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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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nain11ster

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भाग:–39






50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।


लगभग ६ महीने से ऊपर हो गए थे, एक दिन जांच के दौरान आर्यमणि को सुराग भी मिल गया। घाटी के ठीक नीचे जो इलाका पहाड़ के ओर से लगता था, वहां का भू–भाग दोनो ही सूरत में एक जैसा था। आर्यमणि ने पहले तो सुनिश्चित किया और एक बार जब सुनिश्चित हो गया फिर वह निशांत के साथ उस जगह तक पहुंचा। दोनो दोस्त थोड़े उत्सुक दिख रहे थे। वहां पहुंच कर कुछ देर छानबीन करने के बाद निशांत... "यहां बस एक ही चीज अलग है। यहां की घास थोड़ी बड़ी है। इस से ज्यादा कुछ नहीं।"... निशांत चिढ़ते हुए बोला..


आर्यमणि उसके गुस्से को समझ रहा था, फिर भी निशांत को शांत रहकर सुराग ढूंढने के लिए कहने लगा। बस १० कदम का तो वह इलाका था और १०० बार जांच कर चुके थे। निशांत से नही रहा गया और अंत में वह घास ही उखाड़ने लगा। आर्यमणि उसकी चिढ़ देखकर हंस भी रहा था और सुराग क्या हो सकता था, उसपर विचार भी कर रहा था। आधी जमीन की घास उखड़ चुकी थी। निशांत, आर्यमणि पर भड़कते हुए, इस तिलस्म का खोज को बंद करने के लिए लगातार कह रहा था।


निशांत के मुट्ठी में घास, चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ते हुए वह जैसे ही दोनो हाथ से घास खींचा, भूमि ही पूरी हिलने लगी। जैसे ही भूमि डगमगाया, निशांत भूकंप–भूकंप चिल्लाते हुए आर्यमणि के पास पहुंच गया। जमीन की कंपन बस छणिक देर की थी। फिर तो उसके बाद जमीन फट गई और दोनो नीचे घुस गए... निशांत लगातार चिल्लाए जा रहा था, वहीं आर्यमणि खामोशी से सब देख रहा था। दोनो को ऐसा लगा जैसे किसी रेत पर गिरे हो। गिरते ही पूरी रेत शरीर में घुस गया।


अंदर पूरा अंधेरा था, रौशनी का नमो निशान तक नही... "आर्य हम कहां आ गए"..


आर्यमणि:– डरना बंद कर और प्रकाश कैसे आयेगा वह सोच...


निशांत:– अबे इतना अंधेरा है कि डर तो अपने आप ही लग जाता है... मेरे पास कुछ जलाने के लिए होता तो क्या अब तक जलाता नही। स्टन रॉड भी पास में नही।


आर्यमणि:– अब से एक लाइटर हमेशा रखेंगे..


निशांत:– वो तो जरूरी वस्तु की सूची में अब पहले स्थान पर होगा। आर्य कुछ कर.. ये अंधेरा मेरे दिल में घुसते जा रहा है। ज्यादा देर ऐसे रहा फिर मैं काला दिल वाला बन जाऊंगा।..


आर्यमणि:– बकवास छोड़ और २ पत्थर ढूंढ...


अब पत्थर भला कैसे मिले। पाऊं के नीचे तो रेत ही रेत थी। न जाने कितनी देर भटके हो। भटकते–भटकते उस जगह की किसी दीवार से टकराए हो। पत्थर की दीवार थी, और काफी कोशिश के बाद 2 छोटे–छोटे पत्थर हाथ लग गए। पत्थर से पत्थर टकराया। हल्की सी चिंगारी उठी। लेकिन उस हल्की चिंगारी में कुछ भी देख पाना मुश्किल था। फिर से पत्थर टकराए, और इस बार आर्यमणि बड़े ध्यान से चारो ओर देख रहा था। उस चिंगारी में आधा फिट भी नही देखा जा सकता था, लेकिन जितना दिखा उसमे पूरा उम्मीद दिख गया।


दीवार पर हाथ टटोलने से कुछ सूखे पौधे हाथ में आ गए। पत्थर घिसकर आग जलाई गई। आग की जब रौशनी हुई, तब पता चला कि दोनो एक खोह में है। नीचे रेत और चारो ओर पत्थर की दीवार। पत्थर की दीवार पर सूखे पौधे लटक रहे थे। आर्यमणि और निशांत उन पौधों को जलाते हुए आगे बढ़ने लगे। तकरीबन २०० मीटर आगे आए होंगे, फिर उस खोह में हल्की प्रकाश भी आने लगी। अंधेरा छंट चुका था और दोनो आगे बढ़ रहे थे। दोनो चलते–चलते एक जगह पर पहुंच गए जहां ऐसा लगा की वर्षों पहले यहां कोई रहता था।


सालों से पड़ी एक बिस्तर थी। बिस्तर के पास ही पत्थर को बिछाकर हल्का फ्लोर बनाया गया था, जिसपर बहुत सारे पांडुलिपि बिखरे हुए थे। वहीं एक किनारे पर एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। दोनो दोस्त चारो ओर का मुआयना करने के बाद, निशांत संदूक के ओर बढ़ा और आर्यमणि नीचे बिखरे पांडुलिपि पर से धूल झाड़कर उन्हें समेटने लगा।


इधर निशांत ने भी संदूक के ऊपर से धूल हटाई। संदूक की लकड़ी पर संस्कृत में कुछ गुदा हुआ था। बड़े ध्यान से देखने पर वहां एक संदेश लिख था... "एक भटके मुसाफिर को दूसरे भटके मुसाफिर का सुस्वागतम। तुम्हारी अच्छाई या बुराई तुम्हे यहां तक नही लेकर आयि। बस तुम्हारा और मेरा जज्बा एक है, इसलिए तुम यहां हो। तुम्हारे आगे के सफर के लिए मेरी ढेर सारी सुभकाननाएं"


निशांत बड़े ध्यान से संदेश पढ़ रहा था। साथ में आर्यमणि भी खड़ा हो गया। दोनो ने एक साथ संदूक को खोला, और अंदर की हालत देखकर झटके में संदूक के दरवाजे को छोड़ दिया... "किसका कंकाल है ये".. निशांत ने पूछा...


"लोपचे का भटकता मुसाफिर पारीयान लोपचे का..." आर्यमणि निशांत को कुछ दस्तावेज दिखाते हुए बोला।


दोनो वहीं बैठकर पारीयान की लिखी पांडुलिपि पढ़ने लगे। उस दौड़ में, सतपुरा के जंगलों में हुई लड़ाई से पारीयान इकलौता जिंदा तो लौटा, लेकिन शापित होकर। महाकाश्वर अपनी अंतिम श्वास गिन रहा था। पारीयान मकबरे को खोल चुका था। इस एक वक्त में २ भारी भूल हो गई। पहली पारीयान बिना परिणाम जाने ऐडियाना को उसकी इच्छा से दूर कर रहा था। और दूसरा योगियों ने महाकाश्वर को पूरा नही मारा, बस मरता छोड़ दिया। महाकाश्वर जनता था ऐडियाना की इच्छा को उसके मकबरे से अलग किया गया तो क्या होगा, बस केवल पारीयान लोपचे को कुछ नही होगा।


महाकाश्वर आखरी वक्त में भी सही समय के इंतजार में था। जैसे ही पुर्नस्थापित पत्थर को पारीयान ने अपने हाथों में लिया, ठीक उसी वक्त महाकाश्वर बहरूपिया चोगा पहना और पारीयान का भेष लेकर खुद पर ही रुधिर–कण श्राप और मोक्ष–विछोभ श्राप का मंत्र पढ़ लिया। रुधिर–कण श्राप से खून की कोशिकाएं टूट कर बाहर आने लगती थी। वहीं मोक्ष–विछोभ श्राप शरीर के अंदरूनी अंग को तोड़कर अंतिम मोक्ष देता था।


जैसे शरीर से पसीना निकलता है ठीक वैसे ही महाकाश्वर के शरीर से खून बहने लगा। शरीर के हर अंग अंदर से सिकुरने लगे थे और महाकाश्वर प्राण त्यागने से पहले दर्द का खौफनाक मंजर को महसूस करते हुए मर गया। जो दर्द महाकाश्वर ने सहे वही दर्द पारीयान को भी हो रहा था। पारीयान के शरीर से भी खून पसीना के भांति निकल रहा था और अंदर के अंग सिकुड़ता हुआ महसूस होने लगा।


पारीयान असहनीय पीड़ा से बिलबिला गया। किंतु वह एक अल्फा वुल्फ था, इसलिए उतनी ही तेजी से हिल भी हो रहा था। पारीयान समझ चुका था कि महाकाश्वर चाहता तो उसे एक झटके में मार सकता था, लेकिन जान–बूझ कर उसने अंतहीन दर्द के सागर में पारीयान को डुबो दिया। प्राण तो जायेंगे लेकिन तील–तील करके। पारीयान अभी तक तो अपने दर्द से पीड़ित था लेकिन बिलबिला कर जब भागा तब उसने ऐडियाना का प्रकोप भी देखा। भ्रमित अंगूठी के कारण उसे तो मौत ने नही छुए, लेकिन वहां सबकी लाश बिछ रही थी। एक कली परछाई तेजी से अंदर घुसती और प्राण बाहर निकाल देती।


लोपचे का भटकता मुसाफिर अपने अंत के नजदीक था। सभी पत्राचार करने के बाद किसी तरह पारीयाने पूर्वी हिमालय क्षेत्र पहुंचा। वहां भ्रमित अंगूठी और पुर्नस्थापित अंगूठी को सुरक्षित करने के बाद खुद को संदूक में बंद कर लिया। पारीयान लगभग ६ महीने उस खोह में बिताया। इस दौरान उसने अपनी कई यात्राओं के बारे में लिखा। उस दौड़ का एक पूरा इतिहास आर्यमणि और निशांत पढ़ रहा था। फिर सबसे आखरी में दोनो के हाथ में एक पोटली थी, जिसके अंदर रखी थी लोपचे के भटकते मुसाफिर का खजाना।


तत्काल समय... निशांत और आर्य


आर्यमणि के हाथ में पोटली थी और निशांत की आंखें आश्चर्य से फैली... "आर्य हमने क्या फैसला किया था? तुम उस गुफा में दोबारा गए ही क्यों?"


आर्यमणि:– क्योंकि जब मैं अपने ४ साल की यात्रा में था, तब मुझे पता चला कि ऐडियाना का मकबरा और लोपचे का भटकता मुसाफिर को कौन नहीं तलाश कर रहा। यदि पोटली की दोनो अंगूठी किसी गलत हाथ में लग जाती तो तुम समझते हो क्या होता?


निशांत:– हम्मम.. तो अब क्या सोचा है...


आर्यमणि– संसार की सबसे रहस्यमयि और ताकतवर औरत के पास जा रहे। एक अंगूठी तुम्हारी एक अंगूठी मेरी।


निशांत:– मुझे दोनो चाहिए...


आर्यमणि:– ठीक है दोनो लेले...


निशांत:– हाहाहा... महादानी आर्यमणि। अच्छा चल तू बता तुझे कौन सी अंगूठी चाहिए...


आर्यमणि:– तुझसे जो बच जाए...


निशांत:– ठीक है फिर मुझे वो पुर्नस्थापित अंगूठी दे दे।


आर्यमणि:– वो अंगूठी मत ले। पुनर्स्थापित अंगूठी चुराई हुई है, उसके मालिक हम नही। शायद किसी दिन लौटानी पड़े। तू भ्रमित अंगूठी ले ले।


निशांत:– हां मैं ये बात जनता हूं। मेरे जंगल के दिन खत्म हो गए पर शायद तू बहुत से खतरों से घिरा है इसलिए तू ही भ्रमित अंगूठी रख।


आर्यमणि:– अब तू ले, तू ले का दौड़ शुरू मत कर... इस से अच्छा हम टॉस कर लेते है।


निशांत:– आज तक कभी ऐसा हुआ है, टॉस का नतीजा मेरे पक्ष में गया हो।


आर्यमणि:– तू चुतिया है...


निशांत:– तू भोसडी वाला है..

आर्यमणि:– तू हारामि है..


निशांत:– जा कुत्ते से पिछवाड़ा मरवा ले..


आर्यमणि:– तू जाकर मरवा ले। वैसे भी हर २ दिन पर कोई न लड़की तेरी मार कर ही जाती है।


निशांत, एक जोरदार मुक्का जबड़े पर मारते.…. "बीच में लड़की को न घुसेड़। वरना मैं गंभीर आर्य के रंगीन किस्से वायरल कर दूंगा..."


आर्यमणि, निशांत के गले में अपनी बांह फसाकर उसे दबाते.… "साले झूठे, एक बार झूठी अफवाह फैला चुका है। दूसरी बार ये किया न तो मैं तुझे बताता हूं।"


"लगता है २ लड़कों की रास लीला शुरू होने वाली है।"… कमरे में अचानक ही रिचा पहुंच गई। आर्यमणि और निशांत दोनो सीधे खड़े हो गए। अभी कुछ बोलते ही की उस से पहले भूमि पहुंच गई... "रिचा तुमने बता दिया"..


आर्यमणि:– क्या बताना था?


भूमि:– रिचा की टीम के साथ तुम कनेक्ट रहना। कोई खतरा लगे तब तुरंत सूचना देना...


निशांत:– ठीक है दीदी, अब हम अपनी तैयारी कर ले..


इतने में रिचा बंद पोटली अपने हाथ में उठाती... "तुम दोनो क्या कोई तंत्र–मंत्र करने वाले हो?"..


निशांत:– उस पोटली में शेरनी की पोट्टी है। जंगल के रास्ते में बिखेड़ते जायेंगे। इस से शेर भ्रमित होकर शेरनी की तलाश करने लगेंगे और हम सुरक्षित है। तुम भी एक पोटली ले आओ, तुम्हे भी दे देता हूं..


रिचा:– ईईयूयू… ऐसा कौन करता है...


आर्यमणि:– असली शिकारी...


रिचा:– तुम्हारे कहने का क्या मतलब है, हम नकली शिकारी है?


भूमि:– तुम लोगों को झगड़ने का बहुत मौका मिलेगा, अभी सब लोग जाने की तैयारी करो। रिचा तुम मेरे साथ घर चलो.. (भूमि अपने ससुराल की बात कर रही थी। इस वक्त वो अपने मायके में है)…


उन लोगों के जाते ही, आर्यमणि, निशांत को एक थप्पड़ लगाते... "तेरे बकवास के चक्कर में ये पोटली उनके सामने आ गई न"…


निशांत:– तो तू मेरी बात मान क्यों नही लेता...


आर्यमणि:– तू मेरी फिक्र छोड़ भाई... और भ्रमित अंगूठी पहन ले...


निशांत:– एक शर्त पर...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– मुझे तेरा वुल्फ वाला रूप देखना है...


आर्यमणि:– तू अंगूठी पहन ज्यादा बकवास न कर...


आर्यमणि जबतक कह रहा था, निशांत अपनी उंगली में भ्रमित अंगूठी डाल चुका था और आर्यमणि के ओर पुर्नस्थापित अंगूठी को उछालते हुए... "पहन ले और चलकर शॉपिंग करते है।"…


आर्यमणि और निशांत दोनो तेजस के शॉपिंग मॉल पहुंचे। वहां से दोनो ने ढेर सारा ट्रैप वायर खरीदा। कुछ ड्रोन और नाना प्रकार के इत्यादि–इत्यादि चीजें। दोनो अपने शॉपिंग के बीच में ही थे जब भूमि ने आर्यमणि और निशांत को भी अपने घर बुला लिया। दोनो शॉपिंग के बाद सीधा भूमि के पास पहुंच गए। रिचा और उसकी टीम पहले से वहां थी। हथियारखाने से वो लोग अपने असला–बारूद अपने कार में भर रहे थे। भूमि, आर्यमणि और निशांत को भी हथियारखाने में बुलाती... "अपनी पसंद का हथियार उठा लो"…


रिचा का ब्वॉयफ्रेंड, मानस.… बच्चे हथियार चलाना भी आता है या नही"…


निशांत:– चिचा अब एक घंटे में हथियार चलाना तो नही सीखा सकते ना। और वैसे भी नौसिख्ये शिकारी को हथियार की जरूरत पड़ती है।


मानस:– तू तो अभी तक प्रहरी का अस्थाई सदस्य ही है, फिर भी खुद को बड़ा शिकारी समझता है।


निशांत:– पहली बात मैं प्रहरी समुदाय का हिस्सा नहीं। बस पलक के साथ चला गया था। दूसरी बात किसी का बड़ा शिकारी होने के लिए प्रहरी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.…


मानस:– कभी वुल्फ से पाला पड़ा है...


निशांत:– लोपचे का पैक भूल गए क्या? वो तो उसी जंगल में रहते थे जहां हम ८ साल की उम्र में लघुसंका करने निकल जाया करते थे।


रिचा का एक साथी तेनु.… "इतनी बहसबाजी क्यूं? शिकार के लिए तो चल ही रहे है, वहीं फैसला हो जायेगा। लेकिन बच्चों को सबसे हैवी और ऑटोमेटिक राइफल देना। कल को ये न कहे की उनके मुकाबले हमारा बंदूक ज्यादा ताकतवर था।"


आर्यमणि, निशांत को अपने साथ बाहर ले जाते... "आर्मस लाइसेंस नही है हमारे पास और हम गैर कानूनी काम नही करते।"… पीछे से कुछ आवाज आई लेकिन आर्यमणि, निशांत के मुंह पर हाथ रख कर गराज चला आया.… "बता कौन सी गाड़ी से जंगल में चलेंगे"


निशांत:– रेंजर वाली जीप ही सही है... वैसे हम कितने लोग है..


आर्यमणि:– हम ५ लोग हैं। सबको उठाते हुए चलेंगे...


शाम के 5 बजे के करीब सभी टीम रवाना हो गई। तेजस की टीम ३ गाड़ियों में निकली। सुकेश की टीम भी २ गाड़ियों में निकली। वहीं इकलौती पलक की टीम थी जो १ गाड़ी में बैठी थी। सभी लोग नागपुर से छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के रास्ते पचमढ़ी हिल स्टेशन पहुंच गए। जो होशंगाबाद जिले में पड़ती थी। इस हिल स्टेशन को सतपुरा की रानी भी कहा जाता है। रात के १ बजे के करीब सभी पचमढ़ी के एक रिसॉर्ट में पहुंच चुके थे।


सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।
 

Sk.

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Ji dhanywad mitr...

Sabse pahle to kahani ke thread par aapka swagat hai... Teen wolf ka main bahut bada prasansak raha hun isliye uss se prerit hokar... Bhartiya parivesh me iss kahani ki sanrachna ki hai... Prerna teen wolf ki hai par kahani me to dur dur tak ka kahin se koi samband nahi...

Lekin haan teen wolf lovers ko teen wolf ka ehsas hote rahe iske liye maine kuch ek scenes ko kahani me jagah di hai... Like wo aag wala hissa... Dusra wo vetnary ka doctor, teesra wo nemeton ko khojne ke liye jo fridge kiya gaya tha.. aur bhi kuch scens hai jo mujhe lage ki meri kahani me hone chahiye wah maine apne plot ke hisab se daal diye ..

Baki aapka dhanywaad... Jo aapne kahani ko saraha...

Sath bane rahe :hug: ...
Masti me padhte rahe :toohappy: :toohappy:
aur apne vichar dete rahe... :yo: :yay: :yo:

प्रणाम मित्र
आप ने बिल्कुल सही कहा कुछ दृश्य देख कर लगाता है कि ये कहानी Teen Wolf का हिंदी संस्करण है खास कर मादा भेड़िया जो कि आप ने coyoti के बारे मे भी विस्तार से वर्णन किया है और भी कुछ दृश्य जो दिखाए है लगाता है कि teen wolf ही देख रहा हूँ भारतीय परिवेश मैं पर फिर आप अलग ही दृश्य ला देते है
दिमाग भी चकरा जाता है कि भाई ये क्या हो गया 😂

वाकई मित्र उम्दा कहानी की रचना की है आप ने संशय और रोमांच बना कर रखिए कहानी काफी दूर जाएगी क्यू की राज बहुत है सबके

Teen Wolf मेरी भी पसंदीदा सीरीज हैं भाई 3 बार देखी है 😁
 

11 ster fan

Lazy villain
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Maine madhav ka charitr chitran bilkul aapko hi dhyan me rakh kar kiya tha... Madhav ka prayavachi anky hi hai.. anky bhai... Na vishwas ho to Kasam hai mujhe 11 ster fan ke jabardasti kiye gaye negative comment ki 😙😙😙😙 yadi iss Kasam par bhi vishwas na ho to main Xabhi bhai ke mastikhor thread ki kasam utha leta hun...
भाईयो और उन्हीं भाईयो की बहनों मेरे रेवो के बारे में गलत धारणा बताया जा रहा है।।।कृपया करके मेरे मूल रेवो को ही सही धारणा माना जाए , उस पर किसी भी प्रकार के विरोध को एक अफवाह मनी जाए।।।।
 

Sk.

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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।


आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
प्रणाम मित्र

एक और अद्भुत, रोमांचक और संशय से भरा अनुच्छेद 🙏

[ दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।] इस अनुच्छेद की सबसे बेहतरीन दृश्य है ये 😂
 

Sk.

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भाग:–39






50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।


लगभग ६ महीने से ऊपर हो गए थे, एक दिन जांच के दौरान आर्यमणि को सुराग भी मिल गया। घाटी के ठीक नीचे जो इलाका पहाड़ के ओर से लगता था, वहां का भू–भाग दोनो ही सूरत में एक जैसा था। आर्यमणि ने पहले तो सुनिश्चित किया और एक बार जब सुनिश्चित हो गया फिर वह निशांत के साथ उस जगह तक पहुंचा। दोनो दोस्त थोड़े उत्सुक दिख रहे थे। वहां पहुंच कर कुछ देर छानबीन करने के बाद निशांत... "यहां बस एक ही चीज अलग है। यहां की घास थोड़ी बड़ी है। इस से ज्यादा कुछ नहीं।"... निशांत चिढ़ते हुए बोला..


आर्यमणि उसके गुस्से को समझ रहा था, फिर भी निशांत को शांत रहकर सुराग ढूंढने के लिए कहने लगा। बस १० कदम का तो वह इलाका था और १०० बार जांच कर चुके थे। निशांत से नही रहा गया और अंत में वह घास ही उखाड़ने लगा। आर्यमणि उसकी चिढ़ देखकर हंस भी रहा था और सुराग क्या हो सकता था, उसपर विचार भी कर रहा था। आधी जमीन की घास उखड़ चुकी थी। निशांत, आर्यमणि पर भड़कते हुए, इस तिलस्म का खोज को बंद करने के लिए लगातार कह रहा था।


निशांत के मुट्ठी में घास, चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ते हुए वह जैसे ही दोनो हाथ से घास खींचा, भूमि ही पूरी हिलने लगी। जैसे ही भूमि डगमगाया, निशांत भूकंप–भूकंप चिल्लाते हुए आर्यमणि के पास पहुंच गया। जमीन की कंपन बस छणिक देर की थी। फिर तो उसके बाद जमीन फट गई और दोनो नीचे घुस गए... निशांत लगातार चिल्लाए जा रहा था, वहीं आर्यमणि खामोशी से सब देख रहा था। दोनो को ऐसा लगा जैसे किसी रेत पर गिरे हो। गिरते ही पूरी रेत शरीर में घुस गया।


अंदर पूरा अंधेरा था, रौशनी का नमो निशान तक नही... "आर्य हम कहां आ गए"..


आर्यमणि:– डरना बंद कर और प्रकाश कैसे आयेगा वह सोच...


निशांत:– अबे इतना अंधेरा है कि डर तो अपने आप ही लग जाता है... मेरे पास कुछ जलाने के लिए होता तो क्या अब तक जलाता नही। स्टन रॉड भी पास में नही।


आर्यमणि:– अब से एक लाइटर हमेशा रखेंगे..


निशांत:– वो तो जरूरी वस्तु की सूची में अब पहले स्थान पर होगा। आर्य कुछ कर.. ये अंधेरा मेरे दिल में घुसते जा रहा है। ज्यादा देर ऐसे रहा फिर मैं काला दिल वाला बन जाऊंगा।..


आर्यमणि:– बकवास छोड़ और २ पत्थर ढूंढ...


अब पत्थर भला कैसे मिले। पाऊं के नीचे तो रेत ही रेत थी। न जाने कितनी देर भटके हो। भटकते–भटकते उस जगह की किसी दीवार से टकराए हो। पत्थर की दीवार थी, और काफी कोशिश के बाद 2 छोटे–छोटे पत्थर हाथ लग गए। पत्थर से पत्थर टकराया। हल्की सी चिंगारी उठी। लेकिन उस हल्की चिंगारी में कुछ भी देख पाना मुश्किल था। फिर से पत्थर टकराए, और इस बार आर्यमणि बड़े ध्यान से चारो ओर देख रहा था। उस चिंगारी में आधा फिट भी नही देखा जा सकता था, लेकिन जितना दिखा उसमे पूरा उम्मीद दिख गया।


दीवार पर हाथ टटोलने से कुछ सूखे पौधे हाथ में आ गए। पत्थर घिसकर आग जलाई गई। आग की जब रौशनी हुई, तब पता चला कि दोनो एक खोह में है। नीचे रेत और चारो ओर पत्थर की दीवार। पत्थर की दीवार पर सूखे पौधे लटक रहे थे। आर्यमणि और निशांत उन पौधों को जलाते हुए आगे बढ़ने लगे। तकरीबन २०० मीटर आगे आए होंगे, फिर उस खोह में हल्की प्रकाश भी आने लगी। अंधेरा छंट चुका था और दोनो आगे बढ़ रहे थे। दोनो चलते–चलते एक जगह पर पहुंच गए जहां ऐसा लगा की वर्षों पहले यहां कोई रहता था।


सालों से पड़ी एक बिस्तर थी। बिस्तर के पास ही पत्थर को बिछाकर हल्का फ्लोर बनाया गया था, जिसपर बहुत सारे पांडुलिपि बिखरे हुए थे। वहीं एक किनारे पर एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। दोनो दोस्त चारो ओर का मुआयना करने के बाद, निशांत संदूक के ओर बढ़ा और आर्यमणि नीचे बिखरे पांडुलिपि पर से धूल झाड़कर उन्हें समेटने लगा।


इधर निशांत ने भी संदूक के ऊपर से धूल हटाई। संदूक की लकड़ी पर संस्कृत में कुछ गुदा हुआ था। बड़े ध्यान से देखने पर वहां एक संदेश लिख था... "एक भटके मुसाफिर को दूसरे भटके मुसाफिर का सुस्वागतम। तुम्हारी अच्छाई या बुराई तुम्हे यहां तक नही लेकर आयि। बस तुम्हारा और मेरा जज्बा एक है, इसलिए तुम यहां हो। तुम्हारे आगे के सफर के लिए मेरी ढेर सारी सुभकाननाएं"


निशांत बड़े ध्यान से संदेश पढ़ रहा था। साथ में आर्यमणि भी खड़ा हो गया। दोनो ने एक साथ संदूक को खोला, और अंदर की हालत देखकर झटके में संदूक के दरवाजे को छोड़ दिया... "किसका कंकाल है ये".. निशांत ने पूछा...


"लोपचे का भटकता मुसाफिर पारीयान लोपचे का..." आर्यमणि निशांत को कुछ दस्तावेज दिखाते हुए बोला।


दोनो वहीं बैठकर पारीयान की लिखी पांडुलिपि पढ़ने लगे। उस दौड़ में, सतपुरा के जंगलों में हुई लड़ाई से पारीयान इकलौता जिंदा तो लौटा, लेकिन शापित होकर। महाकाश्वर अपनी अंतिम श्वास गिन रहा था। पारीयान मकबरे को खोल चुका था। इस एक वक्त में २ भारी भूल हो गई। पहली पारीयान बिना परिणाम जाने ऐडियाना को उसकी इच्छा से दूर कर रहा था। और दूसरा योगियों ने महाकाश्वर को पूरा नही मारा, बस मरता छोड़ दिया। महाकाश्वर जनता था ऐडियाना की इच्छा को उसके मकबरे से अलग किया गया तो क्या होगा, बस केवल पारीयान लोपचे को कुछ नही होगा।


महाकाश्वर आखरी वक्त में भी सही समय के इंतजार में था। जैसे ही पुर्नस्थापित पत्थर को पारीयान ने अपने हाथों में लिया, ठीक उसी वक्त महाकाश्वर बहरूपिया चोगा पहना और पारीयान का भेष लेकर खुद पर ही रुधिर–कण श्राप और मोक्ष–विछोभ श्राप का मंत्र पढ़ लिया। रुधिर–कण श्राप से खून की कोशिकाएं टूट कर बाहर आने लगती थी। वहीं मोक्ष–विछोभ श्राप शरीर के अंदरूनी अंग को तोड़कर अंतिम मोक्ष देता था।


जैसे शरीर से पसीना निकलता है ठीक वैसे ही महाकाश्वर के शरीर से खून बहने लगा। शरीर के हर अंग अंदर से सिकुरने लगे थे और महाकाश्वर प्राण त्यागने से पहले दर्द का खौफनाक मंजर को महसूस करते हुए मर गया। जो दर्द महाकाश्वर ने सहे वही दर्द पारीयान को भी हो रहा था। पारीयान के शरीर से भी खून पसीना के भांति निकल रहा था और अंदर के अंग सिकुड़ता हुआ महसूस होने लगा।


पारीयान असहनीय पीड़ा से बिलबिला गया। किंतु वह एक अल्फा वुल्फ था, इसलिए उतनी ही तेजी से हिल भी हो रहा था। पारीयान समझ चुका था कि महाकाश्वर चाहता तो उसे एक झटके में मार सकता था, लेकिन जान–बूझ कर उसने अंतहीन दर्द के सागर में पारीयान को डुबो दिया। प्राण तो जायेंगे लेकिन तील–तील करके। पारीयान अभी तक तो अपने दर्द से पीड़ित था लेकिन बिलबिला कर जब भागा तब उसने ऐडियाना का प्रकोप भी देखा। भ्रमित अंगूठी के कारण उसे तो मौत ने नही छुए, लेकिन वहां सबकी लाश बिछ रही थी। एक कली परछाई तेजी से अंदर घुसती और प्राण बाहर निकाल देती।


लोपचे का भटकता मुसाफिर अपने अंत के नजदीक था। सभी पत्राचार करने के बाद किसी तरह पारीयाने पूर्वी हिमालय क्षेत्र पहुंचा। वहां भ्रमित अंगूठी और पुर्नस्थापित अंगूठी को सुरक्षित करने के बाद खुद को संदूक में बंद कर लिया। पारीयान लगभग ६ महीने उस खोह में बिताया। इस दौरान उसने अपनी कई यात्राओं के बारे में लिखा। उस दौड़ का एक पूरा इतिहास आर्यमणि और निशांत पढ़ रहा था। फिर सबसे आखरी में दोनो के हाथ में एक पोटली थी, जिसके अंदर रखी थी लोपचे के भटकते मुसाफिर का खजाना।


तत्काल समय... निशांत और आर्य


आर्यमणि के हाथ में पोटली थी और निशांत की आंखें आश्चर्य से फैली... "आर्य हमने क्या फैसला किया था? तुम उस गुफा में दोबारा गए ही क्यों?"


आर्यमणि:– क्योंकि जब मैं अपने ४ साल की यात्रा में था, तब मुझे पता चला कि ऐडियाना का मकबरा और लोपचे का भटकता मुसाफिर को कौन नहीं तलाश कर रहा। यदि पोटली की दोनो अंगूठी किसी गलत हाथ में लग जाती तो तुम समझते हो क्या होता?


निशांत:– हम्मम.. तो अब क्या सोचा है...


आर्यमणि– संसार की सबसे रहस्यमयि और ताकतवर औरत के पास जा रहे। एक अंगूठी तुम्हारी एक अंगूठी मेरी।


निशांत:– मुझे दोनो चाहिए...


आर्यमणि:– ठीक है दोनो लेले...


निशांत:– हाहाहा... महादानी आर्यमणि। अच्छा चल तू बता तुझे कौन सी अंगूठी चाहिए...


आर्यमणि:– तुझसे जो बच जाए...


निशांत:– ठीक है फिर मुझे वो पुर्नस्थापित अंगूठी दे दे।


आर्यमणि:– वो अंगूठी मत ले। पुनर्स्थापित अंगूठी चुराई हुई है, उसके मालिक हम नही। शायद किसी दिन लौटानी पड़े। तू भ्रमित अंगूठी ले ले।


निशांत:– हां मैं ये बात जनता हूं। मेरे जंगल के दिन खत्म हो गए पर शायद तू बहुत से खतरों से घिरा है इसलिए तू ही भ्रमित अंगूठी रख।


आर्यमणि:– अब तू ले, तू ले का दौड़ शुरू मत कर... इस से अच्छा हम टॉस कर लेते है।


निशांत:– आज तक कभी ऐसा हुआ है, टॉस का नतीजा मेरे पक्ष में गया हो।


आर्यमणि:– तू चुतिया है...


निशांत:– तू भोसडी वाला है..

आर्यमणि:– तू हारामि है..


निशांत:– जा कुत्ते से पिछवाड़ा मरवा ले..


आर्यमणि:– तू जाकर मरवा ले। वैसे भी हर २ दिन पर कोई न लड़की तेरी मार कर ही जाती है।


निशांत, एक जोरदार मुक्का जबड़े पर मारते.…. "बीच में लड़की को न घुसेड़। वरना मैं गंभीर आर्य के रंगीन किस्से वायरल कर दूंगा..."


आर्यमणि, निशांत के गले में अपनी बांह फसाकर उसे दबाते.… "साले झूठे, एक बार झूठी अफवाह फैला चुका है। दूसरी बार ये किया न तो मैं तुझे बताता हूं।"


"लगता है २ लड़कों की रास लीला शुरू होने वाली है।"… कमरे में अचानक ही रिचा पहुंच गई। आर्यमणि और निशांत दोनो सीधे खड़े हो गए। अभी कुछ बोलते ही की उस से पहले भूमि पहुंच गई... "रिचा तुमने बता दिया"..


आर्यमणि:– क्या बताना था?


भूमि:– रिचा की टीम के साथ तुम कनेक्ट रहना। कोई खतरा लगे तब तुरंत सूचना देना...


निशांत:– ठीक है दीदी, अब हम अपनी तैयारी कर ले..


इतने में रिचा बंद पोटली अपने हाथ में उठाती... "तुम दोनो क्या कोई तंत्र–मंत्र करने वाले हो?"..


निशांत:– उस पोटली में शेरनी की पोट्टी है। जंगल के रास्ते में बिखेड़ते जायेंगे। इस से शेर भ्रमित होकर शेरनी की तलाश करने लगेंगे और हम सुरक्षित है। तुम भी एक पोटली ले आओ, तुम्हे भी दे देता हूं..


रिचा:– ईईयूयू… ऐसा कौन करता है...


आर्यमणि:– असली शिकारी...


रिचा:– तुम्हारे कहने का क्या मतलब है, हम नकली शिकारी है?


भूमि:– तुम लोगों को झगड़ने का बहुत मौका मिलेगा, अभी सब लोग जाने की तैयारी करो। रिचा तुम मेरे साथ घर चलो.. (भूमि अपने ससुराल की बात कर रही थी। इस वक्त वो अपने मायके में है)…


उन लोगों के जाते ही, आर्यमणि, निशांत को एक थप्पड़ लगाते... "तेरे बकवास के चक्कर में ये पोटली उनके सामने आ गई न"…


निशांत:– तो तू मेरी बात मान क्यों नही लेता...


आर्यमणि:– तू मेरी फिक्र छोड़ भाई... और भ्रमित अंगूठी पहन ले...


निशांत:– एक शर्त पर...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– मुझे तेरा वुल्फ वाला रूप देखना है...


आर्यमणि:– तू अंगूठी पहन ज्यादा बकवास न कर...


आर्यमणि जबतक कह रहा था, निशांत अपनी उंगली में भ्रमित अंगूठी डाल चुका था और आर्यमणि के ओर पुर्नस्थापित अंगूठी को उछालते हुए... "पहन ले और चलकर शॉपिंग करते है।"…


आर्यमणि और निशांत दोनो तेजस के शॉपिंग मॉल पहुंचे। वहां से दोनो ने ढेर सारा ट्रैप वायर खरीदा। कुछ ड्रोन और नाना प्रकार के इत्यादि–इत्यादि चीजें। दोनो अपने शॉपिंग के बीच में ही थे जब भूमि ने आर्यमणि और निशांत को भी अपने घर बुला लिया। दोनो शॉपिंग के बाद सीधा भूमि के पास पहुंच गए। रिचा और उसकी टीम पहले से वहां थी। हथियारखाने से वो लोग अपने असला–बारूद अपने कार में भर रहे थे। भूमि, आर्यमणि और निशांत को भी हथियारखाने में बुलाती... "अपनी पसंद का हथियार उठा लो"…


रिचा का ब्वॉयफ्रेंड, मानस.… बच्चे हथियार चलाना भी आता है या नही"…


निशांत:– चिचा अब एक घंटे में हथियार चलाना तो नही सीखा सकते ना। और वैसे भी नौसिख्ये शिकारी को हथियार की जरूरत पड़ती है।


मानस:– तू तो अभी तक प्रहरी का अस्थाई सदस्य ही है, फिर भी खुद को बड़ा शिकारी समझता है।


निशांत:– पहली बात मैं प्रहरी समुदाय का हिस्सा नहीं। बस पलक के साथ चला गया था। दूसरी बात किसी का बड़ा शिकारी होने के लिए प्रहरी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.…


मानस:– कभी वुल्फ से पाला पड़ा है...


निशांत:– लोपचे का पैक भूल गए क्या? वो तो उसी जंगल में रहते थे जहां हम ८ साल की उम्र में लघुसंका करने निकल जाया करते थे।


रिचा का एक साथी तेनु.… "इतनी बहसबाजी क्यूं? शिकार के लिए तो चल ही रहे है, वहीं फैसला हो जायेगा। लेकिन बच्चों को सबसे हैवी और ऑटोमेटिक राइफल देना। कल को ये न कहे की उनके मुकाबले हमारा बंदूक ज्यादा ताकतवर था।"


आर्यमणि, निशांत को अपने साथ बाहर ले जाते... "आर्मस लाइसेंस नही है हमारे पास और हम गैर कानूनी काम नही करते।"… पीछे से कुछ आवाज आई लेकिन आर्यमणि, निशांत के मुंह पर हाथ रख कर गराज चला आया.… "बता कौन सी गाड़ी से जंगल में चलेंगे"


निशांत:– रेंजर वाली जीप ही सही है... वैसे हम कितने लोग है..


आर्यमणि:– हम ५ लोग हैं। सबको उठाते हुए चलेंगे...


शाम के 5 बजे के करीब सभी टीम रवाना हो गई। तेजस की टीम ३ गाड़ियों में निकली। सुकेश की टीम भी २ गाड़ियों में निकली। वहीं इकलौती पलक की टीम थी जो १ गाड़ी में बैठी थी। सभी लोग नागपुर से छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के रास्ते पचमढ़ी हिल स्टेशन पहुंच गए। जो होशंगाबाद जिले में पड़ती थी। इस हिल स्टेशन को सतपुरा की रानी भी कहा जाता है। रात के १ बजे के करीब सभी पचमढ़ी के एक रिसॉर्ट में पहुंच चुके थे।


सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।
प्रणाम मित्र
क्या दमदार वाक्य लिखा है मित्र आप ने एक भटका मुसाफिर दूसरे भटके मुसाफिर का स्वागत कर रहा है,

इन पहरी को पता नहीं कि ये दोनों कितनों के पिछवाड़े मे उंगली कर चुके है 😁ये सोच रहे है कि ये बच्चे हैं मुर्ख है सब साले

काफी अद्भुत लेखन देखने को मिल रहा है हर दृश्य का वर्णन आप जिस तरह कर रहे हैं वो इस कहानी को पढ़ने पर मजबूर करता है और आप शब्दों पर भी काफी ध्यान देते हैं
लेखन का अद्भुत प्रदर्शन मित्र 👏👏👏
जिस प्रकार आप एक-एक राज को उजागर कर रहे हों वो काबिले तारीफ है

अगले अनुच्छेद का इंतजार है मुझे की आगे क्या होगा
 
Last edited:

Mahendra Baranwal

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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।



आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
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