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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#129.

शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”

“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।

“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”

कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।

सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।

“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।

“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।

“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”

“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।

“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।

“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?

“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“

“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”

“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”

“वह दूसरी शलाका कौन थी?”

“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।

“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”

“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”

“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”

“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”

“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”

“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”

“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”

“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।

“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।

उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।

इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”

“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”

“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”

“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”

“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।

"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”

“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”

“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”

“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”

“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”

“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।

“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”

“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”

“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”

“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।

वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।

“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।

“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”

सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।

“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।

“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”

“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”

“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”

“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”

“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”

“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”

“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”

“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।

“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”

“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”

“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”

“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”

“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”

“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”

“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”

“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”

“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”

“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”

“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”

तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।

“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”

“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।

“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”

शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।

“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।

सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।

“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-

“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।

सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।

अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।

जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”


जारी रहेगा_______✍️
Wow*
Wondered update brother, ye sab ki journey itni jaldi samapt nahi hone wali hai.

Ye Tilisma mein bechari Jenith kya karegi yadi wahan koi shakti karya nahi karegi toh???

Let's see Alex ke gayab hone ki kya story hai???
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
5,564
12,642
174
#130.

सुनहरी हिरनी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 07:30, लैडन नदी के किनारे, पेलो पोनेसस प्रायद्वीप, ग्रीस)

लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

शेर लगातार आकृति की ओर बढ़ रहा था, पर अब आकृति के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही थी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

शेर ने पास पहुंचकर, आकृति की ओर एक लंबी छलांग लगाई।

आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


जारी रहेगा_______✍️
Wonderful update brother.
Akriti ka bhala ho kyunki ab Artemis hath dhokar uske pichhe padne wali hai.
Ek kahawat hai ab jitna khatra se bachne ka prayash karoge khatra utna hi aapke paas aa jati hai.
 

SAMRAT ETERNITY

Samrajya " lahore port se Bengalore sea Port"
Supreme
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To dosto agli story kis genre base pe likhna hai?? Aap sab ko konsa pasand hai wahi likhne ki kosis karynga, horror , mystry, thriller???
Ya fir erotica
Horror erotic
Bole toh bhoot ke sath ilu ilu
 

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#127.

ध्वनि शक्ति:
(14 वर्ष पहले.......04 जनवरी 1988, सोमवार, 10:30, मानसरोवर झील, हिमालय)

त्रिशाल मानसरोवर झील के पास खड़े होकर उसे निहार रहा था।

झील का स्वच्छ नीला जल, सूर्य के प्रकाश में एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

कुछ देर तक उस पवित्र नीले रंग के पानी को देखते रहने के बाद, त्रिशाल ने अपना सिर घुमाकर चारो ओर नजर डाली। इस समय दूर-दूर तक उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था।

यह देख त्रिशाल ने अपने बैग से एक छोटी सी गोली और एक डिबिया निकाल ली।

त्रिशाल ने गोली को खा लिया और डिबिया खोलकर उसमें रखे नीले रंग के द्रव को अपनी आँखों पर मल लिया।

यह दोनों वस्तुएं उसे ऋषि विश्वाकु ने दीं थीं।

गोली के प्रभाव से अब वह पानी में भी साँस ले सकता था और नीले द्रव के प्रभाव से अब वह किसी भी अदृश्य चीज को देख सकता था।

अब त्रिशाल मानसरोवर की ओर ध्यान से देखने लगा। नीले द्रव के प्रभाव से त्रिशाल को मानसरोवर के अंदर सीढ़ियां बनीं दिखाईं दीं।

त्रिशाल उन सीढ़ियों के पास पहुंच गया और इधर-उधर नजर घुमाने के बाद त्रिशाल ने सीढ़ियां उतरना शुरु कर दिया।

7-8 सीढ़ियां उतरते ही त्रिशाल पूरा का पूरा पानी में समा गया फिर भी वह इस स्वच्छ जल में लगातार सीढ़ियां उतर रहा था।

लगभग 100 सीढ़ियां उतरने के बाद त्रिशाल झील की तली तक पहुंच गया।

जिस जगह पर सीढियां समाप्त हो रहीं थीं, त्रिशाल को पानी में आर्क की आकृति में एक सोने का दरवाजा बना दिखाई दिया, जिस पर संस्कृत भाषा में शक्ति लोक लिखा था।

त्रिशाल उस द्वार से अंदर की ओर प्रवेश कर गया। अंदर किसी भी जगह पानी नहीं दिखाई दे रहा था।

झील का पूरा पानी द्वार पर ही रुका हुआ था। चारो ओर निस्तब्ध सन्नाटा छाया हुआ था।

तभी कुछ दूरी पर त्रिशाल को हवा में लहराता हुआ, एक बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं थीं।

त्रिशाल उस बोर्ड वाली जगह पर पहुंच गया और बोर्ड पर बनी उन आकृतियों को ध्यान से देखने लगा।

बोर्ड पर सबसे ऊपर संस्कृत भाषा में एक श्लोक लिखा था- “ऊँ नमो भगवते……य नमः” और उस श्लोक के नीचे वि.. के अलग-अलग अस्त्रों को दर्शाया गया था।

“इस गोले में दर्शाये गये भगवान अस्त्रों का क्या मतलब है?” त्रिशाल बोर्ड को देखकर लगातार सोच रहा था- “कहीं ध्वनि शक्ति इन अस्त्रों से बने मायाजाल के अंदर तो नहीं है। लगता है आगे बढ़ना होगा। उसके बाद स्वयमेव सब कुछ पता चल जायेगा।”

यह सोच त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।

लगभग 1 घंटे चलने के बाद त्रिशाल को एक ऊंचा सा पर्वत दिखाई दिया, त्रिशाल उस दिशा की ओर चल पड़ा।

पास जाने पर पता चला कि वह एक पर्वत नहीं है, बल्कि पर्वतों की एक पूरी श्रृंखला है।

त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच से होकर गुजरता हुआ, एक पक्का रास्ता दिखाई दिया। त्रिशाल उस रास्ते से पर्वत के दूसरी ओर चल दिया।

कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को रास्ते में रखी एक 50 फुट लंबी गदा दिखाई दी।

“यह प्रभू की कौमोदकी गदा है, पर इसे इस प्रकार बीच रास्तें में क्यों रखा है?”

त्रिशाल ने गदा को उठाने की बहुत कोशिश की, पर गदा उठना तो दूर हिली तक नहीं।

थक-हार कर त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।

पर कुछ आगे चलते ही त्रिशाल को रास्ता रोके एक विशाल चट्टान दिखाई दी, शायद वह किसी पहाड़ी से लुढ़ककर बीच रास्तें में आ गिरी थी।

वह चट्टान इस प्रकार रास्ते में गिरी थी कि अब एक भी व्यक्ति का बिना चट्टान हटाए, दूसरी ओर जा पाना सम्भव नहीं था।

पर इतनी बड़ी चट्टान को हटा पाना किसी मनुष्य के बस की बात नहीं थी।

त्रिशाल बहुत देर तक पर्वत के उस पार जाने की सोचता रहा, पर उसे कोई रास्ता समझ नहीं आया।

“यह पर्वत भी काफी सपाट और चिकना है, इस वजह से इस पर भी चढ़ा नहीं जा सकता....फिर उस पार कैसे जाऊं? मुझे नहीं लगता कि बिना दूसरी ओर गये, मुझे ध्वनि शक्ति मिलेगी?...कहीं यह चट्टान इस कौमोदकी गदा से तो नहीं टूटेगी? पर कैसे?...मैं तो इस गदा को हिला भी नहीं पा रहा।”

कुछ सोचकर त्रिशाल फिर एक बार गदा के पास आ गया और उसे ध्यान से देखने लगा, पर उस गदा में त्रिशाल को कुछ भी अनोखा नहीं दिखा।

तभी अचानक त्रिशाल को बोर्ड पर लिखा, वह मंत्र याद आ गया। अब त्रिशाल ने कौमोदकी गदा को हाथ लगाकर वह मंत्र पढ़ा- “ऊँ नमो भग..वते वा….य नमः”

मंत्र के पूरा होते ही गदा अपने आप हवा में उठी और तेजी से जा कर उस चट्टान से जा टकराई।

एक भयानक धमाका हुआ, और गदा के भीषण प्रहार से चट्टान पूरी तरह से चूर-चूर हो गयी।

अपना कार्य पूरा करते ही कौमोदकी गदा स्वतः ही हवा में विलीन हो गई। त्रिशाल अब आगे बढ़ गया।

उस पर्वत के आगे एक मैदान था, उस मैदान के एक किनारे एक बड़ा सा धनुष रखा दिखाई दे रहा था।

त्रिशाल चलते-चलते उस धनुष के पास पहुंच गया। धनुष का आकार भी 50 फिट के आसपास था, पर आसपास कहीं कोई तीर दिखाई नहीं दे रहा था।

“यह उन्हीं का दूसरा अस्त्र ‘शारंग धनुष’ है, अब इस का क्या काम हो सकता है यहां?....और यहां पर तो कोई तीर भी नहीं है, फिर इससे कौन से लक्ष्य का संधान करना है?” त्रिशाल ने धनुष से थोड़ा और आगे बढ़कर देखा।

आगे एक 400 फुट गहरी खांई थी और उस खांई में ज्वालामुखी का लावा बहता हुआ दिखाई दे रहा था।

उस खांई पर कोई भी पुल नहीं बना था। यह देख त्रिशाल थोड़ा घबरा गया।

“हे ईश्वर अब तुम ही मुझे इस खांई को पार करने में मदद करो।”

त्रिशाल काफी देर तक सोचता रहा और फिर थककर वहीं जमीन पर बैठ गया।

तभी उसे कौमोदकी गदा वाला दृश्य याद आ गया कि किस प्रकार मंत्र पढ़ने से उसके सामने की चट्टान गदा ने तोड़ दी थी।

यह सोच वह जमीन से उठा और अपने कपड़ों को झाड़कर फिर से धनुष के पास आ गया।
धनुष को छूकर त्रिशाल ने फिर वही मंत्र दोहराया, मंत्र के बोलते ही पता नहीं कहां से धनुष पर एक तीर नजर आने लगा।

तीर के धनुष पर चढ़ते ही, धनुष की प्रत्यंचा अपने आप खिंच गई और धनुष ने उस भारी-भरकम तीर को खांई के दूसरी ओर वाली जमीन पर फेंक दिया।

अब धनुष पर दूसरातीर नजर आने लगा था। यह देख त्रिशाल के दिमाग में एक विचार आया। वह धीरे-धीरे सहारा लेकर धनुष के ऊपर चढ़ गया।

तभी धनुष ने वो दूसरा तीर भी खांई के दूसरी ओर फेंक दिया और धनुष पर एक बार फिर नया तीर नजर आने लगा।

इस बार नये तीर के नजर आते ही त्रिशाल उस तीर की नोक को पकड़कर हवा में लटक गया।

कुछ ही क्षणों में धनुष ने इस तीर को भी खांई की ओर उछाल दिया, पर इस बार यह तीर अकेला नहीं था, उसके साथ था, उस तीर को पकड़कर लटका हुआ 'त्रिशाल' भी।

जैसे ही वह तीर खांई के दूसरी ओर पहुंचा, त्रिशाल छलांग लगा कर दूसरी ओर की जमीन पर कूद गया।

त्रिशाल के दूसरी ओर पहुंचते ही धनुष और तीर दोनों ही हवा में विलीन हो गये।

त्रिशाल फिर आगे बढ़ना शुरु हो गया। कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी किताब जमीन पर खड़ी हुई दिखाई दी।

उस किताब की जिल्द का कवर नारंगी रंग का था, जिस पर नीचे की ओर एक तलवार की खोखली आकृति बनी थी।

उस आकृति को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे इस किताब पर कोई तलवार जड़ी हुई थी जिसे उससे निकाल लिया गया हो।

किताब के ऊपर संस्कृत भाषा के बड़े अक्षरों में ‘ध्वनिका’ लिखा हुआ था।

किताब से कुछ दूरी पर एक 6 फुट का सोने का खंभा जमीन में गड़ा हुआ दिखाई दिया।

खंभे के ऊपरी सिरे पर एक त्रिशूल जैसी आकृति बनी थी।

त्रिशाल ने उस किताब को खोलने की बहुत कोशिश की, परंतु वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया।

“ये क्या ? यहां पर तो और कोई चीज है ही नहीं, फिर भला इस किताब को कैसे खोला जा सकता है।? और मुझे नहीं लगता कि बिना इस किताब को खोले मैं इस जगह से आगे बढ़ पाऊंगा।

त्रिशाल ने हर दिशा में देखते हुए सोचा। अगर मैं उस बोर्ड के हिसाब से चलूं तो मुझे इस भाग में भगवान की ‘नंदक तलवार’ दिखनी चाहिये थी। इस किताब पर भी तलवार की आकृति के समान ही, खाली जगह है। इसका मतलब तलवार मिलने के बाद ही यह किताब खुलनी चाहिये। पर तलवार यहां पर कहां.......?”

अभी त्रिशाल इतना ही सोच पाया था कि उसकी निगाह सोने के खंभे पर पड़ी- “कहीं यह खंभा तलवार की मूठ तो नहीं और तलवार जमीन में घुसी हुई हो? पर अगर यह तलवार की मूठ हुई तो तलवार का
आकार काफी बड़ा होगा और इतनी बड़ी तलवार इस किताब में नहीं लगेगी।”

त्रिशाल चलता हुआ उस खंभे के पास आ गया और उसे छूकर ध्यान से देखने लगा।

तभी त्रिशाल को जाने क्या सूझा कि उसने तलवार को पकड़ कर फिर से ...ष्णु के उस मंत्र का उच्चारण किया- ऊँ….नमः”

मंत्र का जाप करते ही वह सोने का खंभा जोर-जोर से हिलकर ऊपर की ओर उठने लगा।

त्रिशाल का सोचना बिल्कुल सही था। वह नंदक तलवार ही थी।

जब वह तलवार पूरी तरह से जमीन के बाहर आ गयी, तो उसका आकार किताब के खोखले स्थान के जैसा हो गया और वह तलवार स्वतः ही जाकर ध्वनिका के जिल्द पर फिट हो गयी।

तलवार के वहां लगते ही ध्वनिका का प्रथम पृष्ठ अपने आप खुल गया।
प्रथम पृष्ठ के खुलते ही ध्वनिका से एक जोर की ‘ऊँ’ की ध्वनि निकली, जो कि वहां के पूरे वातावरण में गूंज गयी।

तभी ध्वनिका का सफेद पृष्ठ एक चलचित्र के रुप में चलने लगा।

इस चलचित्र में एक बलशाली योद्धा कुछ राक्षसों से लड़ रहा था। वह योद्धा अपनी शक्ति से बड़ी-बड़ी चट्टानों को किसी खिलौने की तरह हाथ में उठाकर राक्षसों पर फेंक रहा था।

युद्ध अपने चरम पर था, परंतु उस योद्धा का पराक्रम देख त्रिशाल की पलकें भी नहीं झपक रहीं थीं।

तभी उस योद्धा के हाथ में एक सोने के समान चमकता हुआ पंचशूल दिखाई दिया, जिसमें से तेज बिजली निकल रही थी। :chandu:

योद्धा ने ‘ऊँ’ का जाप किया और वह पंचशूल लेकर हवा में उड़ गया। इतना दिखाकर वह चलचित्र बंद हो गया और इसी के साथ बंद हो गया ध्वनिका का वह पृष्ठ भी।

“वाह! कितना बलशाली योद्धा था, काश मेरी पुत्री का विवाह इस योद्धा से हो पाता।” त्रिशाल ने जैसे ही यह सोचा, ध्वनिका से तेज प्रकाश निकलकर, एक दिशा की ओर चल दिया।

उस प्रकाश की गति बहुत तेज थी। कुछ ही देर में वह प्रकाश सामरा राज्य में स्थित अटलांटिस वृक्ष में
समा गया।

त्रिशाल को कुछ समझ नहीं आया कि यह किताब क्या है? वह योद्धा कौन था? और ध्वनिका ने जो दृश्य त्रिशाल को दिखाया, उसका औचित्य क्या था?

अभी त्रिशाल आगे के बारे में सोच ही रहा था कि तभी नंदक तलवार अपने आप कहीं गायब हो गई, जो इस बात का द्योतक थी कि यह भाग पूर्ण हो चुका है। त्रिशाल यह देखकर आगे की ओर बढ़ गया।

आगे जाने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी दीवार में एक दरवाजा दिखाई दिया। त्रिशाल उस दरवाजे में प्रवेश कर गया।

त्रिशाल के उस दरवाजें में प्रवेश करते ही वह दरवाजा कही गायब हो गया।

अब त्रिशाल ने स्वयं को एक बड़े से कमरे में पाया, परंतु उस कमरे से निकलने का कोई भी मार्ग नहीं था।

कमरे के बीचो बीच भगवान का सुदर्शन चक्र रखा हुआ था, जिसका आकार एक रथ के पहिये के बराबर था।

चक्र पूर्णतया रुका हुआ था। कमरे में और कुछ भी नहीं था। त्रिशाल को इस बार ज्यादा नहीं सोचना पड़ा।

त्रिशाल ने चक्र का हाथों से छूकर फिर से भगवान विष्णु के उसी मंत्र का उच्चारण किया- “ऊँ नमो……नमः”

मंत्र का उच्चारण करते ही सुदर्शन चक्र बहुत तेजी से नाचने लगा।

चक्र को नाचता देख त्रिशाल उससे थोड़ा दूर हट गया और चक्र से होने वाले किसी चमत्कार का इंतजार करने लगा।

चक्र धीरे-धीरे नाचता हुआ अपना आकार बढ़ाता जा रहा था। यह देख त्रिशाल कमरे के एक किनारे पर आ गया, पर चक्र के नाचने और बढ़ने की गति देखकर त्रिशाल समझ गया कि वह चक्र कुछ ही देर मे त्रिशाल के पास पहुंच जायेगा।

यह देख त्रिशाल घबरा गया और तेजी से उस चक्र से बचने का उपाय सोचने लगा।

पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्यों कि ना तो उसके पास उस चक्र को रोकने का कोई उपाय था और ना ही उस कमरे में रहकर चक्र से बचा जा सकता था।

चक्र धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाते हुए, उसकी ओर बढ़ता जा रहा था।

त्रिशाल, चक्र का आकार बढ़ता देख यह तो समझ गया कि कुछ ही देर में चक्र उस कमरे की दीवारों को काट देगा, पर उससे पहले ही वह स्वयं चक्र का शिकार हो जायेगा।

त्रिशाल ने उस मंत्र का भी जाप किया, पर वह चक्र नहीं रुका। चक्र अब त्रिशाल से मात्र एक फुट की दूरी पर ही बचा था।

यह देख त्रिशाल ईश्वर से प्रार्थना करने लगा- “हे ईश्वर मुझे बचा लीजिये, मैं अपने कुल का आखिरी दीपक हूं, अगर मैं मर गया तो मेरे कुल का दीपक बुझ जायेगा।”

तभी दीपक शब्द को याद कर एकाएक त्रिशाल के दिमाग की बत्ती जल गयी- “दीपक...दीपक के नीचे तो अंधेरा रहता है। यानि जो दीपक सबको उजाला देता है, वह स्वयं के नीचे उजाला नहीं कर सकता।

यह सोच त्रिशाल की आँखें, उस नाच रहे सुदर्शन चक्र के नीचे की ओर गयी। चक्र के नीचे लगभग 1 फुट की जगह थी।

यह सोच त्रिशाल तेजी से जमीन पर लेट गया और चक्र के केन्द्र की ओर जाने लगा।

बाल-बाल बचा था त्रिशाल। अगर उसे यह विचार आने में एक पल की भी और देरी हो जाती, तो उसकी मृत्यु निश्चित थी।

चक्र ने अब कमरे की दीवारों को काटना शुरु कर दिया। दीवारों का मलबा तेजी से कमरे के अंदर गिरने लगा, पर त्रिशाल को ये पता था, इसलिये वह पहले ही लेटे-लेटे चक्र के केंद्र के पास पहुंच गया था।

दीवारों के कटने से कमरे में जोरदार आवाज उत्पन्न होने लगी। कुछ ही देर में चक्र ने कमरे की सारी दीवारों को काट दिया।

कमरे की दीवारों के कटते ही चक्र अपनी जगह से गायब हो गया।

त्रिशाल ने यह देख अब राहत की साँस ली और उठकर खड़ा हो गया ओर अपने वस्त्रों पर लगी धूल को साफ कर दीवारों के मलबे पर चढ़कर बाहर आ गया।

बाहर एक 200 फुट से भी ऊंचा सोने का कलश रखा था, जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां भी बनीं थीं। उस कलश के अलावा वहां कुछ भी नहीं था।

वह कलश इतना विशाल था कि उसमें पानी भरकर एक राज्य की प्यास बुझाई जा सकती थी।
त्रिशाल धीरे-धीरे उस कलश की सीढ़ियां चढ़ने लगा।

आखिरी सीढ़ी पर एक छोटा सा प्लेटफार्म बना था। प्लेटफार्म पर खड़े हो कर त्रिशाल ने कलश के अंदर ओर झांका, अंदर उसे पानी की झलक मिली, मगर अंदर धुप्प अंधेरा था।

त्रिशाल बिना भयभीत हुए उस सोने के कलश में कूद गया।

‘छपाक’ की आवाज के साथ उसका शरीर पानी से टकराया।

तभी त्रिशाल को पानी की तली में एक रोशनी सी दिखी। त्रिशाल एक डुबकी लगा कर उस रोशनी के पीछे चल पड़ा।

कुछ ही देर में त्रिशाल उस रोशनी के पास था। कलश की तली में ‘पाञचजन्य शंख’ रखा था।

वह रोशनी उसी से प्रस्फुटित हो रही थी। वह शंख भी आकार में विशाल था।

त्रिशाल उस शंख के पास पहुंचकर उसे ध्यान से देखने लगा।

जिस ओर से शंख को बजाया जाता है, त्रिशाल को उस ओर एक मनुष्य के घुसने बराबर एक छेद दिखाई दिया। त्रिशाल उस छेद में प्रवेश कर गया।

अंदर से शंख की दीवारें बहुत चिकनी दिख रहीं थीं, इसलिये त्रिशाल अपने पैरों को जमा-जमा कर शंख में चलने की कोशिश कर रहा था।

तभी त्रिशाल को ‘ऊँ’ की एक धीमी आवाज शंख में गूंजती हुई सुनाई दी।

“शंख में यह आवाज कहां से आ रही है? कहीं यही तो ध्वनि शक्ति नहीं?” यह सोच त्रिशाल उस ध्वनि की दिशा में चल पड़ा।

कुछ आगे जाने पर एक बहुत गहरी और चिकनी ढलान दिखाई दी। इस ढलान का अंत कहीं नहीं दिख रहा था।

यह देख त्रिशाल थोड़ा भयभीत हो गया।

तभी त्रिशाल का पैर चिकनी सतह पर फिसल गया और वह ढलान पर बहुत तेजी से फिसलने लगा।
त्रिशाल के मुंह से चीख की आवाज निकल गई।

त्रिशाल लगातार फिसलता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे उस फिसलन का कहीं अंत ही नहीं है।
लगभग 10 मिनट तक इसी तरह फिसलने के बाद त्रिशाल एक कोमल सी वस्तु पर गिरा, पर उस जगह इतना अंधेरा था कि त्रिशाल को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था कि वह कहां पर आकर गिरा है?

तभी त्रिशाल को कहीं पानी में एक बूंद के गिरने की आवाज सुनाई दी। इस बूंद की आवाज के साथ चारो ओर प्रकाश फैल गया।

प्रकाश के फैलते ही त्रिशाल को नजर आया कि वह एक विशाल कमल के फूल पर गिरा पड़ा है। तभी ‘ऊँ’ की आवाज पुनः आने लगी।

इस बार वह आवाज कमल के फूल के अंदर से आती हुई प्रतीत हुई।

तभी कमल के फूल की पंखंड़ियों ने स्वतः बंद हो कर त्रिशाल को अपने अंदर समा लिया।

अब तेज रोशनी और ‘ऊँ’ की आवाज त्रिशाल को अपने शरीर में समाहित होती हुई सी प्रतीत हुई।

त्रिशाल ने अपनी आँखें जोर से बंद कर लीं।

कुछ देर बाद जब हर ओर से आवाज आनी बंद हो गयी, तो त्रिशाल ने अपनी आँखें खोलीं। उसने अपने आप को मानसरोवर झील के किनारे पड़ा हुआ पाया।

तभी उसे अपने शरीर के अंदर किसी विचित्र शक्ति का अहसास हुआ। यह विचित्र अनुभव ये समझने के लिये पर्याप्त था कि त्रिशाल को ध्वनि शक्ति प्राप्त हो गई है।

यह महसूस कर त्रिशाल के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी और वह योग गुफा की ओर चल दिया।


Jaari Rahega……
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
क्या जबरदस्त और रोमांचकारी सफर था त्रिशाल का ध्वनी शक्ती प्राप्त करने का
बडा ही खतरनाक और रोमांचक अपडेट
 

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#128.

चैपटर-9 वेदान्त रहस्यम् :

(13 जनवरी 2002, रविवार, 21:30, मायावन, अराका द्वीप)

सभी ने अब बर्फ की घाटी को सकुशल पार कर लिया था।

जंगलों का सिलसिला एक बार फिर शुरु हो गया था। लेकिन शाम हो जाने की वजह से सुयश ने सभी को एक सुरक्षित स्थान पर ही रात बिताने के लिये रोक दिया था।

वह एक मैदानी क्षेत्र था, जिसमें काफी दूर तक एक ही घना पेड़ था। उसी घने पेड़ के नीचे इन सभी ने रात बिताने का निश्चय किया।

कुछ आगे सभी को फिर से एक ऊंची पहाड़ी नजर आने लगी थी, जिसकी चोटी एक अजीब सी चमक बिखेर रही थी।

सभी दिन भर जंगल से बटोरे फल को खाकर उसी पेड़ के नीचे सो गये। काफी रात हो चुकी थी, पर तौफीक को नींद नहीं आ रही थी।

वह बारी-बारी से सबको सोते हुए देख रहा था।

जेनिथ के प्रति तौफीक के दिमाग में बहुत सी उलझनें थीं। माना कि उसने बदला लेने के लिये, जेनिथ के आस-पास अपना जाल फैलाया, पर वह जेनिथ को मारना नहीं चाहता था।

लगातार जेनिथ के पास रहते-रहते उसे भी जेनिथ से कुछ लगाव सा हो गया था।

इसी लगाव के कारण उसे यह डर हो गया था कि कहीं लॉरेन जेनिथ को सबकुछ बता ना दे। इसी वजह से उसने लॉरेन का कत्ल किया था।

तौफीक जानता था कि अगर जेनिथ उसके बारे में सबकुछ जान गयी तो वह उससे नफरत करने लगेगी।

पर इस जंगल में आने के बाद सभी का उद्देश्य ही परिवर्तित हो गया। अब ना तो किसी से दुश्मनी बची थी और ना किसी से बदला लेने की चाहत।

इसी बातों को आधार मानकर तौफीक ने मगरमच्छ मानव से जेनिथ की जान बचाने की कोशिश की थी।

पर इधर कुछ दिनों से जेनिथ का व्यवहार तौफीक को समझ नहीं आ रहा था? उसे नहीं पता था कि अचानक जेनिथ उससे इतना दूर क्यों रहने लगी है? यही उलझन उसे आज सोने नहीं दे रही थी।

जंगल में गूंजती हुई जंगली जानवरों की आवाजें और झिंगुरों का शोर आपस में मिलकर सन्नाटे को भंग कर रहे थे।

तभी अचानक वातावरण में चल रही हवाओं में थोड़ा तेजी आ गयी।

पेड़ों के गिरे हुए सूखे पत्ते ‘खड़-खड़’ की आवाज के साथ इधर-उधर बिखरने लगे।

तभी एक अजीब सी आवाज ने तौफीक का ध्यान भंग किया-“फड़-फड़-फड़-फड़”

तौफीक ने ध्यान लगा कर सुनने की कोशिश की कि आखिर यह आवाज आ कहां से रही है?

“फड़-फड़-फड़-फड़।”तौफीक को वह आवाज दोबारा से सुनाई दी। लेकिन तौफीक इस बार पूरी तरह से चौकन्ना था।

वह आवाज उसी पेड़ के ऊपर से आ रही थी, जिसके नीचे वह सभी सो रहे थे।

तौफीक ने एक बार फिर से आवाज पर ध्यान दिया। उसे वह आवाज बड़ी विचित्र सी महसूस हुई। अब तौफीक की निगाहें पेड़ के ऊपरी हिस्से की ओर चली गईं।

धीरे-धीरे चल रही हवा में गूंजती उस ‘फड़-फड़’ की आवाज ने तौफीक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था।

तौफीक ने एक नजर फिर से सो रहे सभी लोगों पर मारी और फिर खड़ा होकर, धीरे-धीरे उस सपाट पेड़ पर चढ़ने लगा।

पेड़ सपाट होने की वजह से उस पर चढ़ना थोड़ा मुश्किल था, पर यहां पर तौफीक की आर्मी की ट्रेनिंग काम आ गयी।

कुछ ही देर में तौफीक उस आवाज के स्रोत तक पहुंच गया।

वह आवाज पेड़ की मोटे तने में मौजूद एक कोटर से आ रही थी। तौफीक ने कुछ देर तक सोचा और फिर अपना दाहिना हाथ पेड़ की उस कोटर में डाल दिया।

हाथ से किसी वस्तु का स्पर्श होते ही तौफीक ने उस वस्तु को बाहर की ओर खींच लिया।

वह वस्तु लाल रंग की मोटी जिल्द वाली एक किताब थी। उसी के पन्ने हवा के कारण खुल-बंद रहे थे, जिससे वह विचित्र सी फड़फड़ की आवाज हो रही थी।

तौफीक उस लाल किताब को लेकर नीचे उतर आया।

तौफीक ने पेड़ के पास बैठकर उस किताब को देखा। वह किताब किसी दूसरी भाषा में थी, जिसे तौफीक पढ़ नहीं पा रहा था।

तौफीक आगे के पृष्ठों को खोलकर देखने लगा।

हर पृष्ठ पर अलग-अलग चित्र बने थे, कुछ चित्र इंसानों के थे, तो कुछ चित्र स्थानों के। उन चित्रों के नीचे दूसरी भाषा में कुछ ना कुछ लिखा था।

तौफीक बिना समझे हुए पृष्ठों को पलटता जा रहा था।

तभी तौफीक को एक पेज पर, एक काँच के अष्टकोण में बंद, एक छोटे से बालक का चित्र दिखाई दिया।

वह बालक काँच में बंद होकर भी मुस्कुरा रहा था।

तौफीक को वह बालक कोई दिव्य आत्मा लगा। तौफीक ने फिर से पन्नों को पलटना शुरु कर दिया।

300 पृष्ठों की पूरी किताब पलटने के बाद तौफीक की नजर आखिरी पेज पर जाकर रुक गयी।

आखिरी पेज पर बहुत ही खूबसूरत सी किसी स्त्री की 2 आँखें बनीं थीं।
इतनी खूबसूरत आँखें देख तौफीक मंत्रमुग्ध हो गया और लगातार उन आँखों को देखने लगा।

कुछ सोचकर तौफीक ने धीरे से उन आँखों को अपने हाथों से स्पर्श किया।

तौफीक के उन आँखों को स्पर्श करते ही, उसे वह दोनों आँखें बहुत ठंडी सी प्रतीत हुईं और इससे पहले कि तौफीक कुछ कर पाता, उसे अपना शरीर उस किताब में खिंचता हुआ सा प्रतीत हुआ।

यह देख तौफीक के मुंह से चीख निकल गयी।

कुछ ही पलों में तौफीक पूरा का पूरा उस किताब में समा गया।

तौफीक के किताब में समाते ही, वह किताब वहीं जमीन पर गिर गयी और उसके खुले हुए पन्ने फड़फड़ा कर बंद हो गये।

तौफीक की चीख सुनकर सभी की नींद खुल गयी।

सभी ने अपने चारो ओर नजर डाली, पर तौफीक का कहीं नामो निशान नहीं था।

“क्या तुम लोगों को भी तौफीक की चीख सुनाई दी थी?” सुयश ने बारी-बारी सबको देखते हुए पूछा।

सभी ने समवेत सिर हिला दिया। तभी शैफाली की नजर वहां पड़ी उस लाल किताब पर गयी।

“कैप्टेन अंकल, वहां पड़ी हुई वह किताब कैसी है?” शैफाली ने कहा।

शैफाली की बात सुनकर सुयश ने आगे बढ़कर वह किताब उठा ली।

सुयश ने किताब को देखा। वह किताब संस्कृत भाषा में थी।

किताब के जिल्द पर उस किताब का नाम लिखा था, जिसे सुयश ने
आसानी से पढ़ लिया।

किताब का नाम था- “वेदान्त रहस्यम्”

“यह किताब यहां कहां से आयी ?” सुयश संस्कृत भाषा में लिखी किताब देखकर आश्चर्य में पड़ गया- “यह हममें से तो किसी की नहीं है। कहीं यह कोई रहस्यमयी किताब तो नहीं ?”

“कहीं इस किताब की वजह से ही तो तौफीक अंकल नहीं गायब हुए?” शैफाली ने कहा- “क्यों कि मैंने सोते समय तौफीक अंकल की चीख के अलावा भी एक आवाज सुनी थी, जो कि शायद इसी किताब के गिरने की आवाज थी।”

सुयश ने शैफाली की बात सुनी और किताब के पन्ने को पलट दिया।

सुयश ने सरसरी तौर पर किताब के पन्नों को पलटकर देखा।

तभी सुयश की नजर भी किताब के उसी पृष्ठ पर पड़ी, जिसमें एक छोटा बालक काँच के अष्टकोण में बंद दिखाई दे रहा था।

उस चित्र को देखते ही अचानक सुयश के सिर में बहुत तेज दर्द सा महसूस हुआ और उसके कानों में कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगीं-

“मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।” ...........

“नहीं...नहीं छोड़ दो उस बालक को...अब मैं कभी भी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगी ...मुझे बस मेरा बालक दे दो.........मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं किया?...सबकुछ अंजाने में हुआ है। मुझे बस एक बार प्रायश्चित का मौका दो...मैं फिर से सब कुछ सहीं कर दूंगी।”

सुयश के सिर में कुछ आवाजें गूंज रहीं थीं और इसी वजह से उसके सिर का दर्द बढ़ता जा रहा था।
सुयश अपना सिर पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गया।

“कैप्टेन...कैप्टेन...क्या हुआ आपको?” जेनिथ ने चिल्ला कर कहा- “आप ठीक तो हैं ना?”

“शैफाली तुरंत उस किताब को बंद कर दो।” एक अंजानी आवाज वातावरण में गूंजी।

शैफाली ने आवाज की दिशा में देखा, उसे सामने देवी शलाका और तौफीक खड़े नजर आये।

शैफाली ने आश्चर्य से उस लाल किताब को बंद कर दिया और देवी शलाका व तौफीक को देखने लगी।

जेनिथ और क्रिस्टी की भी निगाहें अब शलाका के ऊपर थीं।

सुयश के सिर का दर्द किताब बंद होते ही खत्म हो गया। अब वो सिर उठाये एकटक शलाका को देख रहा था।

सुयश का दिल कर रहा था कि वह दौड़कर शलाका को गले से लगा ले, पर माहौल की गंभीरता को देखते हुए सुयश ने कुछ नहीं कहा। वह बस जमीन से उठकर खड़ा हो गया।

“तौफीक आप कहां गायब हो गये थे? आप ठीक तो हैं ना?” क्रिस्टी ने तौफीक को देखकर कहा।

तौफीक ने धीरे से सिर हिलाकर अपने सुरक्षित होने का इशारा किया।

सभी एक दूसरे को देख रहे थे, पर चारो ओर सन्नाटा छाया था, जिसे तोड़ा तौफीक की आवाज ने-

“कैप्टेन, मैंने रात में पन्ने फड़फड़ाने की आवाज सुनी, जो कि इस पेड़ से आ रही थी। मैंने ऊपर जा कर देखा तो मुझे यह किताब मिली। मैंने जब किताब के आखिरी पृष्ठ पर मौजूद 2 आँखों को छुआ, तो मैं खिंचकर उस किताब में समा गया। डर की वजह से मैने अपनी आँखें बंद कर लीं। जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने अपने आपको देवी शलाका के महल में पाया। मैंने जैसे ही इन्हें इस किताब के बारे में बताया, यह तुरंत मुझे लेकर यहां आ गयीं।” इतना कहकर तौफीक चुप हो गया।

“इस बात के लिये हम आपके आभारी हैं देवी शलाका।” सुयश ने शलाका को आभार प्रकट करते हुए कहा।

“तुम मुझे देवी क्यों बोल रहे हो ?” तुम मुझे सिर्फ शलाका कह सकते हो।”

शलाका की आँखों में सुयश के लिये प्यार का सागर लहरा रहा था- “अच्छा शैफाली, तुम अब वो लाल किताब मुझे दे दो, नहीं तो वो तुम
लोगों के लिये और कोई मुसीबत पैदा कर देगी।”

शैफाली ने सुयश कर ओर देखा। सुयश ने हां में सिर हिला कर शैफाली को स्वीकृति दे दी।

शैफाली उस लाल किताब को लेकर शलाका की ओर बढ़ी, तभी एक और जोर की आवाज गूंजी-
“नहीं शैफाली उसे वह लाल किताब मत देना।”

दूसरी ओर से आती हुई आवाज को सुन शैफाली सहित सभी ने नजर घुमाकर देखा।

दूसरी ओर एक और शलाका को देख सभी हैरान हो गये।

“दो-दो देवी शलाका !”

सभी कभी पहली वाली शलाका को तो कभी दूसरी वाली शलाका को देख रहे थे।

दोनों ही बिल्कुल एक जैसी थीं। यह देख सुयश ने आगे बढ़कर तुरंत शैफाली से वह लाल किताब ले लिया।

“तुम दोनों में से असली शलाका कौन है?” सुयश ने गरजते हुए पूछा।

“मैं हूं असली शलाका।” पहली वाली शलाका ने कहा।

सुयश यह सुन दूसरी वाली शलाका की ओर मुड़ा।

“मुझे लगता है कि तुम मुझे आसानी से पहचान जाओगे। क्यों कि एक ही गलती तुम जिंदगी में 2 बार नहीं करते।"

दूसरी वाली शलाका के शब्दों में जादू था, जिसे सुनकर सुयश के चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव आ गये।

“अच्छा तो ऐसे नहीं पता चलेगा ।” सुयश ने कहा- “तुम दोनों ये बताओ कि जब मैं धेनुका का स्वर्ण दुग्ध लाने गया था, तो ऐमू का पीछा कौन सा पंछी कर रहा था?” यह सुनते ही पहली वाली शलाका की आँखें भय से चौड़ी हो गयीं-
“क्या तुम्हें सब कुछ याद आ गया?”

पहली शलाका को भयभीत देखकर सुयश दूसरी वाली शलाका की ओर मुड़ा- “क्या तुम बताना चाहोगी, इस प्रश्न का उत्तर?”

“धेनुका का स्वर्ण दुग्ध लेने, तुम मेरे साथ ही देवलोक में गये थे। जहां पर ऐमू का पीछा एक बाज कर रहा था, जो कि उसे मारना चाहता था।” दूसरी शलाका ने कहा।

यह सुन पहली शलाका ने गुस्से से अपने दाँत को पीसा और एक झमाके के साथ वहां से गायब हो गयी।

“मैंने कहा था कि तुम मुझे पहचान लोगे।” यह कहकर शलाका भागकर सुयश के पास आयी और उसके गले से लिपट गई- “अब मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाना। 5000 वर्ष तक मैंने तुम्हारा इंतजार किया है, अब मैं और नहीं सह सकती।

"नहीं बनना मुझे किसी द्वीप की देवी। l...नहीं होना मुझे अमर....मैं बस एक साधारण इंसान की जिंदगी जीना चाहती हूं, वह भी तुम्हारे साथ अकेले....इस दुनिया से दूर...किसी ऐसी जगह जहां मुझे और तुम्हें कोई ना जानता हो....मैं अपनी सभी शक्तियां तुम्हारे लिये छोड़ने को तैयार हूं.... पर अब...पर अब मुझे अकेले नहीं जीना है।”

शलाका की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। वह भावावेश में बोलती ही चली जा रही थी।

उसे कोई फिक्र नहीं थी कि वह कहां खड़ी है? उसे कोई चिंता नहीं थी कि कौन-कौन उसे देख रहा है?

वह तो बस अपने 5000 वर्षों के इंतजार को सुयश को व्यक्त करना चाहती थी।

सुयश ने भी शलाका को कसकर पकड़ रखा था।

दोनों की ही आँखों से आँसू बहे जा रहे थे, पर इस बार यह आँसू दुख के नहीं थे, ये सुख के आँसू थे।

दोनों की ही यह हालत देख जेनिथ, क्रिस्टी और शैफाली की भी आँखों में आँसू आ गये।

तौफीक तो इस बात पर खुश था कि फाइनली अब उन्हें इस रहस्यमय जंगल से छुटकारा मिल जायेगा।

थोड़ी देर तक दोनों ऐसे ही गले लगे रहने के बाद एक दूसरे से अलग हो गये।

“मैंने तो इतने समय से सोच रखा था कि जब देवी शलाका मिलेंगी तो मैं उनसे बहुत सारे वरदान मांगूगी, पर ये तो देवी नहीं आंटी निकलीं।” शैफाली ने भोलेपन से मुस्कुराते हुए कहा।

शैफाली की बात सुन शलाका मुस्कुरा दी।

“तुम अब भी इस जंगल से निकलने के सिवा, जो मांगना चाहो, मांग सकती हो शैफाली।” शलाका ने कहा।

“फिलहाल तो पिज्जा खाने का दिल कर रहा है।” शैफाली ने शैतानी भरे स्वर में कहा।

शैफाली की बात सुन शलाका ने अपना हाथ हवा में लहराया।

शलाका के ऐसा करते ही पिज्जा के 5 बॉक्स प्रकट हो गये।

“येऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ मजा आ गया। इसी बात पर बोलो देवी शलाका की जय।”

शैफाली की शैतानी शलाका को काफी भा रही थी।

“भाभी जी....म..म...मेरा मतलब है कि हे देवी, मेरी पुकार भी सुन लो।” क्रिस्टी भी खुश हो कर पूरा मजा लेने लगी- “मेरा एक छोटा सा प्रेमी कहीं जंगल में गायब हो गया है, उसे भी ढूंढकर मुझे दे दो और हो सके तो मेरे लिये एक अच्छी सी ड्रेस दे दो, यही गंदे कपड़े पहनकर मैं पागल हो गयी हूं।”

क्रिस्टी की बात सुनकर शलाका ने अपना हाथ ऊपर उठाया।

अब शलाका के हाथ में एक चमचमाता हुआ त्रिशूल नजर आने लगा।


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
ये लाल किताब बडी ही रहस्यमय लग रहीं हैं और उसे पाने के लिये एक असली और एक नकली शलाका प्रगट हो गई लेकीन सुयश के सुझबुझ से नकली को गायब होना पडा
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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#129.

शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”

“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।

“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”

कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।

सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।

“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।

“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।

“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”

“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।

“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।

“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?

“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“

“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”

“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”

“वह दूसरी शलाका कौन थी?”

“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।

“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”

“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”

“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”

“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”

“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”

“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”

“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”

“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।

“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।

उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।

इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”

“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”

“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”

“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”

“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।

"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”

“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”

“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”

“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”

“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”

“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।

“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”

“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”

“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”

“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।

वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।

“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।

“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”

सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।

“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।

“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”

“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”

“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”

“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”

“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”

“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”

“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”

“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।

“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”

“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”

“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”

“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”

“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”

“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”

“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”

“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”

“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”

“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”

“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”

तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।

“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”

“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।

“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”

शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।

“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।

सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।

“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-

“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।

सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।

अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।

जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
देवी शलाका ने सभी की कुछ कुछ इच्छायें पुरी की साथ ही सुयश कौन है और उसका शलाका से क्या रिस्ता हैं ये बता दिया लाल किताब के बारें में भी बताया सबसे महत्वपूर्ण की अभी वो सभी मायावन में ही है और आगे तिलिस्मा को तोड कर ही इस व्दीप से बाहर निकल सकतें हैं ये बताया
सुयश भी देवी शलाका के बारें में चाहत रखने लगा है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”

“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।

“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”

कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।

सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।

“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।

“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।

“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”

“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।

“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।

“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?

“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“

“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”

“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”

“वह दूसरी शलाका कौन थी?”

“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।

“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”

“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”

“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”

“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”

“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”

“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”

“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”

“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।

“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।

उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।

इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”

“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”

“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”

“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”

“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।

"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”

“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”

“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”

“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”

“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”

“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।

“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”

“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”

“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”

“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।

वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।

“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।

“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”

सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।

“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।

“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”

“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”

“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”

“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”

“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”

“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”

“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”

“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।

“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”

“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”

“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”

“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”

“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”

“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”

“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”

“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”

“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”

“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”

“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”

तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।

“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”

“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।

“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”

शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।

“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।

सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।

“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-

“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।

सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।

अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।

जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
देवी शलाका ने सभी की कुछ कुछ इच्छायें पुरी की साथ ही सुयश कौन है और उसका शलाका से क्या रिस्ता हैं ये बता दिया लाल किताब के बारें में भी बताया सबसे महत्वपूर्ण की अभी वो सभी मायावन में ही है और आगे तिलिस्मा को तोड कर ही इस व्दीप से बाहर निकल सकतें हैं ये बताया
सुयश भी देवी शलाका के बारें में चाहत रखने लगा है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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#130.

सुनहरी हिरनी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 07:30, लैडन नदी के किनारे, पेलो पोनेसस प्रायद्वीप, ग्रीस)

लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

शेर लगातार आकृति की ओर बढ़ रहा था, पर अब आकृति के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही थी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

शेर ने पास पहुंचकर, आकृति की ओर एक लंबी छलांग लगाई।

आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
ये आकृती किस उद्देश से सुनहरी हिरणी को पकडने आयी थी और अपने उद्देश में सफल भी हो गई लेकीन देवी आर्टेमिस की प्रिय सुनहरी हिरणी को आकृती उडा ले गयी तो ऑंखों में अंगारे लिये वो ओलंपस पर्वत पर जा कर क्या करेगी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bahut hi khubsurat update he Raj_sharma Bhai,

Aakhirkar do bichde huye premiyo ka milan ho hi gaya...........

Keep rocking Bro
Bilkul mitra, ye to hona hi tha,:roll3:
Sath bane rahiye, Thank you very much for your valuable review and support bhai :thankyou:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Aisa hi maja aata rahega dost☺️
Sath bane rahiye, Thank you very much for your valuable review and support bhai :thankyou:
Gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Adhbhud, akalpaniy..............

Maja aa raha he is joy ride me.........

Keep rocking Bro
 
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