• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार में .....

Naik

Well-Known Member
22,549
79,553
258
#२२

चबूतरे पर बैठे ठंडी हवा में चाय की चुसकिया लेते हुए हम दोनों तमाम सम्भावनाये तलाश रहे थे की कैसे क्या हो सकता था , क्या हुआ होगा चाचा के साथ .

“मुझे लगता है की चाची को अपनी गृहस्थी बचानी थी इसलिए वो पलट गयी ” मैंने कहा

मंजू- मैं मानती हूँ की औरत भरोसा तोडती है . चाची का मामला पेचीदा है पर मालूम तो करना ही होगा की उसके मन में कैसे इतना जहर भरा.

मैं- मौका मिलेगा तो अकेले में पूछुंगा उस से . पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हु

मंजू- हाँ

मैं- तू कब तक ऐसे धक्के खाएगी , घर बसा ले यार

मंजू- अब तो आदत हो गयी है . साली जिन्दगी में इतना तिरस्कार सहा है न की सम्मान का मोह ख़त्म ही हो गया है . तेरी बात कभी कभी सही लगती है मुझे , परिवार में अपन को कोई चाहता नहीं है बस दिखावा है . वैसे मैं खुश हु कबीर, अकेलापन तंग करता नहीं मुझे.

मैं- समझता हु मंजू , पर फिर भी जिदंगी बहुत लम्बी है साथी रहे तो बेहतर तरीके से कट जाती है.

मंजू- ठीक है मानती हु तेरी बात पर तू बता कौन करेगा मुझसे अब शादी

मैं- कोई क्यों नहीं करेगा. क्या नहीं है तेरे पास, गदराया जोबन, सरकारी नौकरी अरे तू पाल लेगी उसे.

मंजू- गाँव-बस्ती में ये सब नहीं चलता, लोगो को लगता है की छोड़ी हुई औरत ही गलत होती है .

मैं- माँ चुदाने के गाँव को तू , तू अपनी मस्ती में जी न

मंजू- बचपन ही ठीक था यार, ये जवानी बहन की लौड़ी तंग ही कर रही है .

मैंने चाय का कप साइड में रखा और बोला- सुन तू एक काम करियो दिनों में तो तू जाएगी ही वहां पर , पूरी जासूसी करनी है तुझे. देखना कुछ न कुछ तो मिलेगा ही मैं बाहर से कोशिश करूँगा तू घर के अन्दर से करना . वैसे देगी क्या आज

मंजू- शर्म कर ले रे घर में लाश पड़ी है तुझे लेने देने की पड़ी है .

मैं- अब जो है वो है मैं क्या करू ,सुन बकरा बनाते है बहुत दिन हुए

मंजू- अभी तूने सोच ही लिया तो फिर करनी ही है मनमानी

“मनमानी नहीं है , बस अब फर्क नहीं पड़ता है जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की मिल तो सब रहा है पर अब चाहत नहीं है ” मैंने कहा

मंजू- उदास मत हो , करते है मनमानी फिर

मैं मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम वहां बैठे रहे .बचपन की बहुत सी यादे ताजा हो गयी थी . शाम से थोडा पहले हम वापिस गाँव आये , जीप को धोने का सोचा मैंने , सफाई करते समय मुझे कुछ गड्डी पैसो की मिली नोटों पर कालिख जमी थी , सीलन थी . मैंने उन्हें अन्दर रखा और जीप को धोने लगा की तभी मैंने सामने से मामी को आते हुए देखा. एक अरसे के बाद मैं उन्हें देख रहा था. लगा की वक्त जैसे मेरे लिए ठहर सा गया था .सब कुछ मेरे सामने वैसे ही आ रहा था जैसे की मेरी कहानी शूरू होने पर था .

“आप यहाँ कैसे ” मैंने कहा

“किसी ने बताया की तुम इधर मिलोगे तो चली आई ” एक पल को लगा की मामी आगे बढ़ कर गले से लगा लेंगी पर वो रुक गयी.

मैं-कैसी हो

मामी- ठीक हूँ , बरस बीते तुमने तो सब भुला दिया . मामा का घर इन्सान का दूसरा घर होता है ,वो घर भी तुम्हारा ही है पर तुमने ना जाने किस राह पर चलने का फैसला किया की पीछे सब छोड़ गए.

मैं-पहले जैसा कुछ रहा ही नहीं , सब बिखर गया

मामी- कुछ भी नहीं बदला है थोड़ी कोशिश करोगे तो सब तुम्हारा ही है

मैं- चाची सोचती है की मैंने मारा चाचा को

मामी- मैं जानती हु की तुम ऐसा नहीं कर सकते, मैं बात करुँगी उस से पर फिलहाल वक्त ठीक नहीं है

मैं-छोड़ो ये बताओ मामा आये है क्या .

मामी- कल शाम तक पहुँच जायेंगे

मामी की आँखों में मुझे बहुत कुछ दिख रहा था . मामी की जुल्फों में सफेदी झलकने लगी थी बदन थोडा भारी हो गया था , थोड़ी और निखर आई थी वो .

मैंने मामी का हाथ पकड़ा और बोला- समय का पहिया घूम रहा है उम्मीद है की सब सही होगा.

मामी- ऐसा ही होगा . अभी मैं चलती हूँ , ननद को संभालना होगा मिलूंगी तुमसे फिर

मैं- हवेली इंतजार करेगी

मामी के जाने के बाद मैंने मंजू के साथ खाना खाया , वैसे मैं मंजू की लेना चाहता था पर वो चाचा के घर जाना चाहती थी , वहां बैठना ज्यादा जरुरी था. वो चाचा के घर गयी मैं हवेली आ गया. हालाँकि मंजू चाहती थी की मैं उसके घर ही सो जाऊ. एक बार फिर से मैं पिताजी के सामान में अनजाने सच को तलाश रहा था . हर एक किताब को मैं फिर से बार बार देख रहा था की कहीं तो कुछ मिल जाये पर इस बार भी प्रयास व्यर्थ , जो इशारा था वो मुझे शायद उन कागजो में मिल चूका था . न जाने कैसी धुन थी वो , न जाने क्या तलाश रहा था मैं . संदूक में मुझे पिताजी की वर्दी मिली . आँखे छलक पड़ी मेरी, पिताजी को अपनी वर्दी हमेशा प्रेस की हुई चाहिए होती थी , संदूक में निचे उनके काले जूते थे , लगा की अभी पालिश की हो . भावनाओ का ज्वार थामे मैंने वर्दी को सीने से लगाया तो मुझे कुछ महसूस हुआ. वर्दी के अन्दर में एक जेब थी जिसमे एक किताब थी. गुंडा शीर्षक था उसका. मैंने पन्ने पलटने शुरू किये. और मुझे वो मिला जो एक नयी राह दिखा सकती थी.

“कबीर, मैं जानता हु तुम् यहाँ तक जरुर पहुंचोगे , पर सफ़र इधर का नहीं वहां का है जहाँ तुम अँधेरे में उजाला देखोगे. सब कुछ मिटटी है , पर मिटटी जादू है वो जादू जो मुझ पर चला . उजाले से प्यार मत करना अँधेरे में खो मत जाना. वहां पहुंचोगे तो सब जान जाओगे. सबको पहचान जाओगे. रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जायेगा.” पिताजी के लिखे ये शब्द मुझे पागल ही कर गए थे. क्या बताना चाहता था बाप सोचते सोचते मैं भन्ना ही गया था .

“कबीर ” हौले से वो फुसफुसाई और मेरे सीने पर हाथ रख दिया. झट से मेरी आँख खुली और मैंने लालटेन की रौशनी में उसे देखा..

“मैं हु कबीर ” बोली वो और मेरी चादर में घुस गयी...........
Bahot khoob shaandar update
Kuch Mila dhoondhte dhoondh the
Lekin Jo likha h woh bi sir se ooper Nikal gaya aise kia paheli likh Dali pita ji ne
Ab yeh Kon ghus gaya kabeer ki Chadar me manju ya fir koyi or
 

Naik

Well-Known Member
22,549
79,553
258
#२३

“मामी तुम यहाँ क्या वक्त हुआ ” मैंने कहा.

मामी- चार बजने में थोडा वक्त है अभी

“एक मिनट अभी आता हु ” बाहर निकला घुप अँधेरा था , मूतने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस बिस्तर में घुस गया. मामी को अपनी बाँहों में कस लिया

“तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था ” मामी के पेट को सहलाते हुए मैंने कहा

मामी- जिस तरह से शाम को देखा था तुमने आना पड़ा

मामी ने मेरे गाल की पप्पी ली . मैंने मामी को अपने ऊपर खींच लिया. मामी की गांड को दबाने लगा. मामी ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया. मेरे पतित अतीत का एक किस्सा मामी भी थी कैसे क्यों कब ये बताने की अभी जरूरत नहीं थी . मामी की जीभ मेरी जीभ सी लड़ने लगी थी मैंने साडी को ऊपर उठा लिया मामी की कच्छी के ऊपर से गोल गांड को मसलने का अनुभव क्या ही कहने . मामी चूत पर मेरे लंड की गर्माहट महसूस कर रही थी . मैंने इलास्टिक को फैलाते हुए अपने दोनों हाथ अन्दर डाले. गुदा द्वार पर मेरी उंगलियों का स्पर्श पाते ही मामी उत्तेजना के अगले पड़ाव पर पहुँच गयी थी .

“उफ़ कबीर ” मामी ने मेरी गर्दन पर काटा , मैंने मामी को विपरीत दिशा में कर दिया अब उनकी गांड मेरी तरफ और मुह मेरे लंड की तरफ था. जल्दी से मैंने कच्छी उतारा, मामी की गांड मेरे पुरे चेहरे पर आ चुकी थी, चूत से रिश्ते पानी की खुशबु से लंड ऐंठ चूका था . मामी की चूत पर जैसे ही मैंने जीभ को रगडा वो पागल ही हो गयी थी . मामी की शरारती उंगलिया मेरे अन्डकोशो को सहला रही थी , बरसो बाद मुझे मामी के रस को पीने का मौका मिला था .

मामी की चूत का गीलापन बढ़ता जा रहा था फिसलती हुई मेरी जीभ जब उसकी गांड के छेद पर जाती तो मामी का बदन कांपता. मामी की गरम साँसे मेरे लंड पर पड़ रही थी की तभी मामी ने अपना मुह खोला और लंड को चूसने लगी. सम्भोग का सबसे अहम् पल ये ही होता था जब स्त्री और पुरुष एक साथ एक दुसरे के गुपतांगो क चुमते-चूसते है .

मामी जोश में अपने कुलहो से मुह को दबा रही थी की कभी कभी साँस लेना भी मुश्किल सा लगता. अपने दोनों छेदों को चटवाते हुए वो पूरी तसल्ली से मेरे लंड को चूस रही थी . एक तरफ उसकी जीभ लंड के सुपाडे पर घूमती तो उसकी उंगलिया गोलियों को मजा दे रही थी . मामी की गांड जोर जोर से हिलने लगी थी पुरे जोश से वो लंड चूस रही थी . मेरी दाढ़ी के बाल जब जब चूत पर चुभते तो खुले दिल से मामी आहे भरती . कमरे का तापमान बढ़ने लगा था .किसी भी मर्द के लिए असली जाम औरत की चूत से बहता कामरस होता है , जिसने ये रस नहीं पिया वो मर्द हुआ ही नहीं. हर पल मामी की गांड और जोर से थिरक रही थी जिस तरह से चूत को वो दबा रही थी मैं समझ गया था की झड़ने वाली है वो तो मैंने उसे अपने ऊपर से हटा दिया..

मामी की एक चूची मेरे मुह में थी और दूसरी हाथ में मामी लंड के सुपाडे को आहिस्ता आहिस्ता चूत पर रगड़ रही थी .

आउच ” थोडा धीरे कबीर

चूत के छेद पर जब लंड रगडा जा रहा था तो बदन में ऐसी तरंगे उठ रही थी की क्या ही कहे, मैंने मामी की जांघो को विपरीत दिशा में फैलाया और उन्होंने गांड को ऊपर उठाते हुए लंड चूत में ले लिया .

“उफ़ कबीर , बहुत दिनों बाद कुछ अन्दर गया है ” मामी शर्म से बोली

“आज भी उतनी ही गर्म हो जितना पहली बार थी ” मैंने मामी पर चढ़ते हुए कहा

“तेरा नशा आज तक नहीं उतरा, तेरे साथ होने के अहसास से ही गीली हो गई थी मैं तो ” मामी ने अपनी बाहे मेरी पीठ पर कसते हुए कहा.

मामी की चूत बहुत चिकनी हो गयी थी. लगातार पड़ते धक्को से मामी को असीम सुख प्राप्त हो रहा था . ठंडा मौसम होने के बाद भी बिस्तर पर हमारे बदनो से पसीना बह चला था .

“मेरा होने वाला है ” शरमाते हुए मामी ने कहा तो मैंने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी. मामी की सांसे फुल गयी थी . इस चूत की गर्मी में मैं बह रहा था की तभी मामी ने अपने दांत मेरे कंधे पर गडा दिए और मुझे ऐसे कस लिया की अब छुटना था ही नहीं कभी .हाँफते हुए मामी ने मेरे माथे को चूमा

“कोढ़ी हो जा ” मैंने कहा तो मामी घोड़ी बन गयी .बड़े प्यार से मैंने मामी की गांड के छेद को सहलाया और थूक से उसे चिकना किया. लंड तो पहले ही चिकना हुआ पड़ा था .मैंने लंड को आगे सरकाया तो मामी बोली- कबीर , आगे ही कर ले.

मैं- इसका दीवाना हु मैं कैसे रहने दू

जैसे ही मेरा लंड अन्दर गया मामी का जिस्म टाइट हो गया पर कुछ देर के लिए. जल्दी ही मैं उसकी पीठ को सहलाते हुए गांड मार रहा था . किसी भी अड़तीस-चालीस के फेर वाली औरत की लेने में जो सुख है वो कच्ची कलि में कभी नहीं मिल सकता. मामी के चुतड ऐसे थिरक रहे थे जैसे किसी बीन पर कोई सर्प झूमता है . मामी भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रही थी . उसकी चाहत का सम्मान करते हुए मैंने दुबारा से चूत में लंड उतार दिया तो वो और मस्ती में झूम गयी. जब मैंने मामी की चूत में अपना वीर्य छोड़ा तो कसम से मेरे सीने में सांस बची नहीं थी .

“आग हो तुम , पता नहीं मामा कैसे संभालता होगा तुम्हे ” मैंने मामी को सीने से लगाते हुए कहा

मामी- इस आग को सँभालने का जिगर सिर्फ तुम्हे है कबीर. मुझे अब बहुत मान है की मेरी चूत के हक़दार बने तुम.

मैंने उसके होंठ को चूमा हलके से. भोर होने में पता नहीं कितनी देर थी , मैंने मामी को बिस्तर पर ही छोड़ा और बाहर निकल गया , बरसो बाद मैंने इस हवा को महसूस किया था . चुदाई के बाद मुझे भूख सी लग आई थी इधर तो कुछ था नहीं तो मैं मंजू के घर को चल दिया और जब मैं वहां पहुंचा तो मेरे कदम डगमगा गए मैंने देखा.................
Tow Mami ke Saath bhi Bhai sahab ne Maza kia huwa tha or bahot dino Baad Mami khud aage badh kar niyota dia
Ab kia Hoga manju ke Ghar me bhala
 

Naik

Well-Known Member
22,549
79,553
258
#24

मेरे सामने मंजू का घर धू-धू करके जल रहा था ,गाँव के लोग कोशिश कर रहे थे आग को बुझाने के लिए और मंजू बदहवास सी बस देखे जा रही थी अपने आशियाने को बर्बाद होते हुए. कांपते हाथो से मैंने उसके सर पर हाथ रखा, सीने से लग कर जो रोई वो उसका एक एक आंसू मेरे कलेजे को चीर गया.

“कबीर, मेरा घर , कबीर कुछ नहीं बचा ” सुबकते हुए कहने लगी वो .

मैं- कुछ , कुछ नहीं हुआ मंजू, तू सुरक्षित है तो सब कुछ बचा है. ये घर हम दुबारा बना लेंगे , तमाम नुकसान की भरपाई कर लेंगे. ये तमाम चीजे तुझसे है . मैं वचन देता हु तुझे जिसने भी ये किया है ऐसे ही आग में जलाऊंगा उसे.

जब से इस गाँव में मैंने कदम रखा था अजीब सी मनहूसियत फैली हुई थी , कलेश थम ही नहीं रहा था पर अब बात हद से आगे बढ़ गयी थी, अगर मंजू घर में होती तो आज कुछ नहीं बचता , अचानक से ही मैंने बदन में डर को महसूस किया, कौन था वो दुश्मन जो मेरे साथ ही नहीं जो मेरे करीबियों पर भी वार करना चाहता था . मैं अपने डर को काबू नहीं कर पा रहा था मैंने उसका हाथ पकड़ा और हवेली ले आया.

“अब से तू यही रहेगी. ” मैंने कहा

मंजू- पर कबीर मैं कैसे ..

“मेरा जो भी है वो तेरा ही है और वैसे भी अब मुझे तेरी सुरक्षा की चिंता है ” मैंने उसकी बात काटते हुए कहा.

मंजू- क्या कहना चाहता है तू

मैं- मेरे दुश्मन को मालूम था की मैं तेरे घर पर ही हूँ , इसी वजह से तेरा नुकसान हुआ है. हवेली की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करना होगा, की कोई परिंदा भी ना आ सके. मैं आज ही व्यवस्था करता हूँ हवेली को रोशन करने की .

पूरा दिन मेरा बहुत व्यस्त बीता. दुगुने दामो पर मजदुर लाकर मैंने तमाम साफ़ सफाई करवाई. रिश्वत देकर आज के आज ही बिजली वाला काम भी करवा लिया था अब बस पानी के नलके बचे थे . रसोई के लिए जरुरी सामान भी बनिए से ले आया था . समस्या बस एक ही थी हवेली अकेली थी बस्ती थोड़ी दूर थी यहाँ से पर तसल्ली ये थी की अगर अब कोई हमला हुआ तो अपनी जगह पर होगा. मामी भी इस बात से बहुत चिंतित थी , मैंने जानबूझ कर पुलिस में कोई शिकायत नहीं दी थी , पर निशा से बात करना जरुरी था मैंने एसटीडी से फ़ोन मिलाया और उसे पूरी बात बताई , निशा चिंतित थी उसने कहा की वो जल्दी ही आएगी. उसने सुरक्षा के लिए कुछ बातो पर गौर करने का कहा मुझे. बरसो बाद हवेली में रौशनी हुई थी . बरसो बाद मैंने घर को महसूस किया. मामी ने खाना बना लिया था ,मन तो नहीं था पर खाने से बैर तो कर नहीं सकते थे , खाना परोसा ही था की ताईजी आ गयी .

“कबीर-मंजू मेरे बच्चो ठीक तो हो न तुम ” ताई ने हमें गले लगाया.

मैं- ठीक है सब

ताई-इतना सब हो गया मुझे सुचना देने की जहमत नहीं उठाई किसी ने भी, पीहर से न लौटती तो मालूम ही नहीं होता. मेरे बच्चो तुम अकेले नहीं हो. मैं हूँ अभी, तुम लोग आज से मेरे साथ रहोगे. इस दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो एक माँ के रहते उसके आँचल से उसके बच्चो को तकलीफ दे सके. भाभी, तुम अपनी ननद को समझाओ की दूर हो जाने से भी खून का रंग नहीं बदलता. ऐसा कौन सा घर है जिसमे तमाशे नहीं होते, कलेश नहीं होते , मेरे देवर की मौत हो गयी मुझे पता ही नहीं .

मामी- आपको तो सब पता है न दीदी

ताई- मेरे देखते देखते ये घर बिखर गया , ये हवेली सुनसान हो गयी. मैं चुप रही , मेरा सब कुछ लुट गया मैं चुप रही पर मेरे बच्चो का कोई अहित करने की सोचेगा तो मैं न जाने क्या कर दूंगी. मंजू बेशक मेरी कोख से नहीं जन्मी पर उसकी परवरिश इसी हवेली में हु , इसी हवेली में इसका बचपन बिता यही ये जवान हुई. मेरी बच्ची जिसने भी तुझे आंसू दिए है वो भुगतेगा जरुर.

मामला थोडा संजीदा हो गया था . माहौल हल्का करने के लिए मैंने बात को बदला और सबको खाना खाने के लिए कहा . बरसो बाद हवेली में चहल पहल थी .

“अब से तुम दोनों मेरे घर पर रहोगे ” ताईजी ने कहा

मैं- नहीं ताईजी, फिलहाल हवेली ही सुरक्षित जगह है , बल्कि मैं तो ये ही कहूँगा की आप भी यही रहो .

ताईजी- कबीर, उस घर को भी नहीं छोड़ सकती

मैं- फिर भी मैं चाहूँगा की जितना हो सके आप इधर ही रहो

ताई- बिलकुल

मैं- मंजू तू फ़िक्र ना कर, तुझे इतना खूबसूरत घर बना कर दूंगा की लोग देखेंगे

मंजू ने अपना सर मेरे काँधे पर रख दिया. बाते तो बहुत सी करनी थी पर ताईजी और मामी को चाची के घर जाना था .रह गए मैं और मंजू . दरवाजा बंद करने के बाद मैंने उसे छत पर आने को कहा. बिजली की वजह से अच्छा हो गया था . ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैं एक पेग बना लिया.

“लेगी क्या ” मैंने कहा

मंजू- नहीं

मैं- ले ले थोडा अच्छा लगेगा

मंजू ने दो चार घूँट लिए और गिलास वापिस रख दिया.

मैं- यार कौन हो सकता है

मंजू- पहले तो मैं चाचा को ही समझती थी पर अब समझ से बाहर है सौदा

मैं- मुझे एक कड़ी मिल जाये तो फिर सब कुछ सामने आ जायेगा. पर न जाने वो कड़ी कहाँ है इतना तो मैं जान गया हूँ की माँ-पिताजी की मौत भी कोई साजिश ही थी.

मंजू- अतीत को कैसे तलाशेगा कबीर.

मैं- अतीत वर्तमान बन कर सामने आ गया है मंजू, समय की अपनी योजनाये होती है वो खुद मुझे वहां ले जायेगा. वक्त ने मेरा सब कुछ छीना है यही वक्त मुझे मेरा हक़ वापिस लौटाएगा .सवाल बस ये है की ये सब हो क्यों रहा है , ऐसा तो मुझे याद नहीं की कोई भी हो गाँव में जो इतनी शिद्दत से नफरत करता हो परिवार से .

मंजू ने अपनी जुल्फे खोल ली थी. चांदनी रात में उसकी ऊपर निचे होती छाती और मेरे हाथ में जाम

“ऐसे मत देख, समझ रही हु मैं ” शोखी से बोली वो

मैं- इसमें मेरा कोई दोष नहीं , ये तो कोई और है जो मजबूर है तेरी चूत में जाने को

“और कौन है वो भला ” मेरे आकर कहा उसने . की तभी मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रख दिया.......................
Yeh saala Kon kameena aaga Laga di manju ke Ghar me
Matlab saaf h koyi kabeer par Nazar rakah Raha tha use pata tha ki kabeer manju ke Ghar me isilye usne Socha Hoga ki aise tow maar nahi payenge tow seedha aaga Laga di
Dekhte h kab pata Laga paate h kabeer ki kisne kia
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,088
15,759
159
#२२

चबूतरे पर बैठे ठंडी हवा में चाय की चुसकिया लेते हुए हम दोनों तमाम सम्भावनाये तलाश रहे थे की कैसे क्या हो सकता था , क्या हुआ होगा चाचा के साथ .

“मुझे लगता है की चाची को अपनी गृहस्थी बचानी थी इसलिए वो पलट गयी ” मैंने कहा

मंजू- मैं मानती हूँ की औरत भरोसा तोडती है . चाची का मामला पेचीदा है पर मालूम तो करना ही होगा की उसके मन में कैसे इतना जहर भरा.

मैं- मौका मिलेगा तो अकेले में पूछुंगा उस से . पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हु

मंजू- हाँ

मैं- तू कब तक ऐसे धक्के खाएगी , घर बसा ले यार

मंजू- अब तो आदत हो गयी है . साली जिन्दगी में इतना तिरस्कार सहा है न की सम्मान का मोह ख़त्म ही हो गया है . तेरी बात कभी कभी सही लगती है मुझे , परिवार में अपन को कोई चाहता नहीं है बस दिखावा है . वैसे मैं खुश हु कबीर, अकेलापन तंग करता नहीं मुझे.

मैं- समझता हु मंजू , पर फिर भी जिदंगी बहुत लम्बी है साथी रहे तो बेहतर तरीके से कट जाती है.

मंजू- ठीक है मानती हु तेरी बात पर तू बता कौन करेगा मुझसे अब शादी

मैं- कोई क्यों नहीं करेगा. क्या नहीं है तेरे पास, गदराया जोबन, सरकारी नौकरी अरे तू पाल लेगी उसे.

मंजू- गाँव-बस्ती में ये सब नहीं चलता, लोगो को लगता है की छोड़ी हुई औरत ही गलत होती है .

मैं- माँ चुदाने के गाँव को तू , तू अपनी मस्ती में जी न

मंजू- बचपन ही ठीक था यार, ये जवानी बहन की लौड़ी तंग ही कर रही है .

मैंने चाय का कप साइड में रखा और बोला- सुन तू एक काम करियो दिनों में तो तू जाएगी ही वहां पर , पूरी जासूसी करनी है तुझे. देखना कुछ न कुछ तो मिलेगा ही मैं बाहर से कोशिश करूँगा तू घर के अन्दर से करना . वैसे देगी क्या आज

मंजू- शर्म कर ले रे घर में लाश पड़ी है तुझे लेने देने की पड़ी है .

मैं- अब जो है वो है मैं क्या करू ,सुन बकरा बनाते है बहुत दिन हुए

मंजू- अभी तूने सोच ही लिया तो फिर करनी ही है मनमानी

“मनमानी नहीं है , बस अब फर्क नहीं पड़ता है जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की मिल तो सब रहा है पर अब चाहत नहीं है ” मैंने कहा

मंजू- उदास मत हो , करते है मनमानी फिर

मैं मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम वहां बैठे रहे .बचपन की बहुत सी यादे ताजा हो गयी थी . शाम से थोडा पहले हम वापिस गाँव आये , जीप को धोने का सोचा मैंने , सफाई करते समय मुझे कुछ गड्डी पैसो की मिली नोटों पर कालिख जमी थी , सीलन थी . मैंने उन्हें अन्दर रखा और जीप को धोने लगा की तभी मैंने सामने से मामी को आते हुए देखा. एक अरसे के बाद मैं उन्हें देख रहा था. लगा की वक्त जैसे मेरे लिए ठहर सा गया था .सब कुछ मेरे सामने वैसे ही आ रहा था जैसे की मेरी कहानी शूरू होने पर था .

“आप यहाँ कैसे ” मैंने कहा

“किसी ने बताया की तुम इधर मिलोगे तो चली आई ” एक पल को लगा की मामी आगे बढ़ कर गले से लगा लेंगी पर वो रुक गयी.

मैं-कैसी हो

मामी- ठीक हूँ , बरस बीते तुमने तो सब भुला दिया . मामा का घर इन्सान का दूसरा घर होता है ,वो घर भी तुम्हारा ही है पर तुमने ना जाने किस राह पर चलने का फैसला किया की पीछे सब छोड़ गए.

मैं-पहले जैसा कुछ रहा ही नहीं , सब बिखर गया

मामी- कुछ भी नहीं बदला है थोड़ी कोशिश करोगे तो सब तुम्हारा ही है

मैं- चाची सोचती है की मैंने मारा चाचा को

मामी- मैं जानती हु की तुम ऐसा नहीं कर सकते, मैं बात करुँगी उस से पर फिलहाल वक्त ठीक नहीं है

मैं-छोड़ो ये बताओ मामा आये है क्या .

मामी- कल शाम तक पहुँच जायेंगे

मामी की आँखों में मुझे बहुत कुछ दिख रहा था . मामी की जुल्फों में सफेदी झलकने लगी थी बदन थोडा भारी हो गया था , थोड़ी और निखर आई थी वो .

मैंने मामी का हाथ पकड़ा और बोला- समय का पहिया घूम रहा है उम्मीद है की सब सही होगा.

मामी- ऐसा ही होगा . अभी मैं चलती हूँ , ननद को संभालना होगा मिलूंगी तुमसे फिर

मैं- हवेली इंतजार करेगी

मामी के जाने के बाद मैंने मंजू के साथ खाना खाया , वैसे मैं मंजू की लेना चाहता था पर वो चाचा के घर जाना चाहती थी , वहां बैठना ज्यादा जरुरी था. वो चाचा के घर गयी मैं हवेली आ गया. हालाँकि मंजू चाहती थी की मैं उसके घर ही सो जाऊ. एक बार फिर से मैं पिताजी के सामान में अनजाने सच को तलाश रहा था . हर एक किताब को मैं फिर से बार बार देख रहा था की कहीं तो कुछ मिल जाये पर इस बार भी प्रयास व्यर्थ , जो इशारा था वो मुझे शायद उन कागजो में मिल चूका था . न जाने कैसी धुन थी वो , न जाने क्या तलाश रहा था मैं . संदूक में मुझे पिताजी की वर्दी मिली . आँखे छलक पड़ी मेरी, पिताजी को अपनी वर्दी हमेशा प्रेस की हुई चाहिए होती थी , संदूक में निचे उनके काले जूते थे , लगा की अभी पालिश की हो . भावनाओ का ज्वार थामे मैंने वर्दी को सीने से लगाया तो मुझे कुछ महसूस हुआ. वर्दी के अन्दर में एक जेब थी जिसमे एक किताब थी. गुंडा शीर्षक था उसका. मैंने पन्ने पलटने शुरू किये. और मुझे वो मिला जो एक नयी राह दिखा सकती थी.

“कबीर, मैं जानता हु तुम् यहाँ तक जरुर पहुंचोगे , पर सफ़र इधर का नहीं वहां का है जहाँ तुम अँधेरे में उजाला देखोगे. सब कुछ मिटटी है , पर मिटटी जादू है वो जादू जो मुझ पर चला . उजाले से प्यार मत करना अँधेरे में खो मत जाना. वहां पहुंचोगे तो सब जान जाओगे. सबको पहचान जाओगे. रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जायेगा.” पिताजी के लिखे ये शब्द मुझे पागल ही कर गए थे. क्या बताना चाहता था बाप सोचते सोचते मैं भन्ना ही गया था .

“कबीर ” हौले से वो फुसफुसाई और मेरे सीने पर हाथ रख दिया. झट से मेरी आँख खुली और मैंने लालटेन की रौशनी में उसे देखा..

“मैं हु कबीर ” बोली वो और मेरी चादर में घुस गयी...........

Bahut hi gazab ki update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Kabir sahi kah raha he...........vo jindgi ke us daur se gujar raha jaha sabkuch he, lekin chahiye kuch nahi......

Mami ke sath bhi ho sakta he kabir ka relation ho.............

Ab pitaji ye kaisi paheli se bhari chiththi chhod kar gaye he Kabir ke liye.........

Lagta he Nisha aayi he raat ko wapis

Keep rocking Bro
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,088
15,759
159
#२३

“मामी तुम यहाँ क्या वक्त हुआ ” मैंने कहा.

मामी- चार बजने में थोडा वक्त है अभी

“एक मिनट अभी आता हु ” बाहर निकला घुप अँधेरा था , मूतने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस बिस्तर में घुस गया. मामी को अपनी बाँहों में कस लिया

“तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था ” मामी के पेट को सहलाते हुए मैंने कहा

मामी- जिस तरह से शाम को देखा था तुमने आना पड़ा

मामी ने मेरे गाल की पप्पी ली . मैंने मामी को अपने ऊपर खींच लिया. मामी की गांड को दबाने लगा. मामी ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया. मेरे पतित अतीत का एक किस्सा मामी भी थी कैसे क्यों कब ये बताने की अभी जरूरत नहीं थी . मामी की जीभ मेरी जीभ सी लड़ने लगी थी मैंने साडी को ऊपर उठा लिया मामी की कच्छी के ऊपर से गोल गांड को मसलने का अनुभव क्या ही कहने . मामी चूत पर मेरे लंड की गर्माहट महसूस कर रही थी . मैंने इलास्टिक को फैलाते हुए अपने दोनों हाथ अन्दर डाले. गुदा द्वार पर मेरी उंगलियों का स्पर्श पाते ही मामी उत्तेजना के अगले पड़ाव पर पहुँच गयी थी .

“उफ़ कबीर ” मामी ने मेरी गर्दन पर काटा , मैंने मामी को विपरीत दिशा में कर दिया अब उनकी गांड मेरी तरफ और मुह मेरे लंड की तरफ था. जल्दी से मैंने कच्छी उतारा, मामी की गांड मेरे पुरे चेहरे पर आ चुकी थी, चूत से रिश्ते पानी की खुशबु से लंड ऐंठ चूका था . मामी की चूत पर जैसे ही मैंने जीभ को रगडा वो पागल ही हो गयी थी . मामी की शरारती उंगलिया मेरे अन्डकोशो को सहला रही थी , बरसो बाद मुझे मामी के रस को पीने का मौका मिला था .

मामी की चूत का गीलापन बढ़ता जा रहा था फिसलती हुई मेरी जीभ जब उसकी गांड के छेद पर जाती तो मामी का बदन कांपता. मामी की गरम साँसे मेरे लंड पर पड़ रही थी की तभी मामी ने अपना मुह खोला और लंड को चूसने लगी. सम्भोग का सबसे अहम् पल ये ही होता था जब स्त्री और पुरुष एक साथ एक दुसरे के गुपतांगो क चुमते-चूसते है .

मामी जोश में अपने कुलहो से मुह को दबा रही थी की कभी कभी साँस लेना भी मुश्किल सा लगता. अपने दोनों छेदों को चटवाते हुए वो पूरी तसल्ली से मेरे लंड को चूस रही थी . एक तरफ उसकी जीभ लंड के सुपाडे पर घूमती तो उसकी उंगलिया गोलियों को मजा दे रही थी . मामी की गांड जोर जोर से हिलने लगी थी पुरे जोश से वो लंड चूस रही थी . मेरी दाढ़ी के बाल जब जब चूत पर चुभते तो खुले दिल से मामी आहे भरती . कमरे का तापमान बढ़ने लगा था .किसी भी मर्द के लिए असली जाम औरत की चूत से बहता कामरस होता है , जिसने ये रस नहीं पिया वो मर्द हुआ ही नहीं. हर पल मामी की गांड और जोर से थिरक रही थी जिस तरह से चूत को वो दबा रही थी मैं समझ गया था की झड़ने वाली है वो तो मैंने उसे अपने ऊपर से हटा दिया..

मामी की एक चूची मेरे मुह में थी और दूसरी हाथ में मामी लंड के सुपाडे को आहिस्ता आहिस्ता चूत पर रगड़ रही थी .

आउच ” थोडा धीरे कबीर

चूत के छेद पर जब लंड रगडा जा रहा था तो बदन में ऐसी तरंगे उठ रही थी की क्या ही कहे, मैंने मामी की जांघो को विपरीत दिशा में फैलाया और उन्होंने गांड को ऊपर उठाते हुए लंड चूत में ले लिया .

“उफ़ कबीर , बहुत दिनों बाद कुछ अन्दर गया है ” मामी शर्म से बोली

“आज भी उतनी ही गर्म हो जितना पहली बार थी ” मैंने मामी पर चढ़ते हुए कहा

“तेरा नशा आज तक नहीं उतरा, तेरे साथ होने के अहसास से ही गीली हो गई थी मैं तो ” मामी ने अपनी बाहे मेरी पीठ पर कसते हुए कहा.

मामी की चूत बहुत चिकनी हो गयी थी. लगातार पड़ते धक्को से मामी को असीम सुख प्राप्त हो रहा था . ठंडा मौसम होने के बाद भी बिस्तर पर हमारे बदनो से पसीना बह चला था .

“मेरा होने वाला है ” शरमाते हुए मामी ने कहा तो मैंने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी. मामी की सांसे फुल गयी थी . इस चूत की गर्मी में मैं बह रहा था की तभी मामी ने अपने दांत मेरे कंधे पर गडा दिए और मुझे ऐसे कस लिया की अब छुटना था ही नहीं कभी .हाँफते हुए मामी ने मेरे माथे को चूमा

“कोढ़ी हो जा ” मैंने कहा तो मामी घोड़ी बन गयी .बड़े प्यार से मैंने मामी की गांड के छेद को सहलाया और थूक से उसे चिकना किया. लंड तो पहले ही चिकना हुआ पड़ा था .मैंने लंड को आगे सरकाया तो मामी बोली- कबीर , आगे ही कर ले.

मैं- इसका दीवाना हु मैं कैसे रहने दू

जैसे ही मेरा लंड अन्दर गया मामी का जिस्म टाइट हो गया पर कुछ देर के लिए. जल्दी ही मैं उसकी पीठ को सहलाते हुए गांड मार रहा था . किसी भी अड़तीस-चालीस के फेर वाली औरत की लेने में जो सुख है वो कच्ची कलि में कभी नहीं मिल सकता. मामी के चुतड ऐसे थिरक रहे थे जैसे किसी बीन पर कोई सर्प झूमता है . मामी भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रही थी . उसकी चाहत का सम्मान करते हुए मैंने दुबारा से चूत में लंड उतार दिया तो वो और मस्ती में झूम गयी. जब मैंने मामी की चूत में अपना वीर्य छोड़ा तो कसम से मेरे सीने में सांस बची नहीं थी .

“आग हो तुम , पता नहीं मामा कैसे संभालता होगा तुम्हे ” मैंने मामी को सीने से लगाते हुए कहा

मामी- इस आग को सँभालने का जिगर सिर्फ तुम्हे है कबीर. मुझे अब बहुत मान है की मेरी चूत के हक़दार बने तुम.

मैंने उसके होंठ को चूमा हलके से. भोर होने में पता नहीं कितनी देर थी , मैंने मामी को बिस्तर पर ही छोड़ा और बाहर निकल गया , बरसो बाद मैंने इस हवा को महसूस किया था . चुदाई के बाद मुझे भूख सी लग आई थी इधर तो कुछ था नहीं तो मैं मंजू के घर को चल दिया और जब मैं वहां पहुंचा तो मेरे कदम डगमगा गए मैंने देखा.................

Bahut hi umda update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Jaisa ki socha tha, vaisa hi hua............

Mami ke sath bhi kabir ke relations rahe he past me, vo aaj fir se taza ho gaye............

Ek baat to aapne solah aane sach kahi he ki jo maja 35+ ki aurat ko chodne me aata he vo maja kachchi kali nahi de sakti........

Ab manju ke ghar aisa kya dekh liye kabir ne........

Keep rocking Bro
 
Last edited:

sunoanuj

Well-Known Member
4,001
10,426
159
Bahut hee badhiya update hai …
 

lovelesh

Member
170
377
63
कहानी दिलचस्प होती जा रही है, और किरदार रहस्यमई। हालांकि मुझे मंजू के बारे में भी कुछ संदेह हो रहा है कि कहीं बचपन का छुपा हुआ प्यार तो नहीं जो बदले के रूप में बाहर आने लगा हो। खैर जो भी हो लेखक के लेखनी ही इसका जवाब देगी।

कुछ साल पहले "प्यार का सबूत" (लेखक का नाम the black blood था) नामक कहानी मुझे बेहद पसंद आई थी, वो भी रहस्यमई घटनाओं और षड्यंत्रों से भरी हुई थी। लेखन शैली काफ़ी मिलती जुलती है, कहीं वो आप ही तो नहीं?
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
10,210
38,721
259
कहानी दिलचस्प होती जा रही है, और किरदार रहस्यमई। हालांकि मुझे मंजू के बारे में भी कुछ संदेह हो रहा है कि कहीं बचपन का छुपा हुआ प्यार तो नहीं जो बदले के रूप में बाहर आने लगा हो। खैर जो भी हो लेखक के लेखनी ही इसका जवाब देगी।

कुछ साल पहले "प्यार का सबूत" (लेखक का नाम the black blood था) नामक कहानी मुझे बेहद पसंद आई थी, वो भी रहस्यमई घटनाओं और षड्यंत्रों से भरी हुई थी। लेखन शैली काफ़ी मिलती जुलती है, कहीं वो आप ही तो नहीं?
ये दोनों एक तो नहीं.... लेकिन एक से बढ़कर एक हैं :D xossip के जमाने से मेरे फैवरिट कहानीकार
 
Top