लीला ने अब जब तक दुध निकाला तब तक रुपा ने भी चाय बना ली, इसलिये तीनो ने अब साथ मे ही बैठकर चाय पी। चाय पीने के बाद दोनो माँ बेटी ने मिलकर पहले तो आँगन मे झाङु आदि निकालकर घर की थोङी बहुत साफ सफाई की, फिर ऐसे ही इधर उधर की बाते करते हुवे दोनो रात के लिये खाना बनाने लग गयी। रुपा ने जब तक सब्जी बनाई तब तक लीला ने आटा गुँथ लिया था इसलिये रुपा अब लीला के साथ ही बैठकर रोटी भी बनवाने लग गयी।
रोटी बनाने के बाद लीला तो बर्तन आदि समेटने लग गयी और रुपा वही रशोई मे ही बैठकर खाना खाने लग गयी, मगर इस बीच किसी ना किसी बहाने राजु रुपा के ईर्द गीर्द ही घुमते रहा इसलिये उसने रुपा खाना खाते देखा तो वो भी उसके साथ ही खाना खाने बैठ गया, मगर जब तक रुपा ने खाना खाया राजु तब तक तो खाना खाते रहा और जैसे ही रुपा खाना खाकर हाथ धोने लगी राजु भी उठकर खङा हो गया और...
"चलो जीज्जी हम चलकर अब आराम करते है..!" राजु ने भी हाथ धोते हुवे कहा जिससे रुपा की नजर तुरन्त अपनी माँ की ओर चली गयी, वो भी रुपा की ओर ही देख रही थी इसलिये दोनो की नजरे मिली तो दोनो को ही हँशी आ गयी।
"तु चल... मै माँ के साथ बर्तन साफ करवाकर आऊँगी..!" राजु के इस तरह आगे पीछे घुमने व बार बार उसे आराम करने के लिये कहने पर रुपा को भी शरम सी आ रही थी इसलिये एक बार अपनी माँ की ओर देख उसने अब गर्दन झुकाकर नीचे की ओर देखते हुवे कहा, मगर तभी..
"आ रही है, जा तु जाकर तब तक बिस्तर ठीक कर..!" लीला ने अब राजु की ओर देखते हुवे कहा जिससे राजु भी अब जल्दी से हाथ धोकर रशोई से बाहर निकल गया।
"जा तु कर ले आराम इसके साथ तब तक मै खाना खाकर बर्तन साफ कर लुँगी..!" लीला ने अब रुपा की ओर देखकर हँशते हुवे कहा जिससे रुपा और भी शरमा सी गयी और..
"न्.न.नही..!" शरम के मारे रुपा ने अब लीला की ओर देखकर मुस्कुराते हुवे ही कहा जिससे..
लीला: क्यो तँग कर रही है तु उसे, जा नही तो फिर से रशोई मे आकर खङा हो जायेगा..!"
रुपा: नही मुझे नही जाना..
"अरे क्यो तँग कर रही है, जा ना... मै बोल रही हुँ ना, मै बर्तन साफ करके रशोई की साफ सफाई कर लुँगी तब तक हो जायेगा तुम्हारा..!" लीला ने अब खुलकर कहा जिससे रुपा शरम से पानी पानी ही हो गयी। वो अब कुछ कहती तब तक लीला उसका हाथ पकङकर उसे रशोई से बाहर निकाल आई।
घर मे अपनी माँ के होते रुपा को राजु के पास जाने मे शरम तो आ रही थी, नही तो वो अपने ससुराल से ही सोचकर आई थी की घर जाते ही वो किसी ना किसी बहाने राजु को अपने उपर चढा लेगी, इसलिये अब राजु के पास जाने के लिये खुद उसकी माँ ने ही उसे हाथ पकङकर रशोई से बाहर निकाल दिया तो वो भी राजु के पास कमरे मे आ गयी और कमरे का दरवाजा अन्दर बन्द कर सीधे ही राजु पर टुट सा पङी...
इधर रशोई मे खाना खाकर, बर्तन आदि साफ करके लीला ने रशोई की साफ सफाई के भी सारे काम निपटा लिये थे इसलिये रशोई से निकलकर वो अब बाहर आ गयी। बाहर आकर उसने देखा की कमरे का दरवाजा अभी तक बन्द ही था और अन्दर से रुपा की सिसकियो के साथ "पट्..पट्..!" व पलँग के चरमराने की सी आवाजे आ रही थी जिससे लीला को भी अपनी चुत मे चिँटियाँ सी काटती महसूस हुई तो वो तुरन्त वहाँ हट गयी।
उसने पहले तो कोने मे जाकर पिशाब किया, फिर घर के दरवाजे को बन्द करके अन्दर से कुण्डी लगाकर वापस आ गयी, अन्दर कमरे से आ रही रुपा की सिसकियो व "पट्.पट्..!"की आवाजे अब तेज हो गयी थी इसलिये लीला का अब एक बार तो दिल किया की वो अपनी बेटी व राजु की इस तरह की आवाजे ना सुने और वापस रशोई मे ही चली जाये, मगर कमरे से आ रही इन उत्तेजक आवाजो को सुनकर लीला की चुत मे भी पानी सा भर आया था इसलिये उसके पैर वही के वही जम से गये....
लीला का मन तो कर रहा था की अन्दर रुपा व राजु कैसे क्या कर रहे है वो उन्हे देखे मगर एक तो कमरे के अन्दर की उन्होंने लाईट बन्द कर रखी और दुसरा कमरे के दरवाजे व खिङकी मे ऐसा कोई छेद या सुराख भी नही था जहाँ से वो उन्हे देख सके, मगर इधर कमरे के अन्दर से आ रही आवाजे अब धीरे धीरे और भी तेज होने लगी थी जिससे लीला की चुत बहने सा लगी, वो कभी पेन्टी तो पहनती थी नही इसलिये उसकी चुत से पानी सा रिश रिश कर उसकी जाँघो तक बहने लगा, मगर तभी कमरे आ रही आवाजे अचानक से बहुत तेज हो गयी और फिर तभी रुपा की सिसकियो की आवाज पहले तो सुबकियो मे बदली, फिर सुबकीयाँ हिचकियो मे बदलती और वो भी..
"ही्ही्ईई्च्च.ईईईश्श्श् रा्आ्जुऊह्ह्ह...
ही्ई्च्च्च. ईईश्श्श्.रा्आ्जुऊह्ह्ह...
ही्च्च्.ईश्श्.रा्जूउह्.." करते हुवे छोटी होती चली गयी, इसके साथ ही राजु की के मुँह से ..
ईश्.जीज्जीईई..आ्ह्ह्ह्....
......ईईश्श्श्. आ्ह्ह्..
..........ईशश्.आ्ह.... कुछ कराहे तो निकली फिर वो भी शाँत होता चला गया जिससे ना चाहते हुवे भी लीला का हाथ अब अपनी चुत पर चला गया।
कमरे के अन्दर से आ रही आवाजे अब बिल्कुल बन्द हो गयी थी और एक सन्नाटा सा पसर गया था इसलिये लीला कमरे के पास से हट गयी। कमरे से रुपा व राजु मे से कोई भी बाहर आ सकता था इसलिये रशोई का दरवाजा खोलकर लीला अब वापस रशोई रशोई मे घुस गयी। रशोई मे कोई काम तो था नही मगर फिर भी रशोई मे आकर वो अब बर्तनो को इधर उधर करने लगी, ताकी रुपा या राजु मे से कोई अगर बाहर निकले तो उन्हे लगे की वो अभी तक रशोई मे ही काम कर रही है...
अब कुछ देर तो लीला ऐसे ही रशोई मे खङे खङे बर्तनो को इधर उधर करती रही, मगर उसे ज्यादा इन्तजार नही करना पङा, क्योंकि कुछ देर बाद ही कमरे का दरवाजा खुल गया। कमरे का दरवाजा रुपा या राजु जिसने भी खोला वो कमरे से बाहर नही निकला, उसने बस दरवाजा ही खोला और वापस अन्दर चला गया इसलिये लीला भी कुछ देर बाद रशोई से निकलकर बाहर आ गयी।
लीला ने अभी अभी ही पिशाब किया था इसलिये उसे पिशाब तो नही लगी थी, मगर रुपा व राजु की प्रेमलीला की उत्तेजक आवाजे सुनकर उसकी चुत ने पानी छोङ छोङकर उसकी जाँघो तक को गीलाकर दिया था इसलिये रशोई का दरवाजा बन्द करके वो सीधे कोने मे जहाँ पिशाब करते है वहाँ जाकर अपनी साङी व पेटीकोट उठाकर बैठ गयी। उसकी पिशाब की थैली मे अभी तक जितना भी पिशाब बना था उसने पहले तो उसे खाली किया, फिर बाल्टी से पानी लेकर अपनी चुत वा जाँघो को अच्छे से धोकर वो भी अब कमरे मे आ गयी।
कमरे मे की लाईट बन्द थी इसलिये वैसे तो कमरे मे अन्धेरा ही फैला था मगर दरवाजे से जो चाँद की थोङी बहुत रोशनी आ रही थी उसकी रोशनी मे रुपा व राजु पलँग पर लेट साफ नजरे रहे थे। राजु दिवार की ओर मुँह किये लेटा था तो रुपा ने पलँग के किनारे की ओर मुँह किया हुवा था इसलिये...
"सो गये क्या..? लीला ने रुपा व राजु की ओर देखते पुछा जिसका रुपा व राजु दोनो मे से किसी ने भी कोई जवाब नही दिया, मगर शरम के मारे रुपा ने पास ही रखी चद्दर को खिँचकर ओढ सा लिया।
लीला भी सब समझ रही थी इसलिये उसने दोबारा से कुछ नही कहा और अपने लिये चारपाई बिछाने लग गयी। चारपाई बिछाकर लीला अब एक बार तो उस पर लेटने को हुई मगर फिर वो कुछ सोचने सा लगी, और ना जाने उसके दिमाग मे क्या आया की...
"सुन...! तु उधर जाकर सो चारपाई पर..!, इसका कोई भरोसा नही सोते सोते कही पेट पर हाथ पैर मार दिया तो पेट के बच्चे को चोट लग जायेगी..? ये कहते हुवे वो अब पलँग के पास आकर खङी हो गयी।
रूपा को अब ये एक बार तो थोङा अजीब सा लगा, मगर फिर कुछ सोचकर वो मन ही मन मुस्कुरा सी उठी, क्योंकि अभी ठीक से दो महिने भी नही हुवे थे उसे पेट से हुवे जो पेट के बच्वे को चोट लगे, उपर से लीला ने खुद ही तो उसे राजु के साथ सोने के लिये भेजा था, और अब उसके पास सोने से बच्चे को चोट लगनी की बात कह रही थी..! रुपा भी समझ गयी थी की उसकी माँ ऐसा क्यो कह रही है इसलिये वो अब चुपचाप पलँग पर से उठकर चारपाई पर जाकर लेट गयी तो लीला ने भी अपनी साङी को तो खोलकर सिराहने रख दिया और पेटीकोट व ब्लाउज मे होकर रुपा की जगह राजु की बगल मे पलँग पर अब खुद लेट गयी....
रोटी बनाने के बाद लीला तो बर्तन आदि समेटने लग गयी और रुपा वही रशोई मे ही बैठकर खाना खाने लग गयी, मगर इस बीच किसी ना किसी बहाने राजु रुपा के ईर्द गीर्द ही घुमते रहा इसलिये उसने रुपा खाना खाते देखा तो वो भी उसके साथ ही खाना खाने बैठ गया, मगर जब तक रुपा ने खाना खाया राजु तब तक तो खाना खाते रहा और जैसे ही रुपा खाना खाकर हाथ धोने लगी राजु भी उठकर खङा हो गया और...
"चलो जीज्जी हम चलकर अब आराम करते है..!" राजु ने भी हाथ धोते हुवे कहा जिससे रुपा की नजर तुरन्त अपनी माँ की ओर चली गयी, वो भी रुपा की ओर ही देख रही थी इसलिये दोनो की नजरे मिली तो दोनो को ही हँशी आ गयी।
"तु चल... मै माँ के साथ बर्तन साफ करवाकर आऊँगी..!" राजु के इस तरह आगे पीछे घुमने व बार बार उसे आराम करने के लिये कहने पर रुपा को भी शरम सी आ रही थी इसलिये एक बार अपनी माँ की ओर देख उसने अब गर्दन झुकाकर नीचे की ओर देखते हुवे कहा, मगर तभी..
"आ रही है, जा तु जाकर तब तक बिस्तर ठीक कर..!" लीला ने अब राजु की ओर देखते हुवे कहा जिससे राजु भी अब जल्दी से हाथ धोकर रशोई से बाहर निकल गया।
"जा तु कर ले आराम इसके साथ तब तक मै खाना खाकर बर्तन साफ कर लुँगी..!" लीला ने अब रुपा की ओर देखकर हँशते हुवे कहा जिससे रुपा और भी शरमा सी गयी और..
"न्.न.नही..!" शरम के मारे रुपा ने अब लीला की ओर देखकर मुस्कुराते हुवे ही कहा जिससे..
लीला: क्यो तँग कर रही है तु उसे, जा नही तो फिर से रशोई मे आकर खङा हो जायेगा..!"
रुपा: नही मुझे नही जाना..
"अरे क्यो तँग कर रही है, जा ना... मै बोल रही हुँ ना, मै बर्तन साफ करके रशोई की साफ सफाई कर लुँगी तब तक हो जायेगा तुम्हारा..!" लीला ने अब खुलकर कहा जिससे रुपा शरम से पानी पानी ही हो गयी। वो अब कुछ कहती तब तक लीला उसका हाथ पकङकर उसे रशोई से बाहर निकाल आई।
घर मे अपनी माँ के होते रुपा को राजु के पास जाने मे शरम तो आ रही थी, नही तो वो अपने ससुराल से ही सोचकर आई थी की घर जाते ही वो किसी ना किसी बहाने राजु को अपने उपर चढा लेगी, इसलिये अब राजु के पास जाने के लिये खुद उसकी माँ ने ही उसे हाथ पकङकर रशोई से बाहर निकाल दिया तो वो भी राजु के पास कमरे मे आ गयी और कमरे का दरवाजा अन्दर बन्द कर सीधे ही राजु पर टुट सा पङी...
इधर रशोई मे खाना खाकर, बर्तन आदि साफ करके लीला ने रशोई की साफ सफाई के भी सारे काम निपटा लिये थे इसलिये रशोई से निकलकर वो अब बाहर आ गयी। बाहर आकर उसने देखा की कमरे का दरवाजा अभी तक बन्द ही था और अन्दर से रुपा की सिसकियो के साथ "पट्..पट्..!" व पलँग के चरमराने की सी आवाजे आ रही थी जिससे लीला को भी अपनी चुत मे चिँटियाँ सी काटती महसूस हुई तो वो तुरन्त वहाँ हट गयी।
उसने पहले तो कोने मे जाकर पिशाब किया, फिर घर के दरवाजे को बन्द करके अन्दर से कुण्डी लगाकर वापस आ गयी, अन्दर कमरे से आ रही रुपा की सिसकियो व "पट्.पट्..!"की आवाजे अब तेज हो गयी थी इसलिये लीला का अब एक बार तो दिल किया की वो अपनी बेटी व राजु की इस तरह की आवाजे ना सुने और वापस रशोई मे ही चली जाये, मगर कमरे से आ रही इन उत्तेजक आवाजो को सुनकर लीला की चुत मे भी पानी सा भर आया था इसलिये उसके पैर वही के वही जम से गये....
लीला का मन तो कर रहा था की अन्दर रुपा व राजु कैसे क्या कर रहे है वो उन्हे देखे मगर एक तो कमरे के अन्दर की उन्होंने लाईट बन्द कर रखी और दुसरा कमरे के दरवाजे व खिङकी मे ऐसा कोई छेद या सुराख भी नही था जहाँ से वो उन्हे देख सके, मगर इधर कमरे के अन्दर से आ रही आवाजे अब धीरे धीरे और भी तेज होने लगी थी जिससे लीला की चुत बहने सा लगी, वो कभी पेन्टी तो पहनती थी नही इसलिये उसकी चुत से पानी सा रिश रिश कर उसकी जाँघो तक बहने लगा, मगर तभी कमरे आ रही आवाजे अचानक से बहुत तेज हो गयी और फिर तभी रुपा की सिसकियो की आवाज पहले तो सुबकियो मे बदली, फिर सुबकीयाँ हिचकियो मे बदलती और वो भी..
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ही्ई्च्च्च. ईईश्श्श्.रा्आ्जुऊह्ह्ह...
ही्च्च्.ईश्श्.रा्जूउह्.." करते हुवे छोटी होती चली गयी, इसके साथ ही राजु की के मुँह से ..
ईश्.जीज्जीईई..आ्ह्ह्ह्....
......ईईश्श्श्. आ्ह्ह्..
..........ईशश्.आ्ह.... कुछ कराहे तो निकली फिर वो भी शाँत होता चला गया जिससे ना चाहते हुवे भी लीला का हाथ अब अपनी चुत पर चला गया।
कमरे के अन्दर से आ रही आवाजे अब बिल्कुल बन्द हो गयी थी और एक सन्नाटा सा पसर गया था इसलिये लीला कमरे के पास से हट गयी। कमरे से रुपा व राजु मे से कोई भी बाहर आ सकता था इसलिये रशोई का दरवाजा खोलकर लीला अब वापस रशोई रशोई मे घुस गयी। रशोई मे कोई काम तो था नही मगर फिर भी रशोई मे आकर वो अब बर्तनो को इधर उधर करने लगी, ताकी रुपा या राजु मे से कोई अगर बाहर निकले तो उन्हे लगे की वो अभी तक रशोई मे ही काम कर रही है...
अब कुछ देर तो लीला ऐसे ही रशोई मे खङे खङे बर्तनो को इधर उधर करती रही, मगर उसे ज्यादा इन्तजार नही करना पङा, क्योंकि कुछ देर बाद ही कमरे का दरवाजा खुल गया। कमरे का दरवाजा रुपा या राजु जिसने भी खोला वो कमरे से बाहर नही निकला, उसने बस दरवाजा ही खोला और वापस अन्दर चला गया इसलिये लीला भी कुछ देर बाद रशोई से निकलकर बाहर आ गयी।
लीला ने अभी अभी ही पिशाब किया था इसलिये उसे पिशाब तो नही लगी थी, मगर रुपा व राजु की प्रेमलीला की उत्तेजक आवाजे सुनकर उसकी चुत ने पानी छोङ छोङकर उसकी जाँघो तक को गीलाकर दिया था इसलिये रशोई का दरवाजा बन्द करके वो सीधे कोने मे जहाँ पिशाब करते है वहाँ जाकर अपनी साङी व पेटीकोट उठाकर बैठ गयी। उसकी पिशाब की थैली मे अभी तक जितना भी पिशाब बना था उसने पहले तो उसे खाली किया, फिर बाल्टी से पानी लेकर अपनी चुत वा जाँघो को अच्छे से धोकर वो भी अब कमरे मे आ गयी।
कमरे मे की लाईट बन्द थी इसलिये वैसे तो कमरे मे अन्धेरा ही फैला था मगर दरवाजे से जो चाँद की थोङी बहुत रोशनी आ रही थी उसकी रोशनी मे रुपा व राजु पलँग पर लेट साफ नजरे रहे थे। राजु दिवार की ओर मुँह किये लेटा था तो रुपा ने पलँग के किनारे की ओर मुँह किया हुवा था इसलिये...
"सो गये क्या..? लीला ने रुपा व राजु की ओर देखते पुछा जिसका रुपा व राजु दोनो मे से किसी ने भी कोई जवाब नही दिया, मगर शरम के मारे रुपा ने पास ही रखी चद्दर को खिँचकर ओढ सा लिया।
लीला भी सब समझ रही थी इसलिये उसने दोबारा से कुछ नही कहा और अपने लिये चारपाई बिछाने लग गयी। चारपाई बिछाकर लीला अब एक बार तो उस पर लेटने को हुई मगर फिर वो कुछ सोचने सा लगी, और ना जाने उसके दिमाग मे क्या आया की...
"सुन...! तु उधर जाकर सो चारपाई पर..!, इसका कोई भरोसा नही सोते सोते कही पेट पर हाथ पैर मार दिया तो पेट के बच्चे को चोट लग जायेगी..? ये कहते हुवे वो अब पलँग के पास आकर खङी हो गयी।
रूपा को अब ये एक बार तो थोङा अजीब सा लगा, मगर फिर कुछ सोचकर वो मन ही मन मुस्कुरा सी उठी, क्योंकि अभी ठीक से दो महिने भी नही हुवे थे उसे पेट से हुवे जो पेट के बच्वे को चोट लगे, उपर से लीला ने खुद ही तो उसे राजु के साथ सोने के लिये भेजा था, और अब उसके पास सोने से बच्चे को चोट लगनी की बात कह रही थी..! रुपा भी समझ गयी थी की उसकी माँ ऐसा क्यो कह रही है इसलिये वो अब चुपचाप पलँग पर से उठकर चारपाई पर जाकर लेट गयी तो लीला ने भी अपनी साङी को तो खोलकर सिराहने रख दिया और पेटीकोट व ब्लाउज मे होकर रुपा की जगह राजु की बगल मे पलँग पर अब खुद लेट गयी....