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मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक

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kamdev99008

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kamdev99008

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Sorry bolne ka man huaa. Mazak me hi lena.

Moksh tak pahoche. Par pa nahi sake. Kamdev ko samazna hoga ki rati ke sath milan ko bhogte us kamrswar aur kameswari ko pana hoga. Yahi to akhri padav hai. Tabhi to bhog chhod moksh ki prapti hogi.
भ्रम से बाहर आइये भोग 🍲 और सम्भोग :sex: मोक्ष में बाधक नहीं साधन हैं, इन्हीं दोनों से तो आत्मिक और शारीरिक तृप्ति या तुष्टि मिलती है
यही मोक्ष है
मोक्ष के लिए त्याग नहीं तुष्टि आवश्यक है, कुछ मत छोड़ो सबकुछ जो और जितना पा सकते हो, तुष्टि की उस पराकाष्ठा तक प्राप्त करो कि लालसा ही ना रहे :love3:
 

Shetan

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भ्रम से बाहर आइये भोग 🍲 और सम्भोग :sex: मोक्ष में बाधक नहीं साधन हैं, इन्हीं दोनों से तो आत्मिक और शारीरिक तृप्ति या तुष्टि मिलती है
यही मोक्ष है
मोक्ष के लिए त्याग नहीं तुष्टि आवश्यक है, कुछ मत छोड़ो सबकुछ जो और जितना पा सकते हो, तुष्टि की उस पराकाष्ठा तक प्राप्त करो कि लालसा ही ना रहे :love3:
Raste kai alag hai. Jis rah par ham kapali log chalte hai. Usme yahi akhri padav hai. Me bhi to yahi bol rahi hu. Aap samaz sayad kuchh aur rahe ho. Mene kya kaha. Ye akhri padav hai. Anant kal. Sunya sab kuchh uske bad hi to hai.


Par kahi dusre panth valo se bhi kuchh suna tha.

Bhut le bhog, puja se mile dev, smaran kar tu pyare. Tabhi milenge mahadev
 

kamdev99008

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Yahan adultery to khatam ho gayi 90% kahaniyan ya to cuckold, interfaith ya voyeuristic (taka jhaanki se dekh ke batane wali)



Aise chutiya beton aur patiyon ko to sirf dekhna nahi chahiye apni bhi marwa leni chahiye...



Gazab chutiyapa hai....
 

kamdev99008

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भाई बात आपकी ठीक है। राजेंद्र को मिताली जैसी अपरिक्व लड़की को रोकना चाहिए था, उसको स्वतंत्र निर्णय की छुट नही देनी चाहिए थी, उस पर नज़र रखनी चाहिए थी।
पर इन सबसे क्या होता। देखी राजीव ने कुछ भी जबरदस्ती नही किया। सब कुछ मिताली की सहमति से हुआ। राजेंद्र ने उसे अपनी तरफ से पूर्णत समझने के कई प्रयास भी किये। पर मिताली को अपने पर पूरा यकीन था। देखिये समझाया उसे जा सकता है जो अभी फैसला लेने की उधेड़बुन मे है। जो अभी अपनी मंजिल के रास्ते मे है, रास्ता उसे हि दिखाया जा सकता है। जिसने अपना रास्ता तय कर लिया है और मंजिल पा ली है उसे अब मार्गदर्शक की जरूरत नही है, उसी तरह यदि कोई फैसला ले चुका है चाहे वो सही हो या गलत तो उसे अब सलाहकार की जरूरत नही होती। अब आप या तो सबूतों से उसके फैसले को गलत साबित करे या प्रतीक्षा करे जब समय उसे उस फैसले के गलत होने का अहसास स्वयं करवाएगा। इन दो स्तिथियों के सिवा वो व्यक्ति कभी किसी की बात नही सुनेगा।
यही स्तिथि यहां मिताली की थी। पढ़ लिखकर उसे खुद पर पूरा यकीन आ गया की वो अपने बारे मे सही फैसले लेने मे सक्षम है, उसे किसी की सलाह या मार्गदर्शन की जरूरत नही है। जब उसे राजेंद्र कोई बात भी बताता तो उसे वो जबरदस्ती करना या उसकी स्वतंत्रता रोकना लगता था। इस परिस्थिती मे राजेंद्र के पास मिताली को उसकी किस्मत और समय के भरोसे छोड़ने के अतिरेक कोई उपाय नही था।
रही बात महानता की तो भाई अच्छाई की खासियत हि यही है की वो अच्छे के साथ भी अच्छी है और बुरे के साथ भी। वो बुरे को बुरा करने से रोकती है, उसे अच्छे रास्ते पर लाने के सभी उपाय करती है पर कभी बुरे का भी बुरा नही करती है।
अगर आपकी अच्छाई अच्छे के साथ अच्छी और बुरे के साथ बुरी है तो फिर तो वो मौका परस्ती है ना की अच्छाई। फिर तो आपका अपना कोई चरित्रिक गुण है हि नही आप केवल सामने वाले से जो क्रिया आती है उसके अनुसार प्रतिक्रिया देते है, आपके चरित्र मे स्वाभाविकता का तो अभाव रह गया।
इसीलिए कहा जाता "आदमी को चोट लगने पर ही अक्ल आती है।"
और साथ हि ये भी की " सुबह का भुला शाम को घर लौट आये तो उसे भुला नही कहते।"
और " क्षमा वीरों का आभूषण है कायरों का नहीं।"

"क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दन्तहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।"
सिर्फ 2 सवाल

(1)
अच्छाई और बुराई (बढ़िया और खराब भी कहते हैं)
तथा
उचित और अनुचित (सही और ग़लत भी कहते हैं)

इनके बीच अन्तर बहुत बड़ा है लेकिन सामान्य रूप से हम इनको एक ही मान लेते हैं

क्या जो सबको, सबके लिए, किसी के लिए या किसी को अच्छा लगता है......
वो उचित भी है?

क्या जो सबको, सबके लिए, किसी के लिए या किसी को बुरा लगता है......
वो अनुचित ही है?

क्या जो अच्छा है वो अनुचित नहीं हो सकता या जो बुरा लगता है वो उचित नहीं हो सकता?
…............
(2)
क्या क्षमा, दया, दान और भिक्षा क्या सबको देने चाहिए या पात्रता देखकर जो इस योग्य है उसे दिया जाए?

क्या अपात्र या ग़लत व्यक्ति क्षमा, दया, दान या भिक्षा का ग़लत इस्तेमाल नहीं करेगा?
................
मुझे या किसी को बताने की आवश्यकता नहीं
अपने मन में सोचकर, अपने वास्तविक जीवन में अनुभव करके
और.......
संसार में कहीं भी किसी का भी इतिहास, जीवनी, आत्मकथा या प्रसंग उठाकर देखना

हर अपराध की जड़ में अच्छाई और हर अपराधी का बल अपात्र होने पर भी मिले क्षमा, दया, दान या भिक्षा से है
..................
आत्मसंतुष्टि के लिए लुभावनी कविताएं लिखने से सत्य नहीं बदल जाता.... ये इन कवियों की जीवनी पढ़कर समझा जा सकता है कविताएं नहीं

मैं औचित्य (उचित-अनुचित) में श्रद्धा रखता हूं ना कि सरकार, समाज, कानून और अपनों के द्वारा जब मर्जी बदलने वाली अच्छे-बुरे की परिभाषाओं में

न्याय का सिद्धान्त है कि आपके कृत्य अपराध नहीं माना जाता, आपकी मंशा को अपराध माना जाता है
एक व्यक्ति आत्मरक्षा में हत्या करके भी अपराधी नहीं और एक धमकी देने के अपराध में सजा का हकदार है

तो आपके लिए तर्क सभी के दिए नहीं केवल उनके लिए सही हैं जो सही सोच रखते हैं

फिर भी कोई संशय हो तो नीचे सिग्नेचर में दिये लिंक 👇पर पहुंचकर विचार प्रकट करें... समाधान का प्रयास करूंगा
 

kamdev99008

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बताओ,
हम अपने-आप को ऐसे ही ग्यानी समझे बैठे थे:sigh: असली नोलेज, ओर ग्यान तो हमारे कामदेव भाई जी को है।:approve: सही कहूं तो मेरे ग्यान मे भी बढोत्तरी हुई है। ईसी लिए तो हम आपके पीछे पड़े रहते है भाई :D
आमिश त्रिपाठी की 'मेलुहा के मृत्युञ्जय/Immortals of Meluha' सीरीज की ३ किताबें
और 'इक्ष्वाकु के वंशज/Scion of Ikshvaku' सीरीज की अब तक प्रकाशित ४ पुस्तकें पढ़कर देखना
सनातन संस्कृति के आध्यात्मिक कथानकों को आधुनिक परिवेश में लाये बिना एक अद्वितीय अद्भुत और आकर्षक कथानक के रुप में तर्कपूर्ण प्रस्तुति हैं

आपके इस कथानक के लिए बहुत कुछ नया और संदर्भित मिल सकता है वहां से

मेरे पास सभी ग्रंथ pdf में हैं हिंदी अंग्रेजी दोनों में
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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आमिश त्रिपाठी की 'मेलुहा के मृत्युञ्जय/Immortals of Meluha' सीरीज की ३ किताबें
और 'इक्ष्वाकु के वंशज/Scion of Ikshvaku' सीरीज की अब तक प्रकाशित ४ पुस्तकें पढ़कर देखना
सनातन संस्कृति के आध्यात्मिक कथानकों को आधुनिक परिवेश में लाये बिना एक अद्वितीय अद्भुत और आकर्षक कथानक के रुप में तर्कपूर्ण प्रस्तुति हैं

आपके इस कथानक के लिए बहुत कुछ नया और संदर्भित मिल सकता है वहां से

मेरे पास सभी ग्रंथ pdf में हैं हिंदी अंग्रेजी दोनों में
Bhai ji abhi to nahi padh sakta , bohot jyada busy rahunga 1.5 mahine, uske baad aapse lekar padhoonga filhaal to iss story ke update time per de du wHi bohot hai😂
 
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manu@84

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kamdev99008
आश्लील, पारिवारिक व्यभिचार पर आधारित कहानियों, चित्रों, चल चित्रों को देखना पढ़ना क्या एक सामान्य गृहस्थी में जीवन यापन करने वाले के लिए उचित है???

चाहें वो व्यक्ति किसी भी व्यभिचार सलिंपत् ना हो,? क्या वासना का भी एक दायरा होता??? अविवाहित और विवाहित पुरुष के लिए पर स्त्री की परिभाषा क्या है???

काम वासना वश किये गए व्यभिचार के पापों का नाश कैसे करे????

जिग्यसा का समाधान करे 🙏🏻
 
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kamdev99008

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kamdev99008
आश्लील, पारिवारिक व्यभिचार पर आधारित कहानियों, चित्रों, चल चित्रों को देखना पढ़ना क्या एक सामान्य गृहस्थी में जीवन यापन करने वाले के लिए उचित है???

चाहें वो व्यक्ति किसी भी व्यभिचार सलिंपत् ना हो,? क्या वासना का भी एक दायरा होता??? अविवाहित और विवाहित पुरुष के लिए पर स्त्री की परिभाषा क्या है???

काम वासना वश किये गए व्यभिचार के पापों का नाश कैसे करे????

जिग्यसा का समाधान करे 🙏🏻
अश्लील हमारी सामाजिक मर्यादा के अनुसार होता है। व्यक्तिगत रुप से ये आकर्षण है, सभी के लिए प्राकृतिक रुप से
अब चूंकि समाज गृहस्थ से बनता है अविवाहित और गृहत्यागी से नहीं तो अश्लील, विवाहेत्तर सम्बन्ध, पारिवारिक व्यभिचार गृहस्थ के लिए केवल तब तक ही उचित है जब तक समाज से छिपा हुआ, व्यक्तिगत आचरण हो...
लिखना, पढ़ना, देखना, सुनना और करना भी

अविवाहित के लिए परस्त्री/परपुरुष केवल विवाहित, सभी व्यक्ति हैं। दूसरा कोई भी अविवाहित त्याज्य नहीं

जबकि विवाहित के लिए सभी परस्त्री/परपुरुष हैं, केवल अपने पति/पत्नी को छोड़कर

किसने कहा कि सम्भोग, वासना, काम या व्यभिचार पाप हैं?
ये सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन है जिसका प्रतिशोध समाज अपने नियम-कानून से लेता है

अन्य कोई प्रश्न?

एक अन्य स्पष्टीकरण:- पाप-पुण्य का नाश नहीं होता केवल प्रतिफल होता है, जो अपरिवर्तनीय है
 
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अश्लील हमारी सामाजिक मर्यादा के अनुसार होता है। व्यक्तिगत रुप से ये आकर्षण है, सभी के लिए प्राकृतिक रुप से
अब चूंकि समाज गृहस्थ से बनता है अविवाहित और गृहत्यागी से नहीं तो अश्लील, विवाहेत्तर सम्बन्ध, पारिवारिक व्यभिचार गृहस्थ के लिए केवल तब तक ही उचित है जब तक समाज से छिपा हुआ, व्यक्तिगत आचरण हो...
लिखना, पढ़ना, देखना, सुनना और करना भी

अविवाहित के लिए परस्त्री/परपुरुष केवल विवाहित, सभी व्यक्ति हैं। दूसरा कोई भी अविवाहित त्याज्य नहीं

जबकि विवाहित के लिए सभी परस्त्री/परपुरुष हैं, केवल अपने पति/पत्नी को छोड़कर

किसने कहा कि सम्भोग, वासना, काम या व्यभिचार पाप हैं?
ये सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन है जिसका प्रतिशोध समाज अपने नियम-कानून से लेता है
अगर ये पाप नही तो छिप कर क्यों किया जाता है, अथवा छिपाया क्यों जाता है, इसको सब स्वीकार करने से क्यों डरते है??? और अंत में इन सम्बधो का परिणाम पश्चताप पर ही क्यों ठेहरता है???
अन्य कोई प्रश्न?

एक अन्य स्पष्टीकरण:- पाप-पुण्य का नाश नहीं होता केवल प्रतिफल होता है, जो अपरिवर्तनीय है
1 पाप और अपराध मे क्या अंतर है???
2 आज के काम युग में अपने मन और इंद्रियों (जनेद्रियो ) को बश मे कैसे करे???
3 पैसे देकर वैश्या गमन करना या प्रेम जाल मे फंसा कर संभोग करना। दोनों में एक जैसा ही दोष अथवा पाप लगता है।
4 उम्र के कोणसे पड़ाव में काम वासना को त्याग देना चाहिए???
5 जन्म और मर्त्यु का कोई समय निर्धारित नही होता है । अगर घर का बुजुर्ग बाहर अपनी अनितम् साँसे लेते हुए मर्त्यु को प्राप्त कर जाता है और बेटा बहु उस बात से अंजान अपने कमरे में काम कीडा मे व्यस्त हो तो उस पाप का पश्चताप कैसे करे???
 
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