वुल्फ था, इसलिए उतनी ही तेजी से हिल भी हो रहा था। पारीयान समझ चुका था कि महाकाश्वर चाहता तो उसे एक झटके में मार सकता था, लेकिन जान–बूझ कर उसने अंतहीन दर्द के सागर में पारीयान को डुबो दिया। प्राण तो जायेंगे लेकिन तील–तील करके। पारीयान अभी तक तो अपने दर्द से पीड़ित था लेकिन बिलबिला कर जब भागा तब उसने ऐडियाना का प्रकोप भी देखा। भ्रमित अंगूठी के कारण उसे तो मौत ने नही छुए, लेकिन वहां सबकी लाश बिछ रही थी। एक कली परछाई तेजी से अंदर घुसती और प्राण बाहर निकाल देती।


लोपचे का भटकता मुसाफिर अपने अंत के नजदीक था। सभी पत्राचार करने के बाद किसी तरह पारीयाने पूर्वी हिमालय क्षेत्र पहुंचा। वहां भ्रमित अंगूठी और पुर्नस्थापित अंगूठी को सुरक्षित करने के बाद खुद को संदूक में बंद कर लिया। पारीयान लगभग ६ महीने उस खोह में बिताया। इस दौरान उसने अपनी कई यात्राओं के बारे में लिखा। उस दौड़ का एक पूरा इतिहास आर्यमणि और निशांत पढ़ रहा था। फिर सबसे आखरी में दोनो के हाथ में एक पोटली थी, जिसके अंदर रखी थी लोपचे के भटकते मुसाफिर का खजाना।


तत्काल समय... निशांत और आर्य


आर्यमणि के हाथ में पोटली थी और निशांत की आंखें आश्चर्य से फैली... "आर्य हमने क्या फैसला किया था? तुम उस गुफा में दोबारा गए ही क्यों?"


आर्यमणि:– क्योंकि जब मैं अपने ४ साल की यात्रा में था, तब मुझे पता चला कि ऐडियाना का मकबरा और लोपचे का भटकता मुसाफिर को कौन नहीं तलाश कर रहा। यदि पोटली की दोनो अंगूठी किसी गलत हाथ में लग जाती तो तुम समझते हो क्या होता?


निशांत:– हम्मम.. तो अब क्या सोचा है...


आर्यमणि– संसार की सबसे रहस्यमयि और ताकतवर औरत के पास जा रहे। एक अंगूठी तुम्हारी एक अंगूठी मेरी।


निशांत:– मुझे दोनो चाहिए...


आर्यमणि:– ठीक है दोनो लेले...


निशांत:– हाहाहा... महादानी आर्यमणि। अच्छा चल तू बता तुझे कौन सी अंगूठी चाहिए...


आर्यमणि:– तुझसे जो बच जाए...


निशांत:– ठीक है फिर मुझे वो पुर्नस्थापित अंगूठी दे दे।


आर्यमणि:– वो अंगूठी मत ले। पुनर्स्थापित अंगूठी चुराई हुई है, उसके मालिक हम नही। शायद किसी दिन लौटानी पड़े। तू भ्रमित अंगूठी ले ले।


निशांत:– हां मैं ये बात जनता हूं। मेरे जंगल के दिन खत्म हो गए पर शायद तू बहुत से खतरों से घिरा है इसलिए तू ही भ्रमित अंगूठी रख।


आर्यमणि:– अब तू ले, तू ले का दौड़ शुरू मत कर... इस से अच्छा हम टॉस कर लेते है।


निशांत:– आज तक कभी ऐसा हुआ है, टॉस का नतीजा मेरे पक्ष में गया हो।


आर्यमणि:– तू चुतिया है...


निशांत:– तू भोसडी वाला है..

आर्यमणि:– तू हारामि है..


निशांत:– जा कुत्ते से पिछवाड़ा मरवा ले..


आर्यमणि:– तू जाकर मरवा ले। वैसे भी हर २ दिन पर कोई न लड़की तेरी मार कर ही जाती है।


निशांत, एक जोरदार मुक्का जबड़े पर मारते.…. "बीच में लड़की को न घुसेड़। वरना मैं गंभीर आर्य के रंगीन किस्से वायरल कर दूंगा..."


आर्यमणि, निशांत के गले में अपनी बांह फसाकर उसे दबाते.… "साले झूठे, एक बार झूठी अफवाह फैला चुका है। दूसरी बार ये किया न तो मैं तुझे बताता हूं।"


"लगता है २ लड़कों की रास लीला शुरू होने वाली है।"… कमरे में अचानक ही रिचा पहुंच गई। आर्यमणि और निशांत दोनो सीधे खड़े हो गए। अभी कुछ बोलते ही की उस से पहले भूमि पहुंच गई... "रिचा तुमने बता दिया"..


आर्यमणि:– क्या बताना था?


भूमि:– रिचा की टीम के साथ तुम कनेक्ट रहना। कोई खतरा लगे तब तुरंत सूचना देना...


निशांत:– ठीक है दीदी, अब हम अपनी तैयारी कर ले..


इतने में रिचा बंद पोटली अपने हाथ में उठाती... "तुम दोनो क्या कोई तंत्र–मंत्र करने वाले हो?"..


निशांत:– उस पोटली में शेरनी की पोट्टी है। जंगल के रास्ते में बिखेड़ते जायेंगे। इस से शेर भ्रमित होकर शेरनी की तलाश करने लगेंगे और हम सुरक्षित है। तुम भी एक पोटली ले आओ, तुम्हे भी दे देता हूं..


रिचा:– ईईयूयू… ऐसा कौन करता है...


आर्यमणि:– असली शिकारी...


रिचा:– तुम्हारे कहने का क्या मतलब है, हम नकली शिकारी है?


भूमि:– तुम लोगों को झगड़ने का बहुत मौका मिलेगा, अभी सब लोग जाने की तैयारी करो। रिचा तुम मेरे साथ घर चलो.. (भूमि अपने ससुराल की बात कर रही थी। इस वक्त वो अपने मायके में है)…


उन लोगों के जाते ही, आर्यमणि, निशांत को एक थप्पड़ लगाते... "तेरे बकवास के चक्कर में ये पोटली उनके सामने आ गई न"…


निशांत:– तो तू मेरी बात मान क्यों नही लेता...


आर्यमणि:– तू मेरी फिक्र छोड़ भाई... और भ्रमित अंगूठी पहन ले...


निशांत:– एक शर्त पर...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– मुझे तेरा वुल्फ वाला रूप देखना है...


आर्यमणि:– तू अंगूठी पहन ज्यादा बकवास न कर...


आर्यमणि जबतक कह रहा था, निशांत अपनी उंगली में भ्रमित अंगूठी डाल चुका था और आर्यमणि के ओर पुर्नस्थापित अंगूठी को उछालते हुए... "पहन ले और चलकर शॉपिंग करते है।"…


आर्यमणि और निशांत दोनो तेजस के शॉपिंग मॉल पहुंचे। वहां से दोनो ने ढेर सारा ट्रैप वायर खरीदा। कुछ ड्रोन और नाना प्रकार के इत्यादि–इत्यादि चीजें। दोनो अपने शॉपिंग के बीच में ही थे जब भूमि ने आर्यमणि और निशांत को भी अपने घर बुला लिया। दोनो शॉपिंग के बाद सीधा भूमि के पास पहुंच गए। रिचा और उसकी टीम पहले से वहां थी। हथियारखाने से वो लोग अपने असला–बारूद अपने कार में भर रहे थे। भूमि, आर्यमणि और निशांत को भी हथियारखाने में बुलाती... "अपनी पसंद का हथियार उठा लो"…


रिचा का ब्वॉयफ्रेंड, मानस.… बच्चे हथियार चलाना भी आता है या नही"…


निशांत:– चिचा अब एक घंटे में हथियार चलाना तो नही सीखा सकते ना। और वैसे भी नौसिख्ये शिकारी को हथियार की जरूरत पड़ती है।


मानस:– तू तो अभी तक प्रहरी का अस्थाई सदस्य ही है, फिर भी खुद को बड़ा शिकारी समझता है।


निशांत:– पहली बात मैं प्रहरी समुदाय का हिस्सा नहीं। बस पलक के साथ चला गया था। दूसरी बात किसी का बड़ा शिकारी होने के लिए प्रहरी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.…


मानस:– कभी वुल्फ से पाला पड़ा है...


निशांत:– लोपचे का पैक भूल गए क्या? वो तो उसी जंगल में रहते थे जहां हम ८ साल की उम्र में लघुसंका करने निकल जाया करते थे।


रिचा का एक साथी तेनु.… "इतनी बहसबाजी क्यूं? शिकार के लिए तो चल ही रहे है, वहीं फैसला हो जायेगा। लेकिन बच्चों को सबसे हैवी और ऑटोमेटिक राइफल देना। कल को ये न कहे की उनके मुकाबले हमारा बंदूक ज्यादा ताकतवर था।"


आर्यमणि, निशांत को अपने साथ बाहर ले जाते... "आर्मस लाइसेंस नही है हमारे पास और हम गैर कानूनी काम नही करते।"… पीछे से कुछ आवाज आई लेकिन आर्यमणि, निशांत के मुंह पर हाथ रख कर गराज चला आया.… "बता कौन सी गाड़ी से जंगल में चलेंगे"


निशांत:– रेंजर वाली जीप ही सही है... वैसे हम कितने लोग है..


आर्यमणि:– हम ५ लोग हैं। सबको उठाते हुए चलेंगे...


शाम के 5 बजे के करीब सभी टीम रवाना हो गई। तेजस की टीम ३ गाड़ियों में निकली। सुकेश की टीम भी २ गाड़ियों में निकली। वहीं इकलौती पलक की टीम थी जो १ गाड़ी में बैठी थी। सभी लोग नागपुर से छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के रास्ते पचमढ़ी हिल स्टेशन पहुंच गए। जो होशंगाबाद जिले में पड़ती थी। इस हिल स्टेशन को सतपुरा की रानी भी कहा जाता है। रात के १ बजे के करीब सभी पचमढ़ी के एक रिसॉर्ट में पहुंच चुके थे।


सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


शानदार जबरदस्त भाई
 

andyking302

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भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।

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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।

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जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update
 

andyking302

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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
शानदार जबरदस्त लाजवाब update bhai
 

andyking302

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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।


संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
जबरदस्त भाई लाजवाब update
 

Death Kiñg

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Namastey Death king bhaiya ..... aur apsyu ke fans kyu nhi ho sakte aur kya pata aap bhi ho par batate na ho:derisive:.....me serious nhi ho raha bhaiya :gulel:
Zindagi mein bohot paap kiye par aisa paap.. :pray:
wo to bus wo bhai ne bola to jawab diya bus ...... aur wo na mene wo bhai ke comments padhe to wo thode ese hi rude ya idk word smjh nhi aa raha but thode ese hi reply de rahe the to meko laga to isliye itna bada reply de diya aur kuch nhi :blush1:
Are nahi nahi bhai, jis bande ne Nain bhai ke liye hi apni ID banayi ho, (username), wo kaise rude ho sakta hai Nain bhai se.. :D
wese aap sahi me bhot ache reviews dete ho aur bhot sahi pakadte ho hints wgeraha ......... update ke bad apke review hua aur sanju bhaiya ka aur Xabhi ...... aur ek Naina ji wo bhi ache reviews deti thi
:dost:
 

Mahendra Baranwal

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
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andyking302

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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"

"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
शानदार जबरदस्त लाजवाब update bhai jann superree duperrere
 
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