एक रात, एक हत्या, और एक राज़
दिल्ली की सर्दी ने उस रात कुछ ज़्यादा ही तीखा रूप ले लिया था। हवा में नमी थी, और आसमान कुहासे से ढका हुआ। चाणक्यपुरी की आलीशान कोठी नंबर 17 में न्यू ईयर पार्टी अपने चरम पर थी। भीतर की रौनक बाहर से भी महसूस की जा सकती थी—झूमते संगीत की थाप, हँसी के स्वर, और काँच के गिलासों की टकराहट।
लेकिन उस चमक के पीछे एक स्याह परछाईं दबे पाँव भीतर घुस चुकी थी।
11:48 PM
भीतर, डांस फ्लोर पर दर्जनों लोग थिरक रहे थे। गोल्डन रंग की झिलमिलाती ड्रेस में अर्पिता मल्होत्रा सभी की नज़रों का केंद्र थी। उसकी मुस्कान में जैसे कोई रहस्य छुपा हो, आँखों में चमक के पीछे एक थकान।
वो धीरे से भीड़ से अलग हुई और पीछे के कॉरिडोर की ओर बढ़ी। कोई उसका पीछा कर रहा था। हल्के क़दमों से, छाया-सा।
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11:57 PM
"अर्पिता...?"
आवाज़ धीमी थी, लेकिन तल्ख़।
उसने पलटकर देखा। दरवाज़ा बंद हुआ।
कुछ पलों तक सन्नाटा। फिर—काँच के गिरने की आवाज़। और फिर कुछ नहीं।
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12:05 AM – नया साल शुरू हुआ, लेकिन किसी की साँसें थम चुकी थीं।
"कोई है यहाँ...? ओह गॉड!"
किसी महिला की चीख गूँजी।
डांस फ्लोर पर संगीत थम गया। मेहमानों की हँसी जम गई। और लोग भागकर उस ओर बढ़े जहाँ से आवाज़ आई थी।
कॉरिडोर के एक कोने में, बाथरूम के पास, अर्पिता की लाश पड़ी थी। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ नीले, और गले पर उंगलियों के गहरे निशान थे। पर्ल की माला उसके गले से टूटी हुई ज़मीन पर फैली थी, और एक लाल वाइन का गिलास पास में गिरा हुआ था।
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00:20 AM – पुलिस को बुलाया गया।
तकरीबन आधे घंटे बाद, इंस्पेक्टर ईशान वर्मा घटनास्थल पर पहुँचे।
ईशान – उम्र 36, ऊँचा कद, तीखा चेहरा, भूरी आँखें जो हमेशा सच की परतों को खुरचने को तैयार रहती थीं। उसकी चाल में थकान नहीं, बल्कि आदत थी—हर लाश में एक कहानी तलाशने की।
उसने मौके पर निगाह डाली, भीड़ को देखा और सीधे शव की ओर बढ़ गया।
"सभी लोग पीछे हटें। कोई कुछ नहीं छुएगा।"
वो अर्पिता के शव के पास घुटनों के बल बैठा। उसके चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर उसने उसकी आँखों में कुछ ढूँढा।
डर? पछतावा? या कोई अधूरी बात...?
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"मृत्यु का समय?"
"लगभग 11:55 से 12:00 के बीच," एक कॉन्स्टेबल ने कहा।
ईशान ने गिलास को उठाकर सूँघा—वाइन। लेकिन कोई और महक उसमें घुली हुई थी। हल्की, मगर तेज़।
नींद की गोली? या कोई और ज़हर...?
"बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेजो। और घर के सभी कैमरों की रिकॉर्डिंग मुझे चाहिए।"
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00:35 AM – पूछताछ शुरू हुई।
ईशान ने पार्टी के प्रमुख लोगों को एक कमरे में बैठाया। उनकी आँखों में अभी भी सदमे के साथ भय था—लेकिन कुछ चेहरों पर शांति भी।
सबसे पहले उसकी नज़र उस महिला पर गई जिसने शव देखा था।
रिया कौल – अर्पिता की बचपन की दोस्त। नीले रंग की साटन की ड्रेस में, आँखों में आँसू, पर आवाज़ में स्थिरता।
"आपने शव सबसे पहले देखा?"
"जी... मैं बाथरूम जा रही थी। देखा कि दरवाज़ा खुला है... और फिर—"
वो चुप हो गई।
"क्या आपको किसी पर शक है?"
"नहीं... शायद कोई मेहमान—"
"कोई बाहरी व्यक्ति?"
"हाँ... एक आदमी था। अर्पिता ने कहा था कि नया क्लाइंट है। पहली बार देखा था उसे।"
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ईशान ने उस अजनबी की तलाश शुरू की।
नाम: आरव सिंह।
दावा: आर्किटेक्ट है, अर्पिता से कुछ दिन पहले मिला था।
लेकिन जब ईशान ने उसके बैग की तलाशी ली, तो कुछ अजीब चीज़ें मिलीं—
एक छोटा कैमरा
अर्पिता के घर का नक्शा
और एक लिफ़ाफ़ा जिसमें नकद ₹50,000 थे।
"ये किसलिए?"
"मैं... मैं उसे एक प्रोजेक्ट पर काम देने वाला था। वो डाउन पेमेंट थी।"
"तो नकद क्यों?"
"उसकी माँ की तबीयत खराब थी... उसने खुद कहा था कि नकद चाहिए।"
ईशान की भौंहें सिकुड़ गईं।
बहुत साफ़ जवाब... शायद ज़रूरत से ज़्यादा साफ़।
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01:10 AM – कैमरा फुटेज आई।
ईशान ने घर के मुख्य हॉल, गैलरी और कॉरिडोर के कैमरे चेक किए। कुछ अजीब चीज़ें सामने आईं।
11:47 PM: अर्पिता मोबाइल पर बात करते हुए गैलरी की ओर जाती है।
11:49 PM: एक आदमी—शायद आरव—कुछ चुपके से पीछे-पीछे जाता है।
11:54 PM: वही आदमी वापस आता है, थोड़ा तेज़ क़दमों से।
लेकिन एक और बात... उसके पीछे एक और परछाईं...!
दूसरा व्यक्ति...?
उसका चेहरा नहीं दिखा, पर चाल जानी-पहचानी थी। कैमरे में बस एक सेकंड की झलक, फिर गायब।
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ईशान ने बारी-बारी से सभी को बुलाकर उनकी चाल देखी। और तभी...
रिया।
उसके हील्स की आवाज़... वही टक-टक... वही लय।
ईशान ने स्क्रीन पर टाइमस्टैम्प को देखा।
11:56 PM – जब अर्पिता मर चुकी थी। रिया ठीक उसी दिशा से लौट रही थी।
"रिया, तुमने कहा था तुमने शव सबसे पहले देखा?"
"हाँ... मैंने..."
"लेकिन तुम उस ओर पहले भी गई थीं, क्यों?"
रिया की आँखें फड़कने लगीं।
"मैं बस... अर्पिता से कुछ बात करनी थी।"
"किस बारे में?"
"वो मुझसे... मेरा डिज़ाइन चुरा रही थी। मैं बस... मैं—"
"तुम जानती हो ना, तुम्हारी आवाज़ भी कैमरे में रिकॉर्ड हुई है?"
रिया की साँसें तेज़ हो गईं। उसने एक पल को कुछ कहना चाहा, फिर सिर झुका लिया।
"मैंने नहीं मारा... मैं बस डर गई थी। मैंने उसे किसी से लड़ते देखा... एक आदमी था... मगर वो आरव नहीं था!"
"तो कौन था?"
रिया की नज़रें काँपने लगीं।
"उसका एक्स... विवेक।"
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जैसे-जैसे रात गहराती गई, कोठी के भीतर का तापमान गिरता गया—ना सिर्फ़ मौसम की वजह से, बल्कि माहौल में घुलते डर और संशय के कारण भी।
इंस्पेक्टर ईशान वर्मा अब भी कमरे के मध्य खड़ा था। चारों ओर बैठी भीड़ अब मेहमान नहीं, संदिग्ध बन चुकी थी। उनके चेहरों पर थकान नहीं, तनाव था—और कुछ की निगाहें जैसे कुछ छुपाने का संघर्ष कर रही थीं।
रिया की स्वीकारोक्ति ने मामले को एक नई दिशा दे दी थी।
“तो तुमने विवेक को वहां देखा?”
ईशान की आवाज़ स्थिर थी, लेकिन उसकी आँखों में चिंगारी थी।
रिया ने धीमे से सिर हिलाया।
“मैंने सिर्फ़ उनकी परछाईं देखी थी... पर उनकी आवाज़ सुनी थी। वो कह रहे थे—‘तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।’”
ईशान ने मेज के दूसरी ओर बैठे विवेक मेहरा की ओर देखा।
सूट में ढका लंबा शरीर, बिखरे बाल, आँखें लाल—शराब या गुस्से से, तय करना मुश्किल था।
“विवेक,” ईशान ने उसकी ओर कदम बढ़ाए, “क्या तुम बता सकते हो कि 11:50 से 12:00 के बीच तुम कहाँ थे?”
विवेक ने होंठों को भींचा, एक पल सोचा, फिर कहा, “मैं टेरेस पर था। अकेला।”
“कोई गवाह?”
विवेक ने नज़रें चुरा लीं।
“नहीं।”
ईशान ने उसकी कलाई थामी—उसकी हथेली पर एक हल्की खरोंच थी।
“ये कब लगी?”
विवेक ने झूठ बोलने की कोशिश नहीं की।
“हमारी लड़ाई हुई थी। उसने मुझे थप्पड़ मारा... मैंने उसका हाथ पकड़ा... बस इतनी ही बात थी।”
“तुम जानते थे कि वो किसी नए आदमी को अपने क्लाइंट की तरह घर बुला रही है?”
विवेक की आँखों में नफ़रत की झलक तैर गई।
“हाँ। और ये जानकर मुझे गुस्सा आया। लेकिन मैंने उसे नहीं मारा... मैं बस उसे समझाने गया था।”
बहुत ‘सिर्फ समझाने’ वाले लोग इस शहर में हत्यारे बन जाते हैं, ईशान ने सोचा।
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02:05 AM – पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई।
"गला दबाया गया। लेकिन मुख्य कारण दम घुटने से नहीं, बल्कि ज़हर था।"
डॉक्टर ने रिपोर्ट सौंपते हुए कहा।
"क्या?"
ईशान की आँखें सिकुड़ गईं।
"शरीर में ट्रायक्लोज़मिन की मात्रा पाई गई है। एक नर्व एजेंट... बहुत कम समय में प्रभाव करता है।"
ईशान ने तुरंत उस वाइन ग्लास की रिपोर्ट माँगी जिसमें से अर्पिता ने आख़िरी घूँट लिया था।
गिलास में भी वही ज़हर मिला।
अब कहानी पलट चुकी थी।
कोई उसे मारने आया था, लेकिन उससे पहले ज़हर उसके शरीर में जा चुका था।
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02:15 AM – किचन स्टाफ से पूछताछ
ईशान ने तुरंत किचन के कर्मचारियों को बुलवाया। उनमें एक नया चेहरा था—सुनील, जो कि पार्टी के लिए एक्स्ट्रा हेल्प के रूप में लाया गया था।
“तुमने वाइन में कुछ मिलाया था?”
सुनील हड़बड़ाया।
“नहीं साहब... मैंने तो बस ट्रे पकड़ी थी... ग्लास रिया मैडम ने मुझे थमाया था, और कहा था कि इसे सीधे अर्पिता मैडम को देना है।”
रिया...? फिर से...?
ईशान ने तुरंत रिया को बुलवाया।
“रिया, तुमने सुनील को वाइन देने को क्यों कहा?”
रिया का चेहरा पल भर को सफ़ेद पड़ गया।
“अर्पिता को सिरदर्द था। मैंने उसे वाइन में थोड़ा सा पेनकिलर डालकर दे दिया... बस इतनी सी बात थी।”
“पेनकिलर? या ट्रायक्लोज़मिन?”
रिया चुप। उसकी साँसें तेज़।
“रिया, क्या तुम जानती थी कि अर्पिता तुम्हारा डिज़ाइन चुराकर खुद के नाम से पेश करने वाली थी?”
रिया की आँखें छलक गईं।
“हाँ... और मुझे पता था कि वो मुझे कभी श्रेय नहीं देगी। लेकिन मैं उसे मारना नहीं चाहती थी... मैंने बस उसे थोड़ी नींद दिलाने की कोशिश की थी ताकि प्रेजेंटेशन अगले दिन मैं कर सकूँ।”
ईशान ने उसकी ओर झुककर फुसफुसाया—
“तो असली कातिल कौन है, रिया?”
रिया ने आँखें मूँद लीं।
“मुझे नहीं पता... लेकिन उस वक़्त कॉरिडोर में सिर्फ़ आरव गया था... और... शायद वो नकद पैसा रिश्वत नहीं, कुछ और था।”
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02:40 AM – ईशान ने आरव को फिर बुलवाया।
“तुमने कहा था कि पैसे अर्पिता को देने थे। लेकिन उसकी अकाउंट में आज दोपहर ही ₹1 लाख का ट्रांसफर हुआ है—तुम्हारे नाम से।”
आरव ने सिर उठाया।
"उसने मुझे ब्लैकमेल किया था। मेरे क्लाइंट्स की डिटेल्स उसके पास थीं... मुझे डर था कि वो सब लीक कर देगी।"
"तो तुमने उसे मार दिया?"
"नहीं! मैंने तो बस... उससे डील की थी। पैसे दिए।"
"क्या तुम्हें ट्रायक्लोज़मिन का नाम पता है?"
"नहीं।"
ईशान ने उसकी जैकेट की जेब से एक छोटी शीशी निकाली।
ट्रायक्लोज़मिन – प्रयोगशाला उपयोग हेतु
"ये क्या है?"
आरव का चेहरा पीला पड़ गया।
“ये... नहीं... मैं उसे सिर्फ़ डराना चाहता था... मुझे नहीं पता उसने पी भी लिया...”
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03:00 AM – केस बंद... या शायद नहीं।
ईशान ने आरव को गिरफ्तार कर लिया। पर उसका मन अब भी बेचैन था।
कुछ अधूरा है।
वो कॉरिडोर में लौटा। ज़मीन पर एक टूटा हुआ मोबाइल पड़ा था—अर्पिता का।
उसने स्क्रीन चालू की। एक अधूरी रिकॉर्डिंग चलने लगी।
रिकॉर्डिंग में आवाज़ थी:
“...तुम मुझे नहीं रोक सकते, विवेक। ये डिज़ाइन मेरा है, और मैं कल बोर्ड मीटिंग में इसे खुद पेश करूंगी... चाहे तुम्हें अच्छा लगे या नहीं।”
फिर एक तेज़ झड़प की आवाज़... और चुप्पी।
ईशान की आँखें सख्त हो गईं।
तो क्या आरव केवल एक मोहरा था? असली खेल अभी बाकी है...?
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सर्द हवाएं अब खुली खिड़कियों से भीतर घुसने लगी थीं, और कोठी के भीतर फैली निस्तब्धता में हर साँस, हर फुसफुसाहट जैसे गूँजती थी। इंस्पेक्टर ईशान वर्मा अपनी आदत के अनुसार अकेले उस कॉरिडोर में खड़ा था जहाँ अर्पिता की साँसें थमी थीं। दीवारों पर अब भी उसकी महक थी—लैवेंडर की वो हल्की-सी खुशबू, जो अब खून और शराब की गंध से उलझकर कुछ अजीब बन चुकी थी।
आरव को हिरासत में ले लिया गया था। उसका ज़हर रखना, पैसे देना, और अर्पिता से उसका झगड़ा—सब कुछ उसे दोषी बनाता था। और फिर भी, ईशान के मन में एक अजीब सी खटास थी।
कुछ तो छूट गया है... कुछ ऐसा जो सबकी नज़रों के सामने है, और फिर भी किसी ने नहीं देखा।
वो उसी कॉरिडोर में झुका, जहाँ पहली बार शव मिला था। उसके trained instincts ने हर दरार, हर सामान को ध्यान से देखा। तभी उसकी नज़र दीवार के कोने में पड़े एक छोटे से सफेद कागज़ पर गई। वो मुड़ा हुआ था, और शायद भीड़ की अफ़रा-तफ़री में किसी ने नोटिस नहीं किया था।
वो धीरे से कागज़ उठाता है। खोलता है।
हस्ताक्षर - अर्पिता मल्होत्रा
दिनांक - 31 दिसंबर
शीर्षक: “डिज़ाइन ओनरशिप ट्रांसफर एग्रीमेंट”
ईशान की साँस रुक गई।
ये तो... किसी डिज़ाइन का मालिकाना हक़ ट्रांसफर करने का कानूनी दस्तावेज़ है। लेकिन काफ़ी अधूरा है।
नीचे दो हस्ताक्षर की जगह थी—एक पर अर्पिता के हस्ताक्षर थे, दूसरा खाली।
तो क्या... हत्या से ठीक पहले अर्पिता ये हस्ताक्षर करवा रही थी? किसी से... लेकिन किससे?
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03:30 AM – रिया से आख़िरी सवाल
ईशान एक बार फिर रिया के पास गया। उसका चेहरा अब थका हुआ नहीं, बल्कि डर से जड़ हो गया था। आँखे फटी हुई, होंठ सूखे, और उंगलियाँ उसी अंगूठी को बार-बार घुमा रही थीं जो अब एक घबराहट का बायन बन चुकी थी।
"रिया, क्या तुम जानती हो कि अर्पिता ये डिज़ाइन ट्रांसफर करने वाली थी?"
रिया ने चौंककर उसकी ओर देखा।
"नहीं... उसने तो कहा था कि वो इसे मेरे नाम से कभी नहीं मानेंगी।"
"तो फिर ये दस्तावेज़ क्या कहता है?" ईशान ने वो कागज़ सामने रख दिया।
रिया की आँखों से जैसे सबकुछ गिर पड़ा।
"ये... ये तो मेरे नाम का ड्राफ्ट है... लेकिन मैंने उसे कुछ दिन पहले छोड़ने की धमकी दी थी। शायद... शायद उसने सच में बदलने का फैसला किया था।"
“क्या तुम्हें ये जानने के बाद गुस्सा आया?”
"नहीं... मुझे पछतावा हुआ... मैंने उसे सच में पसंद किया था। उसके जैसा हुनर मैंने कहीं नहीं देखा।"
"तो फिर, रिया, एक आखिरी सवाल... क्या तुम जानती हो कि 'ट्रायक्लोज़मिन' जैसी दवा कहाँ मिलती है?"
रिया ने सिर उठाया। उसकी आँखों में अब आँसू नहीं, आश्चर्य था।
"नहीं। मैंने आज पहली बार ये नाम सुना है।"
ईशान ने उसकी ओर देखे बिना सिर्फ़ इतना कहा—
"तुम डॉक्टर की बेटी हो ना?"
उसके चेहरे पर सन्नाटा उतर आया।
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03:50 AM – नया मोड़
ईशान को एहसास हुआ कि सबका ध्यान आरव, रिया और विवेक पर रहा... लेकिन एक नाम उस शाम से जुड़ा था, जो अब तक परदे के पीछे था—
नताशा मल्होत्रा – अर्पिता की सौतेली बहन।
पार्टी की शुरुआत में वो कुछ देर के लिए आई थी। सफेद गाउन में, लंबे भूरे बाल, और आँखों में एक तरह की दूर-दृष्टि। फिर अचानक गायब हो गई।
“वो कहाँ गई?” ईशान ने पार्टी के आयोजकों से पूछा।
“कह रहे थे तबियत ठीक नहीं थी... तो जल्दी निकल गई।”
ईशान ने तुरंत उसका पता निकलवाया।
गोल्फ़ लिंक – एक बेहद आलीशान फ़्लैट।
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04:20 AM – नताशा के फ्लैट पर
नताशा दरवाज़ा खोलते ही चौंक गई।
“इंस्पेक्टर...? इतनी रात को?”
“हमें कुछ बातें करनी हैं, मिस नताशा। क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
नताशा ने थोड़ी देर तक उसे देखा, फिर दरवाज़ा खोल दिया। अंदर बेहद शांत वातावरण था—दीवारों पर क्लासिकल आर्ट, हल्की लाइटिंग, और मेज़ पर एक खुली फाइल।
ईशान ने फाइल उठाई। वही डिज़ाइन।
“आप अर्पिता की बहन हैं, है ना? और ये डिज़ाइन... आप इसे क्यों देख रही थीं?”
नताशा कुछ देर चुप रही।
“क्योंकि वो मेरा डिज़ाइन था।”
ईशान एक पल के लिए रुका।
“आपका मतलब?”
“हम दोनों ने मिलकर शुरुआत की थी। लेकिन जब कंपनी खड़ी हुई, उसने मुझे बाहर निकाल दिया। मेरी मम्मी की मौत के बाद पापा ने उससे सब छीन लिया और मेरे नाम से कुछ नहीं रहा। मैंने सब छोड़ दिया था, लेकिन जब पता चला कि वो वही डिज़ाइन फिर इस्तेमाल कर रही है... मैंने आरव से संपर्क किया। उसने कहा कि वो मेरी मदद करेगा। लेकिन...”
उसकी आवाज़ काँप गई।
“आपने ज़हर दिया?”
नताशा ने नज़रें झुका लीं।
“मैंने सिर्फ़ एक ड्रॉप मिलाया था। मैं चाहती थी कि वो बस बीमार हो जाए, कल की मीटिंग में न जा पाए। मैं फिर उसके सामने आकर सब एक्सपोज़ करती... लेकिन...”
“वो मर गई,” ईशान ने वाक्य पूरा किया।
नताशा की आँखें छलक आईं।
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05:00 AM – निष्कर्ष
ईशान ने आखिरकार पूरी कड़ी जोड़ दी थी।
नताशा ने ज़हर मिलाया था—मकसद हत्या नहीं, बल्कि बदला और शर्मिंदा करना था।
आरव ने उसे ब्लैकमेल के डर से पैसे दिए और झगड़ा किया।
विवेक वहाँ पहुँचा, लेकिन देर हो चुकी थी।
रिया ने नशे में वाइन दी, ये जाने बिना कि उसमें क्या था।
मौत एक गलती नहीं थी। वो नतीजा था—हर इंसान की एक अधूरी कहानी का, जो एक ही मोड़ पर टकरा गई थी।
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05:15 AM – कोठी के बाहर
ईशान अपनी बाइक के पास पहुँचा। आकाश अब हल्का नीला हो रहा था। पहली सुबह की किरणें कोहरे से जूझ रही थीं।
उसने एक गहरी साँस ली, और धीरे-से बुदबुदाया—
"कभी-कभी... इंसान किसी को मारता नहीं। बस, उसे मरने के लिए छोड़ देता है।"